काया की माया

काया की माया

रामबाण से घायल होकर
पड़ा भूमि पर जब दशकंधर,
लक्ष्मण से बोले तब रघुवीर ,
शिक्षा लो रावण से जाकर
रावण के समीप जा लक्ष्मण,
रहा प्रतीक्षा करता कुछ क्षण ,
फिर रघुवर से जाकर बोला,
वह तो कुछ भी नहीं बोलता,
कहा राम ने खड़े थे कहाँ
बोला सिर के पास खड़ा था
रघुवर बोले तुम फिर जाओ
दूजी और खड़े हो जाओ
रावण को मारा है हमने
फिर भी वह पंडित ज्ञानी था
चरणों के समीप जाकर ही
ग्रहण कर सकोगे तुम शिक्षा
अबकी बार कहा रावण ने
बातें तीन याद तुम रखना
शुभ कार्यों को नहीं टालना
बुरे कर्म को शीघ्र न करना
और यथासंभव तुम अपने
प्रिय भाई को दूर न करना
मेरी इच्छा थी पृथ्वी से
स्वर्ग तलक बनवाऊँ सीढ़ी
आज करूँगा,कल कर लूँगा
सोच-सोचकर आयु बीता दी,
दीर्घसूत्रिता के कारण ही
हुई न पूरी कभी समस्या
अब यह पूरी कभी न होगी
कौन करेगा कठिन तपस्या
सीता -हरण शीघ्र कर डाला,
अपने भ्राता को तज डाला
इन कर्मों का फल यह पाया,
राज्य व जीवन सभी गँवाया ,
जो सीखा वह तुम्हें बताया
अब तो त्याग रहा हूँ काया

डॉ. ब्रजराज कश्यप
टोरोंटो, कनाडा

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