वह “गुलाब” तुम ही हो

वह “गुलाब” तुम ही हो

मेरे मन को जो भाता है
दुख में भी जो हंसाता है
वह “गुलाब” तुम ही हो ।

दर्शन जिसके जब भी पाऊँ
असीम सुखों में खो जाऊँ
वह “गुलाब” तुम ही हो ।

होठों पे रहती मृदु हास
स्पर्श में कोमलता का अहसास
वह “गुलाब” तुम ही हो ।

जिससे मिलती है यह शिक्षा
मुस्कान हर चेहरे पे लाना अच्छा
वह “गुलाब” तुम ही हो ।

करती हूं बस यही कामना
कंटक कभी न मुझे चुभाना
वह गुलाब तुम ही हो
वह “गुलाब” तुम ही हो ।

सुष्मिता मिश्रा

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