गुलाबी आँखें…

गुलाबी आँखें…

अच्छा तो आप सोच रहे हैं कि मैं कोई ऐसी प्रेम कहानी कहने जा रही हूँ जिसमें एक लड़का और लड़की होंगे और लड़की के गुलाबी आँखों में लड़का… अरे नहीं, नहीं। चलिए मैं आपको मैं गुलाबी आखों वाली के पास ही लिए चलती हूँ।

लेकिन उससे पहले मैं अपना परिचय तो दूँ आपको। मेरा नाम रश्मि है अपने परिवार के साथ 2012 में इंग्लैण्ड आई थी और आजकल बरमिंघम यूनीवर्सिटी से लिंग्विस्टिक्स में एम. ए. कर रही हूँ। पति एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते हैं । दो बच्चे हैं जो सेकेंड्री स्कूल में पढ़ रहे हैं।

सिटी बस के मामले में मैं अक्सर अपढ़ गँवार बन जाती हूँ। सिटी बस में यात्रा करना मुझे अच्छा लगता है। किंतु कभी अवसर ही नहीं मिला और ये क्या आफत आन पड़ी।मेरी गाड़ी खराब हो गयी थी और मुझे जाना था संगीत की कक्षा में।मैंने तय कर लिया था कि बस से जाऊँगी। भीतर से भय ऊपर से बहादुर बनकर बस यात्रा के लिए निकली,हालाँकि मुझे भारत से आए हुए लगभग दस साल हो गए थे किंतु फिर भी मेरे कान हर तरह की अंग्रेजी सुनने के अभ्यस्त नहीं थे। बस स्टाप पर खड़े-खड़े बहुत देर हो गई। एक व्यक्ति बस स्टॉप पर खड़ा था उसने पूछने पर बताया कि दो बसें बदलनी होंगी और 18 नंबर की बस है फिर कौनसी बस लेनी है कौनसी नहीं, उसका लहजा समझ पाना बहुत मुश्किल था। मैं भी दो-तीन बार उसे दोबारा बोलने के लिए कह चुकी थी। अतः अभद्र न लगूँ इसलिए मुस्कराकर धन्यवाद कहकर ऐसे खड़ी हो गई, जैसे सबकुछ समझ आ गया हो। जब बस आई तो वह मेरे साथ ही उसी बस में चढ़ गया। यह आश्वस्ति थी कि सही बस में चढ़ गई हूँ।अब दूसरा स्टाप 35 मिनिट बाद आएगा। तब वहाँ फिर पूछूँगी। स्टाप छूटने के डर की वजह से मैं पहली ही सीट पर बैठ गई। सीट पर कुछ नहीं लिखा था। लेकिन अक्सर पहली सीट वृद्धों के लिए ही होती है। किंतु बस खाली थी। मैंने सोचा, कोई आएगा तो उठ जाऊँगी।

एक वृद्ध महिला खुशबू के झोंके के साथ बस में चढ़ी। अपने कुछ अप्रिय पूर्वानुभवों के आधार पर मैं निश्चिंत थी कि यह मेरे पास बैठने से तो रही। लेकिन फिर मुझे याद आया कि मैं वृद्धों वाली सीट पर बैठी थी, मैं उठने लगी तो उसने मुझे बैठे रहने के लिए कहा और मेरे पास बैठने के पूर्व मेरी इजाज़त लेते हुए वह अंग्रेज़ महिला मेरे पास आ बैठी। सबसे पहले तो उनके भीने से परफ्यूम ने मुझे आनंदित किया।सुगंध को भीतर तक पीने के लिए एक गहरी साँस ली और मेरी निगाहें उसके नाखूनों पर अटक गई।करीने से कटे, गहरे गुलाबी रंग की नेलपालिश में रंगे। फिर कुछ ऊपर देखा, तो दो सुंदर पतले गुलाबी होठ जिन पर बहुत ही सफाई से नेलपालिश के ही रंग की गहरे गुलाबी रंग की लिप्सटिक। सुतवाँ नाक, उस पर रखा सुनहरी फ्रेम का चश्मा। उम्र लगभग 70-75 के आसपास। अब मैंने पैरों की तरफ देखा तो गुलाबी रंग की छोटी हील वाली खूबसूरत सैंडिल उसके छोटे-छोटे पैरों में और पारदर्शी रंग के मोजों में से झाँकते गुलाबी नाखून। अब कपड़ों पर ध्यान दिया तो सफेद रंग के ट्राउजर्स के साथ शिफान का पेस्टल गुलाबी फूलों वाला टाप, गले में सिल्क का स्कार्फ गहरे गुलाबी रंग की बारिश वाली जैकेट। स्निग्ध सफेद मक्खन से गोरे गालों को एकबारगी छूकर देखने का मन हो आया।उसके व्यक्तित्व में सरलता थी।

‘लवली वेदर’ कह कर उसी ने बात का आरंभ किया, उसकी आत्मीयता के कारण हमारी बातचीत शुरु हो गई। मैंने बताया कि मेरी कार खराब हो गई है इसलिए मुझे बस से यात्रा करना पड़ रहा है। वह बोली,”आय यूस्ड टु ड्राइव।आय स्टिल कैन, बट आय सोल्ड माय कार बिकॉज इट वॉज इक्सपेंसिव टु यूज दि कार।बस इज़ फ्री, नाओ, आय सेव ए लॉट ऑव मनी। ”

मैंने बस में यात्रा करने के अपने डर के साझा किया तो उसने पूछा, ” कहाँ जा रही हो?और बातचीत में पता लगा कि हमें एक ही स्टाप पर उतरना था।मैं आश्वस्त हो गई। हम बातचीत करने लगे। मैंने उसके व्यक्तित्व की तारीफ की।

वह बोली, “मुझे …….. मुझे तैयार होना अच्छा लगता है। जीवन जीने का कारण देता है,रोज़र भी एकदम अपटूडेट रहता था ” शायद वे अपने पति की बात कर रही थीं। मैं उनका चेहरा देख रही थी। और मुझे अचानक मेरी अपनी माँ याद आ गयीं। वे सजने-सँवरने की बहुत शौकीन थी। लेकिन बहुओं के आने के बाद उन्होंने अपना सजना-सँवरना काफी हद तक छोड़ दिया था। भारत में अक्सर बुजुर्गों पर कई अनकहे प्रतिबंध हैं। जो उन प्रतिबंधों की परवाह नहीं करते उनकी हँसी उड़ायी जाती है, मुझे याद है कि बहुत पसंद होते हुए भी,माँ ने काजल लगाना बंद कर दिया था, माँग भी नाम के लिए ही भरती थीं।

इधर, मेरे बाजू में बैठी वह अंग्रेज़ महिला उन सभी बड़ी उम्र वाले लोगों से नाराज़ थी, जो घर बैठ-बैठे जमाने भर को गालियाँ देते हैं। दर्दों की शिकायत करते हैं, बेटे-बेटियों रिश्तेदारों,अड़ोसी-पड़ोसियों की बुराइयाँ करते हैं।

फिर अपनी बेटी पर नाराज़ होने लगीं, जिसमें नाराज़ी से ज्यादा माँ की चिंता झलक रही थी। वे कह रहीं थी, कि मेरी बेटी अभी बस 70 की है और बाहर निकलने के नाम पर बहाने बनाती है।कुछ नहीं करती घर में पड़ी रहती है। मैं उसे कहती हूँ कि घर से बाहर निकला कर वॉक पर जाया कर। पर मजाल है कि सुन ले। मुझे मन ही मन हँसी आ गई।

ये माँ-बेटी का रिश्ता देस में, परदेस में सब जगह एक-सा ही है। बच्चे कितनी भी उम्र के हो जाए, माँ के लिए बच्चे कभी बड़े होते ही नहीं। सत्तर वर्षीय बेटी के स्वास्थ को लेकर चिंतित उलाहने मुझे बड़े भले लगे।

कहाँ तो मैं उन्हें 70 का समझ रही थी। लेकिन सत्तर की तो उनकी बेटी थी।वह कह रही थी, ‘मुझे देखो, मैं 92 की हो जाऊंगी। मैं सोमवार को लेडीज क्लब जाती हूँ।मंगल को एलडरली डे केयर में, बुध को वेदरस्पून्ज़ ब्रेकफास्ट करने…’

‘वेदरस्पून्ज़’ जाना अक्सर अंग्रेज़ होने की एक निशानी है। यहाँ भोजन अपेक्षाकृत सस्ता होता है।

‘…..बृहस्पति को स्विमिंग, शुक्र को वॉकिंग ग्रुप के साथ दो घंटा वॉक पर, शनिवार को सिटी सेंटर रविवार को घर की साप्ताहिक सफ़ाई……’।

मैं उनकी जिजीविषा से चमत्कृत थी।वृद्धावस्था में व्यस्तता और जीवंतता का अद्भुत संगम !

तीन साल पहले पति का देहांत हो गया, तबसे वे नियमित रूप से सप्ताह के हर दिन कुछ न कुछ अवश्य करती हैं। ..अचानक उनकी आवाज़ भर्रा गई। उन्होंने शीघ्र ही अपने मन के भीगेपन को संभालते हुए कहा, “…मैंने 17 साल उसकी नर्सिंग की और वह गुडबाय बोलकर भी नहीं गया। इट्स डिफ़िकल्ट टु लिव विदाउट हिम। उसके जिक्र से उनकी आँखें भर आईं और अधिक गुलाबी हो आईं।

मैं “आय एम सौरी” कहकर सिमट गई। हमारे बीच एक चुप्पी छा गई।

खुद को संभालकर, वे फिर बोलीं, “मैं किसी धर्म, रंग और जाति को नहीं मानती। मैं चर्च के संडे स्कूल में पढ़ाती थी। देश-विदेश से आई 54 लड़कियों के एक हॉस्टल में हाउस मदर रही। डैबेनहैम में सेल सुपरवाईजर रही। वहाँ मेरी इंडियन फ्रैंड्ज़ थीं। हम अभी भी मिलते हैं। फिर रोजर की बीमारी के बाद मैं रिटायर हो गई। उसके साथ टाईम बिताना अच्छा लगता था।

चेलटनहैम की रहनेवाली थीं 1946 में शादी कर के बरमिंघम आई थीं।

बोलीं, ‘जब तक रोजर था, हम बहुत घूमते थे । फिर जब उसका चलना बंद हो गया तो मैं उसे व्हील चेयर पर लेकर हर जगह जाती थी और अब………. अब अकेली ही जाती हूँ।

भारत में हमारे मोहल्ले में एक दादा-दादी जी की मोहल्ले वाले पीठ पीछे उनकी हँसी उड़ाया करते थे कि ये तो नयी शादी हुए लोगों से भी आगे हैं क्योंकि एक पल को एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते। और मैं सोचती कि जिन लोगों ने जीवन के पचास से अधिक समय साथ में बिता लिया है, उन्हें तो हक है यूँ पल-पल साथ बिताने का। क्या पता किस पल किसकी साँस रुक जाए ?

उन्होंने गहरी साँस छोड़ी। फिर धीरे से बोलीं , ‘आय मिस हिम एवरी मिनिट। कल बहुत खास दिन है मेरी और रोजर की शादी की सालगिरह का। और मेरा जन्मदिन भी है।’

मैं सोचने लगी कि वर्तमान पीढ़ी में कितनी असहनशीलता है, जरा कुछ हुआ सीधे लड़ाई! तलाक!और एक यह बानवें वर्ष की बुज़ुर्ग महिला है जो सत्रह साल तक बीमार-लाचार पति की सेवा करके, उनके देहांत के तीन साल बाद भी इतनी शिद्दत से याद कर रही थी। मेरा मन भी भावुक हो उठा।

 

हमारा बस स्टॉप आ गया था । उन्होंने उतर कर मुझे बाय किया और सड़क पार कर के वेदरस्पून में चली गईं। मैंने सेंसबरी सुपरमार्केट सामने देखा और न जाने क्या सोच कर अंदर गई , फूल खरीदे और सड़क पार कर के वेदरस्पून जा पहुँची। वह मुझे देख कर चौंक गईं।मैंने उन्हें फूल दिए, बदले में मुझे एक आत्मीय आलिंगन। जिसने मुझे एक अनोखी खुशबू से भर दिया। हमने न नाम पूछे, न जानने की कोशिश ही की। लेकिन उर्जा, उत्साह और सौम्य सौंदर्य की उस देवी की याद आज भी मुझे मुस्कराने पर मजबूर कर देती है। उस बस यात्रा में उसे देखा, जाना उसके माध्यम से अंग्रेजी समाज के बारे में बहुत थोड़ा, किंतु बहुत कुछ जाना। जिसके अनुभव का कैनवास जितने रंगों से भरा हो उसका संसार उतना समृद्ध हो जाता है।

और मैं उसके व्यक्तित्त्व के गुलाबीपन में डूबी, ‘गुलाबी आँखे जो तेरी देखीं शराबी यो दिल हो गया’ गुनगुनाती अपनी संगीत कक्षा के लिए चल पड़ी।

वंदना मुकेश 

ब्रिटेन

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