श्रेया

श्रेया

 

ऑफिस से लौटकर श्रेया कमरे में अपनी बैग रखने गई । अनायास ही उसकी नज़र दीवार पर टँगी नानी की तस्वीर पर गई।श्रेया के जीवन में नानी की अहमियत बहुत थी । या यूँ कहें कि नानी उसकी सब कुछ थी।तस्वीर को देख श्रेया की आँखों से अविरल आँसू बहने लगे ।

 

बात उन दिनों की थी जब श्रेया पाँच वर्ष की थी । वह इकलौती संतान थी ,मम्मी पापा की लाडली ।ख़ुशी – ख़ुशी माँ शिवानी और पापा रवि के साथ श्रेया रविवार के दिन पार्क घूमने जा रही थी । उस मासूम को कहाँ पता था कि मम्मी पापा के साथ ये उसकी ख़ुशी के आख़िरी पल थे। श्रेया हर बार की तरह गाड़ी में खूब बातें कर रही थी ।पार्क पहुंचकर रवि गाड़ी जगह पर लगाने की सोच रहे थे तभी श्रेया गाड़ी से निकल कर पार्क की तरफ दौड़ने लगी । सामने से तेज रफ़्तार से एक बस चली आ रही थी । रवि की नज़र जैसे ही उस पर पड़ी वह श्रेया को बचाने दौड़ा । बेटी को तो धक्का देकर बचा लिया पर खुद बस के नीचे आ गया । लोगों की भीड़ लग गयी ।शिवानी भी घटनास्थल पर भागी भागी पहुँची । रवि को सबने मिलकर अस्पताल पहुंचाया । ज़्यादा ख़ून बहने से डाक्टर रवि को नहीं बचा सके।

 

शिवानी तो हतप्रभ थी, बिल्कुल सुन्न हो गई थी ।श्रेया ज़ोर ज़ोर से पापा पापा बोल रोने लगी । बेहद मार्मिक नजारा था। कुछ लोगों ने नम्बर लेकर श्रेया के नानी – नानी को कॉल किया । वो बदहवास होकर दौड़े चले आए ।शिवानी बिल्कुल तटस्थ हो गई थी । छोटी सी बच्ची श्रेया की तरफ वो देखती तक नहीं थी । मन ही मन शायद रवि की मौत की वजह अपनी बेटी को मान रही थी।दिन बीते फिर भी उसका व्यवहार बेटी तरफ बिलकुल भी नहीं बदला । पहले तो श्रेया उसकी आँखों का तारा थी ,अब शायद किरकिरी बन चुकी थी । मुँह से शिवानी कुछ नहीं बोलती पर श्रेया की नानी सब समझती थी । वह अपनी नातिन को अपने कलेजे से लगाकर उसे खूब प्यार करती ।

दो महीने बाद शिवानी अपने ऑफिस भी जाने लगीं । घर में स्थिति सामान्य हो चला । शिवानी का रवैया अपनी बेटी के प्रति उदासीन ही रहा।बेचारी श्रेया समझ ही नहीं पाती कि उसने क्या ग़लत किया कि मम्मी उसकी तरफ ध्यान नहीं देती । श्रेया शिवानी के लिए अब कुछ भी नहीं थी।

नानी कुसुम जी ने अपनी नातिन की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी। खाना खिलाना, चोटी गूँथना, टिफ़िन भरना , स्कूल भेजना ,होम वर्क कराना,पढ़ाना, कुल मिलाकर जो एक माँ करती सब कुसुम जी करती।

दिन बीतने लगे ।शिवानी चूँकि बहुत कम उम्र में अपने पति को खो चुकी थी ,कुसुम जी उसकी दूसरी शादी करवाना चाहती थी । नातिन की ज़िम्मेदारी तो उन्होंने सँभाल ली थी, साथ ही साथ बेटी की शादी के लिए भी प्रयास शुरू कर दिया ।

जल्दी ही एक सुयोग्य लड़का मिल गया और शिवानी की शादी हो गई । ससुराल जाते समय भी शिवानी ने एक बार भी अपनी बेटी को प्यार भरी नज़रों से नहीं देखा।श्रेया भी मन मसोस कर रह गई ।अपनी माँ के जाने के बाद वो नानी को ही अपना सबकुछ समझती थी ।

नानी के संरक्षण और संस्कार के साथ श्रेया धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। शिवानी अपने माँ के घर कभी-कभी आती थी पर वो कभी भी बेटी को गले नहीं लगाती, न ही प्यार से कुछ कहती ।

श्रेया अब बीस साल की हो गई थी ।कुसुम जी भी सत्तर की होनेवाली थी। नानी नातिन दोनों एक-दूसरे से बेहद क़रीब थे । दोनों जैसे एक-दूसरे के पूरक बन गए थे ।श्रेया पढ़ने में अव्वल थी । देखने में बहुत खूबसूरत थी । अपने कालेज के सभी अध्यापकों की चहेती थी , नानी ने उसकी परवरिश बहुत अच्छी तरह से की थीं ।

अव्वल नंबर से पास होने के बाद तुरंत ही उसे एक प्रतिष्ठित संगठन में नौकरी मिल गई । नानी की ख़ुशी का ठिकाना न था । कुसुम जी शिवानी को उसकी बेटी की नौकरी मिलने के उपलक्ष्य में दावत पर बुलाई ।शिवानी ने श्रेया के प्रणाम का जवाब बड़े ही अनमने ढंग से दिया।श्रेया मन ही मन बहुत आहत हुई । वो कुछ भी नहीं बोली । नानी अपनी बेटी के व्यवहार से बहुत आहत हो जाती पर मन मसोस कर रह जाती ।

एक दिन श्रेया ने घर आ कर नानी को अपने एक सहकर्मी को पसंद करने की बात बताई ।कुसुम जी ने अपनी तरफ से लड़के की जानकारी ली और ख़ुशी ख़ुशी अपनी लाडली की शादी करवा दी। विदाई के समय नानी बार बार श्रेया को गले लगाकर रो रही थी और ढेरों आशीर्वाद दे रही थी।शिवानी विदाई के वक्त भी तटस्थ होकर देखती रही । न उसने बेटी को गले लगाया, ना कोई मीठे बोल बोले।श्रेया के जाने के बाद नानी बिलकुल अकेली हो गईं । कुसुम जी भले ही अकेली हो , वह मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देती थी कि जो ज़िम्मेदारी उन्होंने अपने उपर स्वतः ली थी वो बख़ूबी पूरी कर पाई ।

श्रेया नानी से मिलने जब भी समय मिलता आती रहती थी। समय बितता गया कुसुम जी कमजोर होने लगी।एक दिन अचानक ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वो संसार से चली गई।

ख़बर सुनते ही श्रेया आ गई ।शिवानी भी आई । दोनों दुखी हो खूब रो रही थी । अचानक ही शिवानी श्रेया की तरफ लपकी और उसे कस कर अपने गले लगा कर ज़ोर ज़ोर से बिलखने लगी । श्रेया के कान में फुसफुसा कर बोली, मुझे माफ कर दो मेरी बच्ची ।पता नहीं कब क्या मेरे दिमाग़ में आया और मैंने तुम्हें एक माँ के प्यार से वंचित रखा। शिवानी बार बार एक ही बात बोल कर श्रेया को चूमने लगी ,मानो नफ़रत का बर्फ पिघल कर आँखों से निकल रहा हो।श्रेया बिलकुल मौन हो कर याद कर रही थी अपना वह समय, जब उसे माँ के प्यार की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।

अचानक श्रेया के पति रोहित कमरे में आए और बोले, चाय ठंडी हो रही तुम अकेले कमरे में क्यों बैठी हो । श्रेया नम आँखों को पोंछते हुए बोली आ रही हूँ ।

अनीता सिन्हा, 

बड़ौदा, भारत

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