ऊँची उड़ान को मिले पंख

ऊँची उड़ान को मिले पंख

न्यू यॉर्क से दिल्ली तक की फ्लाइट ने दोनों का बुरा हाल कर दिया था और अब जेट लेग की समस्या से भी जूझना था ।

एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही डीज़ल के धुएँ से भरी गर्म हवा और कानफोड़ू हॉर्न ने स्वागत किया ।

टैक्सी लेकर दोनों एरोसिटी के एक होटल में चली गयीं ।मानसी और ज्योति दोनों अंतरंग मित्र थीं, एक थी बड़ी ज़िंदादिल और दूसरी बेफिक्र । दोनों मिलकर न्यू जर्सी में एक फैशन बुटीक चलाती थीं ।उनका अपना प्रोडक्शन हाउस भी था जिसमें बने हुए कपड़े अमेरिका के बड़े बड़े स्टोर में जाते थे ।

वे साल में दो बार इंडिया के विभिन्न प्रदेशों में जाकर कपड़ा ख़रीदती और फिर खूबसूरत ड्रेसेज़ बनवाती थीं जो केवल प्रवासी भारतीयों को ही नहीं बल्कि विदेशियों को भी बहुत पसंद आती थीं ।

इस बार उन्हें न्यू यॉर्क फैशन शो में भाग लेना था और जिसकी थीम उन्होंने लखनवी चिकनकारी रखी थी ।उसी के लिए उन्हें लखनऊ जाना था और चाँदनी चौक से भी हमेशा की तरह ख़रीदारी करनी थी ।

अगले चार दिन उन्होंने चाँदनी चौक छाना और फिर लखनऊ की फ्लाइट ले ली ।फैशन शो के लिए उन्हें चिकनकारी का कपड़ा अमीनाबाद से अच्छा कहीं नहीं मिल सकता था ।

ज्योति की बहन लखनऊ निवासी थी उसने अपने परिचित रफ़ीक क़ुरैशी को मदद करने के लिए उनके साथ भेज दिया जो अमीनाबाद के चप्पे चप्पे से परिचित थे ।वहाँ की अनेक तंग गलियों से होकर वह उन्हें एक मकान में ले गये ।

लाल ईंटों के बने खुले आँगन में चारों तरफ़ कमरे बने थे ।उनमें से एक कमरे का पर्दा हटाकर अंदर गये तो देखा सामने एक तख़्त पड़ा था जिस पर कपड़ों के अंबार के पीछे लगभग तीस वर्षीय एक ख़ूबसूरत युवती बैठी कढ़ाई करने में व्यस्त थी ।

उन्हें देखकर उसकी नज़रें उठी , उसके मासूम से चेहरे पर संकोच की रेखाएँ और होठों पर हल्की सी मुस्कान थी ।

 

‘ आदाब ! कैसे आना हुआ मामू जान ? अम्मी-अब्बा तो घर पर नहीं हैं । ‘ उसने कहा ।

शबनम ,ये मोहतरमा अमेरिका से आयी हैं ।इन्हें चिकनकारी का बढ़िया माल चाहिये था ।सोचा दुकान से दिलाने की जगह सीधा तुमसे ही बात करवा देता हूँ ,थोड़ा मुनाफ़ा तुम्हें भी हो जाएगा ।’

 

‘शुक्रिया ! मैं अभी दिखाती हूँ ।

 

उन्हें अब तक भरोसा नहीं हो रहा था कि इस छोटे से कमरे में उन्हें अपनी पसंद का सामान मिल जाएगा ।परंतु रफ़ीक पर भरोसा कर उसके साथ यहाँ तक आ ही गयीं थी तो सोचा देखने में क्या हर्ज है ।

शबनम ने तख़्त पर जगह बनाने के लिये अपने पैरों के पास पड़ा कपड़ों का अंबार एक तरफ़ किया । जैसे ही सामान एक तरफ़ हुआ उन दोनों ने देखा कि उसका एक पैर शरीर की तुलना में बहुत पतला था ।

 

उनकी आँखों में प्रश्न देख रफ़ीक बोले ,’शबनम मेरी भाँजी है ।जब चार साल की थी तो पोलियो से उसका एक पैर ख़राब हो गया था और दूसरे में भी ज़्यादा ताक़त नहीं है ।

 

उस समय ग़रीबी के कारण इसका ठीक से इसका इलाज नहीं हुआ और यह चलने फिरने से लाचार हो गई ।अब तो पहियों वाली कुर्सी ही इसका सहारा है । यह बहुत ही ज़हीन और मेहनती है ,अल्लाह ने अगर इससे कुछ छीना है तो साथ ही हुनर भी बख़्श दिया ताकि अपनी ज़िंदगी चला सके किसी पर बोझ ना बने । ’

 

शबनम के चेहरे पर पल भर के लिए गहरी पीड़ा के भाव आए पर तुरंत ही मुस्कुरा कर उसने बात बदल दी ।

 

‘देखिए ,कितना उम्दा काम किया हुआ है ।’ कहते हुए वह एक के बाद एक ख़ूबसूरत काम किया हुआ कपड़ा दिखाने लगी । इसमें मुर्री का काम है ,यह टेपची और यह जाली का काम है ।बखिया और टप्पे का काम भी होता है परंतु अभी नहीं है ।जब कोई ऑर्डर आता है तो बना देते हैं ।

इतने प्रकार की कढ़ाई देखकर दोनों दंग रह गयीं।

 

‘यहाँ इतनी तरह की कढ़ाई होती है हमें तो इनके नाम भी नहीं पता थे ।’ज्योति ने कहा ।

 

‘आपा ,वैसे तो चिकनकारी की छतीस तरह की कढ़ाई होती है परंतु टेपची ,जाली और मुर्री का काम ज़्यादा बिकता है ।नुकीली मुर्री का काम सबसे महँगा है क्योंकि इसमें बहुत महीन सुई से काम होता है और मेहनत बहुत लगती है ।’ शबनम ने बताया ।

 

‘ किस तरह के कपड़े पर ज़्यादा काम होता है ? ‘ उन्होंने पूछा ।

 

‘वैसे तो आजकल बहुत तरह के कपड़ों पर काम होने लगा है ,परंतु मलमल और शिफ़ॉन के ऊपर काम ज़्यादा खिलता है और पसंद भी ज़्यादा किया जाता है ? आप को किस तरह का चाहिए ? ‘

 

फिर उनके कहने पर उसने एक से बढ़कर एक कशीदाकारी और ज़रदोज़ी के नमूने दिखाए । दोनों उसका काम देखकर मुग्ध हो रही थी और यह जानकर हैरान हो गयीं कि यह सारा काम उसका और उसकी अम्मी का किया हुआ है ।

 

रफ़ीक ने बताया कि पीढ़ियों से उनका परिवार यह काम करता आया था ।

दुकानदार उनसे बहुत कम क़ीमत पर कढ़ाई करवाकर महँगे दामों पर कपड़ा बाहर बेचते हैं ।अब उन्होंने अपना काम भी शुरू किया है ताकि सीधे ही उनके हाथ में पैसा आए ।

वास्तव में उनका काम बेहतरीन था उन्हें ऐसे ही सामान की तलाश थी ।

 

कई दिन तक वह दोनों वहाँ जाकर अपनी पसंद का कपड़ा देखती रहीं ।शबनम भी अब उनसे धीरे धीरे खुलने लगी थी ।वह बड़ी उत्सुकता से उन दोनों से अमेरिका के बारे में जानकारी लेती ।

 

कुछ दिनों में उनकी आत्मीयता सी शबनम के साथ हो गई ।वह ज़्यादा नहीं बोलती थी पर एक दिन ना जाने क्या हुआ कि वह अपनी कहानी सुनाने लगी ।

‘ जानती हो आपा ! लड़की होना कितना मुश्किल है और उस पर अपाहिज होना और भी मुश्किल है ।मैं तो एक बोझ हूँ ।

 

‘तुम बोझ कहाँ हो तुम तो कितना काम करती हो घर बैठ कर भी पैसा कमा रही हो ।’ ज्योति ने कहा ।

 

‘आपको पता नहीं यहाँ तक पहुँचने में मैंने कितना दर्द सहा है और आज तक सह रही हूँ ।मैं छोटी सी थी जब मुझे पोलियो हुआ ,मेरे साथ के सब बच्चे इसी आँगन में खेलते थे तो मेरा भी बहुत मन करता था ।पर मैं भागना तो दूर ठीक से चल भी नहीं पाती थी और सब बच्चे तब मुझे लंगड़ी लंगड़ी कहकर पुकारते थे तब मैं बहुत दुखी होकर रोने लगती थी ।’

 

कहते कहते उसका गला भर आया पर तुरंत संयत होकर बोली ,

‘छोड़िये आपा ,मैं भी कहाँ का दुःखड़ा लेकर बैठ गई ।आप बताएँ इनमें से कौन कौन से रंग और कौन सी कढ़ाई आपको पसंद आयी हैं ,मैं वही बनवा दूँगी ।’

 

उस दिन वह दोनों वहाँ से आयीं तो उनका मन बहुत दुखी था ।

 

कार में बैठकर मानसी ने कहा ,’ज्योति ,हम शारीरिक रूप से सक्षम होकर भी ईश्वर के शुक्रगुज़ार नहीं होते ।बस अपनी ही समस्याओं को लेकर दुखी होते रहते हैं।

 

‘सही कह रही हो तुम ,एक यह लड़की है जो इतनी भीषण समस्याओं से जूझते हुए भी कितने साहस से जीवन की लड़ाई लड़ रही है ।’

 

अगले दिन बातों बातों में शबनम उनसे बोली ,’आपा ,आपसे एक बात पूछूँ तो आपको बुरा तो नहीं लगेगा ? ‘

‘अरे नहीं ,पूछो क्या पूछना है ? ‘ मानसी ने कहा ।

क्या आपका निकाह हो गया है ? उसने पूछा ।

 

हाँ ,मेरी एक बेटी भी है और ज्योति का एक बेटा है ।दोनों कॉलेज में पढ़ते हैं ।’ मानसी ने कहा ।

 

‘अच्छा तुम बताओ तुम्हारा निकाह हुआ ? ‘ मानसी ने पूछ लिया ।

 

शबनम के चेहरे पर दर्द की लकीरें फिर आकर ठहर गयीं ।

‘ मुझ अभागी की क़िस्मत में यह सुख कहाँ ? कहने को निकाह तो हुआ था पर —- ।’कहते कहते वह रुक गई ।

 

अगर तुम कुछ बताना नहीं चाहती हो तो कोई बात नहीं ।’ उसने कहा ।

 

‘ नहीं आपा ,अब आपसे क्या छुपाना ।मैं सोलह साल की थी तभी अम्मी ने अपने चचाजात भाई के बेटे से मेरा निकाह करवा दिया था पर एक साल में ही तलाक़ हो गया ।’

क्यों ,ऐसा क्या हुआ ? मानसी ने पूछा ।

 

‘ उन्हें वारिस चाहिए था और वह मैं उन्हें दे नहीं सकी ।डॉक्टर ने कहा कि पोलियो की वजह से केवल मेरी टांग ही ख़राब नहीं हुई बल्कि अंदर की आँतें भी सिकुड़ कर गुच्छा बन गयीं हैं जिसकी वजह से मैं कभी माँ नहीं बन सकती ।एक औरत लिए यह बहुत बड़ी सज़ा थी और इस पर तलाक़ का ज़हर भी पीना पड़ा ।’

‘ मेरी तो ज़िंदगी का दूसरा नाम ही तकलीफ़ है ।मैं चल फिर नहीं सकती और न ही ज़्यादा देर एक स्थिति में बैठ सकती हूँ ,बहुत दर्द होता है ।दर्द की दवा भी अधिक नहीं ले सकती उसका भी उल्टा असर होने लगता है ।तभी ख़ुद को इस काम में उलझाए रखती हूँ ।’

 

‘तुम्हारा काम तो बहुत ही अच्छा है शबनम ,हम तुमसे मिलकर बहुत खुश हैं ।’ ज्योति ने कहा ।

शबनम के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान आ गई । उसने पूछा ,’आप इन कपड़ों से क्या बनवाती हैं ?

ज्योति ने कहा,’ हम अलग अलग प्रदेशों के कपड़े लेकर ड्रेसेज़ बनवाते हैं जो हमारी बुटीक और अमेरिका के बहुत से स्टोर पर बिकती हैं ।इस तरह अपने देश की संस्कृति और यहाँ की कला को भी हम लोगों तक पहुँचाते हैं ।’

‘ मेरा भी मन बहुत कुछ करने का होता है परंतु मेरी लाचारी मेरा रास्ता रोक देती है ।’

‘ तुम्हारे अंदर मुझे एक जुनून एक जज़्बा नज़र आता है ,तुम बहुत कुछ कर सकती हो ।’ ज्योति ने कहा ।

शबनम की आँखों में एक चमक और उमंग की बिजली सी कौंध गई ।

क्या मैं आपको कुछ और दिखाऊँ ? मेरे पास इन कपड़ों और कढ़ाई से कुछ अलग है । ‘

‘हाँ क्यों नहीं ,ज़रूर दिखाओ ।’

उसने तख़्त के पीछे बनी अलमारी खोली और एक ड्राइंग बुक निकालकर उन्हें पकड़ाते हुए बोली ,’यह मेरा शौक़ है ,जब कढ़ाई करते हुए मन ऊब जाता है तो इसमें आड़ी तिरछी लकीरें खींच कर कुछ बनाने की कोशिश करती रहती हूँ ।’

मानसी ने देखा वह एक स्केच बुक थी ।पन्ने पलटते ही दोनों हैरान हो गयीं ।उसमें एक से एक खूबसूरत ड्रेसेज़ के डिज़ाइन बने हुए थे ।अधिकतर चिकन के काम के कपड़े प्रयोग किए थे और कुछ में बनारसी ब्रॉकड के साथ ज़रदोज़ी का काम था ।एक तरह से फ्यूज़न किया हुआ था ।

यह देखकर एकदम से उन दोनों को विचार आया कि अगर बनारसी ब्रॉकड और चिकनकारी को मिलाकर ड्रेसेज़ बनवायी जायें तो यह प्रयोग काफ़ी सफल हो सकता है ।

उसके काम को देखकर दोनों हैरान थी कि एक अनपढ़ लड़की जो इस चहारदीवारी में क़ैद हो ,जिसने दुनिया ना देखी हो और फ़ैशन की दुनिया से जिसका दूर दूर तक कोई वास्ता ना हो ,वह इतने ख़ूबसूरत स्केच बनाए यह तो उनकी कल्पना के एकदम विपरीत था ।

ऐसा काम तो वह बड़े बड़े डिज़ाइनरों से ऊँचे दाम देकर करवाती थीं ।उन्हें लगा जैसे किसी ने उनके सामने ख़ज़ाना खोल दिया हो ।वह तो यहाँ कपड़ा ख़रीदने आयी थीं और सामने नए आयाम भी खुल गए ।

दोनों स्तब्ध कुछ देर तक बोल ही नहीं सकीं ।

उन्हें चुप देखकर शबनम को लगा कि उन्हें उसका काम पसंद नहीं आया ।

ज्योति यकायक उठी और भावुक होकर शबनम को गले से लगा लिया ।

‘कितना हुनर है तुम्हारे हाथों में ? यह सब तुमने कहाँ से सीखा ? ‘

‘बस ऐसे ही अपने मन से बनाया ।मैं कभी पढ़ने के लिए स्कूल तो नहीं जा सकी पर मुझे चित्रकारी करने का शौक़ था ।एक दिन अब्बा ने मुझे रंगीन पेंसिल और एक ड्राइंग की कॉपी ला दी ।मैंने उसमें बेल बूटे बनाने शुरू किए जैसे मैं दादी और अम्मी को कढ़ाई करते देखती थी ।’

‘परंतु तुम्हें इस तरह की ड्रेसेज़ बनाने का ख़याल कैसे आया ? यह तो बहुत अलग है ।’ मानसी ने पूछा ।

‘मेरी खाला ख़ाली समय में काग़ज़ के लिफ़ाफ़े बनाती थी ।जिसके लिये वह बाज़ार से पुरानी मैगज़ीन ले आती थीं जिनके चित्रों में औरतें बहुत बढ़िया कपड़े पहने होती थीं ।बस उन्हें देखकर मुझे भी लगा कि अगर मैं भी कुछ इस तरह के कपड़े बना सकूँ तो कितना अच्छा हो ।’

‘पहले तो मैं कपड़ों की कतरनों से इस तरह के कपड़े गुड़िया के लिए बनाने लगी फिर जो मन में आता उसकी ड्राइंग इस कॉपी में बना लेती ।

‘यह तो बहुत बेहतरीन काम है ।क्या तुम हमारे साथ काम करोगी ? तुम्हारे इन डिज़ाइन से हम कपड़े बनवायेंगे और तुम्हें इसका अच्छा पैसा भी देंगे ।’ज्योति ने उसके सामने प्रस्ताव रखा ।

शबनम की तो हैरानी और ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ।उसने तो कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि उसका यह शौक़ और हुनर किसी काम भी आ सकता है ।उसकी आँखें छलकने लगीं ।

उन्होंने पूरा एक महीना शबनम के साथ बिताकर एक से बढ़कर एक चिकनकारी के कपड़े बनवाए और कुछ के लिए उन्होंने ऑर्डर कर दिया और साथ ही एडवांस पैसे भी दे दिए । इस बीच एक सप्ताह के लिये बनारस जाकर उन्होंने ब्रॉकड भी ख़रीद लिया ।

सौभाग्य से उन्हें दो बहुत हुनरमंद दर्ज़ी भी मिल गए जो उनके डिज़ाइन के अनुसार ड्रेसेज़ बनाने के लिए तैयार हो गए ।

न्यू यॉर्क फ़ैशन शो में अभी पूरे आठ महीने बाक़ी थे उन्हें लगा कि तब तक उनका काम भी हो जाएगा ।वहाँ का सारा काम ज्योति की बहन की देख रेख में होने लगा ।

उन्होंने तय किया कि शबनम को भी उसके हुनर के साथ दुनिया के सामने लाना चाहिए ।उन्होंने रफ़ीक से बात की जिससे वह उसका पासपोर्ट एवं वीसा आदि का काम करवा दे ।

पहले तो उसके अम्मी अब्बा इस बात के लिये राज़ी नहीं हुए कि इस तरह अनजान लोगों के कहने पर उनके साथ विदेश भेज दें ।फिर रफ़ीक के बहुत समझाने पर वह राज़ी हो गए ।

मानसी और ज्योति ने वापस अमेरिका पहुँचकर अपनी कंपनी के नाम पर उसे स्पान्सर लेटर भी भेज दिया जिससे शबनम को वीसा मिलने में आसानी हो गयी ।

अब समस्या अकेले इतनी दूर आने की थी ।शबनम की ज़िंदगी तो बस वही कमरा और उसमें बिखरे कपड़े और सुई धागा थे जहाँ से वह कभी बाहर नहीं निकली थी ।

ज्योति की बहन ख्याति ने उसकी ज़िम्मेदारी ले ली। ज्योति ने उन दोनों की टिकट करवा कर भेज दी ।

शबनम और उसके परिवार वालों के लिये तो यह स्वप्न जैसा था ।उनकी अपाहिज बेटी आज अमीनाबाद की तंग गली से निकलकर आसमान की बुलंदियों को छूने जा रही थी ।

शबनम उत्साहित थी लेकिन डरी हुई भी थी।परंतु आत्मविश्वास की धनी उस लड़की ने हिम्मत नहीं हारी ।फ़ैशन शो के दस दिन पहले की फ्लाइट थी , उसके लिए एयरपोर्ट पर पहले से व्हील चेयर का इंतज़ाम करवा दिया गया था ।ख्याति ने रास्ते भर उसका बहुत ख़याल रखा ।

न्यूयॉर्क पहुँचकर एयरपोर्ट से इमीग्रेशन आदि करवाकर अपना सामान लेकर जब दोनों बाहर आयीं तो मानसी और ज्योति इंतज़ार में थी ।उनके साथ एक स्वचालित व्हील चेयर भी थी ।उसमें बैठाकर वह उसे अपनी कार तक लायीं ।

शबनम तो हतप्रभ सी नया देश नयी नयी चीज़ें देख कर हैरान हो रही थी ।उसे तो लग रहा था जैसे वह किसी स्वप्नलोक में आ गई हो ।

ज्योति के पड़ोस में एक भारतीय स्त्री सीमा अपने घर में पेइंग गेस्ट रखती थी ।ज्योति ने एक महीने के लिए शबनम के रहने का इंतज़ाम उसके साथ ही कर दिया ।।

दो दिन तक तो जेट लैग के कारण उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह कहाँ है पर सीमा ने भी उसका बहुत ख़्याल रखा ।

ज्योति और मानसी ने उसे अपनी वर्कशॉप दिखायी जो ज्योति के घर के दो कार गराज में बनी थी ।उनका सारा सामान भी इंडिया से वहाँ पहुँच चुका था ,मॉडल भी तैयार थीं ।उन्हें ड्रेसेज़ ट्राय करवा दी गयीं जो कमी रह गई थी वह भी ठीक कर दी गयीं ।कुल मिलाकर अब शो की पूरी तैयारी थी ।

शबनम यह सब देख देख कर अचंभित हो रही थी ।सीमा के घर इतना बड़ा वाशरूम था कि उसकी स्वचालित व्हीलचेयर भी अंदर चली जाती थी । वह बहुत प्रसन्न थी अब उसे किसी के सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ रही थी ।उसका आत्मविश्वास बढ़ रहा था ।

उन दोनों ने जितना भी समय मिला उसे शहर भी घुमाया।वह तो इस नई दुनिया में आकर एक नए उत्साह से भर चुकी थी ।हर जगह रैंप बने हुए थे जिससे व्हीलचेयर आसानी से जा सकती थी ।

उसके लिए भी शो में पहनने के लिए एक पीच रंग का खूबसूरत शरारा और कुर्ता बनवा दिया गया जिस पर जाली और मुर्री का काम था और बॉर्डर ब्रॉकड का था ।यही उनके शो की थीम भी थी ।

ज्योति और मानसी ने अपने लिये सफ़ेद रंग चुना था ।लंबा कुर्ता जिस पर बेहतरीन जाली और टेपची का काम किया हुआ था और साथ में बनारसी दुपट्टा ग़ज़ब लग रहा था ।

शो के दिन दोनों शबनम को अच्छी तरह तैयार कर साथ ले गयीं ।

रैंप पर मॉडल उनके ख़ूबसूरत कपड़े पहन वॉक कर रही थीं ,तालियों की गड़गड़ाहट और फ़्लैश लाइट की चकाचौंध में सब कुछ दिव्य सा लग रहा था ।रंगों का अद्भुत समा बंध गया था ,उनकी आशा से भी कहीं अधिक उनके कपड़े पसंद किए जा रहे थे ।

अंत में वह दोनों शबनम की व्हील चेयर के साथ रैंप पर आयीं ,शबनम की धड़कने मृदंग की गति से बज रही थीं पर ज्योति ने उसका हाथ पकड़ लिया ।

तालियों के साथ उनका स्वागत हुआ और तब ज्योति ने शबनम का परिचय देते हुए बताया कि आज के इस शो का पूरा काम इस लड़की के हुनरमंद हाथों से किया गया है और अधिकतर ड्रेस भी इसी की डिज़ाइन की गई हैं ।

कैमरे की फ़्लैश लाइट चमक रही थीं ,शबनम तो जैसे वहाँ होकर भी नहीं थी ।उसे लग रहा था जैसे वह आसमान में उड़ रही है उसे पंख मिल गए हैं।

जन्नत का केवल नाम सुना था आज अपनी आँखों से देख भी ली ।

शो बहुत ही सफल रहा ,उन्हें बहुत सारे ऑर्डर भी मिल गए । अपने साथ काम करने के लिए उन्होंने शबनम के साथ अनुबंध भी कर लिया ।

शबनम भारत वापस चली गई परंतु एक गहन आत्मविश्वास से भरपूर होकर ।मानसी और ज्योति तो जैसे उसकी ज़िंदगी में फ़रिश्ते बन कर आयी थीं ।

एक साल बाद शबनम अब गोमती नगर में बने अपने नए घर में अपने अम्मी अब्बा के साथ रह रही थी ।उसका काम बढ़ रहा था अब उसने कढ़ाई में मदद करने के लिए अपने साथ और लड़कियाँ भी रख ली थीं ।

उसकी उड़ान अब अमीनाबाद की गलियों से निकलकर आसमान की ऊँचाइयों को छू रही थी ।

ममता त्यागी

नार्थ कैरोलाइना,यूएसए

 

 

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