
प्रेमचंद जयंती महोत्सव(अंतरराष्ट्रीय कथा महोत्सव)



निर्मला लौटेगी ज़रूर !
निर्मला लौटेगी ज़रूर ! हमारे शहर के इस हिस्से में यह तीन तल्ला,आलीशान पीली कोठी, वास्तुकला की अनुपम मिसाल है. जिसका,काले रंग का, ऊँचा सा भारी भरकम, कटाव-दार मुख्य दार है. लोहे की सर्पाकार सीढ़ियाँ, आबनूस की लकड़ी व रंगीन-सफेद काँच से बनी खिड़कियाँ-दरवाजे, ‘चायनीस-ग्रास’ से सजा कालीन-नुमा उद्यान,विलायती गुलाबों की क्यारियाँ, मुख्य द्वार पर…


कंकालें पतवारों की
कंकालें पतवारों की हांफ रही थी वह….. पसीने से लथपथ…… सांसे तेज चल रही थी……… और कितनी गहरी खुदाई…..? इतनी रात इस मरघट में वह क्या ढूंढ रही थी ? .….. अचानक चीख पड़ी..…….यह क्या….? यहीं तो मैंने उन पतवारों को दफनाया था । इतनी जल्दी कंकाल में कैसे बदल गये ?…

अनिर्णित आख्यान
अनिर्णित आख्यान मोबाइल पर हाथ जाते ही सीधे फेसबुक पर उंगलियां चहलकदमी करना शुरू कर देती हैं। फेसबुक पर नए मित्रों की,कुछ पुराने मित्रों की फोटो पोस्ट दिख रही है। लाइक कमेंट का खेल चल रहा है। कुछ पोस्ट पूरी पढी, कुछ आधी- अधूरी पढ़कर कमेंट कर दिया। कहां तक सबको पूरा पढ़े ,पर कुछ…

कैक्टस
कैक्टस मन को किसी करवट चैन नहीं मिल रहा।बहुत चाव था,बेटे को डॉक्टर बनाने का।क्या कमी की मैंने।अच्छी से अच्छी कोचिंग दिलवाई। कोचिंग सेंटर आने-जाने के लिये,साहेबज़ादे अड़ गये,बाइक चाहिये,वो भी दिलवाई। ये दूसरा साल था मेडिकल के एंट्रेंस एक्जाम में बैठने का उसका।इस वर्ष भी क्लीयर न कर पाया।उसकी इन असफलताओं का भले ही…

कुछ कही कुछ अनकही
कुछ कही कुछ अनकही एक थी केतकी ,पहाड़ों की खुशनुमा वादियों में अपने रूप रंग की खुशबू बिखेरती,हिरनी सी कुलांचें भरती, इस बुग्याल से उस बुग्याल तक दौड़ती चली जाती थी बस अपने आप में खोई हुई,अपने आप में मगन।दीन दुनिया से कोई वास्ता न था बस अपनी ही धुन में किसी भी टीले…


बिना पते की चिठ्ठी
बिना पते की चिठ्ठी मेरे घर के आगे एक छोटा बगीचा है जिसमें मैंने नारियल, नींबू, अमरूद, चम्पा, रातरानी, आम के पेड़ लगा रखे हैं। छोटी क्यारियों में गेंदा, चमेली, उड़हुल के फूल हैं। उड़हुल के भी कितने रंग है ना। जब छोटी थी तब केवल लाल या गुलाबी रंग के उड़हुल के फूल हुआ…