मनिहारिन
रंग बिरंगी चूड़ियां किसे सम्मोहित नहीं करती । चाहे छोटी सी बच्ची हो,चाहे नवयौवना हो या फिर वो वैधव्य की अवस्था हो जिसमें समाज के द्वारा चूड़ियां पहनना निषिद्ध होता है, किन्तु चूड़ियों का आकर्षण कम नहीं होता। उनकी छनछन से तो बड़े बड़े विश्वामित्र सरीखे पुरुषों का ध्यान भी भंग हो जाता है । कहीं से चूड़ी की छन छन की आवाज़ आये और निगाह उधर न जाये ऐसा हो ही नहीं सकता।
आज कल बड़े बड़े शहरों में तो बड़े बड़े चूड़ी स्टोर होते हैं किन्तु एक ज़माना था जब चूड़ियां कांच के बड़े बड़े बॉक्स में सजा कर साईकिल पर मनिहार और डलवों में चूड़ियां रखकर मनिहारिन मोहल्ले मोहल्ले घूमा करती थीं। बुलाने पर बड़े प्यार से हाथों पर चूड़ियां पहना कर जाती थी। मनिहार तो कुछ ज़्यादा ही प्यार से हाथ दबा दबा कर चूड़ी पहनाते थे। घर के मर्द आसपास ही मंडराते रहते थे ताकि मनिहार अपनी हद में ही रहे। घर की बहू बेटियां घेर कर बैठ जाया करती थीं।हँसी ठिठोली भी होती रहती थी। पर बड़े शहरों में तो अब यह बात गुज़रे ज़माने की हो गई।
अब तो बहू बेटियों के पास दर्जनों चूड़ियों का कलेक्शन होता है,हर ड्रेस के साथ मैचिंग चूड़ी बदल बदल कर पहनी जाती है। पहले मनिहारिन हाथ के साइज़ के हिसाब से ऐसी चूड़ी पहना के जाती थी कि जल्दी से चूड़ियाँ मौले नहीं क्योंकि चूड़ियों का मौलना शुभ नहीं माना जाता था। छोटे छोटे कस्बों में अब भी मनिहार मनिहारिन मिलते हैं। शादी ब्याह में तो उनकी खूब पूँछ होती है।
जैतपुर एक छोटा सा क़स्बा था । आसपास भी छोटे छोटे कस्बे थे। जैतपुर का सबसे रईस परिवार चौधरी मंगल सिंह का था । चौधरी मंगल सिंह का भरा पूरा परिवार था। तीन बेटे बहुएं, पांच पोते और एक सबकी दुलारी लाड़ली पोती रुक्मी। पूरा परिवार उसे लक्ष्मी का रूप मानता था क्योंकि जबसे उसका जन्म हुआ था तबसे खेतों की फसल जैसे दुगुनी हो गई थी,गौशाला में गाय भैंसों की संख्या भी अच्छी खासी हो गई थी,जिनका दूध शहर सप्लाई होता था।
पूरे जैतपुर में मंगल सिंह का बड़ा दबदबा था। पर घर में तो रुक्मी का दबदबा था । उसके नाज़ नखरे घर के सभी लोग उठाते थे। वो भी चिड़िया सी दिनभर घर में फुदकती चहकती रहती थी । घर में कोई और लड़की न होने से दिनभर भाइयों के साथ लड़कों वाले खेल ही खेलती थी। इस बात पर कभी कभी दादा मंगल सिंह कुछ बोलते तो तुरंत दादी सुमित्रा उसका पक्ष लेते हुए बोल पड़तीं-”अरे अभी बच्ची है । थोड़ी बड़ी होगी तो अपने आप यह सब गिल्ली डंडा , चोर सिपाही छूट जायेगा। खेल भले ही लड़कों के खेलती हो पर देखो उसे चूड़ियों का कितना शौक है । जब तब सबकी चूड़ियां हाथ में पहन कर दुपट्टे की साड़ी पहन कर सलोनी सी दादी अम्मा बनने की नक़ल करती है ।”
यह सोलह आने सच भी था । जैसे ही मनिहारिन की आवाज़ सुनती रुक्मी दौड़ कर उसे बुला लेती। किसी का चूड़ियां बदलने का मन नहीं भी होता था तब भी रुक्मी सबको चूड़ी पहनवा कर ही मानती थी और खुद भी अपने नन्हे नन्हे हाथों में चूड़ियां पहन लेती थी। चूड़ियाँ पहनने के बाद सबके पास जा जा कर चूड़ियां खनखना कर सुनाती थी ।
समय पंख लगाकर उड़ता है और लड़कियां खरपतवार सी जाने कैसे एकदम से बड़ी हो जाती हैं। रुक्मी भी देखते देखते अठारह साल की हो गई अट्ठारवां लगते ही दादा और दादी को तो उसके ब्याह की चिंता सताने लगी । छोटे शहरों में यूं भी जल्दी शादी करने का रिवाज़ है । लड़कियां बोझ भले ही न लगें पर जिम्मेदारी लगती हैं और घर के बड़े बुजुर्गों को बस एक ही ख़्याल होता है कि लड़की इज़्ज़त के साथ अपनी ससुराल, अपने घर विदा हो जाए । रुक्मी बारवीं पास कर चुकी थी आगे की पढ़ाई के लिए घर के लड़के तो शहर चले गए किन्तु रुक्मी को यह इज़ाज़त दादा जी से नहीं मिली,बोले -” अरे लड़कियां इससे ज़्यादा पढ़ कर क्या करेंगी? हम कोई नंगे भूखों के यहाँ थोड़े ही न ब्याहेंगे कि इसको नौकरी करनी पड़े पेट भरने के लिए । यह तो राज करेगी हमारी राजकुमारी। ”
उनके इस ऐलान के बाद भला किसमें हिम्मत थी कि उनका विरोध करे। रुक्मी को भी बहुत लिखाई पढ़ाई का शौक नहीं था इसलिए एकमत से उसको आगे ना पढ़ाने का फैसला हो गया और एक सुन्दर पैसेवाले दामाद की खोज शुरू हो गई । यौवन की दहलीज पर रुक्मी ने क़दम क्या रखा जैसे उसके चेहरे पर गज़ब का नूर आ गया। शरीर सौष्ठव और कद काठी तो पहले ही आकर्षक थी। जैतपुर क्या आसपास के लड़कों की नज़र उसपर पड़ती तो ठगे से रह जाते । बहुत से जवां दिलों की वो हसरत थी किन्तु चौधरी परिवार के आगे किसी की हिम्मत नहीं थी कि उस परिवार की लड़की की ओर आंख भी उठाए।
पंडित जी के दख़ल से रुक्मी का ब्याह शहर एक बहुत अच्छे परिवार में तय हो गया। घर में शादी की तैयारी ज़ोर शोर से शुरू हो गई। एक ही कोशिश थी सबकी कि कोई कमी न रह जाए, शादी में न्योता देने में कोई छूट न जाए, बारात के स्वागत में कोई कमी न रह जाए। सारा घर क्या दादा जी, चाचा, ताऊ, रुक्मी के पिता एक पैर पे दौड़ भाग में लगे थे। घर की औरतें ख़रीदारी में व्यस्त थीं। किसको विदाई में क्या देना है?किस रस्म में किसको क्या देना है? रुक्मी के बक्से में क्या क्या रखा जाना है?कामों की लिस्ट थी कि ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
आख़िर वो दिन आ गया जब पहला निमंत्रण पत्र मंदिर में जाकर भगवान जी को दिया गया और रुक्मी के लिए सदा सुहागिन रहने का आशीष लिया गया। शादी की रस्मों में आशीर्वाद देने में धोबिन, नाउन, और मनिहारिन का रोल सबसे अहम होता है। धोबिन सिन्दूर दान करती है,नाऊन नाखून काटकर महावर लगाती है और मनिहारिन सुहाग की हरी और लाल चूड़ियाँ पहनाती है। एक सुहागिन की जिंदगी में सिन्दूर और चूड़ी का सबसे अधिक महत्व होता है। उसी से उसका श्रृंगार पूरा होता है। इसलिए बहुत प्रेम से धोबिन और मनिहारिन को निमंत्रण भेजा गया।
घर में मेहमानों की आमद शुरू हो गई थी। शहरों में तो मेहमान ज़्यादा से ज़्यादा दो तीन दिन के लिए और कोई तो एक ही दिन के लिए आते हैं लेकिन छोटी जगहों पर तो मेहमान शादी के चार दिन पहले से ही आने लगते हैं और शादी के चार दिन बाद ही जाते हैं। दूर-दूर के रिश्तेदार आ रहे हैं क्योंकि घर की इकलौती बेटी की शादी थी।
दोपहर से ही मनिहारिन चूड़ियों का बड़ा सा डलवा लेकर बैठ गई। मनिहारिन को देखते ही घर की सारी बहू बेटियां उसको घेर कर बैठ गईं।सब अपनी अपनी पसंद की चूड़ियों को उठा कर दिखाने के चक्कर में थी पर मनिहारिन हंस कर बोली-”अरी छोरियो, संभल कर।चूडियां हैं बिल्कुल तुम्हारी ही तरह नाज़ुक हैं।इशारे से बताओ किसको कौन सी पहननी है।फिर हाथ देखकर सही साइज की हम खुद ही पहना देंगे।पर हमारी बन्नो कहाँ है पहले उससे तो पसंद करा लें।”
एक साथ कई लड़कियां दौड़ पड़ी रुक्मी को बुलाने के लिए। वहीं बैठी दादी ने भी अपनी बुलंद आवाज में पुकारा-” रुक्मी ,जल्दी आ। देख मनिहारिन कितनी सुंदर सुंदर चूड़ियाँ लाई है।”
रुक्मी के आते ही सबसे पहले मनिहारिन उसकी बलाएं लेती हुई बोली -” नज़र न लगे हमारी बन्नो को,आ जा बिटिया पसंद कर।तुझे तो लाल हरी का सुंदर सेट बना कर पहनाऊँगी।”
रुक्मी ने चूड़ियां पसंद की तो मनिहारिन जब पहनाने लगी तो रुक्मी बोली -” काकी थोड़ी बड़ी चूड़ियां पहनाना जिससे मैं खुद से उतार कर बदल सकूं ।”
” ना ना बन्नो, ढीली चूड़ियां मौल जाती हैं और चूड़ियों का मौलना अच्छा नहीं होता और सुहाग की चूड़ियां तो जितने दिन तक हाथ में सजी रहें उतना ही अच्छा। दूसरा फेरा जब होगा तब थोड़ा बड़ा साइज पहना दूंगी ।”
” मौलेंगी कैसे? कौन सा मुझे बर्तन धोने हैं। ”
“अरे बन्ने राजा से जंग में मौल गई तो?” कहकर छोटी भाभी ने छेड़ा तो सभी खिलखिला कर हंस पड़े। लजाकर रुक्मी ने चुपचाप अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।लाल हरी चूड़ियां उसकी गोरी गोरी नाज़ुक कलाइयों पर बहुत जँच रही थी।मनिहारिन बोली-” दादी,अम्मा, चाची, बुआ सब आके बिटिया की निछावर तो करो । कब से बाट जोह रहे थे इस दिन की । झोला भर शगुन चाहिए चौधराइन।”
दादी मुहं में पान का बीड़ा डालते डालते बोली-”अरे काहे चिंता कर रही है । कौन सा हमारे दो चार पोती हैं जो कंजूसी करेंगे तुझे शगुन देने में, पर झोला भर आशीष भी दे के जा।”
” अरे अम्मा जी कस्बे की सैकड़ों बिटियां मेरी पहनाई शगुन की चूड़ियां पहन कर विदा हुई हैं और अल्लाह के फज़ल से सब अपने अपने घरों में राजी ख़ुशी हैं, बाल बच्चों वाली हैं । रुक्मी बिटिया को तो गोद में खिलाया है फिर उसको दुआएँ देने में कैसे किफ़ायत कर सकें भला।”
दादी ने रुक्मी की माँ सीता से कहा- ” बहू इसका चूड़ियों का डलवा खाली हो गया है तो इसको पूरा भर दे इनाम से और निछावर के रुपये भी दे-दे ।”
रज्जो मनिहारिन इनाम पाकर सबको ढेरों आशीष दे जब चली गई तो रुक्मी की बुआ बोली-”अम्मा रज्जो मनिहारिन का आशीष खूब फलता है । मुसलमान है पर कैसे हम सबके लिए दुआएं करती है । पता नहीं क्यों लोग हिन्दू मुसलमान के नाम पर फसाद करते हैं । ”
” अरे बिटिया ये सब बड़े शहरों में नेता हैं जो धर्म के नाम पर रोटियां सेकते हैं । यहाँ तो देख कोई फरक ही नहीं है । सब एक दूसरे के सुख दुःख में एक पाँव पर खड़े रहते हैं । अच्छा अब खाना पीना निपटा कर सब सो जाओ बारात तो तड़के ही पहुँच रही । घर के आदमियों को तो आवभगत के लिए सुबह जल्दी ही तैयार होना होगा ।”
चौधरी मंगल सिंह भी आँगन में आकर सबको हिदायत दे गए ” भाई आज बहुत रात तक गाना बजाना न करना । सब थोड़ा आराम कर लो। कल से लेकर विदाई तक तो सांस लेने की भी फुरसत नहीं मिलने वाली ।”
दिनभर की थकान से चूर सभी गहरी नींद के आगोश में थे कि आधी रात को अचानक दस बारह हथियार बंद नकाबपोश घर में पता नहीं कहाँ से आ गए । सभी पुरुषों को बंधक बना लिया । घर की औरतें और बच्चे तो डर से ऐसा सहम गए कि किसी के मुहं से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी । एक नकाबपोश ने सभी महिलाओं के ज़ेवर घर की नगदी सब बटोर कर एक बैग में भर लिया इसी बीच अचानक एक नकाबपोश ने रुक्मी को हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और गरजते हुए बोला -’’ खबरदार जो किसी ने कुछ चीं चपड़ की । शराफत से बस एक लड़की ले जा रहे हैं । कल छोड़ जायेंगे । शोर मचाया तो जितनी छोरियां हैं घर में सबको उठा ले जायेंगे ।”
दादी ने कुछ विरोध करना चाहा तो उसने दादी को धक्का देकर एक ओर धकेल दिया । जैसे आंधी की तरह आये थे वैसे ही रुक्मी को लेकर आंधी की तरह चले गए , कोई कुछ नहीं कर सका । उनके जाते ही कोई पोलिस चौकी की ओर भगा , कोई पुलिस को फ़ोन मिलाने लगा, किसी को समझ नहीं आ रहा था कि वो घर के अंदर कहाँ से कैसे आ गए और कहाँ गए होंगे , कौन लोग थे । किसी का भी तो चेहरा नहीं दिख रहा था । कुछ घंटे पहले जो घर ढोलक की थाप और मंगल गीतों से गूंज रहा था वहाँ रोना पीटना मचा था । दादी और रुक्मी की माँ तो बार बार यही बोल रही थी ” रुक्मी ही को क्यों ले गए ? उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ?”
मंगल सिंह की हुंकार से सारा गाँव क्या सारी पुलिस चौकी थर्रा उठी। शहर की चौकी तक में भी फ़ोन घनघना उठे । सारा दिन पुलिस चप्पे चप्पे की ख़ाक छानती रही पर कुछ सुराग न मिला । सारे नक़ाबपोश ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग ।
दादी और रुक्मी की माँ को तो बार बार बेहोशी आ जाती । आज तो रसोई की तरफ भी जाने का किसी का दिल न था पर घर में छोटे छोटे बच्चे भी थे । उनको तो जो रखा था खिला दिया गया पर बाकी किसी को मुँह में दाना डालने की इच्छा न हुई ।
शाम ढलने पर घूंघट डाले दो औरते घर आई । पुलिस ने बाहर रोकना चाहा पर उनके कहने पर कि रिश्तेदार हैं, घटना सुनकर दुःख में शामिल होने आई हैं ,पोलिस ने अंदर जाने दिया । अंदर जाते ही रुक्मी घूंघट हटाकर दौड़ कर माँ से लिपट गई । रुक्मी आ गई रुक्मी आ गई का शोर मच गया । सारा घर रुक्मी से सवाल पे सवाल पूँछ रहा था । इतनी देर से जो दूसरी औरत घूंघट डाले खड़ी थी उसने घूंघट उठाया तो समवेत स्वर में सब बोल पड़े- ” मनिहारिन तुम । कहाँ मिली रुक्मी तुम्हे?कौन ले गए थे इसे ?’’
कुछ भी बोलने से पहले मनिहारिन ने एक गठरी जो वो बगल में दबाये खड़ी थी खोल कर सामने रख दी । उसमें घर से लूटे हुये औरतों के ज़ेवर , रुपये सबकुछ रखा था । मंगल सिंह बोले- ” मनिहारिन तुम्हे यह सब कैसे कहाँ मिला ? पुलिस ढूंढ ढूंढ कर थक गई उनको तो कोई सुराग तक नहीं मिला । ”
” कैसे मिलता ठाकुर मंगत सिंह । हाँ पहले जाँच कर लीजिये सब पूरा है न । केवल दस हज़ार कम होंगे । किसी ज़ेवर को हाथ नहीं लगाया गया है और नाहीं रुक्मी को । आप रुक्मी से पूछ सकते हैं ।”
दादी ने दौड़ कर मनिहारिन को गले लगा लिया-” मनिहारिन,हमारी सात पीढ़ियां भी तुम्हारा यह क़र्ज़ नहीं चुका पाएंगी । तुमने हमें बिन मोल खरीद लिया मनिहारिन ।”
मंगल सिंह बोले- ” तुम हमारी इज़्ज़त , हमारी हँसी , हमारी जान रुक्मी को सही सलामत घर लाई हो बोलो तुमको क्या इनाम दें ।”
‘’ मेरी हंसी , मेरी ख़ुशी दे सकते हों तो दे दीजिये ,बाकी तो अब हमको कुछ चाहिए नहीं ठाकुर साहब । ”
” कैसे मिलेगी तुमको खुशी बताओ ?”
चुप खड़ी थी मनिहारिन जैसे शब्दों को तोल रही थी, अतीत का आवरण हटा अपने मन के कुरुक्षेत्र में चल रहे द्वंद की कथा संजय की भांति अमीरी से अंधे धृतराष्ट्र मंगल सिंह को सुनाने का साहस बटोर रही थी ।
” कुछ तो बोलो मनिहारिन ।”
सबकी सांसे रुकी हुई थी ,सब आशंकित थे उसकी चुप्पी से ।
” मेरी भी एक बेटी थी ,रुक्मी जितनी ही उम्र की पर रुक्मी से कहीं ज्यादा खूबसूरत। चाँद में तो दाग़ है पर उसमें कोई दाग़ न था । हमारा तीन लोगों का हँसता खेलता सुखी परिवार था । पर नज़र लग गई एक रईसजादे की । शादी के एक दिन पहले ठीक इसी तरह कुछ नकाबपोश आकर हमारी चाँद सी बेटी को उठा ले गए ।बहुत हाथपैर हमने मारे पर गरीबों की कौन सुनता है । दो दिन बाद पेड़ से लटकी उसकी लाश मिली । उस दर्द को मेरे पति नहीं झेल सके। उसी रात अटैक से वो भी चल बसे। बाकी बची केवल मैं अभागन । अपनी बेटी के हाथों में तो सुहाग की चूड़ियां न पहना सकी पर तबसे हज़ारों बेटियों को दुआओं के साथ चूड़ियां पहनाती हूँ कि शायद मेरी बेटी की आत्मा को कुछ सुकून मिल जाए । ठाकुर मंगल सिंह कुछ याद आया?कैसे याद आएगा ? अपनी जवानी में ठाकुरों के लिए ऐसा करना तो उनकी शान में चार चांद लगाता है ।
केवल अपनी बहु बेटियों की इज़्ज़त पर आँच आती है तो लहू में उबाल आता है ठाकुरों के । दूसरों की बहू बेटियां तो शायद कीड़े मकोड़ों की तरह मसल कर फ़ेंक देने के लिए होती है। चुप क्यों खड़े हो चौधरी साहब , कुछ तो बोलो , जुबां पर ताले पड़ गए क्या ।”
” क्या बकवास कर रही हो । अपनी हद में रहो ।”
“ अपनी हद मैं अच्छी तरह से जानती हूँ चौधरी साहब , केवल आपको, आपको अपने दर्द का अहसास कराने के लिए मैंने ही यह सब खेल किया था। जानती हूँ मेरे इस कांड की सजा तो मुझे आपके गुर्गे देंगे ही ,पर अब तो वैसे भी अल्लाहताला के पास जाने का समय आ गया है। जाते जाते ऐसा कुछ करना चाहती थी कि आपके ख़ानदान की आने वाली नस्ल को शायद कुछ नसीहत मिल जाए , शायद वो ग़रीबों की बेटियों की इज़्ज़त करने लग जाएँ , शायद उनकी ऐयाशी में कमी आ जाये । जैसे आज सबका खून खौला ऐसे ही समाज की किसी भी जात की लड़की के साथ अगर कोई ऐसा कुछ करने की हिम्मत करे तो आप जैसे ताकतवर लोग अगर ढाल बन कर खड़े हो जाएंगे तो सभी की बहू बेटियां महफूज़ हो जायेंगी । अब आपको जो सजा देनी हो दे दो मेरे पास तो अब खोने के लिए कुछ है ही नहीं मेरी जान के अलावा , उसे आप ले सकते हो ।”
घर की औरतों के चेहरे पर एक औरत की जीत की मुस्कान थी वहीँ न चाहते हुए भी घर के मर्द अपनी आँखें नहीं मिला पा रहे थे । पुलिस चौधरी मंगल सिंह का आदेश और अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए तत्पर खड़ी थी । चौधरी मंगल सिंह इतना ही कह पाये -” जाओ रज्जो अपने घर जाओ , अभी बहुत सारी बेटियों को तुम्हारे आशीर्वाद की और सुहाग चूड़ियों की आवश्यकता है।
श्रीमती मंजु श्रीवास्तव’मन’
कत्थक नृत्यांगना, साहित्यकार
शैंटली ,वर्जीनिया ,अमेरिका