पेड़ वाले बाबा
“मिस्टर विपिन चौरे” – रिटायर्ड आई एफएस अधिकारी।अपना नाम सुनकर विपिन अपनी जगह से उठा और सघे हुए कदमों से स्टेज की ओर बढ़ गया। प्रोटोकॉल के अन्तर्गत की गई रिहर्सल के अनुसार माननीय राष्ट्रपति को सबसे पहले उसने सादर नमस्कार करके हाथ मिलाया।राष्ट्रपति ने पुरस्कार प्रमाण पत्र और पद्मश्री पुरुस्कार उसे ससम्मान प्रदान किया। पुरस्कार लेते समय पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। पुरस्कार लेकर वह वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गया।
वह अपने हाथ में पकड़े प्रतीक चिन्ह को गहरी दृष्टि से देख रहा था उसे तो पुरस्कार की चाह ही नहीं थी।उसने तो अपने दिल की आवाज सुनी थी।
बचपन से ही विपिन को पेड़ पौधों से काफी लगाव था। बारहवीं उत्तीर्ण करने के बाद बीएससी व एमएससी वनस्पति विज्ञान से करने के बाद वह आई एफ एस की तैयारी में लग गया ।कड़ी मेहनत और लगन से विपिन ने पहले ही प्रयास में परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।ट्रेनिंग के बाद विपिन की नियुक्ति मध्यप्रदेश के एक गांव में हो गई।विपिन बहुत उत्साहित था। घर में सभी सदस्य विपिन के जाने की तैयारी में लग गये।खुशी के साथ थोड़ी चिंता भी थी।विशेषकर, माँ को, अकेले कैसे रहेगा, क्या खायेंगे?पिताजी खुश थे कि विपिन को अपनी मनचाही नौकरी मिल गई।विपिन की ईमानदारी और कर्मठता से वे परिचित थे।मां ने कई हिदायतों और ढ़ेर सारी खाने की चीजों के साथ उसका बैग तैयार कर दिया।माँ, पिताजी और उसके खास सहपाठी उसे गांव की सड़क तक छोड़ने आए।
बस और ट्रेन के लंबे सफर के बाद विपिन अपने गंतव्य, इंदौर आ गया था।अपना सामान उतारकर वह खड़ा था, तभी एक उसी का हमउम्र लड़का जल्दी जल्दी चलता हुआ उसके करीब आया।मेरा नाम रोहित है।आप विपिन चौरेजी हैं ? बड़वाह वन विभाग रेंज के नये डीएफओ ? मुझे वर्माजी ने भेजा है आपको लेने के लिये। प्लेटफार्म से बाहर निकलकर वह दोनों गाड़ी की तरफ बढ़ गये।
कितनी दूर है बड़वाह ? विपिन ने पूछा।
यही कोई 60-62 कि.मी. ।रोहित ने बताया कि यह पश्चिम निमाड़ है और यहां निमाड़ी बोली बोलते हैं । यहां प्रसिद्ध ओंकारेश्वर का मंदिर है।बड़वाह मध्यप्रदेश की जीवनदायनी कही जाने वाली प्रसिद्ध नर्मदा नदी पर बसा हुआ है।बड़वाह में नर्मदा किनारे कई प्रसिद्ध संतो और ऋषियों के आश्रम हैं।सिद्धवरकूट प्रसिद्ध जैन तीर्थ भी बड़वाह के पास ही है।
रोहित ने बताया कि उसका जन्म यहीं बड़वाह के पास के गांव में हुआ है।थोड़ी खेती है और अपनी यह गाड़ी लोन पर लेकर वनविभाग मे ठेके पर चलाता है। क्वाटर पहुंचकर रोहित ने विपिन का पूरा सामान अंदर रख दिया।छंगू, साहब के लिये पानी लाओ और चाय बनाओ।सर ये छंगू है, आपके लिये खाना बनायेगा और पूरा काम करेगा “हौ रोहित भैय्या, अब्बी लायो” सर ये निमाड़ी में ही बात करता है।सत्रह अट्ठारह साल का एक लड़का झट से उसके लिये पानी और चाय ले आया।छंगू , तूने तो लगता है पूरा शक्कर का डब्बा ही डाल दिया चाय में “माफ करजो साब निमाड़ मSS मिट्ठीच चाय पेज”(सर निमाड़ में बहुत मीठी चाय पीते हैं )न मिरी बी खोSब खायSज( और मिर्ची भी खूब खाते हैं)।
“लेकिन तुम मुझे मिर्ची मत खिलाना ज्यादा” विपिन ने हंसते हुए कहा।“हौ साब नई खवाड़ूगां।”
नहा धोकर मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया। मन में खुशी के साथ साथ घबराहट भी थी।पहले फोन करके अपने सकुशल पहुंचने की सूचना दी।विपिन ने मां को आश्वस्त किया कि यहां सब ठीक है।ऑफिस का स्टाफ छोटा ही था।वर्माजी, जो उससे छोटी पोस्ट पर थे सिंघल और हरि लिपिक थे, लालू काका चपरासी थे।उसने अपनी ज्वाईनिंग रिपोर्ट लिफाफे में बंद करके हरि को देदी।हरि उसे हेड ऑफिस दे आया।विपिन ने सिंघल और लालू काका से बोल कर कुछ फाईलें निकलवाई और देखने लगा।
दूसरे दिन पूरे स्टाफ को लेकर वह फील्ड में निकल गया।काफी बड़े एरिये में फैला है जंगल।दोनों तरफ सागौन, नीम के पेड़ बहुतायत मे थे।रोहित ने बताया पास में ही नर्मदा नदी है।अचानक विपिन ने रोहित को बोलकर गाड़ी रुकवाई। वहां काफी बड़े एरिये में जंगल काट कर खेत बना दिये थे।वर्माजी ने बताया, “सर यहां सब अवैध तरीके से जंगल काट कर खेती करते हैं।आदिवासी काफी तादात में हैं। “ जून-जुलाई का महीना था बारिश कभी हो रही थी कभी नहीं।रोहित ने बताया,” सर यहां गर्मी भी बहुत पड़ती है, इस मौसम में बहुत उमस होती है।” 10-12 किलोमीटर चलने के बाद हरि ने कहा, “सरजी यहां पास में ही चोरल नदी जो कि महू से निकलती है,के किनारे उस पार पहाड़ पर काफी पुराना जयंती माता का मंदिर है।कल वहाँ दर्शन करने चलेंगे।”
तीसरे दिन वह जैसे ही ऑफिस पहुंचा दो लोग उसका इंतज़ार कर रहे थे। हरि ने परिचय कराया एक मोटे से काले व्यक्ति ने हाथ मिलाया, “सर यह संतोष सिंह है। इनका फर्नीचर का बहुत बड़ा कारोबार है।“हैलो सर!कैसे हैं ? “ संतोष सिंह ने कहा।दूसरा व्यक्ति धोती कुर्ता पहने था।बड़ी बड़ी सफेद मुछें, “हौं. गजराज मुकाती, खेती करुंज पास का गांव काटकूट मS रहुंज”, विपिन से हाथ मिलाते हुए उसने कहा।उनके जाने के बाद वर्मा जी ने बताया सर संतोष सिंह ठेकेदारी के साथ साथ अवैध शराब, अवैध जंगल कटाई का धंधा करता है।गजराज और संतोष सिंह आपस में मिले हुए हैं।गजराज अनपढ़ आदिवासीयों को कच्ची शराब उपलब्ध करवाता है, जो कि संतोष सिंह के अड्डे पर बनती है। संतोष सिंह का अड्डा घने जंगल में है ।आदिवासी उधारी में शराब लेकर पीते हैं।उधारी नहीं चुकाने पर गजराज और संतोष सिंह उनकी ज़मीन हड़प लेते हैं।संतोष सिंह अवैध जंगल कटाई का सरगना है।बड़े नेताओं तक इसकी पहुंच है।अवैध लकड़ी कटवा कर यह बाहर के राज्यों में भेजता है और करोड़ों रुपये कमाता है।सांसद, विधायक और इस एरिये के पार्षद, सरपंच सबको घूस देकर अपनी मुट्ठी में कर लिया है।कोई भी इसके विरोध में बोलने की हिम्मत नहीं करता।वनविभाग के अधिकारियों को भी घूस देकर और डराकर उनको दबाकर रखता है। विपिन को यह सुनकर बहुत ही दुःख हुआ।
एक दिन वह और रोहित ओंकारेश्वर दर्शन करके लौट रहे थे, रास्ते में एक 23-24 साल की युवती अपनी स्कूटी लेकर किनारे खड़ी थी।शायद उसकी स्कूटी खराब हो गई थी।विपिन गाड़ी रुकवाकर उसके पास गया, “क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ ?” वह रुंआसी होकर बोली, “मेरी स्कूटी खराब हो गयी है क्या आप ठीक कर सकते हैं ?” विपिन ने रोहित को ईशारा किया तो रोहित ने उतरकर स्कूटी को देखकर दो तीन किक मारकर चालू कर दिया।लड़की धन्यवाद देकर चली गयी ।विपिन उसे जाते हुऐ देखता रहा। इसके बाद बात आई गई हो गई । लेकिन विपिन ने उसका चेहरा अपने मन में जैसे बसा लिया हो।आंखों के सामने उसका ही चेहरा घूमता रहता था।एक दिन वह सुबह की सैर करते हुए सड़क तक पहुंच गया।देखा अचानक, वही लड़की दूध का पैकेट लेकर जा रही थी।दोनों की नज़रें मिली तो दोनों एक दूसरे को पहचान गये। “अरे आप?” उसने कहा , “मैं सुबह की सैर करने निकला था” और” मैं दूध लेने आयी थी “ मेरा नाम विपिन है।मैं चंचला।” नाम के अनुरूप ही उसका व्यक्तित्व था।“मेरा घर यहां पास में ही है।अगर आपको मेरे हाथ की चाय पीना हो तो आप मेरे घर चल सकते है।“ दोनों चंचला के घर चाय पीते हुए इधर उधर की चर्चा करते रहे।
फिर तो यह रोज़ का सिलसिला बन गया।विपिन ने अपना पूरा परिचय चंचला को दे दिया।चंचला ने बताया वह बड़वाह कॉलेज मे हिन्दी की लेक्चरर है यहां अकेली रहती है। उसके मम्मीपापा और एक छोटा भाई है जो अभी पढ़ रहा है। पापा बैंक मैं नौकरी करते हैं। खंडवा, जो यहां से पास में ही है, रहते हैं | चंचला एक सुलझे विचारों की लड़की थी | वह विपिन को पसंद करने लगी | दोनों की दोस्ती कब प्यार में बदल कर जीवनसाथी बनने के फैसले तक पहुंच गई पता ही नहीं चला | इसी बीच विपिन ने अपने मां पिताजी को कुछ दिनों के लिये अपने पास बुलाया | उन दोनों ने भी चंचला को बहुत पसंद किया | चंचला के मम्मी पापा भी विपिन के माँ पिताजी से मिलकर बहुत खुश हुए थे | एक दिन विपिन रोहित के साथ गाड़ी में फील्ड में जा रहा था | उसने देखा सागौन के कटे पेड़ों से भरा एक ट्रक रोड़ पर जा रहा था | उसने उससे रोककर पूछताछ करी | ड्राईवर ने बड़ी बत्तमीज़ी और रौब से कहा, “तुम कौन होते हो पूछने वाले?” ये संतोष सिंह का ट्रक है | विपिन ने कहा, “तुम किसकी अनुमति से लकड़ी काट कर ले जा रहे हो?” रोहित ने कहा, “आदर से बात करो, ये यहां के डीएफओ हैं”| “होंगे डीएफओ | हमें नहीं मालूम जाकर हमारे मालिक से बात करो” कहकर उसने ट्रक बढ़ा दिया |
संतोष सिंह के अलावा और दूसरे कई लोगों के ट्रक बेखौफ निडर होकर बेरहमी से जंगल की लकड़ियां काटकर ले जाते थे । विपिन वनविभाग का बड़ा अधिकारी होकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था । उसने कई बार अपने अधिकारियों को शिकायत करी लेकिन उसकी बात पर किसी ने सुनवाई नहीं की।
आखिर एक दिन विपिन ने हरि को भेजकर संतोष सिंह को बुलवा भेजा | संतोषसिंह तो इस बुलावे के इंतज़ार में ही था ।वह दौड़ा आया, आते ही खीसे निपोरते हुए रहस्यमयी तरीके से पूछा,” सर कैसे याद किया?” विपिन ने साधारण तरीके से समझाते हुए संतोष सिंह से कहा,” तुम्हारे आदमी बिना इजाज़त के जंगल से लकड़ी काटकर ले जा रहे है । यह ठीक नहीं है । तुम उन्हें रोको “। संतोष सिंह ने पान की पीक थूकते हुए बड़ी ही बेशर्मी से कहा, “छोड़िये ना सर, आप कहां इस पचड़े में पड़ रहे हो।आपने इतनी पढ़ाई लिखाई करी है, जि़न्दगी का मज़ा लूटो” कहते हुए नोंटों की एक भारी गड्डी टेबल पर पटक दी | विपिन भौंचक्का रह गया यह देखकर | “सर, आइये, आज रात का डिनर आपके लिये स्पेशल रखा है।कौन सी बॉटल पसंद करेंगे सर ?” उसने विपिन को तिरछी नजर से रहस्यभरी मंद मुस्कुराहट से कहा । विपिन का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया । “तुम मुझे खरीदना चाहते हो? उठाओ यह पैसे और निकलो यहां से। अगर तुमने अवैध तरीके से लकड़ी काटना बंद नहीं किया तो मैं तुम्हारी रिपोर्ट थाने मे करूंगा । ऊपर भी करूंगा।“
किस-किस को रिपोर्ट करोगे सर यहां सब बिके हुए हैं और कुछ समय बाद आप भी मेरे कदमों में होगें ।
“निकल जाओ यहां से” गुस्से में विपिन लगभग चीखते हुए बोला। विपिन का खुद पर कंट्रोल नहीं था । सारा स्टाफ जमा हो गया। वर्मा जी ने विपिन को पकड़कर बिठाया।टेबल पर नोटों की गड्डी देखकर सभी को समझ आ गया कि क्या हुआ। संतोष सिंह “देख लूंगा” की धमकी देकर वहां से चला गया लेकिन वह यह अपमान सहन नहीं कर पाया।
विपिन को सबक सिखाने की योजना बनाने लगा | सारे इलाके में बात फैल गई कि नये साहब बहुत ईमानदार हैं। मां-पिताजी, चंचला को बहू बनाने का सपना लिए आशीष देकर लौट गए। जाते हुए पिताजी की यही सीख थी कि अपनी ईमानदारी पर अडिग रहना । एक दिन वर्मा जी ने उसे खबर दी कि वनविभाग के सबसे बड़े अधिकारी जंगल का निरीक्षण करने आ रहे हैं।
विपिन को कुछ आस बंधी, कि वह अपने मन की बात अधिकारी से कहकर जंगलों की अवैध कटाई रोकने के लिये सहायता मांगेगा लेकिन उसका अनुमान गलत निकला।बड़े अधिकारी और उनके साथियों को संतोष सिंह सीधे अपने अड्डे पर ले गया । विपिन को भी बुलाया गया।उसने देखा सबके सब संतोष सिंह से हंस हंस कर बात कर रहे हैं । सबके सामने अधिकारी ने विपिन को खास अंदाज में समझाना कि कुछ गलत नहीं हो रहा है, जो चल रहा है चलने दो ।जब चंचला को इस बात का पता चला तो उसने भी यही समझाया कि तुम अकेले कुछ नहीं कर सकते ।इस बार जंगल भ्रमण के दौरान लकड़ी के पांच ट्रकों को विपिन ने थाने ले जाकर खड़े करवा दिया।जब संतोष सिंह को विपिन की इस हरकत के बारे में मालूम पड़ा तो वह सीधे थाने पहुंच कर रिश्वत देकर अपने ट्रक छुड़वा लाया। विपिन मनममोस कर रह गया । इसी तरह दो साल निकल गये। विपिन पर चंचला के मम्मी पापा की तरफ से शादी का दबाव बढ़ने लगा था। लेकिन वह इस बारे में कुछ निर्णय नहीं ले पा रहा था । सुबह की सैर करने के लिए आज वह जंगल की तरफ चला गया।वहा पेड़ों को कटते देख उसने विरोध किया लेकिन उन लोगों ने अचानक उस पर लाठी डंडों से हमला कर दिया ।विपिन बेहोश हो गया।हमला करने वाले उसे ऐसा ही छोड़कर भाग गये।स्टाफ को पता चला तो गाड़ी में डालकर अस्पताल में भर्ती कराया । माथे पर गहरी चोट लगी थी । हाथ में भी फ्रैकचर था।तीसरे दिन अस्पताल से छुट्टी मिली।बात इतने पर ही नहीं रुकी एक दिन ठंड के मौसम मे ठंडी रात में विपिन अपने घर में बैठा था।यही कुछ रात के आठ बजे होंगे दरवाजे पर ठक ठक हुइ छंगू के पीछे पीछे वह भी गया | दरवाज़ा खुलते ही तीन चार गुंडे घर में घुस आए और घर का सामान उठा कर फेंकने लगे। विपिन और छंगू दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक ये क्या हुआ? वह लोग विपिन के साथ मारपीट करने लगे | छंगू बीच बचाव के लिये आया तो उससे भी मारपीट करने लगे।वो लोग ज़ोर ज़ोर से गालियां देते हुए चिल्ला रहे थे हमारे बीच में नहीं आना नहीं तो जि़न्दा नहीं रहोगे। उनके हाथ में रिवाल्वर थी, हवा में गोलियां चलाते हुए वह लोग भाग गये| पूरी घटना उच्च अधिकारीयों तक पहुंची।अधिकारी आए भी लेकिन कुछ कार्यवाही करने की बजाय विपिन को नसीहतें दी गयी बल्कि फटकार मिली कि तुम्हारे कारण विभाग बदनाम हो रहा है।तुम अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आये तो तुम्हारा ट्रांसफर कर दिया जायेगा।
लेकिन विपिन कहां मानने वाला था।नौकरी को पांच साल हो चुके थे। वह अब यहां के अधिकतर एरिए को समझ चुका था।काफी लोग उसे पहचानने भी लगे थे।उसे किसी भी तरह से जंगल बचाने थे और उसने एक बहुत कठिन निर्णय ले लिया। विपिन ने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया ।इसकी सूचना अपने उच्च अधिकारियों के साथ साथ घर-परिवार में भी दे दी। सब तरफ हड़कंप मच गया।जिसने सुना भौंचक रह गये।चंचला दौड़ी दौड़ी विपिन के पास आई बहुत नाराज़ और दुःखी थी।बहुत रोई, “विपिन तुम्हारे इस निर्णय से मेरे मम्मी पापा मेरी शादी कहीं और कर देंगे।”लेकिन विपिन ने अपना जूनून कायम रखा ।
विपिन ने सबसे पहले जिले के कलेक्टर से मिलकर अपना पूरा प्लान बताया । कलेक्टर ने उसे पूरा सहयोग करने का आश्वासन दिया। सबसे पहले उसने एक एनजीओ बनाया।घूम घूम के कुछ सहयोगी व्यक्तियों को जोड़ा ।रोहित और छंगू हरदम उसके साथ रहे।रोहित ने अपनी गाड़ी वन विभाग के ठेके से हटाकर विपिन को दे दी।तीनों ने घूम घूमकर सारे गांव वालों को जंगलों का महत्व समझाया।आदिवासियों को शराब से दूर रहकर अच्छे कामों में लागाया।दस सालों में काफी लोग उससे जुड़ते चले गये।मां, बहू और पोते का मुंह देखने की आस लिये ही स्वर्ग सिधार गई।पिताजी भी अब उसके पास ही रहने आ गये थे।नौकरी छूट जाने के कारण आर्थिक परेशानियाँ आने लगीं ।पिताजी अपनी पूरी पेंशन विपिन को दे देते थे।उसी से खाना पीना चलता था संतोष सिंह के जानलेवा हमले जारी थे क्योंकि उसका और दूसरे दबंगों का कारोबार पूरी तरह से ठप्प हो गया था। ऐसे ही एक हमले में विपिन ने अपने पिताजी और छंगू को खो दिया था लेकिन विपिन डटा रहा। गांव के बच्चों की शिक्षा के लिये स्कूल भी खोला जिसमें आसपास के गांव के बच्चे भी आते थे।लड़कियों को भी अच्छी शिक्षा के लिये प्रोत्साहित किया।
आखिर उसका संघर्ष और मेहनत रंग लाई। संतोष सिंह और तीन अन्य लोगों को जेल हुई और उनकी सारी संपत्ति सरकार ने जब्त कर गांव वालों की भलाई में लगा दी।सरकार से आर्थिक मदद लेकर छोटे उद्योग भी लगवाये जिससे लोगों को रोजगार भी मिलने लगा ।पेड़ों को बचाने के साथ साथ जहाँ पेड़ काटे गये थे, जंगल सूने हो गये थे, वहाँ पलाश , सागौन , नीम और कई तरह के पेड़ लगाए |
उसका लगाया हुआ जंगल चालीस साल का हो गया है | दूर दूर तक विपिन पेड़ वाले बाबा के नाम से जाना जाता है। आज सरकार की तरफ से उसे पुरस्कृत किया गया | रोहित और उसके सहयोगियों ने उसे पकड़कर गाड़ी में बिठाया | लेकिन यह क्या , गाडी तो वहीं आकर रुकी जिस जगह को वह छोड़कर गया था | बहुत भीड़ उसके स्वागत के लिये खड़ी थी | एक 25-26 साल का नौजवान माला लेकर आया और उसके गले में डालकर चरण-स्पर्श करके सेल्यूट करके खड़ा हो गया | विपिन ध्यान से देखने लगा | रोहित ने बताया यहां के नये डीएफओ हैं | उसके पीछे से चंचला पश्चाताप और आंखों में आंसू लिये माफी की मुद्रा में खड़ी थी | “यह मेरा बेटा है, प्रद्युम्न “ चंचला बोली |
प्रद्युम्न ने कहा, “सर आप मेरी प्रेरणा हो | मुझे आशीर्वाद दो कि मैं पूरी ईमानदारी से अपना काम कर सकूँ” ।
“नहीं चंचला, तुम माफी मत मांगो।तुमने जो किया, सही था।”
घर आकर अपना पुरस्कार मां पिताजी की फोटो के नीचे रख दिया ।
प्रेमलता बड़ोले
मंडलेश्वर, भारत