तुम सक्षम हो माही!
दिन बीतते चले जाते हैं कई दफा यूँ ,जैसे सिर्फ घड़ी की सुईयां सरक रहीं हैं अपनी नियति के अनुसार ..
पर वक़्त थम गया है कहीं पर और आपका मन मस्तिष्क भी, एक अजीब सी नीरवता चारों ओर संलिप्त है इसीलिए बहुत कुछ घटित होता रहता है आपके आसपास, पर आप दीन दुनिया से बेख़बर हैं, कुछ भी आपके हृदय को उद्वेलित नहीं करता और आप बस एक रोबोट की तरह अपनी दिनचर्या में ही खुद को उलझाए रखते हैं, क्या वाकई बीता समय लौटेगा या फिर वक़्त ने आपके लिए कुछ अलग ही सोच रखा है..शायद कुछ बेहतर..
कहानी का यह अंश लिखते हुए माही के हाथ यकायक रुक गए। कलम ने मानो विद्रोह कर दिया हो आगे लिखने से। डायरी एक तरफ रखते ही आज सुबह ही सुकन्या महाविद्यालय से प्राप्त हुए नियुक्ति पत्र की ओर ध्यान चला गया। परसों ही तो हिन्दी की अध्यापिका के लिए हुए साक्षात्कार में आए बीसियों प्रतिभागियों को देख हमेशा की तरह वह एक निराशा के भंवर में खुद को डूबा महसूस कर रही थी। फिर आज सुबह विद्यालय से आए फोन और वहाँ से प्राप्त नियुक्ति पत्र को पाकर भी मन खुश क्यों नहीं हो पा रहा था? मां बाबा को फोन पर बता दिया था और वे लोग भी उसकी सफलता पर खुश ही थे, पर जिसे सब से ज्यादा खुशी महसूस होनी थी, वह शब्दा मैडम तो कहीं आसपास नहीं थी। कहाँ ढूंढेंगी अब उन्हें?
अतीत के पन्नों को पलटने बैठी तो सुखद यादों का एक झोंका आसपास के वातावरण को महकाता सा गुजर गया। माही को वे दिन याद आने लगे थे जब वह आठवीं कक्षा में थी।बाबा गोंदिया जिले में एक फैक्ट्री में कार्यरत थे। कुछ आर्थिक तंगी के कारण जब फैक्ट्री ही बंद हो गई, तो उन्हें भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। स्कूल में पढ़ने वाले तीन बच्चों के साथ घर का गुजारा चलाना जब मुश्किल हो गया, तो अपने ससुराल वालों के कहने पर योगराज को दिल्ली शिफ्ट होना पड़ा,जहां उनके ससुर यानी माही के नाना जी ने उन्हें अपने एक दोस्त की फैक्ट्री में काम दिलवाने का वादा किया था। घर बार बेच कर दूसरी जगह पर स्थापित होना कोई आसान तो नहीं होता। दिल्ली के पूर्वी इलाके की गीता नगर की भीड़भाड़ वाले इलाके में नाना ने अपने घर के पास ही एक साठ गज का छोटा सा मकान दिला दिया, जिसमें ऊपर नीचे मिलाकर छोटे छोटे तीन कमरे,एक गुसलखाना और छोटी सी रसोई थी,जो सिर छिपाने के लिए काफी थी। योगराज जी फैक्ट्री भी जाने लगे थे, पर मुख्य परेशानी अब बच्चों को विद्यालय में दाखिल करवाने की थी। दिल्ली जैसे महानगर में प्राइवेट विद्यालय में बच्चों को पढ़ाना उनके वश की बात नहीं थी। माही से छोटे दोनों भाई बहन जुड़वां थे, जो अभी तीसरी कक्षा में ही थे, इसलिए उन्हें दाखिल करवाना उतना मुश्किल नहीं था,पर माही के लिए मुख्य समस्या भाषा की थी।मराठी भाषी विद्यालय में शुरू से पढ़ाई करने के कारण हिन्दी में उसकी पकड़ काफी कमजोर थी, भले ही घर में बोलचाल की भाषा शुरू से ही हिन्दी रही थी।
यही से तलाश शुरू हुई हिन्दी की अध्यापिका की, जो माही को ट्यूशन दे सके, ताकि वह हिन्दी माध्यम में अपनी पढ़ाई आसानी से जारी रख सके।तभी आस-पड़ोस से पता करने पर सबने शब्दा मैडम का नाम सुझाया,जोकि वही पास के एक प्राइवेट विद्यालय में हिंदी की अध्यापिका थी। माही तो पहले दिन से ही शब्दा मैडम की दीवानी हो गयी। खूबसूरत तो थी ही,पर बोलते समय उनके शब्दों से भी फूल झरते महसूस होते थे,शायद इसीलिए उनके माता-पिता ने उनका नाम भी वैसे ही चुना था-शब्दा ‘भारती’। धीरे-धीरे माही को समझ आया कि भारती उन्होंने उपनाम रखा हुआ है और वे कविताएं और कहानियां आदि भी लिखती हैं। उस समय माही के लिए यह बहुत बड़ा अचम्भा ही था कि मैडम इतना समय कैसे निकालती हैं हर काम के लिए और वह भी इतनी निपुणता से..
खैर माही के लिए धीरे-धीरे हिन्दी में पढ़ना लिखना सरल और सहज होता गया और बारहवीं कक्षा तक वह निरन्तर अपनी पढ़ाई में निखरती चली गई। दिल्ली आने के बाद योगराज बेशक धीरे-धीरे सेट हो गए थे, पर महंगाई के इस दौर में तीनों बच्चों के खर्च निकाल पाना अभी भी मुश्किल था। पत्नी भी सिलाई कढ़ाई का कुछ काम कर अपनी तरफ से मदद करने की पूरी कोशिश करती रहती थी।
आज सुबह से माही बहुत खुश थी, उसका बारहवीं का परीक्षा परिणाम जो आ चुका था और प्रथम श्रेणी में उसने सब विषय पास कर लिए थे। माही अपनी खुशी शब्दा मैडम से बांटने का सोच ही रही थी कि मां रेणू ने फरमान सुना दिया कि उसकी आगे की पढ़ाई के लिए अब उनके पास कोई गुंज़ाइश नहीं है।उन्हें मीता और सुमित की पढ़ाई भी किसी तरह पूरी करवानी है किसी तरह इसलिए माही के लिए बेहतर है कि वह उनसे सिलाई का काम सीखे और घर के कामकाज में हाथ बंटाये। माही के लिए यह बहुत बड़ा कुठाराघात था। अपने सारे सपने ध्वस्त होने के अंदेशे से उसने रो रोकर सारा घर सिर पर उठा लिया था, पर उसका साथ देने वाला कोई नहीं था।
शाम को जैसे ही खाने के लिए सब बैठे तो बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई। रेणू ने जब दरवाजा खोला तो सामने शब्दा खड़ी हुई थी हाथ में मिठाई का डिब्बा लेकर, माही देखते ही उनसे आकर लिपट गयी और रोने लगी। “”अरे, यह क्या? मैं तो सारा दिन अपनी माही का इंतजार करती रही कि वह अपने पास होने की खुशी में मुँह मीठा करवाने आएगी, खैर कोई बात नहीं, मैं खुद ही चली आयी।”” रेणू को बहुत अटपटा लग रहा था, पर वह चुपचाप रसोई घर में चाय पानी का इंतजाम करने चली गई।योगराज को भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात करें पर माही ने रोते हुए सब बता दिया कि मां बाबा अब आगे उसे पढ़ने नहीं देंगे।
“”क्यों भाई साहब? आजकल बारहवीं पास करते ही पढ़ाई कौन छुड़ाता है बच्चों की? आप तो समझदार हैं।और फिर माही पढ़ने लिखने में खूब होशियार है, मराठी से हिंदी माध्यम में आने के बावजूद कितने अच्छे अंक आए हैं, मैंने तो परिणाम आते ही वेबसाइट पर देख लिया था।”” योगराज ने अपनी आर्थिक तंगी के बारे में बताते हुए अपनी विवशता जाहिर की, तो शब्दा मैडम ने माही के परिवार को समझा बुझा कर पत्राचार के माध्यम से उसकी शिक्षा जारी रखने की सलाह दी और साथ ही साथ उसे अपनी माँ से सिलाई कढाई के गुर सीख उसमें मदद करने के लिए माही को भी राजी कर लिया।
समय तेजी से भागता रहा और माही ने शब्दा मैडम के प्रोत्साहन से स्नातक की शिक्षा पूरी करते हुए अपनी माँ के काम को बढ़ाने में भी उनकी पूरी मदद की। पढ़ने लिखने का शौक उसे किताबों के और पास खींचता रहा और हिंदी साहित्य में आनर्स की डिग्री लेकर आज वह फिर से अपनी मां का नया फरमान सुनने के लिए तैयार खड़ी थी,”” देखो जी, इसकी उस परकटी मैडम के कहने से करा दी बी ए भी पूरी, पर अब बस। बाईस साल की पूरी हो जाएगी इस दिसम्बर, इसलिए अब इसके लिए रिश्ता देखो। आगे और भी जिम्मेदारियां पूरी करनी हैं हमें।”” पति को संबोधित करते हुए रेणू बोल रही थी और माही विस्मित होकर उनका मुँह ताक रही थी।
“”पर माँ, मुझे अब बी एड करनी है। शब्दा मैडम बता रही थी कि एक बार किसी विद्यालय में नौकरी लग जाये, फिर मैं आसानी से अपनी उच्च शिक्षा भी पूरी कर लूँगी, अपने खर्च निकाल सकूंगी आसानी से और आप सब लोगों की मदद भी..””
“”बस यही तो बाकी रह गया है तेरी मदद लेना,बहुत पढ़ लिया.. हमारी बिरादरी में इतने पढ़े लिखे लड़के नहीं मिलते, इसलिए अपनी उड़ान को लगाम दो अब, कहीं यह न हो कि अपनी मैडम की तरह तुम भी कोई नए गुल खिलाती फिरो।”” योगराज आगे कहते कहते चुप हो गए। एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की दिक्कत यही है कि वह समाज और बिरादरी के दायरे से बाहर निकलना ही नहीं चाहता। कुछ दिन ऐसे ही कलह क्लेश में निकल गए, पर इस बार शब्दा मैडम का कुछ पता नहीं था। जाने कहाँ उलझी हुई थी वह? और बाबा ने उनके बारे में गलत क्यों बोला, समझ नहीं आ रहा था। मोहल्ले में भी अब उन्हें लेकर अक्सर खुसर फुसर होती रहती थी। सब कुछ बहुत रहस्यमयी सा था।
कुछ दिनों बाद मन थोड़ा शांत होने पर माही बाजार जाने के बहाने घर से निकली और सीधे शब्दा मैडम के घर जा पहुंची।दरवाजे पर दस्तक देते ही एक दस बारह साल के बच्चे ने दरवाजा खोला और आवाज़ देते हुए अंदर भागा,”” मम्मी कोई है बाहर, शायद आपसे मिलने आयी हैं।””
“”आयी काव्यांश,”” और सामने माही को देख शब्दा कुछ अचकचा गयी “”आओ माही, बैठो। कैसी हो? रिजल्ट आ गया क्या?””
“”आपको नहीं पता, कमाल है!”” माही शब्दा मैडम को कुछ बदला सा महसूस कर रही थी।
“”मैं मसूरी गयी हुई थी काव्यांश को लेने, मेरा बेटा है यह।”” माही के लिए यह सब बहुत अजीब सा था। उसे तो यह भी मालूम नहीं था कि शब्दा मैडम शादीशुदा है। उसके सब सवालों के जबाव शब्दा ने स्वयं दे दिए,”” देखो माही बेटा, हम सब को अपनी-अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होती है। मेरी लड़ाई मेरे मां बाप के कुछ गलत निर्णयों के बाद शुरू हुई जब स्नातकोत्तर पूरा होने से पहले ही उन्होंने अपने स्टैंडर्ड के हिसाब से रिश्ता ढूंढ आनन-फानन में मेरी शादी तय कर दी थी।आर्यन एक अति आधुनिक ख्याल वाले पति थे, जिनके लिए जीवन के मकसद खाना-पीना और मौज करने से बढ़कर कुछ नहीं था। पर मेरा संवेदनशील मन उस माहौल को सहजता से अपनाने में असमर्थ था। बस इन्हीं बातों के चलते आपसी रिश्तों में तनाव की शुरुआत हुई। काव्यांश जब मेरी कोख में आया, उन्हीं दिनों पति के नाजायज संबंध भी मेरे सामने आने लगे। आर्यन बच्चे की जिम्मेदारी से दूर भागना चाहते थे इसलिए मुझे गर्भपात के लिए भी मजबूर किया जाने लगा पर एक औरत के लिए यह फैसला लेना सरल नहीं होता, चाहे उसके सामने एक अंधकारमय भविष्य ही क्यों न करवट ले रहा हो। इसलिए मैंने ममता की कोमल भावनाओं को जिताने के लिए उनके दम्भ को परास्त कर दिया तलाक का फैसला लेकर..”” मैडम ने एक लम्बी साँस लेने के साथ अपनी बात जारी रखी।
“”पर समाज हमेशा हमें हमारी शर्तों पर जीने नहीं देता, इसलिए कभी-कभी कुछ कठोर फैसले भी लेने पड़ते हैं।काव्यांश पर इस सबका बुरा असर न पड़े इसलिए मैंने पहले खुद को मजबूत करने का फैसला किया। इसके पैदा होने के बाद मैंने अपनी पढ़ाई खत्म की। काव्यांश को पापा की निगरानी में छोड़कर यहां नौकरी ढूंढी क्योंकि मैं अपने बल पर उसे एक सुरक्षित भविष्य देना चाहती थी और अपने स्वाभिमान को जीवित रखने के लिए भी संकल्पबद्ध थी। फिर कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धित दिक्कतों के कारण मुझे कठोर निर्णय लेकर इसे होस्टल में रखना पड़ा। पिछले दस सालों में मैंने जीवन में बहुत कुछ झेला है नैराश्य, अकेलापन, मानसिक संताप और न जाने क्या-क्या? पहले मम्मी और फ़िर कुछ दिन पहले पापा साथ छोड़कर इस दुनिया को विदा कह गए इसलिए उनकी सारी संपत्ति और बिजनेस ट्रस्ट के हवाले कर यहाँ वापिस आ गयी थी, पर यहाँ लौटने के बाद समाज की बेरुखी और लोगों की सवालिया नज़रों से बहुत आहत हुई हूँ पर अब और नहीं। किसी के प्रति मैं जवाबदेह नहीं हूँ सिवाय मेरे बेटे के, इसलिए अब इस के साथ कहीं दूसरी जगह जाकर बसने का मन बना लिया है। तुम्हारा परिणाम मुझे पता चल चुका है। पर अब आगे तुम्हारी जो भी समस्या है, उसका हल ढूंढने में अब तुम खुद सक्षम हो माही! मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। “”
मैडम चुप थी और माही निशब्द,पर इस मुलाकात ने बहुत कुछ बदल दिया था। माही ने मन ही मन कुछ कठोर निर्णय लिए और घर जाकर शब्दा मैडम से हुई सारी बातचीत परिवारजनों को सुनाते हुए कहा,””शब्दा मैडम को आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वह सिर्फ अपनी शिक्षा और आत्मनिर्भरता के बल पर ही आज समाज में सिर उठा कर जी रहीं हैं और स्वयं और अपने बेटे को संभाल पा रहीं हैं। भगवान न करे कल को ऐसा कुछ मेरे साथ हो, तो मैं कैसे जीवन व्यतीत कर पाऊँगी? क्या आप लोग उस अवस्था में मेरा बोझ उठा पाएंगे? मैं शादी के खिलाफ नहीं हूँ, बस मुझे मेरे पाँव पर खड़े होने के लिए कुछ समय दीजिए। जहाँ इतना साथ दिया है, कुछ समय और सही…”” यह कहते हुए माही फफक फफक कर रोने लगी।
शब्दा मैडम कुछ दिनों में वहाँ से चली गयी थी पर माही के लिए राह आसान कर गयी थी। माँ बाबा की सहमति से माही ने एजुकेशन लोन लेकर पटियाला विश्वविद्यालय में बी एड में दाखिला लिया और वही ट्यूशन वगैरह कर अपना खर्च निकालती रही।
आज माही अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने के बाद सफ़लता की उड़ान की पहली सीढ़ी चढ़ने के लिए पूरी तरह से तैयार थी। बस कमी कहीं थी, तो उस सपने को पूरा करने में सक्षम बनाने वाली प्यारी शब्दा मैडम की, पर उसे उम्मीद थी कि वक़्त ने उसके लिए निस्संदेह कुछ बेहतर ही सोचा होगा। तभी विद्यालय में पहुँचते ही जब उसका परिचय स्टाफ़ से करवाया जाने लगा तो उसे स्वयं की किस्मत पर विश्वास नहीं हुआ,”” और माही इनसे मिलिए सुश्री शब्दा ‘भारती’, हमारे विद्यालय में हिंदी विभाग की मुखिया, इनसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा आपको “” प्रधानाचार्या ने परिचय कराते हुए कहा तो माही तो शब्दा मैडम के पाँवों में ही झुक गयी। बस इतना ही कह पायी,”” मेरा तो सारा जीवन ही इनकी बदौलत है मैडम!”” दो अश्रु मिश्रित चेहरों के पीछे छिपे प्यार, अनुराग और वेदना को भला दूसरा कोई कैसे जान सकता था?
सीमा भाटिया
लुधियाना, भारत