उल्टा पुराण
नेहा शादी कर जब पहली बार अपनी ससुराल आई ,तब उसे पता चला उसके ससुराल वालों का विचार उससे कितना भिन्न है।
नेहा अपनी माँ बाप की इकलौती संतान थी। यौवन के दहलीज पर वो कदम रखी ही थी, कि उसकी शादी हो गई। दरअसल एक अच्छा खाते पीते घर का लड़का उसके मां-बाप को पसंद आ गया था। दहेज के पैसे उसके मां-बाप के पास थे नहीं। इसलिए अच्छा कमासुत लड़का देख अपनी बेटी का विवाह कर वह निश्चित हो जाना चाहते थे।
नेहा को ससुराल आने के बाद पता चला कि यहां प्यार नाम की कोई चीज नहीं है ।था तो बस दिखावा और आंडबर।
वह पूरे जी जान से अपने ससुराल को समझने और रहने की कोशिश करने लगी लेकिन उसे ऐसा लगता कि वह जितना अधिक समझौता कर रही है समस्या बढ़ती ही जा रही है।
कुछ दिनों से उसके संदूक से महत्वपूर्ण चीज गायब होने लगा जो उसे बहुत प्यारा होता जबकि उसमें ताले की चौकीदारी भी होती। वह परेशान और हताश रहने लगी। इससे निपटने का कोई रास्ता उसे समझ में नहीं आता। वो किसी से कुछ कहती भी कैसे नई नवेली जो थी, और पति उसपर भरोसा करेंगे या फिर बात फिर और बिगड़ जायेगी वह सोच सोच कर परेशान हो उठी।
उसे एक तरकीब सूझा उसने बड़े बड़े अक्षरों में “चोरी करना पाप है ” लिखकर बाक्स में रखने लगी। उसको पता था कमरे को एकांत पाते ही उसके संदूक को खोला जायेगा और उसकी उक्ति काम आ जायेगी बिना किसी से कुछ कहे ही उसकी समस्या सुलझ जायेगी।
हुआ भी ठीक वैसा ही।अब उसका सामान सुरक्षित रहने लगा और वह निश्चितं।
अब वह खुशहाल रहने लगी कुछ समय बाद उसे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। अब वह सारा समय अपने बच्चे की परवरिश में व्यस्त रहने लगी।
बेटा थोड़ा बड़ा हुआ तो वह अपने पति और बेटा के साथ बोध गया और राजगीर घुमने गई थी। बहुत दिनों बाद वह अपने परिवार के साथ बाहर निकली थी सबके साथ वह खूब फोटो भी खिंचवाई।
घर आने के बाद उसने अपने सभी एल्बम शादी से लेकर बोधगया तक का फोटो देख रही थी, बीच में ही कोई काम से उठ गई वापस आने तक उसका एकदम ताजा एलबम गायब मिला उसे लाख ढूंढ़ी उसे नहीं मिलना था सो नहीं मिला। वह समझ चुकी थी यह कारस्तानी किसकी है। हार पछताकर उसने फिर एक उक्ति निकाली।वह अपने बेटे को कहानी सुनाने के बहाने जोर जोर से बताने लगी कि कैसे कहानी की नायिका ने अपने एलबम में बोध गया का फोटो लगा रखी थी तो उसके पति भी गौतम बुद्ध के तरह उसे और बच्चे को छोड़कर घर से चले गये थे।
कुछ ही दिनों बाद उसका खोया एलबम उसके मेज का शोभा बढ़ा रहा था।
एक दिन उसकी एक पुरानी सहेली उसके घर आई जो थोड़ी उदास दिख रही थी।उसने पूछा कि आखिर उसकी समस्या क्या है? तब उसकी सहेली ने बताया कि जब भी वह अपनी सास और जेठानी के साथ रिश्तेदारों के यहां शादी में जाती है तो उधर से बिदाई में जो साड़ी मिलती है या कोई भी पर्व त्योहार है उससे पूछा जरूर जाता है कि तुमको कौन सी साड़ी पसंद है।लेकिन दिया जाता है ठीक उसका उल्टा।
नेहा अब तक उक्टा पुराण में परिपक्व हो चुकी थी उसने उसे समझाया “अरे देख पगली ” “जो साड़ी तुम्हें पसन्द हो तुम उन्हें बस यही बताना की चाहे जो मर्जी आप मुझे कोई भी साड़ी दे दो लेकिन यह साड़ी मुझे बिल्कुल मत देना।”
नेहा से गुरुमंत्र लेकर उसकी सहेली अपने घर आ गई थी। अब सास और जेठानी के पूछने पर अपनी पसंद की साड़ी को सबसे ज्यादा नापसंद बताती और तभी से हर पर्व त्योहार या काज प्रयोजन पर मिले मनपसंद साड़ी उसके वार्डरोब का शोभा बढ़ाने लगे। समय बीतता गया अब वह खुश रहने लगी थी और अपनी मनपसंद काम पत्र पत्रिकाओं में लिखने लगी थी जो समय-समय पर छपने भी लगे थे और उसको उसकी पहचान भी मिलने लगी थी।
एक दिन शाम को वह अपने लान में अकेले टहल रही थी तभी उसकी नज़र अपनी पड़ोसन पर गई जो हमेशा चहकती रहती थी पर उसके मुख मंडल पर उदासी दिखी। वह धीरे से चलकर उसके पास गई । बातों ही बातों में उसकी पड़ोसन ने बताया कि उसकी चचेरी नन्द पूरे दल बल के साथ उसके घर आई है। काम में हाथ बिल्कुल नहीं बटाँती। पूरे परिवार का बोझ उठाते उठाते वह बिल्कुल थक गई है। उनकी फरमाइश दिनों दिन बढ़ती जा रही है। अभी और वे लोग कितने दिन रहेंगे पता ही नहीं।
दोनों पड़ोसिनें साथ में टहल जरूर रही थी लेकिन नेहा के दिमाग में सोच अलग से दौड़ रहें थे। थोड़ी देर बाद उसने अपनी पड़ोसन से कहा तुम ऐसा करो सुबह के चाय के साथ अपनी ननद को यह भी जतला दो कि” मैं आपको बहुत आराम देना चाहती हूं उतना दे नहीं पा रही हूं। आपकों रसोई में आना ही पड़ जाता है कभी कप रखने तो कभी पानी पीने। सच मानिए मुझे बहुत तकलीफ़ होती है मुझे काम करते देखकर।”
दूसरे दिन उसे वहीं पड़ोसन हँसते मुस्कुराते हुए दिखी।
उसने नेहा के पास आकर धीरे से कहा मान गई भाई तुम्हारी उक्टा पुराण”।
नेहा मंद मंद मुस्कुरा कर रह गई। वह बचपन से ही समाज सेवा करना चाहती थी लेकिन समाज और परिवार के दायरे में रहकर ही। आज उसे किसी को भी खुशी लेकर असीम खुशी की अनुभूति होती है।
आरती श्रीवास्तव विपुला
जमशेदपुर, भारत