दिखता

दिखता

घर के बाहर
गली गली में
सन्नाटा सा पसरा दिखता

बन्द हो गया
हाथ मिलाना
करे दूर से
सभी नमस्ते
शोर शराबा
कहाँ खो गया
पूछ रहे हैं
हमसे रस्ते
समय भूलकर
अपनी गति को
एक जगह ही ठहरा दिखता

ऑफिस घर में
स्कूल घर में
बदल गई
दिनचर्या सारी
उलझन अब तक
सुलझ न पाई
कैसी आई
है बीमारी
मास्क पहनकर
लोग घूमते
साँसों पर भी पहरा दिखता

सरकारी
आदेश मानना
सबकी खातिर
हुआ जरूरी
लक्ष्मण रेखा
नहीं लाँघना
घर पर रहना
है मजबूरी
अन्जाने से
भय का साया
हर चेहरे पर गहरा दिखता

रमा प्रवीर वर्मा
साहित्यकार
नागपुर ,महाराष्ट्र

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