फागुन में

फागुन में

रंग उड़ने लगे हैं लाल पीले सखी री फागुन में
गीत कोयल भी गाये सुरीले सखी री फागुन में

मौसम लेता है अँगड़ाई
पेड़ों पर नव कोंपल आई
कलियाँ अपने घूँघट खोले
गुन गुन करते भँवरे डोले
रंग फूलों के हुए चटकीले सखी री फागुन में
रंग उड़ने लगे हैं लाल पीले सखी री फागुन में

धरती ओढ़े चूनर धानी
और हवा करती मनमानी
पात पात पर रंगत छाए
बागों में अमुवा बौराये
बेर पकने लगे हैं रसीले सखी री फागुन में
रंग उड़ने लगे हैं लाल पीले सखी री फागुन में

हुरियारों की टोली आए
रंगों में भर गीत सुनाए
बजते हैं जब ढ़ोल मजीरे
भंग चढ़े तब धीरे धीरे
बंध रिश्तों के होने लगे ढीले सखी री फागुन में
रंग उड़ने लगे हैं लाल पीले सखी री फागुन में

राधा नाचे श्याम नचावे
ग्वाल बाल सब फाग सुनावे
धूम मची है बृज में भारी
होली खेले सब नर नारी
नैन राधा के हो गए नशीले सखी री फागुन में
रंग उड़ने लगे हैं लाल पीले सखी री फागुन में

रमा प्रवीर वर्मा
साहित्यकार
नागपुर , महाराष्ट्र

 

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