मैं जन्म से एक ब्रिटिश हूँ और मैं माफ़ी मांगता हूँ”

“मैं जन्म से एक ब्रिटिश हूँ और मैं माफ़ी मांगता हूँ”

आज भी ‘नासूर बन दुखता है’ फिरंगियों को जलियांवाला बाग हत्याकांड !!

“आकलैंड रायटर्स फेस्टिवल 2019 के उद्घाटन के दौरान कुछ चुनिन्दा लेखकों को 7 मिनट के भीतर एक ‘सच्ची कहानी’ सुनने के लिए आमंत्रित किया गया था। जिसमे एक आमंत्रित लेखक एवं कांग्रेस के चर्चित सांसद शशि थरूर भी थे। शशि थरूर ने इस मंच का प्रयोग जलियांवाला बाग़ की घटना को सुनाने में उपयोग किया, उन्होंने इतने प्रभावशाली ढंग से इस मार्मिक घटना का जिक्र किया कि उन्हें सुननें वालें श्रोताओं में से एक श्रोता इतना भावुक हो गया कि उसने एक पुस्तक पर लिख कर शशि थरूर को दिया – “मैं जन्म से एक ब्रिटिश हूँ और मैं माफ़ी मांगता हूँ”।

भारत की आज़ादी के आंदोलन में जलियांवाला बाग का सामूहिक हत्याकांड देशवासियों पर सबसे ज्यादा असर डालने वाली घटना थी। भारत के इतिहास में कुछ तारीख कभी नहीं भूली जा सकती हैं। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पर्व कर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजिनॉल्ड एडवर्ड डायर द्वारा किए गए निहत्थे मासूमों के हत्याकांड से केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक राज की बर्बरता का ही परिचय नहीं मिलता बल्कि इसने भारत के इतिहास की धारा को ही बदल दिया।

बैसाखी के पावन मौके पर अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का दर्द आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। हर साल जब भी यह दिन यह तारीख आती है तो सभी की आंखें उन लोगों को याद कर नम हो जाती हैं जिन्होंने यहां पर अपनी जान गंवाई। उस दिन जलियांवाला बाग में ब्रिटिश राज की ओर से दागी गई गोलियों की गूंज आज भी यहां सुनाई देती हैं। शहीदों के खून से लाल हुई यह भूमि अब किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है। इस जघन्य हत्याकांड के बाद चर्चिल ने कहा था कि जोन ऑफ आर्क को जला देने के बाद होने वाला यह अमानवीय हत्याकांड ब्रिटिश इतिहास पर एक धब्बा है।

ब्रिगेडियर जनरल रेजिनॉल्ड एडवर्ड डायर के निर्देश पर 90 ब्रिटिश सैनिक बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरु कर दिया और 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी।

ब्रिटिश विचारक एस्किथ ने जहाँ इस घटना पर अपना रोष व्यक्त करते हुए जलियांवाला बाग कांड को ‘अपने इतिहास के सबसे जघन्य कृत्यों में से एक बताया था’। इस घटना से गुरुदेव टेगौर इतने मर्माहत हुए कि उन्होंने अपनी ‘नाईटहुड’ की उपाधि को लौटा दिया और कहा कि “समय आ गया है, जब सम्मान के तमगे अपमान के बेतुके संदर्भ में हमारे कलंक को सुस्पष्ठ कर देते हैं और जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मै सभी विशेष उपाधियों से रहित होकर अपने देशवाशियों के साथ खड़ा होना चाहता हूँ”। इस कांड के बारे में थाम्पसन एवं गैरट ने लिखा है कि “अमृतसर दुर्घटना भारत-ब्रिटेन संबंधों में युगांतकारी घटना थी, जैसा कि 1857 का विद्रोह”।

इस घटना का भारतीय जनमानस पर इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि हजारों भारतीयों ने रक्त से सने जलियांवाला बाग़ की मिट्टी से माथे पर तिलक लगा कर देश को आजाद करने का दृढ संकल्प लिया। इस घटना के परिणामस्वरूप पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय हो गया। गाँधी जी इसी नरसंहार के प्रतिक्रियास्वरूप 1920 में असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया। इसी नृशंश हत्याकांड में घायल उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में बम से धमाका किया और पंजाब के तत्कालीन ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर मायकल ओ डायर को गोली मार दिया, जिसके परिणामस्वरूप 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को फांसी दे दी गयी।

आजादी के बाद साल 1961 में जलियांवाला बाग में 1919 में हुए गोलीकांड के शहीदों की स्मृति में एक मशाल के रूप में एक स्मारक बनाया गया। जहां पर वर्ष 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने जलियांवाला बाग के शहीदों को पुष्पांजलि दी, लेकिन यह भारतीयों के घावों को नहीं भर सका।

ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने अमृतसर के जलियांवाला बाग़ नरसंहार कांड की 100वीं बरसी के मौके पर कल इस कांड को ब्रिटिश भारतीय इतिहास पर ‘शर्मसार करने वाला धब्बा’ करार दिया लेकिन उन्होंने इस मामले में औपचारिक माफ़ी नहीं मांगी।

डॉ नीरज कृष्ण
वरिष्ठ साहित्यकार
पटना, बिहार

जलियांवाला बाग में हुए नृशंस हत्याकांड की 101 वीं बरसी पर देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रस्तुत है सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता

जलियांवाला बाग में बसंत

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।

कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से,
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।

परिमल-हीन पराग दाग़ सा बना पड़ा है,
हा! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है।

ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना,
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।

वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना,
दुःख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना।

कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें,
भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें।

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,
तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले।

किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर,
कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर।

आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं,
अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं।

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना,
कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना।

तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर,
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर।

यह सब करना, किन्तु यहाँ मत शोर मचाना,
यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना।

सुभद्रा कुमारी चौहान

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