चाहतें

चाहतें

सुबह की चाय के लिए बालकनी में पहुँचते ही ,अवि समझ गया कि कल … नहीं सिर्फ़ कल नहीं ,कई दिनों के कड़वे पलों का भारीपन है। माँ के सामने चाय का प्याला अनछुआ ही पड़ा था और शिवि की आँखों का प्याला छलकने को आतुर !

बड़े ही सहज भाव से उसने चाय का प्याला उठाते हुए कहा,”अरे वाह ! गेंदे की कलियाँ कितने प्यार से मुस्कुराने लगी हैं। काश इनमें एक कली गुलाब की भी होती।”

सब चौंक के उसको देखने लगे, पर माँ की झुंझलाहट जैसे बाँध तोड़ गयी,”हर जगह अपने मन की ही, वो भी असम्भव सी बात … अरे ! कभी देखा है कि गुलाब के पौधे में गेंदे का फूल या रातरानी में सूरजमुखी ! जैसी पौध लगाओगे वैसा ही फूल मिलेगा।”

अवि हँस पड़ा,”माँ ! चाहत ही तो है, कुछ भी हो सकती है।” माँ ने जैसे बातों की दिशा भाँप ली और दूसरी तरफ देखते हुए बोल पड़ीं,”गुलाबों की क्यारी में उम्मीद गुलाब की ही होगी न।”

चाय की चुस्की लेते हुए अवि बोला,”क्या बात है … कद्दू और करेले में भी फूल आने लगे हैं। आपने अच्छा किया था माँ जो एक ही बड़े गमले में दोनों पौध लगा दी थी और इनको फैलने के लिए बालकनी के इस कोने का विस्तार मिल गया। अच्छा माँ! इस गमले में आपने पौध अलग-अलग लगाई थी या मिट्टी ?”

माँ झल्ला पड़ीं,”तुम कहना क्या चाहते हो?”

“माँ! नव निर्माण दो बिंदुओं से होता है, जिसमें मिट्टी की प्रकृति एक सी ही रहती है, पर बीज क्या बोया गया है वो पौधे की प्रकृति निर्धारित करती है। स्त्री के दोनों क्रोमोसोम एक्स होते हैं, जबकि पुरूष में एक्स और वाई दोनों ही। अब आप स्वयं निर्धारित कर लीजिये कि आनेवाली सन्तान के बेटी या बेटा होने के लिए जिम्मेदार कौन है और आपके आक्रोश का केन्द्र किसको होना चाहिये” , अवि ने शान्त मन से चाय की चुस्की लेते हुए दूसरा प्याला माँ की तरफ बढ़ा दिया।

निवेदिता श्रीवास्तव ‘निवी’
भारत

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