श्वान

श्वान यह एक अलसाई-सी सुबह थी। उधर सुरमई बादलों के पीछे से झाँकता सूरज बाहर आने से कतरा रहा था और इधर मेरा भी रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं था। बादलों के पीछे से आती पीली, मंद रोशनी की किरणें नींद को रोकने का असफल प्रयास कर रही थीं। ऐसा लग रहा था…

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शुरुआत

शुरुआत सारे घर में आज एक बार फिर से खूब चहल-पहल थी। हर कोना बड़े मनोयोग से सजाया जा रहा था। विभिन्न आकृतियों वाले गुब्बारे, रंग बिरंगी बंदनवार , फूल, जिस जिसने जो भी सुझाव दिया था, महक ने हर उस चीज का इस्तेमाल किया था। खासतौर पर बैठक में, जहाँ आज शाम को यह…

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अंकुरण

        अंकुरण रिंगटोन के बजते ही फोन के स्क्रीन पर अल्फाबेट के जिन सदस्यों ने एक परिचित नाम को उकेरा, वैसे ही भय और उत्साह दोनों की ही बेमेल संगति ने हृदय के धड़कने की गति को मानो बेलगाम कर दिया। मेरी आशंकाओं के विरुद्ध फोन के दूसरी तरफ आश्वस्तिपूर्ण ध्वनितरंगें पृथ्क…

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खाद पानी 

खाद पानी  “….वो डॉक्टर अजीब है। बोली, विनी, ठीक है। अरे! ऐसे कैसे? पहले तो पढ़ाई में अव्वल, म्यूजिक में आगे, स्केटिंग में बढ़िया, स्टोरी टेलिंग गज़ब की, जर्मन सीखने में अच्छी, कराटे, कॉडिंग में भी रुचि, साइंस ओलम्पियाड़ और अबेकस में बढ़ीया। ज़रा ड्रॉइंग कॉम्पिटिशन में नाम ना आया, तो सबमें डब्बा गुल। वो…

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धीरे धीरे रे मना

धीरे धीरे रे मना “अरे चुन्नू ! क्या सारा दिन खेलते रहोगे। आज तो सूरज उगते ही अपना क्रिकेट बल्ला सम्भाल लिया। पता है, बारह माही परीक्षा सर पर आ गई है।पढ़ाई के लिए स्कूल ने तुम्हें छुट्टी दे रखी है।और मैं भी तुम्हारे लिए घर पर हूँ, ऑफिस से छुट्टी लेकर। छः माही का…

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दूसरी फूलो

दूसरी फूलो आज अचानक से फूलो का चेहरा मेरे सामने कौंध गया और फ्लैश बैक की तरह उसका जीवन परत-दर-परत खुलने लगा। उसका वास्तविक नाम फूलवंती था पर, उसके जीवन में सुगंध का कहीं नामों निशान तक नहीं था। बाल्यावस्था में ही उसने मां को खो दिया था । पिता शादी कर दूसरी मां ले…

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बिना धड़ की भूतनी

बिना धड़ की भूतनी पिछले दस साल से मेरा एक ही मकसद था, आते जाते लोगों को तंग करना। रात को और गर्मियों की दोपहर में जब सड़कें सुनसान हो जातीं थीं तो मैं इसी तलाश में रहती थी कि कोई मेरे पास से गुज़रे और मैं उसे परेशान करूँ। जब लोग हैरान होते थे,…

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कजाकी

कजाकी मुंशी प्रेमचंद बहुत ही सहज सरल किन्तु असाधारण व्यक्तित्व के मालिक थे. वे अपनी हर कहानी को पहले अंग्रेजी में लिखते, उसके बाद उसका अनुवाद हिंदी और उर्दू में करते इस तरह तीनों भाषाओँ पर उनकी बराबर से पकड़ थी. उन्होंने अपने जीवन की साधारणता की और इंगित करते हुए कहा था की “मेरा…

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नहान

नहान नहान…! ट्रैन के डब्बे की उमसभरी घुटन से जानकी बेहाल थी। रह रहकर पसीने और कडवे तेल का मिला जुला भभका आता और नथुनों में समा जाता। यह तो कहो उसे और विशम्भर जी को खिड़की के पास वाली सीट मिल गयी थी। बाहर से आती ताज़ी हवा से कुछ राहत थी। भीतर तो…

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कील

कील बाहर खिली – खिली धूप को देखते ही उसका मन बाहर जाने को मचल उठा ।उसने अपने पैटीओ से बाहर गार्डन में देखा पेड़ भी शांत थे लगता था वह भी चमकती धूप का आनन्द ले रहे थे । धूप से घास पर पड़ी ओस भी यूँ चमक थी मानो प्रकृति ने चमकते हीरों…

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