कान्हा का मनका

कान्हा का मनका

अब तो लौ लागी कान्हा,
तेरे श्यामल श्री चरणों में ।

जन्म जन्म का साथ हमारा,
युगों युगों की मेरी प्रीत।
बना दे मुझे छोटा सा मनका,
चुन ले मुझ को, जड़ ले मुझ को,
अपनी रुनझुन पैजनियों में ।

अब तो लौ लागी कान्हा ,
तेरे श्यामल श्री चरणों में।

औक़ात नहीं पर है प्रेम निश्छल ,
अधिकार नहीं पर है इच्छा प्रबल,
बनकर एक हीरा अनमोल,
दमकूँ तेरी करधनिया में ।

अब तो लौ लागी कान्हा ,
तेरे श्यामल श्री चरणों में।

या फिर बनूँ एक माणिक रक्तिम,
सज जाऊँ तेरे चंद्रहार में।
झूलूं कंठ से मैं तेरे,
रहूं हृदय के पास मैं तेरे।

अब तो लौ लागी कान्हा,
तेरे श्यामल श्री चरणों में ।

तुच्छ हूँ मैं जैसे सीपी,
पर है पुनीत पावन भक्ति मेरी।
क्या मैं हूँ बन सकती,
एक श्वेत सुन्दर सा मोती?
और फिर, लटकूँ तेरी मुरली की,
मनोहर सी लटकनियां में।

अब तो लौ लागी कान्हा ,
तेरे श्यामल श्री चरणों में।

कान्हा विहंसे और बोले,
अपनी मधुरिम सी वाणी में,
अरे ओ पगली!,
तू तो चरणों से सीधे,
अधरों पर ही आ बैठी?

वैसे मैंने तो कब से ही,
दिया बना मोर पंख तुझे,
टाँक लिया है मैंने तुझ को,
अपने इन घुंघराले केशों में ।

न न कान्हा!
स्तब्ध, मूक, मंत्र मुग्ध थी मैं,
मैं यहीं ठीक हूँ ओ कान्हा!,
तेरे पग की पैजनियां में।

अब तो लौ लागी कान्हा ,
तेरे श्यामल श्री चरणों में।

(एक नटखट सी भक्तिन की लालसा )

नीरजा राजकुमार,
आई ए एस (सेवा निवृत्त )
भूतपूर्व मुख्य सचिव कर्नाटक

 

 

 

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