माटी का सपूत

माटी का सपूत

देशभक्ति अपने उबाल पर थी, जय हिंद के नारों से गली-गली, मोहल्ला-मोहल्ला गूंज उठता था, समूचा देश एक क्रांति के दौर से गुजर रहा था । आए दिन देशभक्ति और वीरो की हुंकार देश की जनता के प्राणों में नये जोश भर देती थी, देशभक्तों की टोलियों द्वारा योजनाएँ बनाकर ट्रेनों पर धावा बोलने, अंग्रेज अफसरों की गाड़ियों, बघ्घियों पर हमला करने, जुलूस , प्रभात फेरियाँ, अंग्रेजों के काफिले पर बमबारी, गोलीबारी, आगजनी, शांतिवादी बैठकें, धरनों की घटनाओं की खबरें आए दिन आम थीं । अंग्रेजों की नाक मे दम कर रखना ही इनका एकमात्र उद्देश्य था, खून के कतरे-कतरे से भारत माँ की माटी बस यही पुकार रही थी, अंग्रेजों भारत छोड़ो , अब दिल्ली दूर नहीं, जय हिंद जय भारत, जय हिंद जय भारत, जय हिंद जय भारत————।
देश को गुलामी से मुक्त करवाने का उबाल, अपने चरम पर था, पर फिरंगी भी कहाँ छोड़ने वाले थे, उनके विरुद्ध चली गयी हर एक चाल की बाजी को उलट कर रख देने के अलावा, दूजा काम उनके पास भी तो नहीं होता था न, समूचा कारागार भरा पड़ा था, भारत माता के सपूतों को ठूंस कर भर दिया गया था। अफसर पर अफसर आते जाते, बदलते जाते, पर हमारे नारों, उद्देश्यों, उत्साहों के सर कुचलने के अलावा, उनका कोई सुर नहीं था, एक सुर, एक लय, एक ताल, कुचल डालो, सबको खतम कर डालो, फिनिश देम, नो मरसी, उनकी आत्मा में एक ही आवाज़ थी बसी——-” डिवाईड एंड रूल, रीच टू योर गोल”।
उस रोज भी सब कुछ वैसे का वैसा ही था, वही तनातनी, वही गहमागहमी, वही गरमागरमी। सर्द दोपहरी अपने वार्धक्य की ओर बढ़ चली थी, ठंडी हवाएं, गुलामी की जंजीरों के लोहों को हड्डियों तक गला दे रही थीं। चिड़ियों के काफिले, देशभक्ति के धुनों की चहचहाहट संग, संध्यावंदन करते हुए, सीमाओं को धता बताकर, अपने पंख पसारे, नीड़ की शांति के गहन शांति में, चंद योजनाओं को फलीभूत करने की गोष्ठी में आमंत्रित थें । छिटपुट, चंद लोग अपने-अपने नून तेल बांधकर आटे दाल का भाव, तोल मोल कर पेट की आग बुझाने के लिए, आग जलाने के वास्ते, लकड़ी-कोयला बांधकर, थके-हारे, घर की ओर भाग रहे थे, की तभी वायसरॉय की कोठी से आती मुख्य सड़क, चौड़ी पट्टी वाली, साफ चमकदार, दौड़ते-दौड़ते, बीस-पच्चीस सिपाही, हाँफते-हाँफते, सड़क खाली करवा रहे थे, हटो बाबा हटो, परे हो जाओ, परे हो जाओ । बड़े साहब, गवर्नर लार्ड साहब की बघ्घी… , परे हो जाओ, अभी इधर से गुजरने वाली है, परे हो जाओ, ऐ बुढ़िया, चलो हटो, भागो यहाँ से दिखता नहीं क्या ? अरे ओ साइकिल वाले? साइड करो भागो यहां से, बड़े साहब, लॉर्ड साहब, अभी गुजरेंगे, सुना नहीं क्या? चारो तरफ अफरातफरी , लोगबाग इधर उधर भागने लगे, अंधाधुन डंडे चलाए जाने लगे, जिसे जहाँ जगह मिली सर छुपाने के लिए हट चुका था। सड़क के दोनों किनारे लगे वृक्षों की ओट में लोग छिप गए कि कहीं लार्ड साहब की नजर उनपर न पड़ जाये, क्या बालक, क्या महिला, क्या जवान, क्या अपाहिज, क्या वृद्ध! सबकी हालत बराबर। सब काँप रहे थे डर के मारे, कब साहब की गाड़ी इधर से गुजरे और उन्हें शान्ति मिले, फसफुसाहट का शोर निस्तब्ध हो, फिजाओं में गूँजने लगा, पर ऊपर से सभी मौन। उफ्फ, असहनीय होती जा रही थी गुलामी, सहन शक्ति की सीमा की पराकाष्ठा पार हो रही थी अब, हर छुपी निगाहें एक दूसरे की निगाहों से बस एक ही सबाल पूछ रही थी, आखिर ये सब कब और कितने दिनों तक सहना पड़ेगा? न मालूम आजादी का सूरज कब निकलेगा? गुलामी के बादलों की काली परछाईं कब छटेगी? अपने ही देश में हम गैरों की तरह जिये और गैर शासन चलाये..! खून उबल उबल कर अब क्रोध के भाप में तब्दील हो रहा था। आखिर कब तक दबाये रखें? ओह, काफी समय हुए, अब तक लार्ड की गाड़ी गुजरी नहीं। एक बूढ़े बाबा ने काँपते हाथों से छड़ी को मजबूती से संभालते हुए पास खड़े एक जवान लड़के से कहा बेटा, मेरी बहू ने एक रोटी बाँध दी थी अंगोछे में! खाये कब का हो गया, पेट पीठ सब एक हुआ जा रहा है, हलक सूख रहा है, अब भी एक कोस पड़ेगा मेरे गांव को हहह, अब तो शायद इस बुढ़े को घर पहुचते रात हो जायेगी। अरे देखो देखो, देखो बाबा कैसे एक बच्चे और उसकी माँ को पुलिस डंडे चलाकर , धक्का मारकर, सड़क से हटा रही है। ओह! कितनी चोट लग गयी बहन को, सर से खून बहने लगा, हे भगवान, कबतक चलेगा ये सब? ओह बच्चे के हाथ से हमारा राष्ट्रध्वज गिर गया, कोई उठाने भी नहीं दे रहे हैं , बच्चा रो रहा है बाबा, माँ के साथ वृक्ष की ओट में छिपना नहीं चाहता। हाँ बाबा हाँ, अब वो रोके भी रुकना नहीं चाहता, बाबा! पुकारो न उसे, समझाओ न! जान गंवा बैठेगा नादान, झंडे की आन, शान, मान बचने को, उसे मिट्टी में मिलने से बचाने को, अपनी जान लुटाने पर तुला है। कोई तो समझाए उसे, ओह्ह किसी तरह उसकी माँ उसे खिंचती हुई चली जा रही है, आखिरकार, भारत माँ के उस लाल को उसकी माँ ने अपने आँचल में छुपा लिया। पर उसकी कसमसाहट ! जान जा रही है उसकी, झंडा जो नीचे पड़ा है, कैसे छोड़ दे?….
उसे वहां जमीन पर, उस वीर भैया ने, उससे वादा लिया था न कल शाम…! , क्‍यों छोटू़्? है न इतनी ताकत? बोल छोटू? संभाल पाओगे इसे? बोल बेटा?
अरे भैया ,क्‍या बात करते हो? जान दे दूँगा, पर हाथ से छूटने न दूँगा और वो अंग्रेजी हुकूमत? अरे भैया, तुम फिक्र न करो, अभी पांच साल का हूँ न, मेरे दादू, नेताजी, भगत सिंह , चंद शेखर की सब बातें बतातें हैं मुझे, मुझे भी हॉ भैया, मुझे भी आजाद हिन्‍द में भर्ती होना है, जय हिन्‍द भैया जय हिन्‍द, हॉं मै जाउँगा , मै भी जाउँगा मै भी, बनूगा सुभाष, तोतली बोली में भी सब बता गया था वो, भारत माँ की मिटटी उसके लहु से बोल रही थी और आज मां के आंचल कसमसाता ,छटपटाता छोटू । चैन ही कहाँ था मां के आँचल मे भी छोटू को कितने ही बच्चों से उनकी मां का आंचल और पिता का साया छीन लिया था इस अंग्रेजी हुकूमत ने, बता रहे थे न उसके बाबा । कैसे उनकी झुरियो वाली आंखे धुंधलाती सी पिछली कितनी ही दर्दो का दबाए हुए भी छलक पडती थीं और वो अपने नन्‍हे नन्‍हे हाथों से उनके आँसू अपनी धड़कनों से लगा लेता था और आज वो आंचल में रोता जा रहा था, मां मुँह ढके मुँह दबाये खुद को और उसे छुपाये पेड की ओट में और वो झंडा ,पराधीनता की कहानी कहता , नम ,गमगीन रोती , ठंडी हवाओं के झोंकों को सहता , खाली सड्क पर अकेला पडा हर हिन्‍दुस्‍तानी से अपना भविष्‍य पूछ रहा था! उस रोज ,… तभी छह बड़े-बड़े शानो शौकत से पाले, सिखाए पढाए चकाचक घोड़े, उन पर गोरे सैनिक , दौडाते हुए पूरी खुली सड़क, घोडे अपनी शान में, उनकी पदचाप चीख चीख कर घोषणा कर रही थी लार्ड की गाडी निकट है, होशियार ,खबरदार ……….! गुजर चुका था काफिला सिपाहियों का, अनदेखी करते हुए झंडे को, उसके स्‍वाभिमान को रौदते हुए, माँ के ऑंचल में कसमसाते छोटू ने कनखियों से देख लिया , अब उसे कोई रोक नही सकता था, अब तो जो हो जाए, निेकल पडा आंचल से मां का लाल, गोरे सिपाही उसके झंडे को , हर भारतीय के झंडे को रौंद कर, कुचल कर, शान से आगे बढ चुके थे, बस लार्ड की सवारी आने ही वाली थी। छोटू भागता भागता चमचमाती सडक के बीचो बीच आकर झंडे को अपनी बाहों में समाए, छाती में चिपकाए , जमीन से अपना अस्तित्‍व मिलाकर भारत माता की माटी को गले लगाकर लिपट चुका था, वही सडक पर पडा था ठंड मे बिना स्‍वेटर, फटी कमीज… पर मन में संतोष कि अब भैया को किया वादा टूटेगा नहीं.. वहीं पर पडा था वो छोटू कि तभी एक कार दूर से आती दिखी अपनी ही तेज गति में गोरे साहब और उनकी मेम , हैट कोट पैंट, उधर मां का डर के मारे कलेजा मुँह को आ रहा था , कार सनसनाती हुई करीब आती गई । ओ माई गॉड मैम चीख उठी थी, हू इज दिस, साहब ने साउट किया हाउ द हेल कैन हैपेन, ब्‍लडी ब्‍वाय… डाइवर के मुश्किल से ब्रेक लगाते लगाते भी अँगुलिया दब चुकी थी छोटू की, सांसें थम चुकीं थीं सबकी पर सामने आने की हिम्‍मत किसी की न थी डाइवर को भेजा गया, खून गिरने लगा था अँगुलियों से, झंडे का कपडा अपनी मिटटी की लहु से लाल , पर क्‍या मजाल जो हाथ से छूट जाए, उठा नही वो नहीं उठा! उनके लिए समझना मुश्किल था वो बच्‍चा क्‍या कहना चाहता था, न वो समझना चाहते थे, पर सजा सुनानी बाकी थी , पर हर वो सजा मंजूर थी उस बालक को, जो झंडे के स्‍वाभिमान की रक्षा की राहों में मिले! उठा, उठा वो बालक, उठा, पर झंडा छाती से चिपकाए, हाथ लहूलुहान सूखे होंठ, भूखे पेट, देख कर लार्ड चीखा, हटाओ सामने से इन लावारिसों को, रिमूव देम, इनकी इतनी मजाल एक सड़े कपडे के टुकडे के लिए मेरी रूटीन खराब कर दी? कहाँ है कौन है इसके साथ, पकड लो और पेश करो उसे? तुरन्त एक क्षीणकाय चिथड़ी साडी में लिपटी काया, उसकी मां को सामने लाया गया । अपने बच्‍चे संग सिपाहियो के साथ सिकडियों में बंधी, न जाने कौन से जुर्म की सजा पाने चल पडी थी, फिरंगियों की सरकार के थाने पर, लहुलुहान बच्‍चे, के हाथ का अभिन्‍न अंग वो झंडा , वो पागल दीवाना लडका, शान से हवा में हिला हिलाकर लहरा रहा था, दिखाकर मुस्‍करा रहा था पैरो की बेड़ियाँ, क्रांति क्रांति चीख रही थीं, कानों में भारत मां की आवाज सुनाई दे रही थी ‘’शाबास बेटा, हमें गर्व है तुम्‍हारे जैसे लाल की मां होने का,”.. सजा सुनाकर, लार्ड की गाडी पहले से भी ज्‍यादा गति से अपनी राह पर बढ चुकी थी, बच्‍चा बेड़ियों और सीकडो संग मॉं के साथ वो आजादी का मतवाला, घसीटता हुआ एक एक कदम मानो पिछली एवं आने वाली सदियों का हिसाब लगाने को बढा चला जा रहा था ।अंगुलियों से लहु की बूंदे, बूंद बूंद आजादी के दीवानेपन के एहसास के बीज भारत मां की धरती में बोते चले जा रहे थे.. एक एक कर उसके साथ दीवाने और उनके काफिले जुडते चले गए गए,. आखिर वो अब अकेला जो नहीं था.. बेफिक्र अपनी ही मस्ती मौज में, निडर…. धड़कने गा रहीं थीं उसकी
“अब देखा जाएगा जो भी होगा….”.. वहीं दूर कहीं गाना बज रहा था;
‘’अपनी आजादी को हम हरगिज लुटा सकते नहीं , सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं ।।
भारत माता की जय भारत माता की जय भारत माता की जय ।नारे लग रहे थे बंदे मातरम बंदे मातरम ।।

बालिका सेनगुप्ता
मेरठ, उत्तर प्रदेश ‍

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