स्वतंत्रता उर्फ़ स्वाधीनता या स्वछंदता,.?

स्वतंत्रता उर्फ़ स्वाधीनता या स्वछंदता,.?

स्वतंत्रता क्या है,..?
स्वतंत्रता का अर्थ क्या है,..?
अपने मन मुताबिक चलने की आज़ादी,..?
या मनमानी करने की आज़ादी,..?
या अभिव्यक्ति की आज़ादी,..?
आखिर क्या है स्वतंत्रता??
एक पतंग जो खुले आकाश में उड़ती है आज़ाद होती है? या एक पंछी जो अपनी काबिलियत और सामर्थ्य के दम पर उड़ता है वो आज़ाद होता है?
दरअसल पंछी को उड़ने की आज़ादी तभी तक है जब तक उसके पंख सलामत हैं,..बिलकुल वैसे ही पतंग को उड़ने की आज़ादी तभी तक है जब तक वो डोर से बंधी है,..पंछी पंख के बिना उड़ नहीं सकता,..जब भी कोशिश करेगा औंधे मुह गिर पड़ेगा,..पतंग को आज़ाद करके देखिये,..कटी डोर के साथ कुछ दूर जाकर गिर पड़ेगी फट जाएगी ख़त्म हो जाएगी,.. वस्तुएं गुरुत्वाकर्षण बल के बिना तितर बितर हो जाएंगी,..समीकरण सूत्रों के बिना हल ही नहीं होंगे,..भाषा व्याकरण के बिना असभ्य हो जाएगी,. नदी किनारों के बिना तबाही का कारण बन जाएगी,.. दुनिया सूर्य और चंद्रमा के बिना नष्ट हो जाएगी,..यानि सृष्टि की हर चीज़ किसी न किसी से बंधी है,… इन्हें आज़ादी देने का अर्थ है सृष्टि का विनाश,…
क्या प्रलय की कीमत पर ये स्वतंत्रता मानव को मंजूर है?नहीं ना,..????
फिर क्यूं चाहिए मानव को स्वतंत्रता,…??
एक बार सालों की दासता से जैसे तैसे देश को महापुरुषों के बलिदान से स्वतंत्रता मिली तो थी,…क्या किया देश वासियों ने इस स्वतंत्रता का,..? खोखला हो गया सोने की चिड़िया कहलाने वाला हमारा देश,..। आज़ादी का मतलब मानव ने क्या लगाया??? भ्रष्टाचार, व्यभिचार, दुराचार है वर्तमान में स्वतंत्रता की परिणति,..।
लोगों को बोलने की आज़ादी मिली तो क्या हुआ गालिओं और अपशब्दों का बहुतायत प्रयोग,.. गंदी भाषा ,..गंदी सोच,..??? और जिनकी भाषा सभ्य थी वो सारे बन गए ज्ञानी,.. जो अपने काम से नहीं बल्कि अपने ज्ञान से दुनिया को प्रभावित करते हैं,..
लोगों को स्वतंत्रता मिली तो रिश्तों की मर्यादा ख़त्म हुई,..प्रेम और शादी जैसे पवित्र बंधन “लिव इन रिलेशनशिप” में तबदील होने लगे है,.. लोगों ने स्वतंत्रता का अर्थ स्वछंदता मान लिया है,..ऐसी स्वछंदता जिसके चलते सीमाओं का अतिक्रमण एकदम साधारण सी बात हो गई है।
जबकि होना ये चाहिए था की स्वतंत्रता को स्वछंदता नहीं बल्कि स्वाधीनता का पर्याय माना जाना चाहिए था,.,स्वछंदता हमेशा कटी हुई पतंग की ही तरह गर्त में ढकेलने का काम करती है जबकि स्वाधीनता मुक्त रहने के बावजूद भी अपने पर नियंत्रण रखना सिखाती है,..स्वाधीन व्यक्ति अपने मन वचन और काया पर नियंत्रण रखना जानता है,..की गई भूलों को सुधारने का प्रयास करना भी जानता है,.. काल और परिस्थिति के अनुरूप ढलने की काबिलियत रखता है,..आज स्वतंत्रता को स्वाधीनता की जरुरत है,..

फर्क सिर्फ नज़रिये का है
फैसला खुद ही करें,..।
स्वाधीन होकर जियें,.
या स्वछन्द होकर मरें,…।

हमेशा की तरह एक बात फिर कहना चाहूंगी,..ये सोच मेरी है सहमति या असहमति के लिए आप सभी स्वतंत्र हैं,…मैंने भी तो आखिर अभिव्यक्ति की आज़ादी का उपयोग किया है,.

फिलहाल मैं अपनी सोच को साझा कर रही हूं कि मैं ये मानती हूं की सृष्टि ने हर चीज़ को,हर भावना को एक दूसरे से सम्बद्ध रखा है इसका अर्थ ही यही है जीवन में अनुशासन के लिए बंधन जरुरी है,…अगर स्वतंत्रता चाहिए तो भी खुद से बंधन बंधना ही होगा,..क्योंकि सुख का मूल अगर स्वतंत्रता है तो स्वतंत्रता का स्वरुप स्वछंदता नहीं स्वाधीनता होना चाहिए,.. मैंने पहले भी कही थी,.. आज फिर कहती हूं,…

सुनो!
मुझे नही चाहिये
विकृत मानसिकता वाली
“आज़ादी”
मुझे आदत है
उस सुख की,
उस सुरक्षा की,
जो अपनो के अपनेपन
और प्यार के बन्धन से मिलता है,…

जो मुझे
सबकी नज़रो मे हमेशा
ऊंचा स्थान न भी दिलाए
पर
दिल की गहराई में
स्थायित्व दिलाता है,..

नही है
मुझे जरूरत
आभासी आजादी की
मै खुश हूं
अपने
इन वास्तविक बंधनो के साथ,……

डॉ प्रीति सुराना
संस्थापक एवं संपादक
अन्तरा-शब्दशक्ति
वरिष्ठ साहित्यकार
बाला घाट, मध्यप्रदेश

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