” माँ बेटी – रिश्ता एक अनन्य शक्ति का  “

” माँ बेटी – रिश्ता एक अनन्य शक्ति का  “

ब्रिटेन के खूबसूरत पहाड़ी गांव में आज  प्राकृतिक रोष तो एक  जोरदार तूफान और बारिश के रूप में कहर ढा ही रहा था लेकिन राडु के घर में भी भूचाल और जलजले से कम वातावरण नहीं था। नन्ही बालिका जिया की जन्म से परिवार में एक मातम सा माहौल बना गया था। जिया के जन्म के बाद ही उसके पिता ने उसे अस्वीकार कर दिया था और बेटी के जन्म के कारण, उसकी माँ हिना को भी हिंसा और अत्याचार का शिकार बना दिया। एक नकारात्मक और अस्वस्थ वातावरण में जिया का पालन पोषण शुरू हुआ लेकिन परिवार और  सामाजिक दबाव में हिना अपने पति तथा ससुराल के सभी अत्याचारों को सहन करती रही। अपनी असमर्थता और हालात का जिम्मेदार उसने भी नवजात बालिका जिया को ही ठहराया ओर उसकी देखरेख में कोताही करने लगी। वक्त के गुजरते परिस्थितियां इतनी बिगड़ गई कि हिना के पति ने उसको तलाक देकर जिया के साथ अपने घर से निकाल दिया।

जिया की माँ सुन्दर तथा जवान थी और जल्दी ही उसके परिवार ने उसका रिश्ता एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया उन्हें भी जैसे किसी बड़े बोझ की उतारने की जल्दी थी। हिना अपनी बेटी जिया को पहले ही अपने दुर्भाग्य का कारण समझती थी और अब नये पति के दबाव में उसने उसे और भी नजर अंदाज करना शुरू कर दिया।

नन्हीं सी कली जिया जिसको अभी जिंदगी का अनुभव भी ना था एक ऐसी बंजर जमीन पर जा गिरी जहाँ प्रेम और करुणा तो दूर, हमदर्दी ओर हिफाजत कि उम्मीद भी नहीं थी। जिया की ज़िंदगी पर बहुत काले गम के भरे बादलों का साया घिर आया । उसे अपने ही घर में स्वार्थी पिता द्वारा अत्याचार और माँ के नजर अंदाज़ किए जाने का डर सदा सताता रहता था। नया पिता, कटु वचनों से उसे आत्मसम्मान और प्यार से वंचित तो करता ही लेकिन अक्सर छोटी से छोटी बात पर उसका हाथ भी जिया पर उठ जाता और सजा के तौर पर उसे कई कई दिन उसे भूखा रखता और निरंतर डर के महौल में रखता था।इस विषम स्थिति में जिया खुद को अकेला और बेबस महसूस करती थी और बेबस अश्रुपूर्ण आँखों से माँ की तरफ सहायता के लिए देखती थी लेकिन मानो की एक पत्थर की दीवार से फरियाद कर रही हो। हिना के दिल में जिया के लिए जैसे सारे मातृत्व के भाव कही  खत्म हो गए थे और उसकी जगह घृणा तथा नफरत ने ले ली थी। शायद उसमें परिस्थिति का सामना करने का हौसला नहीं था और अपने स्वार्थ हेतु पति का साथ देना ही उसे उचित लगता था।

जिया अपनी बचपन की खुशियों से वंचित जीवन कि अंधकारमय परिस्थितियों से गुजर रही थी। पांच वर्ष की नन्ही सी जिया को नये पिता द्वारा निरंतर शिकार बनाया जाता था। उसे शारीरिक और मानसिक दोनो तौर पर पिशाची, असहाय अत्याचार का सामना करना पड़ता था। जिया हर पल असुरक्षित और बेबस महसूस करती लेकिन अपार डर और हीन भावना के कारण अपनी व्यथा कहने से डरती थी।

ब्रिटेन के प्रगतिशील और समृद्ध देश में अपने अधिकारों की आड़ में तथा अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उसके पिता ने होम स्कूलिंग रूल के अंतर्गत जिया का स्कूल में दाखिला नहीं होने दिया। एक रौशनी की किरण जो शायद उसके जेल के समान घर के अंधकारमय वातावरण से उसे उभार देता,उस अवसर को भी उन्होंने कुटिलता से जड़ से काट डाला । बचपन की अटखेलियां खेल खेलकूद हुडदंग, दोस्ती, मित्रता जैसे शब्दों से जिया अनभिज्ञ थी।यह सहयोगी, सकारात्मक, आनंददायक भावनाएँ उसके जीवन को छूकर भी

नहीं निकली थी ।

महज 11 साल पर पैसों के लालच में उसका निकाह एक अधेड़ उम्र के इंसान के साथ कर दिया गया। लालच की प्रकाष्ठा और समाज की कुरीति की एक और मिसाल जहाँ मासूम जिया एक परिवार से दूसरे परिवार में गुलामी की गुमनाम  जिंदगी में धकेल दी गई। एक सम्पन्न देश में न्याय के विरुद्ध ऐसी परम्पराएं पनपती है और घटनाएँ घटती हैं,जिसे यकीन कर पाना कठिन लगता है। हृदय को चीरती अपने हक से अनजान मासूम जिया अपना नया जीवन एक और पराधीनता के परिवेश में शुरू करने वाली थी। जिया को एक अनजान परंपरा और संस्कृति में लिप्त होना पड़ा, जो कि उससे अपने नए रिश्ते के स्वरूप मिली थी। वक्त गुजरते अपने निजी समझौते के ऊपर जिया अब ज़िंदगी के कुछ नए किरदारों को पहचानने लगी है। आस पड़ोस की औरतें तथा बच्चियां उससे मिलने घर में आती और कुछ जमाने की रख रसूल उसकी समझ में आने लगे। पड़ोस में अपनी हमउम्र लड़कियों को यूनिफोर्म में स्कूल जाते देख उसकी मन में भी बहुत से सपने सजग हो जाते लेकिन पति की विचारधारा और कठोर स्वभाव के कारण अपना व्यक्तिगत विचार कह नहीं पाती थी। जिया के पड़ोस में रानी जो कि उसकी हमउम्र है उसे अपने व्यक्तिगत विकास और स्वावलंबी बन जाने के लिए प्रोत्साहित करती और पढ़ाई तथा शिक्षा के महत्व पर सर्वदा ज़ोर डालती। उसके पति से छुपकर कुछ किताबें तथा मैगजीन फोटो,जिसके द्वारा उसे बाहरी दुनिया की रौशनी दिखाती और उनसे अवगत कराती। रानी के मार्गदर्शन और प्रेम भरी शब्दों से कुछ साहस पाकर जिया हमेशा एक सुअवसर की तलाश में रहती कि जब वह  अपनी पढ़ाई के लिए अपने पति को मना सकें और स्वीकृति ले सके। पहले कुछ समय जिया के पति ने उसकी पढ़ाई की इच्छा नकार दिया लेकिन धीरे-धीरे, जिया की जिद और धैर्य द्वारा अपने पति से प्राइवेट ट्यूशन का समर्थन प्राप्त कर लिया।

जिया ने शायद जिंदगी में पहली बार इस अनजान भावना को महसूस किया,  जिसे हम सामान्य भाषा में खुशी कहते हैं – लेकिन जिया के 13 वर्ष के जीवन में यह पहली बार था जब हृदय में कुछ धड़कन, आंखों में कुछ नए सपने, तथा तन मन में रोमांच  की लहर थी। आज मानो वह उड़कर नीले गगन को छुह सकने की क्षमता से भर गई थी। ये ऊर्जा ये रोमांच ये खुशी उससे मापी ना जा रही थी।

शारीरिक उत्पीड़न मानसिक व्यथा इन सब भावनाओं का आज उससे लेशमात्र भी दुख न था । अगर कुछ महसूस हो रहा था तो एक आज़ादी की सांस और स्वतंत्रता की उड़ान । अपनी अंधेरी काल कोठरी में प्रस्फुटित होती रश्मि की स्नेहमय किरन को संजोकर जिया आज अपना भविष्य को उजला करने की लिए दृढ़ संकल्प थी।

अपनी डेरों जिम्मेदारियों के बीच में सामंजस्य बिठाते तथा रानी की सहायता से जिया अपनी पढ़ाई में निरंतरता और सफलता प्राप्त करती रही। पति को जब तक अपने सारे अधिकार मिलते रहे उसने भी जिया की इस हसरत पर पाबंदी नहीं डाली ।स्वतंत्रता और सपनों की इस यात्रा पर वे अपने जीवन की सभी कटुता को भूलने लगी थी। जीवन में अब उसे उम्मीद की किरण नजर आती थी। पति तथा पिता द्वारा निर्ममता से पीड़ित व्यवहार अब कल का इतिहास बन चुका था। वह इन पुराने खंडर को भरकर उन  पर पांव रखकर एक नवनिर्माण की तरफ अग्रसर हो रही थी। हाथ में अपने पहले सर्टिफिकेट की चमक उसकी आंखों में किसी हीरे की चमक से कम नहीं थी। इन खुशियों के बीच में एक और मोड़ पर जिंदगी इसे ले आई। जिया गर्भवती थी और उसके जीवन में अब एक और चुनौती का आगमन हो चुका था।

जिया का मन अपने आने वाले शिशु के सपनों से भरा था, लेकिन पति के पुत्र प्राप्ति  की प्रगाढ़ इच्छा हर पल एक मानसिक दबाव का दानव उपजा कर जिया की खुशियों और उत्साह को निगल रहा था, उसके हौसलों को कुंठित कर रहा था।

मन में रह कर एक ही ख्याल आता कि क्या नव शिशु अगर बेटी हुई तो क्या उसका इतिहास दोबारा दोहराया जाएगा? जिया का कोमल मन इस परिकल्पना से ही दहल उठता। पिछले कुछ साल शिक्षा में उसने अपने भीतर परिवर्तन महसूस किया । अब वह अपने दिमाग से सही तथा गलत समझते हुए अपने निर्णय भी लेने लगी थी। अपने इस भय से विमुक्त होने के लिए उसने फैसला कर लिया कि जो कुछ भी उसने सहन किया है वह अपनी बेटी को नहीं सहन करने देगी।अपनी कमजोरी से निपटने के लिए एक अद्वितीय साहस और संघर्ष की आवश्यकता महसूस करते हुए उसने मन में एक दृढ़ संकल्प लिया कि वह परिस्थिति का मुकाबला करेंगी और अपने भावी जीवन में पुनः राहत की किरणें लाएगी।

क्लिफटन हॉस्पिटल आज फिर मूसलाधार बारिश क बीच बार बार एम्बुलेंस के सायरन से गूंज रहा था। आज फिर प्रकृति अपने प्रकोप के शिखर पर थीं । ऐसा लग रहा था जैसे कुदरत मानव की बर्बरता पर रुष्ट हो रही है ओर एक चेतावनी की तरह आगाह कर रही है। बाहरी बारिश और तूफान के बीच क्या इतिहास दोबारा जिया को उस मोड़ पर ले आएगा जहाँ वे खुद एक नन्ही बच्ची की माँ के रूप में प्राकृतिक और सामाजिक प्रकोप का सामना करेगी । अपने पिता और पति की वार्तालाप  सुन कर उसके पैरो से जमीन निकल गयी। नन्ही परी उसकी छाती पर कुछ पल पहले ही लेटी थी निष्ठुर पति उसकी बेटी की निर्मम हत्या की साज़िश रच रहा था। प्रसव पीड़ा से अत्यधिक पीड़ा इन कुटिल योजनाओं को सुन कर उसने महसूस की। मानवता के इस ढकोसले और खोखली परंपराओं ने उसे जड़वत कर दिया। खिड़की से एक तेज़ ठंडा, हड्डियों को चीरता हवा का झोंका कमरे में दाखिल हुआ जैसे किसी अनहोनी की तरफ इशारा कर रहा हो, नन्ही परी कुछ और ज़ोर से जिया की छाती के साथ चिपक गई । उन नन्हे हाथों को छूकर जिया ने अपने भीतर एक बदलाव एक  अदम्य साहस महसूस किया। अपनी बेटी को छाती पर सहलाते हुए वे अपना संकल्प दृढ़ता से दोहराती रही कि वह अपना जीवन अपनी नन्ही परी को दोहराने नहीं देगी। शायद यह हौसला, दृढ़ निश्चय  मातृत्व की ही प्राकृतिक देन है जो हर माँ के  अंदर अदम्य साहस उपज देती है।

मौका पाकर उसने हॉस्पिटल कि अपने रिकॉर्ड पर बड़े अक्षरों में हेल्प ‘Help’ लिखा जिसके पढ़ते ही ड्यूटी पर नर्स ने तुरंत ही हॉस्पिटल के सीनियर अधिकारियों के साथ मिलकर जिया से वार्तालाप की और सहायता का आश्वासन दिलाया।जिया के पति और पिता को जिया से  इस साहस की उम्मीद नहीं थी और बाहर के मौसम की तरह वह दोनों और भी आग बबूला हो उठा। बहुत सारी धमकियाँ और क्रोधित शब्दों के जहर उगलते उन्हें हॉस्पिटल से पुलिस द्वारा धकेलते हुए जिया देख रही थी। यकीन कर पाना कठिन था लेकिन गोदी में संभाली हुई अपनी नन्ही परी अभी भी उसकी छाती पर चिपकी हुई थी उसे वास्तविकता का आभास करा रही थी। वह इस तरह शांत सो रही थी जैसे उसे पूर्ण आश्वासन था कि उसकी माँ की गोद में उसको कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

बाहर का मौसम भी अब जिया के भीतर की तरह ठहर गया था। उसके भीतर अब एक ठहराव था एक दृढ़ संकल्प की अपने और अपनी बिटिया के जीवन में अब और गम के बादल नहीं आने देगी हर परिस्थिति का मुकाबला डटकर करेगी। जीवन पथ पर अग्रसर होने के लिए अब उसे एक नया सहारा एक नई दिशा एक नई किरण मिल गई थी। अपनी नन्ही  आशा की प्यारी “किरण” को माथे पर चूमकर उसने अपनी आंखें बंद कर ली और भावी जीवन के सपनों में खो गयी।

वंदना खुराना 

यू.के

 

15