लाकडाउन में आभार

लाकडाउन में आभार

“बिट्टू,जल्दी नहा कर आओ। रामायण शुरू होने में 20 मिनट रह गए हैं,” नानी की आवाज़ आई।
“क्या मम्मी, टीवी का ही तो शो है। कोई मंदिर थोड़े ही ना जा रहे हैं कि नानी रोज सुबह-सुबह नैहलवा देती हैं,”बिट्टू ठुनक रहा था।
“हां बेटा,नानी का मानना है कि भगवान राम के दर्शन से पहले नहाना ज़रूरी है । पर अच्छी बात यह है कि इस वजह से सब टाइम से तैयार हो जाते हैं वरना कोरोना की वजह से लॉक डाउन में समय का पता ही नहीं चलता।”
पापा ने भी हां में हां मिलाई कि ‘वर्क फ्रॉम होम’ के कारण अब दिनचर्या पूरी बिगड़ गई थी और वह दोपहर 3:00 बजे नहा रहे थे और फिर सब का लंच शाम को 4:00 बजे होने लगा था ।
” बिट्टू रोज़ तो तुम सुबह 7:30 बजे स्कूल चले जाते थे। नानी की वजह से सब का रूटीन ठीक हो गया है,” मम्मी ने समझाया ।
“हां मम्मी, मेरे दोस्त भी कह रहे थे कि सीरियल देखने की वजह से रामायण के बारे में बहुत सारी जानकारी भी बढ़ी है ।रामायण पर ऑनलाइन क्विज के भी मैंने 10 में से आठ सही उत्तर सबसे पहले दे दिए,” बिट्टू गर्व से बोला ।


मंगल भवन अमंगल हारी …….. की धुन के साथ एपिसोड समाप्त हुआ । नानी की आंखें बंद थी, चेहरे पर मुस्कुराहट और होंठ प्रार्थना में बुदबुदा रहे थे ।
“आज भगवान से प्रार्थना करी है कि अपना बिट्टू डॉक्टर बने । जब पहले रामायण आती थी तब तुम्हारी मम्मी के प्रशासनिक अफसर बनने के लिए मांगा था, देखो हुई ना बात पूरी।”
नानी की बात सुनकर मम्मी बोली” अरे अम्मा ! जो मैं रोज़ 14 घंटे पढ़ती थी, उसका कुछ नहीं ?”
“किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए जी तोड़ मेहनत तो ज़रूरी है पर साथ में प्रार्थना और ईश्वर की कृपा भी,”नानी ने उत्तर दिया।
बिट्टू ने नानी का पल्लू खींचा,” चलिए नानी नाश्ता कीजिए । 60 साल से अधिक उम्र वालों को ज़्यादा ध्यान रखना है, क्योंकि इम्यूनिटी कम हो जाती है और जल्दी बीमार पड़ सकते हैं।”
नानी ने दुलार से कहा,” जो बिट्टू का हुकुम ! अब तो मैं दूध पीती हूं, फल, मेवा और चवनप्राश भी ले रही हूं । खाने की वस्तु छूने से पहले हर बार साबुन से 20 सेकंड हाथ मल कर धोती हूं और जितनी देर हाथ मलती हूं तो नल बंद रखती हूं । नहीं तो हर बार हाथ मलने में कितना सारा पानी वेस्ट हो सकता है। अब तो नानी सुपर गुड गर्ल हो गई है ना ?”

“अम्मा, आप बच्चों के साथ ‘माइंडफुलनैस,’ का क्लास कराइए तब तक में जल्दी से लंच बना लूं , मुझे आज ऑफिस की एक रिपोर्ट 12:00 बजे तक भेजनी है ।”
“अरे मुझे यह एप समझ में नहीं आते । मैं ठहरी पुराने ज़माने की, ” नानी ने कहा ।
“अम्मा, मैंने आपसे ही सीखा है कि अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो सब कुछ संभव है,”मम्मी ने छेड़ते हुए कहा ।
” देखिए यह स्कूल का नंबर है जिससे मैसेज आया था । इस पर काल करिए । ‘माइंडफुलनैस, ‘ प्राणायाम बोल – बोल कर कराएंगे ।”
कोयल जैसी मीठी,निर्मल आवाज़ में इंस्ट्रक्टर कह रही थी, “जीवन एक यात्रा है, पहली सांस से आखरी सांस तक। इस के बीच आप जो सोचते हैं, पढ़ते हैं और करते हैं वैसे ही आपके विचार बनते हैं । गहरी सांस लीजिए और धीरे-धीरे छोडिए और शरीर से सारी टेंशन निकाल दीजिए ।अगले 10 मिनट तक प्राणायाम कराया गया ।
“अति सुंदर, यह प्राणायाम कर के तो अच्छा लग रहा है । मान गए भई, आजकल की पढ़ाई के तरीके को।”
“हां नानी ,मुझे भी लगता है कि जैसे मुझे एनर्जी मिल गई, सारी टेंशन दूर हो गई और फिर मैं शांत मन से पढ़ाई करता हूं और बहुत जल्दी सब समझ में आ जाता है और आसानी से याद भी हो जाता है ,”बिट्टू ने हामी भरी ।
परी को भी लंबी लंबी सांसे लेने में बड़ा मज़ा आया ।
उसके बाद बिट्टू के सोशल साइंस की ऑनलाइन क्लास का टाइम हो गया । लॉक डाउन के चलते सभी स्कूल बंद थे और जल्दी खुलने के आसार ना होने की वजह से वीडियो में मैंम पढाती थीं और व्हाट्सएप पर होमवर्क आ जाता।
“अम्मा, आप परी को गिनती सिखाइए और आकार बताइए । मैं ‘जॉय फुल लर्निंग’ यानी प्रसन्नता पूर्वक शिक्षा के सेशन को टीवी से कनेक्ट कर देती हूं।”
किचन की कटोरी, गिलास और चम्मच से गिनती सिखाई गई और फल और सब्जियों से रंग ।
परी अपने छोटे छोटे हाथों से ताली बजा कर हंस रही थी,”दूध- सफेद,संतरा -नारंगी, बैंगन- बैंगनी,नींबू -पीला, यह तो बहुत मज़ेदार है।”

मम्मी किसी से चिंतित होकर मोबाइल पर बात कर रही थीं, ” तुम परेशान ना हो । मुझे उसके बैंक के अकाउंट का नंबर दो मैं 10 मिनट में पैसा ट्रांसफर करती हूं । नहीं -नहीं यह एडवांस नहीं है, यह मेरी तरफ से गिफ्ट समझो । तुम्हारी तनख्वाह भी तुम्हारे अकाउंट में आज शाम तक भेजूंगी । तुम लॉक डाउन की वजह से नहीं आ पाईं तो क्या हुआ? मैं 500 रुपए ज़्यादा भेज रही हूं क्योंकि आजकल सब चीज कितनी महंगी हो गई है। कोई भी परेशानी हो तो मुझे रात में भी फोन कर सकती हो।”
पता चला लक्ष्मी का फोन था, जो घर में खाना बनाने का काम किया करती थी पर लॉक डाउन की वजह से नहीं आ पा रही थी। उसकी बहन धारावी में रहती है, जिसे पैसे की तुरंत ज़रूरत थी । उसका पति दैनिक मज़दूर था जिसे रोज़ शाम को मज़दूरी मिलती थी परंतु लॉक डाउन की वजह से पंद्रह दिन से वह घर पर बैठा था। पांच दिन से घर में खाना नहीं बना था, आस पड़ोस वाले एक समय के लिए कुछ चावल और नमक दे रहे थे । उनका छोटा बच्चा जो खून की कमी के कारण बीमार था उसकी दवा के लिए भी पैसे नहीं थे ।
” धारावी तो करोना का हॉटस्पॉट है,”पापा बोले।
” धारावी का नाम सुना है, किसलिए, ध्यान नहीं आ रहा ,”नानी ने सोचते हुए कहा ।
“अरे नानी, एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी है । ‘गली बॉय’ फिल्म की कहानी भी तो वहीं की है । अपना टाइम आयेगा….. गाना है ना,”बिट्टू बोला ।
“इतनी तंग गलियों में छोटे-छोटे मकान हैं। एक-एक कमरे में 10 लोग रहते हैं और उनके बीच में एक टॉयलेट। कुछ घर में तो वह भी नहीं है । केवल 2 स्क्वायर किलोमीटर में 7.30 लाख लोग बसे हैं। कई विदेशी लोग तो उसे पर्यटन की दृष्टि से देखने आते हैं। बहुत गरीब लोग हैं। अनेक तो दूसरे प्रदेशों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल से काम की तलाश में आए थे,” पापा ने बताया ।
“अम्मा, ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ में भी वहीं की कहानी थी। अनेक पेशे के लोग धारावी में रहते हैं। ड्राइवर, घरों में काम करने वाले,कूड़ा उठाने वाले, दिहाड़ी मज़दूर, छोटे-छोटे उद्योग वाले,आदि। यह ना हों तो मुंबई में कितने परिवारों के घर आराम से ना चल पाएं,” मम्मी ने भावुक होकर कहा।

परी जो बहुत देर से सब की बात सुन रही थी बोली,” पर धारावी में सोशल डिसटेंसिंग कैसे करते हैं ?”
गहरी सांस लेते हुए मम्मी ने उत्तर दिया,” वहां सोशल डिसटेंसिंग करना तो मुश्किल ही है, क्योंकि आबादी ही इतनी ज़्यादा है। कहते हैं कि कुछ घरों में तो लोग शिफ्ट में सोते हैं, जब दूसरे बाहर काम करने जाते हैं।”
पापा ने अपने लैपटॉप से सिर उठाया,”और हमारे यहाँ, कुछ लोग बड़े-बड़े घरों में रहते हैं और सरकार के ‘स्टे होम स्टे सेफ’ का विरोध कर रहे हैं और पालन नहीं कर रहे । अरे भाई आप अंदर अपने घर में फंसे नहीं है बल्कि अपने घर में सुरक्षित हैं, जीवित है और करोना के इंफेक्शन से बचे हुए हैं। ”
नानी ने कहा यदि हम रोज़ दो मिनट उन चीजों के बारे में सोचें जिनके लिए हम आभारी हैं तो हम ज़्यादा प्रसन्न रहेंगे। बहुत बातों पर तो ध्यान ही नहीं जाता।
परी ने नानी से पूछा कि कोरोना में लॉक डाउन में क्या अच्छा है, जिसके लिए हम ईश्वर को धन्यवाद कहें ?
हंसते हुए नानी ने जवाब दिया,” अरे सोचो,पहले घर हो तभी तो लाकडाउन हो पायेगा। तुम्हारे पास तो इतना बड़ा सुंदर फ्लैट, बालकनी में पौधे और फूल,वहां से दिनभर दिखती समुद्र की लहरें और रोज़ शाम को ढलते हुए सूर्य का सुंदर नज़ारा, ताजी हवा जिसमें किसी प्रकार की कोई बदबू नहीं । पहले की तरह ही समय पर नाश्ता, लंच व डिनर, टीवी पर कार्टून और फिल्में, मोबाइल से पढ़ाई, वीडियो कॉल पर दोस्तों से गप्पें, नल में पानी, घर में बिजली, सोसाइटी में रोज़ कूड़ा उठ जाना, गेट पर सिक्योरिटी गार्ड…… क्या बदला है और सबसे बड़ी बात की परिवार के साथ इतना सारा समय मिल रहा है । अब तो पापा – मम्मी भी घर से काम कर रहे हैं । सोचो तो बहुत लंबी लिस्ट है।”
“हां अम्मा, दिल में आभार हो तो जो है, वह पर्याप्त लगता है, मन को संतोष मिलता है । खुश रहने के लिए बहुत ज़्यादा की ज़रूरत नहीं होती,”यह कहते हुए मम्मी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।

✍️डॉ. अनिता भटनागर जैन
आई. ए. एस. (से नि )
भारत

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