हार कभी न मानी

  हार कभी न मानी   राह कठिन है जीवन की पर हार नहीं मानी है. पर्वत-सी ऊँची मंज़िल पर चढ़ने की ठानी है. जीवन के पाँच दशक पार हो जाने के बाद जब अपने जीवन को एक द्रष्टा के तौर पर देखती और विश्लेषण करती हूँ तो लगता है एक व्यक्तित्व वस्तुतः अपने माता-पिता…

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बुझा नहीं हूँ!

बुझा नहीं हूँ! जीवन के इस मुकाम पर जब नौकरी-पेशा की उम्र का ३९ वर्षों का अनुभव और बच्चे-परिवार के प्रति कर्तव्य का इतिश्री हो चुका है,बयान करना कठिन है। फिर भी,दृष्टि बीते दिनों पर जाती है,तो कई घटनाएं और व्यक्तियों का चेहरा प्रत्यक्ष होता है मानस पटल पर।१९७० में बिहार बोर्ड की अंतिम परीक्षा…

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मानवता की ओर

मानवता की ओर जमशेदपुर की सबसे चर्चित चेहरों में से एक हैं बेहद ही खूबसूरत,हंसमुख मिलनसार,कर्मठ,संवेदनशील एवं दयालु इतनी की दिन रात समाज के उत्थान एवं कल्याण के लिए के पूर्ण रूप से समर्पित रहतीं हैं। आज हम मानवता की ओर में जानीमानी समाजसेविका, सांस्कृतिक कार्यकर्ता एवं साहित्यकार पूरबी घोष से बातचीत करेंगे जिससे हम…

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शिक्षा बनाम साक्षरता

शिक्षा बनाम साक्षरता ‘शिक्षा ‘का संबंध ज्ञान से है और इसका क्षेत्र व्यापक है ।शिक्षा से तात्पर्य जीवन के लिए ज़रूरी सभी प्रकार के ज्ञान- अक्षर ज्ञान, व्यवहारिक, सामाजिक, नैतिक ,सांस्कारिक,चारित्रिक ज्ञान आदि से है। परंतु वर्तमान में शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित हो गया है ।शिक्षा का अर्थ साक्षरता समझा जाने लगा है…

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जब टूट गया था बांध 

जब टूट गया था बांध  कहीं दूर आंखों की पुतलियों के क्षितिज के पार जब टूट गया था बांध उस रोज…. नमक… समुद्र हो गया था.. मन डूबा था अथाह जलराशि की सीमाहीन धैर्य तोड़ती सीमाएं एक सीप के एहसासों के कवच में जा समायी थी और जन्म हो गया था एक स्वेत बिंदु मोती…

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वसीयत

वसीयत दिन – रात, सोते- जाते ,उठते- बैठते, एक ही ख्याल, एक ही बात , एक ही विचार, अपनी लाडली के नाम वसीयत में क्या करूँ ? क्या दूँ उसे जो उसकी मुस्कान सदाबहार बनी रहे ? क्या करूँ उसके नाम कि उसकी आँखों में बिजलियाँ चमकती रहें, क्या लिख दूँ जिसे पाकर वह सनातन…

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रावण नश्वर नहीं रहा

रावण नश्वर नहीं रहा हाँ,नहीं है नश्वर रावण नहीं वह,मात्र प्रतीक है पुतलों में जिन्हें हम जलाते हैं। रावण! यत्र-तत्र-सर्वत्र है हममें और तुममें भी सब में मौजूद है पूरे ठाठ से ठहाके लगाते हुए अठ्ठास करते हुए हैरान मत होना सिर्फ मनुष्यों में है। हाँ ,रावण मनुष्यों में ही है चुकी, पशु तो पाश्विकता…

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सौम चन्द्रिका

सौम चन्द्रिका गरल गरल हुआ वदन सुधाविहीन सिंधु मन। जल रहा नयन नयन धुआं धुआं धरा गगन।। स्वार्थ छद्म से यहाँ चिनी गई इमारतें मूक प्राणियों के कत्ल से सजी इबादतें नाम पर विकास के हरा भरा भी कट रहा वक्ष भूमि का लहूलुहान जैसे फट रहा कर्णभेदती बिगाड़ती रही ध्वनि: पवन मूल से उखड़…

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हँसी बेगम बेलिया

  हँसी बेगम बेलिया ज़िद में ही मौसम ने हवाओं को छू लिया हरे-हरे पातों में हँसी बेगम बेलिया सड़कों पर चिड़ियाएँ पेड़ से नहीं उतरीं खाली पाँवों चलती धूप भी नहीं ठहरी साथ रहती समय के नहीं कुछ भी किया चाँदनी में भींगी पानी नाली नदियाँ रिश्ता ही बनाती है ये आती जो सदियाँ…

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कोरा कागज

कोरा कागज सफेद गंदगी से कोसों दूर, दो मोटे तहों के बीच सहेज कर रखी, काली धब्बे स्याह से बची । कोरा कागज था सिर्फ कोरा। जमाने की गंदगी से महरूम था वह, रोडे हिचकोले को जानता नहीं था पहचानता नहीं था। अनगिनत लिखावटों से घिरा है अब वह। रंग रूप से अपना स्वरूप खो…

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