जादू टोना
“माँ इतने समय बाद हम गाँव आये हैं । यहाँ का वातावरण शहर से अभी तो शांत है मगर देखो न यहाँ भी हर घर में अब कार स्कूटर हो गए हैं। लोगों ने जैसे पैदल चलना ही छोड़ दिया।” विस्मित सी मालती चारों ओर खेतों को निहारती हुई बोली।
“बेटा इसे ही परिवर्तन कहते हैं।”
“माँ बहुत थक गई हूँ आज तो बस खाना खा कर सोना चाहती हूँ।” गाड़ी खड़े करते हुए मालती ने कहा।
अंदर आँगन का दृश्य देख चौंक गई मालती चाची बाल खोल कर गोल-गोल घूम रही थी। कुछ समझ नहीं पाई मालती।
दादी चाची के पैरों में झुकी थी भीड़ बढ़ती जा रही थी।
चाची ने झूमना बन्द किया स्थिर हो बैठ गई। धीरे-धीरे भीड़ छट गई।
जैसे-तैसे खाना हुआ थकान और बढ़ गई थी मालती की।
खाना खा कर अपने कमरे में आकर अधीर सी बोली
“माँ ये श्यामली चाची ऐसे बाल खोल कर कैसे झूम रही थी। डर लगता है उन्हें देख कर। इतना पढ़ी लिखी है फिर भी ? आप उन्हें किसी डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाती है।”
माँ रजनी ने बेबसी से दूसरी ओर मुँह फेर कर लम्बी साँस ली और बोली “कितनी बार कोशिश की है एक बार मेरे साथ शहर चले तो कुछ पता चले कि आखिर चल क्या रहा है यहाँ।”
मालती फुसफुसाते हुए बोली
“माँ मुझे तो मानसिक रुग्णता नजर आती है ।
आपने देखा गाँव वाले सारे कैसे पैर छू रहे थे चाची की और दादी भीगी बिल्ली सी उनकी आरती उतार रही थी। कुछ तो गड़बड़ है ये तो पता लगाना ही पड़ेगा।”
हम्म रजनी सोच में व्यथित दिखी। “माँ जितनी बार हम गाँव आते हैं उन्हें और कमजोर पाते हैं । अब मैं बड़ी हो गई हूँ मैं बात करूँगी सुबह दादी से।”
रजनी ने कहा “नहीं नहीं तुम इन झमेलों में मत पड़ो। दादी के क्रोध को तो जानती ही हो किसी के भी सामने कुछ भी कह देती हैं, हाथ उठाते भी इन्हें जरा भी शर्म नहीं आती बेटा।”
“माँ आप समझ नहीं रही हैं ।”
“क्या समझूँ, तू ही बता।”
“माँ आप बड़ी हैं इस घर की।”
“मुझसे बड़ी तेरी दादी है।”
“अच्छा चल सो जा” कह कर रजनी ने करवट ले ली।
मगर मालती की आँखों से नींद बहुत दूर थी । उसका व्यथित मन किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा था, रह-रह कर उसे भूतों की कहानियाँ कपटी बाबाओं के क़िस्से याद आ रहे थे। इसी उधेड़ बुन में न जाने कब उसे नींद ने घेर लिया।सुबह फिर से वही घण्टे घड़ियाल की आवाज सुन कर मालती की नींद खुली । वो भागी बाहर की ओर उसे लगा फिर वही शाम वाला नाटक दोहराया जा रहा होगा।
उसका डर सच निकला चाची बाल खोल कर बाल के मध्य मोटा सिंदूर भरे, गाढ़ी लाल रंग से ओंठो को सुंदरता से तराश कर ,बड़ी बड़ी आँखों में गहरा काजल चाची के रूप को और सुंदर बना रहा था। देखते देखते चाची ने जोर जोर से सिर हिला कर बोलना शुरू किया।आज माँ को भी दादी ने पास बैठा रखा था। सुबह सुबह माँ के धुले बालों को देख मालती का मन परेशान हुआ। माँ की तबीयत न खराब हो जाये इस वातावरण में।
मैं तो इन्हें ताजी हवा व माहौल बदलने के उद्देश्य से लाई थी ये क्या झमेला पड़ा है यहाँ। चाचा भी तो कुछ नहीं बोलते ,चुपचाप बेबस से देखते रहते है इस खेल को।
गाँव की लोगों की भीड़ लग गई चाची के चारों और फल मेवा का ढेर लग गया ,पैसों का अंबार देख मालती डर गई। श्यामली निढाल होने लगी थी । यह देख कर मालती आगे बढ़ी चाची को पकड़ लिया कस कर उसने और अपनी छाती से चिपटा कर उठाने लगी, न जाने क्या सोचा उसने अपने शरीर का पूरा वजन मालती पर डाल दिया और सिसक उठी।
दादी की दहाड़ आने से पहले ही उसने चाची को उठा कर गाड़ी में बैठाया और गाड़ी स्टार्ट कर तेजी से अनजान राह की ओर दौड़ा दी।
पीछे दादी की आवाज पीछा करती रही “अरे क्या अनर्थ कर दिया ये तूने आरती से पहले ही मैया को छू लिया पाप लगेगा।”
आज उसे इस क्रिया का पता हर हाल में लगाना ही है यह सोच मालती ने गाड़ी की गति को और बढा दिया।
गाड़ी गाँव से दूर निकल आई थी यह देख मालती ने गाड़ी रोक दी।
उसने गाड़ी का दरवाजा खोल चाची को बाहर आने का आग्रह किया।
श्यामली निढाल शरीर ले कर बाहर निकली।
मालती ने बिना किसी भूमिका के पूछा “ये सब क्या है चाची।”
श्यामली जो शायद खुद से भी थक गई थी रो पड़ी।
मालती ने धीरे से कंधे पर हाथ रखा और पूछा “अब बताइए।”
श्यामली कहीं अतीत में खो गई और बोली “मालती यह सब शादी के पाँच साल बाद शुरू हुआ , जब पाँच साल बीतने पर भी बच्चा नहीं हुआ। तुम्हारे चाचा और मैं आपसी प्रेम में खुश थे । हमें बच्चे की कमी तब ही महसूस होती थी जब माता जी चर्चा आँगन में लेकर बैठ जाती थी।
और पड़ोसन मुझमे कमी निकालने का ठेका लेकर न जाने किस किस की पूजा करने को उकसाती थी माता जी को।एक दिन तो हद ही हो गई किसी ओझा को बुला लाई पूजा के लिए ।
तुम्हारे चाचा ने बहुत हाथ पैर जोड़े पर वो नहीं मानी। फिर एक दिन माता जी ने तुम्हारे चाचा को बुलाकर दूसरे विवाह की राय दी और न करने पर जान देने की शर्त भी लगा दी।”
यह सुन कर मुझे बहुत क्रोध आया उस क्रोध में मेरे बाल खुल गए और मैं क्रोध व क्षोभ से काँप उठी। मेरा यह रूप देख कर माता जी जल्दी से पूजा की थाली ला कर जय मैया, जय मैया करने लगी, और बोली ” मैया क्षमा कीजिये यही विराजिए दर्शन देती रहिये। कोई दूसरा विवाह नहीं करूंगी बेटे का “बस ऐसे यह शुरू हो गया ।
“मगर चाची यह तो धोखा है।”
“नहीं यह मेरे रिश्ते का बचाव है।”
मालती अब तुम समझदार हो गई हो कल तुम्हारी भी शादी होगी तुम्हें सत्य बताऊँ कमी मुझमें नहीं हैं मैं बच्चा पैदा कर सकती हूँ।
क्या —– तो फिर क्या परेशानी थी , क्यों नहीं हुआ बच्चा ?
मालती तुम्हारे चाचा बहुत अच्छे हैं मुझे बहुत प्यार करते हैं।”क्या बच्चा ही जीवन का अंत है।” आपसी प्रेम और विश्वास कुछ नहीं होता क्या?
“नहीं चाची सम्बन्धों में प्रेम जरूरी है।
मगर गाँव के लोगों को जो आप बताती है वो सब।”
“छोटा सा गाँव है सबके बारे में पता है बस औरतों की सुरक्षा का ध्यान रख जो मुझसे बन पड़ता है करती हूँ । गाँव के लोग मेरी बात मानने लगे हैं। उनके जीवन में प्यार और विश्वास बढ़ रहा है मालती। औरतें जब अलग से आती है और मुझे कहती है, “आपने हमारी जिंदगी बदल दी।” मुझे सुनकर अच्छा लगता है कि मैं किसी के काम तो आ रही हूँ।”
“ये गाँव है अंध विश्वास जादू टोना मानते है। भोले लोग है सब। बस मानसिकता समझ कर इन्हें राह दिखा दो तो उस पर चल पड़ते हैं।”
“मालती तू परेशान न हो”
“पर चाची आप कमजोर होती जा रही हो।”
“नहीं बेटा थोड़ा मानसिक दबाव आ जाता है। उम्र भी तो बढ़ चली है तो थकान चेहरे पर दिखती है बस।”
मालती ने गौर से देखा चाची को गाड़ी में बैठा गाड़ी घर की ओर चल दी।बोली “चाची अब बन्द करो ये अंध विश्वास की दुकान।”
“नहीं मालती ये इस गाँव की औरतों का सुरक्षा कवच व विश्वास बन गया है। तू किसी से कुछ नहीं कहेगी, इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होगा ये वादा है मेरा।”
मालती सोच में पड़ गई क्या यह भी एक तरीका हो सकता है समस्या के समाधान का ?
उसने मुस्कुरा कर चाची की और देखा और गाड़ी घर की और आगे बढ़ा दी।
निशाअतुल्य
देहरादून, भारत