अयोध्या- आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत

अयोध्या- आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत

किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति उस देश की ऐतिहासिक प्रगति का आईना होती है।देश की सभ्यता और संस्कृति निर्मित होती है उसकी खास भूमि पर जिये गये खास व्यवहारों से,जो वहाँ पर रहने वाले लोगों द्वारा क्रियान्वित की जाती है।किसी भी भूमि पर उसके निवासियों द्वारा जब नैतिकता और आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा छू ली जाती है,तब वह भूमि अपनेआप में ही एक तीर्थस्थली बन जाती है,जहाँ जाने मात्र से वहाँ की हवा में श्वास लेकर हम उस आध्यात्मिकता और नैतिकता को आत्मसात कर ईश्वरीय प्राप्ति को अनुभव कर लेते हैं।वैसे तो अयोध्या आज श्री रामचंद्र जी के नाम से जुड़ा हुआ है,परन्तु,इसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अनूठी है।अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत भी कुछ ऐसी ही है,जो इसे विश्व में मानवता की उच्चतम संस्कृति से जोड़ती है।अयोध्या को प्राचीन धार्मिक सप्तपुरियों में से एक माना जाता है।सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी एक प्राचीन तीर्थ है,जिसका उल्लेख रामायण में भी मिलता है–

अयोध्या नाम नगरीतत्रासील्लोकविश्रुता।

मनुना मानवेंद्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ।। (रामायण१-५-६)

कहते हैं यह नगरी सूर्य के पुत्र,वैवस्वत मनु द्वारा स्थापित की गई थी और यह विष्णु के चक्र पर बसी हुई है। (स्कंदपुराण)

यह अयोध्या शब्द ‘अयुद्धा’ का वर्तमान स्वरूप है, जिसका अर्थ होता है “जहाँ युद्ध न हो” या “जिसे युद्ध से जीता न जा सके”।प्राचीन काल में अयोध्या को “अवध” भी कहा जाता था,जिसका अर्थ था- ‘जहाँ वध न हो’ अर्थात ऐसा स्थान जो युद्ध और वध से परे हो, ईश्वरीय हो, देवताओं की नगरी हो… “अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या”(अथर्ववेद)।सांस्कृतिक रूप से यह नगरी जितनी प्राचीन है,उतनी ही पवित्र भी है। वैसे तो आज अयोध्या को रामजन्म भूमि के प्रसंग की वजह से जाना जाता है,परन्तु देखा जाए तो इस प्राचीन शहर का एक जबरदस्त सांस्कृतिक इतिहास है और भारतीय संस्कृति के विकास में इसकी अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इस दृष्टि से अयोध्या को एक सांस्कृतिक विरासत के रूप में देखा जाना चाहिए।”ग्रह मंजरी” जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकु वंश का स्थापन-काल 2200 ई.पूर्व के लगभग माना जाता है।इसकी स्थापना अयोध्या में हुई और इसके 63वें पीढ़ी के शासक राजा दशरथ हुए। जैन परंपरा के अनुसार 24 तीर्थंकरों में से 22 तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश के ही माने जाते हैं।सर्वप्रथम तीर्थंकर, आदिनाथ ऋषभदेव जी तथा चार अन्य तीर्थंकरों का जन्म स्थान भी अयोध्या ही माना जाता है।केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के तहत आने वाले भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) के मेंबर सेक्रेटरी प्रोफेसर रजनीश कुमार शुक्ला के मुताबिक “जैन समुदाय मानता है कि दुनिया के लिए आचरण और व्यवहार के नियम बनाने वाले ऋषभदेव अयोध्या के राजा थे।” जैन संप्रदाय के कई धार्मिक स्थल आज भी अयोध्या में नजर आते हैं।बौद्ध धर्म के महात्मा बुद्ध ने भी अयोध्या में 16 वर्षों तक निवास किया था।मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि जिस स्थल पर बाबरी मस्जिद थी वहां कभी बौद्ध धर्म से संबंधित एक ढांचा था। याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि विवादित स्थल को श्रावस्ती, कपिलवस्तु, सारनाथ, कुशीनगर की तरह बौद्ध विहार घोषित किया जाना चाहिए जिसे बाद में कोर्ट ने रद्द कर दिया था।शुक्ला कहते हैं, “बौद्ध समुदाय मानता है कि बुद्ध की 50 वर्षों की परिव्राजक के रूप में जो यात्रा थी उसका यह अहम प्रमाण है।” परिव्राजक का अर्थ है एक ऐसा व्यक्ति जो धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण करने के लिए जीवन की सभी सुविधाओं को त्याग देता है।माना तो यह भी जाता है कि कोसल के राजा प्रसेनजित उन चंद राजाओं में से हैं जिन्होंने बौद्ध धर्म के नियमों के मुताबिक शासन करना सीखा।शुक्ला बताते हैं कि राजा प्रसेनजित ने कृषि और व्यापार की नीतियों को बौद्ध शिक्षाओं के अनुरूप स्थापित किया। उन्होंने कहा कि सिखों के लिए यह जगह इसलिए महत्व रखती है क्योंकि गुरु नानक ने अयोध्या की यात्रा की थी।प्राचीन भारत के रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र भी अयोध्या ही था।इस तरह देखें तो अयोध्या कई संप्रदायों का प्रमुख स्थान हुआ करता था। अयोध्या का सांस्कृतिक महत्व इस बात से भी सिद्ध होता है कि प्राचीन भारतीय तीर्थों के उल्लेख में अयोध्या का नाम ही सर्वप्रथम आता है– “अयोध्या,मथुरा, माया, काशी, काँची, ह्यवंतिका, पुरी, द्वारावती सप्तैता मोक्षदायिका।”

रामायण के बालकांड में अयोध्या नगरी को 12 योजन लंबी और 3 योजन चौड़ी बताया गया है जबकि सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसे ‘पिकोसिया’ नाम से संबोधित किया है और इसकी परिधि 16 ली (1ली= ⅙ मील) बताई है।”आईने अकबरी” में इसकी लंबाई 148 कोस और चौड़ाई 32 फुट कही गई है।त्रेतायुग में रामचंद्र जी से लेकर द्वापर के महाभारत और उसके बहुत बाद तक इसका उल्लेख मिलता है। बाद में रामचंद्र जी के पुत्र लव ने श्रावस्ती नगरी बसा ली।तत्पश्चात यह नगरी मगध के मौर्यों और गुप्ता और कन्नौज शासन के शासकों के अधीन रही। बाद में महमूद गजनी के भांजे, सैयद सालार ने यहां तुर्क शासन की स्थापना की। फिर,तैमूर के बाद जब शकों का राज्य स्थापित हुआ तब अयोध्या शकों के अधीन में आ गया,खासकर महमूद शाह के शासनकाल 1440 ईस्वी में। 1526 ईसवी में बाबर ने मुगल राज्य स्थापित किया और 1528 ईसवी में अयोध्या पर आक्रमण कर अपना कब्जा जमा लिया। 1580 ईस्वी में जब अपने साम्राज्य को अकबर ने 12 सूबों में विभाजित किया तब एक ‘अवध’ नाम का सूबा बनाया गया जिसकी राजधानी अयोध्या बनी। अयोध्या के प्रामाणिक इतिहासकार, लाला सीताराम ‘भूप’ ने अपने नाम के आगे हमेशा ‘अवधवासी’ लगाया। उनकी पुस्तक ‘अयोध्या का इतिहास’ आज भी सर्वाधिक सर्वमान्य है।1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहुत से स्वतंत्र क्षेत्रीय राज्य बने जिसमें अवध का स्वतंत्र राज्य भी स्थापित हुआ।वाजिद अली शाह अवध के अंतिम नवाब थे। 1856 ई. में यह अंग्रेजो के कब्जे में चला गया और 1947 ईस्वी में भारत की आजादी के बाद भारतीय संविधान के संघीय ढांचा के अंतर्गत उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर बना।अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत आरंभ होती है हजारों वर्ष पूर्व सूर्य वंश के इक्ष्वाकु राजाओं से जिसकी वंश परंपरा में राजा भगीरथ हुए,जिन्होंने पवित्र पावनी गंगा को अपनी तपस्या से धरती पर उतारा, राजा रघु नाम के एक प्रतापी राजा हुए और उन्हीं की तीसरी पीढ़ी में राजा रामचंद्र जी का जन्म हुआ।

भारतीय संस्कृति में राजा राम भगवान का अवतार माने गए हैं और उनका रामायण काल भारतीय संस्कृति के सबसे गौरवशाली काल के रूप में याद किया जाता रहा है। इस काल में न केवल मर्यादाओं की नींव रखी गई बल्कि यह युग राम राज्य के रूप में भारतीय जनमानस में एक आदर्श राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था के रूप में भी अपना स्थान बनाता है।आज भी सीता और राम भारत के हर व्यवहार और आचार में बसे हुए हैं।बालक-जन्म से लेकर विवाह और अन्य मांगलिक अवसरों पर अयोध्या और उसके संस्कार गानों में,नृत्य-नाटिकाओं में दोहराये जाते हैं।इस काल में अनेक पवित्रतम ग्रंथों और पवित्र साहित्य की रचना के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सभ्यता को स्थापित किया गया।इस युग के राजा प्रजा के प्रति पूर्ण रूप से उत्तरदायी होते थे।श्रीराम द्वारा प्रजा के विश्वास प्राप्ति के लिए अपनी पत्नी सीता तक का परित्याग इस राजधर्म का सर्वोत्तम उदाहरण है।यही नियम आगे चलकर लोकतंत्र की स्थापना में सहायक हुआ। इस दृष्टि से अयोध्या का जबरदस्त योगदान माना जा सकता है।इसी काल के विषय में रचित ‘रामायण’ और ‘रामचरितमानस’ जैसे महान ग्रंथों ने भारतीय संस्कृति को ‘भय बिनु होय न प्रीति’ जैसे मंत्र दिए जो यह सिद्ध करते हैं कि शांति के लिए शक्ति का होना आवश्यक है।इसके अतिरिक्त अयोध्या का राम राज्य आज भी एक आदर्श देश और शासन-व्यवस्था का मूल आधार है। देश के हर बालक के लिए राम और हर बालिका के लिए सीता आदर्श की कसौटी हैं।अयोध्या का राम-राज्य और उनकी नैतिकतापूर्ण नीतियाँ हमारे देश की संस्कृति के लिए आदर्श धरोहर हैं। अयोध्या के राम हमें अन्याय से लड़ना, समय के साथ चलना और मर्यादा में रहकर वर्चस्व हासिल करना सिखाते हैं। जाति, धर्म जैसी विभिन्नताओं से ऊपर उठकर अन्याय का प्रतिकार कैसे किया जाता है,कैसे छोटे-बड़े, अमीर-गरीब- सभी को साथ लेकर चला जा सकता है यह शिक्षा हमें अयोध्या नगरी के राजाओं से मिलती है।राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर चुके अयोध्या राजपरिवार के सदस्य और वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र अयोध्या को गंगा-जमुनी तहजीब का उदाहरण कहते हैं। मिश्र बताते हैं कि अयोध्या को बागों का शहर कहा गया है और यहां स्थित गुलाबबाड़ी, मोतीबाड़ी, महलबाग वहाँ बाद के दिनों के नवाबों की संस्कृति को दिखाते थे। उन्होंने बताया, “यहां हस्तलेखन कला, जरदोजी, दस्तकारी, संगीत और कविता पाठ की संस्कृति शुरू हुई थी लेकिन जब नवाब अपनी राजधानी लखनऊ ले गए तो सब वहां चला गया।” लखनऊ जाने के बाद 200-250 साल तक इसका प्रभाव अयोध्या में बना रहा। इन सब के बीच अयोध्या धार्मिक बना रहा जिसका वैष्णव भक्ति शाखा की ओर झुकाव नजर आता है।राजनीतिक और धार्मिक विवादों के केंद्र में रहने वाला उत्तर प्रदेश का शहर अयोध्या जैन, बौद्ध, सिख धर्मों के लिए भी बहुत अहम है।इसके अलावा गीत-संगीत और अन्य कलाओं की भी बड़ी विरासत यह शहर अपने आप में समेटे हुए है।

अयोध्या में 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हिंदू-मुस्लिम विवाद बड़ा मुद्दा बन गया।कुछ हिंदू संगठन अयोध्या में राम मंदिर बनाने की पैरवी करते हैं। उनकी दलील है कि अयोध्या में हिंदुओं के भगवान राम का शासन था।रामायण में अयोध्या का उल्लेख कोशल जनपद की राजधानी के रूप में किया गया है। इन सारी बातों के बावजूद ऐसा नहीं है कि इस शहर की महत्ता सिर्फ हिंदुओं और मुस्लिमों तक ही सीमित है।अन्य धर्मों का भी शहर से अपना जुड़ाव है। वहीं कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी अयोध्या की मजबूत विरासत रही है।

 

जानकार कहते हैं कि बौद्ध, जैन और सिख समुदायों के लिए अयोध्या की अपनी उपयोगिता है।जैन संप्रदाय मानता है कि जैनियों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के तहत आने वाले भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) के मेंबर सेक्रेटरी प्रोफेसर रजनीश कुमार शुक्ला के मुताबिक “जैन समुदाय मानता है कि दुनिया के लिए आचरण और व्यवहार के नियम बनाने वाले ऋषभदेव अयोध्या के राजा थे।” जैन संप्रदाय के कई धार्मिक स्थल आज भी अयोध्या में नजर आते हैं।

जैन धर्म के अलावा बौद्ध धर्म भी इसे अपने लिए काफी अहम मानता है।मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि जिस स्थल पर बाबरी मस्जिद थी वहां कभी बौद्ध धर्म से संबंधित एक ढांचा था।याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि विवादित स्थल को श्रावस्ती, कपिलवस्तु, सारनाथ, कुशीनगर की तरह बौद्ध विहार घोषित किया जाना चाहिए जिसे बाद में कोर्ट ने रद्द कर दिया।

उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट के अनुसार अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत अतीत में सूर्यवंशी राजाओं से प्रारंभ होती है। इतिहास कहता है कि अवध में मुगल शासन के दौरान नवाब सआदत खान बुरहान उल मुल्क ने 1722 में नगर बसाया।सआदत खान के उत्तराधिकारियों ने अयोध्या का नाम फैजाबाद रखकर इसका नया स्वरूप दिया।इसके चलते अयोध्या अर्थात फैजाबाद को नवाबों का शहर कहा गया जबकि अयोध्या धार्मिक नगर के रूप में विकसित हुआ था।

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर चुके अयोध्या राजपरिवार के सदस्य और वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र अयोध्या को गंगा-जमुनी तहजीब का उदाहरण कहते हैं।मिश्र बताते हैं कि अयोध्या को बागों का शहर कहा गया और यहां स्थित गुलाबबाड़ी, मोतीबाड़ी, महलबाग नवाबों की संस्कृति को दिखाते थे। उन्होंने बताया, “यहां हस्तलेखन कला, जरदोजी, दस्तकारी, संगीत और कविता पाठ की संस्कृति शुरू हुई लेकिन जब नवाब फैजाबाद से अपनी राजधानी लखनऊ ले गए तो सब वहां चला गया।” लखनऊ जाने के बाद 200-250 साल तक इसका प्रभाव फैजाबाद में बना रहा। इन सब के बीच अयोध्या धार्मिक बना रहा जिसका वैष्णव भक्ति शाखा की ओर झुकाव नजर आता है।मिश्र डॉयचे वेले को फैजाबाद की जमीन से निकले शेख निसार के बारे में भी बताते हैं। उन्होंने बताया, “युसुफ-जुलेखा कृति की रचना करने शेख निसार भी फैजाबाद की भूमि से निकले। सूफी परंपरा में शेख निसार को काफी अहम माना जाता है। फैजाबाद फिल्म स्टार नाम से मशहूर बेगम अख्तर का जन्म 1914 में फैजाबाद में ही हुआ था। उन्होंने युवावस्था में कई फिल्मों में काम किया है। इसके अलावा उन्होंने दादरा-ठुमरी, कजरियां और गजल गायन के क्षेत्र में भी सफलता की मिसाल कायम की। मिश्र बताते हैं, “जब मेगाफोन कंपनी उनके रिकॉर्ड बजाती थी तो उसे कंपनी फैजाबाद फिल्म स्टार के नाम से जारी करती थी।माना जाता है कि मिर्जा हादी रुसवा ने अपने उपन्यास में जिस उमराव जान का जिक्र किया है उसका अंदाज बेगम अख्तरी बाई से प्रेरित रहा। इसके अलावा मशहूर उर्दू कवि मीर बाबर अली अनीस का जन्म भी फैजाबाद में हुआ था। पंडित ब्रजनारायण चकबस्त भी अयोध्या में पैदा हुए थे जिन्होंने रामायण का उर्दू में तर्जुमा किया।

कोरिया और अयोध्या के रिश्तों के बारे में मिश्र कहते हैं, “एक पौराणिक कथा है कि अयोध्या से दो हजार साल पहले एक राजकुमारी कोरिया गई और वहां के एक राजकुमार से उसने शादी रचाई, जिसके बाद वहां किम राजवंश चला।” यह संबंध आज के दक्षिण कोरिया से निकाला जाता है।आज भी दक्षिण कोरिया के लोग अपने ननिहाल वालों से मिलने आते हैं और अयोध्या में कार्यक्रम करते हैं।हालांकि इसका कोई लिखित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है।इस पर रजनीश शुक्ला कहते हैं कि भारत की परंपरा वाचन की रही है जिसके चलते कोई लिखित दस्तावेज नहीं मिलते। शुक्ला के मुताबिक, “दक्षिण कोरिया के राजवंश से जुड़े लोगों ने भी स्वयं को उसी राजवंश से जुड़ा माना है जिसका अयोध्या के साथ संबंध है।इसका असर दोनों देशों के बीच संबंधों पर भी पड़ा है।”

आधुनिक समय में भी गंगा-जमुनी तहजीब का प्रत्यक्ष उदाहरण है अयोध्या की संस्कृति, जहाँ विभिन्न धर्म और विभिन्न संस्कृति के लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं। हिंदू भगवान के वस्त्र, आभूषण आदि मुस्लिमों द्वारा बनाए जाते हैं और मुस्लिम त्यौहार में हिंदू भी साथ और एकजुट होते हैं। यहाँ तक कि राम जन्म भूमि पूजन के अवसर पर पहला निमंत्रण पत्र भी इकबाल अंसारी नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति को भेजा गया था।

अयोध्या प्राचीन काल से लेकर आज तक अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपरा को निभा रहा है। यह विश्वास को विद्यमान से, नर को नारायण से,वर्तमान को अतीत से जोड़ता है और भारतीय संस्कृति और संस्कारों को एक नए आयाम पर ले जाने के लिए मार्गदर्शन देता है। अयोध्या के राम ने ही संदेश दिया था कि मातृभूमि हर रिश्ते, हर संबंध से ऊपर है; सबको साथ लेकर चलने से ही राज्य की शक्ति बढ़ती है;जो राज्य शक्तिशाली है वही शांति से रह सकता है और अपनी शरण में आने वालों का रक्षण कर सकता है। उनका यह संदेश और प्राचीन ग्रंथों में ‘सप्तपुरी’ होने का गौरव अयोध्या को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से हम भारतीयों का मार्गदर्शक बनाता है,जिस पर चलकर भारत विश्वगुरु होने का गौरव प्राप्त कर सकता है।

अर्चना अनुप्रिया

दिल्ली, भारत

 

 

 

0
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
2 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
Meaghan Okuneva
1 month ago

Your writing style is captivating.

Pasquale Gislason
2 months ago

Thanks for sharing this insightful post, learned a lot!