राममंदिर :भव्य मंदिर निर्माण

राममंदिर :भव्य मंदिर निर्माण

अयोध्या, जिसे कभी पृथ्वी की अमरावती और पवित्र सप्तपुरी कहा जाता था, वेदों और पुराणों सहित विभिन्न ग्रंथों ने इसकी प्रशंसा की है। किंवदंती है कि अयोध्या में भगवान श्री राम की जन्मभूमि का निर्माण स्वयं देवताओं ने किया था और महाराजा मनु ने इस पवित्र शहर में पृथ्वी पर मनुष्यों की दुनिया की स्थापना की थी।

भारत के इतिहास में जब देश पर विदेशी आक्रमण प्रारंभ हुए तो विदेशी अक्रांताओं ने हमारे धर्म और संस्कृति को भी नष्ट करना चाहा । उन्होंने देश की धन-संपदा तो लूटी ही , हमारे आस्था के केंद्रों को भी नष्ट किया ।उन्होंने प्रशासनिक अधीनता ही नहीं दी , बल्कि राष्ट्र की संस्कृति पर सबसे पहले आक्रमण किया। राम मंदिर विवाद इसी अध्याय का एक पृष्ठ है।

1528 से लेकर 2023 तक श्रीराम जन्म भूमि के पूरे 495 वर्षों के इतिहास में कई मोड़ आए, जिसमें 9 नवंबर , 2019 का दिन बेहद खास रहा, जब सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने श्रीराम जन्म भूमि के पक्ष में फैसला सुनाया और 2.77 एकड़ विवादित भूमि हिंदू पक्ष को मिली । मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुस्लिम पक्ष को मुहैया कराने का आदेश दिया गया।

25 मार्च , 2020 को पूरे 28 साल बाद रामलला टेंट से निकलकर फाइबर मंदिर में स्थानांतरित हुए और तत्पश्चात् 5 अगस्त 2020 ईस्वी को भूमि पूजन सम्पन्न हुआ।तीन दिवसीय वैदिक अनुष्ठानों को आधारशिला के समारोह से पहले आयोजित किया गया था, जो कि भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आधारशिला के रूप में 40 किलो चांदी की ईंट की स्थापना से सम्पन्न हुआ। 5 अगस्त , 2020 सदियों की स्वप्न-संकल्प की सिद्धि का वह अलौकिक क्षण था, जब पूज्य महन्त नृत्यगोपाल दास जी सहित देश भर की 36 विभिन्न आध्यात्मिक धाराओं के प्रतिनिधि पूज्य सन्तों एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के पावन सान्निध्य में भारत के जनप्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भूमि पूजन कर मन्दिर निर्माण का सूत्रपात किया था।देश की 3000 से अधिक पवित्र नदियों के जल तथा विभिन्न तीर्थों, जाति-जनजातियों के श्रद्धा-केन्द्रों, ऐतिहासिक-धार्मिक स्थलों तथा बलिदानी कारसेवकों के गृह-स्थानों से लाई गई पवित्र मिट्टी ने मानो संपूर्ण भारतवर्ष को “भूमि पूजन” में उपस्थित कर दिया।

अयोध्या में रामलला के मंदिर के लिए 1989 ई0 में ही देश भर में विश्व का सबसे बड़ा निधि समर्पण अभियान चलाया गया। इसने देश में उस जन अभियान का स्मरण कराया, जब विश्व हिंदू परिषद के एक आवाह्न पर देश भर से 2.75 लाख गांवों से राम मंदिर निर्माण हेतु शिलाएं अयोध्या पहुंचने लगीं। इतना बड़ा जनजागरण अभियान इससे पहले भारत और विश्व के किसी अन्य देश में नहीं चला होगा।

आज श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। 22 जनवरी , 2024 को रामलला के भव्य मंदिर का अभिषेक हुआ , जिसकी पूजन प्रक्रिया 16 जनवरी से ही शुरू हो गई थी , जिसके लिए 2 मंडप, 9 हवन कुंड और 121 पुजारियों की व्यवस्था की गई थी।इस तरह से सालों – साल चले इस विवाद का अंत हो रहा है और रामलला की जन्मस्थली पर उनकी पूजा-अराधना करने का भक्तों का स्वपन साकार हो रहा है।

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंदिर के निर्माण पर पांच फरवरी, 2020 से 31 मार्च 2023 तक 900 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और अभी भी ट्रस्ट के बैंक खातों में 3000 करोड़ रुपये हैं। यह अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा की चरम काष्ठा ही है कि
राम मंदिर निर्माण के लिए दान करने वालों की फेहरिस्त में भिक्षा द्वारा स्वयं जीवनयापन करनेवाले भिखारी भी शामिल हो गए हैं। काशी और प्रयागराज के भिखारियों ने राम मंदिर निर्माण में चार लाख रुपए का चंदा दिया है और खुद को मिली दान की राशि प्रभु के श्री चरणों में समर्पित कर दी है।अयोध्या में जब राम मंदिर का निर्माण शुरू किया गया था तो ट्रस्ट को भी यह उम्मीद नहीं थी कि राम भक्त दिल खोलकर दान करेंगे । ट्रस्ट को अब तक लागत से करीब चार गुना अधिक रकम मिली है।रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने देश – दुनिया के 11 करोड़ लोगों से 900 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन जब राम भक्तों ने अपना पिटारा खोला तो लक्ष्य से करीब चार गुना ज्यादा रकम रामलला को दान स्वरुप मिल गए। जिसका परिणाम यह रहा कि करीब 3200 करोड़ रुपए समर्पण निधि के रूप में आए और उसके ब्याज से ही प्रथम तल अब बनकर तैयार है, जिसका 22 जनवरी को उद्घाटन हुआ ।ट्रस्ट ने जो उम्मीद जताई है उसके मुताबिक 2026-27 तक मंदिर का निर्माण पूरा होगा। ऐसे में इसके परिसर में बनने वाले विश्राम गृह, चिकित्सालय, भोजनशाला, गौशाला आदि के निर्माण में बमुश्किल पूरी समर्पण निधि खर्च हो सकेगी।रामलला के मंदिर को हर माह करोड़ो रुपये दान में मिल रहे हैं। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कार्यालय प्रभारी प्रकाश गुप्ता ने बताया कि इन दिनों रामलला के बैंक खाते में हर माह एक से डेढ़ करोड़ रुपये दान के रूप में आ रहे हैं जबकि दानपात्र में 60 से 70 लाख रुपये प्रति दिन भक्तों के द्वारा दिए जा रहे है। जैसे – जैसे मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण होता जाएगा, दान में बढ़ोतरी होती जाएगी।

इस तीन मंजिला मंदिर के भूतल का काम पूरा हो चुका है। पहली मंजिल निर्माणाधीन है।जनवरी ,2025 तक तीनों तल का निर्माण पूर्ण हो जाएगा ।राम मंदिर भव्यता के साथ भारतीय परंपरा एवं तकनीक का भी पर्याय है। मंदिर के निर्माण के लिए मकराना से खास तौर पर मार्बल मंगाए गए है।राम मंदिर के विभिन्‍न हिस्‍सों में इसका इस्‍तेमाल किया जा रहा है।मंदिर निर्माण में लोहे का प्रयोग नहीं किया गया है ।मंदिर को जमीन की नमी से सुरक्षा के लिए ग्रेनाइट का इस्तेमाल कर 21 फुट ऊंचे चबूतरे का निर्माण किया गया है।और नींव के ऊपर कंक्रीट का भी प्रयोग नहीं किया गया गया है।निर्माण की तकनीक की विशिष्टता नींव से ही निहित है। मंदिर की नींव चार सौ फीट लंबे एवं तीन सौ फीट चौड़े विशाल भूक्षेत्र पर मोटी रोलर कांपेक्टेड कंक्रीट (आरसीसी ) की 14 मीटर मोटी कृत्रिम चट्टान ढाल कर की गई है। मंदिर की प्लिंथ 380 फीट लंबी एवं 250 फीट चौड़ी है तथा मंदिर के मुख्य शिखर की ऊंचाई 161 फीट है। मंदिर की प्लिंथ तक पहुंचने के लिए 32 सीढ़ियां चढ़नी होंगी। मंदिर के चारो ओर दोमंजिला आयताकार परकोटा है, जिसकी लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट है।मंदिर तीन मंजिला है, जिसकी प्रत्येक मंजिल 20 फीट ऊंची है। इसमें कुल 392 खंभे हैं जिसमें गर्भगृह में 160 और ऊपरी तल में 132 खंभे होंगे और द्वितीय तल में 74 स्तंभ होंगे।

मंदिर में कुल 46 दरवाजे होंगे। 18 दरवाजे गर्भ गृह के हैं ।सभी दरवाजे दिखने में काफी ही सुंदर हैं क्योंकि इनमें सोना जड़ा हैं ।एक दरवाजे में लगभग 3 किलो सोना लगा हुआ है। हैदराबाद के कुशल कारीगरों द्वारा यह दरवाजे बनाए जा रहे हैं। मंदिर के दरवाजों पर खास तरह की नक्काशी भी की गई है ।मंदिर के दरवाजे सागौन की लकड़ियों से बनाए गए हैं जो महाराष्ट्र में चंद्रपुर जिले के जंगलों से आती हैं।राम मंदिर के 46 में से 42 दरवाजों पर 100Kg सोने की परत चढ़ाई जाएगी। सीढ़ियों के पास 4 दरवाजे लगेंगे। इन पर सोने की परत नहीं होगी। गर्भगृह का मुख्य दरवाजा करीब 8 फीट ऊंचा और 12 फीट चौड़ा है जिस पर कमल के फूल को उकेरा गया , यह सबसे बड़ा दरवाजा है,जो गोपुरम शैली में होगा। यह द्वार दक्षिण के मंदिरों का प्रतिनिधित्व करेगा। इन दरवाजों पर हैदराबाद के कारीगरों ने नक्काशी का काम किया है।नक्काशी के बाद इन पर तांबे की परत लगाई गई है। गाजियाबाद के एक नामी ज्वेलर्स को दरवाजों पर सोने की परत चढ़ाने का काम दिया गया है।

राम जन्मभूमि परिसर में ‘ सबके राम ‘की भी अवधारणा साकार होगी। परिसर में रामायण काल की मातृशक्तियों के भी मंदिर बनाए जाएंगे। गर्भगृह में विराजमान होने वाले रामलला को माता शबरी व अहिल्या आशीर्वाद देती नजर आएंगी।
राम को जन-जन का रामबनाने में इन मातृ शक्तियों की अहम भूमिका है। किसी ने राम को जीत का द्वार दिखाया, तो किसी का राम ने उद्धार किया। जन्मभूमि परिसर में माता भगवती, माता शबरी, अहिल्या व अन्नपूर्णा के भी मंदिर प्रस्तावित हैं। श्रीराम ने पाषाण रूपी अहिल्या का उद्धार किया था। माता सीता की खोज के दौरान भगवान शबरी से मिले तो उन्होंने ही सुग्रीव से मिलने का सुझाव दिया। इससे लंका विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ। परिसर में माता भगवती का भी मंदिर बनेगा। सीता रसोई में अन्नपूर्णा का मंदिर प्रस्तावित है।

राम मंदिर परिसर के चारों कोनों पर चार मंदिर होंगे, जो सूर्य देव, देवी भगवती, गणेश भगवान और भगवान शिव को समर्पित होंगे। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा का मंदिर, जबकि दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर है।परकोटा में ही वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज का भी मंदिर निर्मित होना है।राम मंदिर परिसर में 13 और मंदिर बनाए जाएंगे। इन मंदिरों का निर्माण 2024 में पूरा हो जाएगा।मंदिर के पास एक ऐतिहासिक कुआं (सीता कूप) है, जो प्राचीन काल का है।राम मंदिर परिसर के दक्षिण-पश्चिमी भाग में कुबेर टीला पर जटायु की स्थापना के साथ-साथ भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है।

राम मंदिर के लिए मूल डिजाइन 1988 में अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार द्वारा तैयार किया गया था। सोमपुरा कम से कम 15 पीढ़ियों से दुनिया भर के 131 से अधिक मंदिरों के डिजाइन का हिस्सा रहे हैं। राम मंदिर के लिए एक नया डिज़ाइन, मूल डिज़ाइन से कुछ बदलावों के साथ, 2020 में सोमपुरवासियों द्वारा तैयार किया गया था। मंदिर 235 फीट चौड़ा, 360 फीट लंबा और 161 फीट ऊंचा होगा। मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा के साथ उनके दो बेटे निखिल सोमपुरा और आशीष सोमपुरा भी हैं, जो आर्किटेक्ट का दायित्व संभाले हुए हैं।

मंदिर परिसर में एक प्रार्थना कक्ष होगा ।एक रामकथा कुंज (व्याख्यान कक्ष), एक वैदिक पाठशाला (शैक्षिक सुविधा), एक संत निवास (संत निवास) , एक यति निवास (आगंतुकों के लिए छात्रावास) ,संग्रहालय और अन्य सुविधाएं – जैसे एक कैफेटेरिया आदि होगा। एक बार पूरा होने के बाद मंदिर परिसर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होगा। प्रस्तावित मंदिर का एक मॉडल 2019 में प्रयाग कुंभ मेले के दौरान प्रदर्शित किया गया था।लार्सन एंड टूब्रो ने मन्दिर के डिजाइन और निर्माण की नि:शुल्क देखरेख करने की पेशकश की और वह इस परियोजना के ठेकेदार हैं।केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान, राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसन्धान संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (जैसे बॉम्बे, गुवाहाटी और मद्रास) मिट्टी परीक्षण, कङ्क्रीट और डिजाइन जैसे क्षेत्रों में सहायता कर रहे हैं। रिपोर्टें सामने आईं कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सरयू की एक धारा की पहचान की थी जो मंदिर के नीचे बहती है।

लगभग 18,000 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे इस भव्य मंदिर के मुख्य भाग में जहां रामलला की मूर्ति रखी जाएगी, वह तो नागर शैली में होगा, परन्तु कोनों पर बने चार मंदिर द्रविड़ वास्तुकला से प्रभावित होंगे। इसमें रामेश्वरम, तिरूपति और कांचीपुरम में स्थित प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय मंदिरों के तत्व शामिल हैं।दरअसल, भारत में मंदिरों की स्थापना की तीन प्रमुख शैलियां हैं जिन्हें नागर, द्रविड़ और वेसर के नाम से जाना जाता है। नागर उत्तर भारतीय मंदिर की वास्तुकला है। यहां एक पत्थर के चबूतरे पर एक पूरा मंदिर बनाया जाता है जिसके ऊपर सीढ़ियां चढ़ती हैं। दक्षिण भारत के विपरीत, इसमें आमतौर पर विस्तृत चारदीवारी या प्रवेश द्वार नहीं होते। प्राचीनतम मंदिरों में केवल एक शिखर था, लेकिन बाद में कई शिखर आए। गर्भगृह हमेशा सबसे ऊंची मीनार के नीचे स्थित होता है।

एक बार पूरा होने पर राम मंदिर दुनियाभर में वास्तुकला के चमत्कारों में से एक होगा। इसके अलावा यह भारत और दुनियाभर के सबसे बड़े मंदिरों में शामिल भी होगा। राम मंदिर का गर्भगृह और भी खास और अनोखा है। मंदिर का गर्भगृह अष्टकोण में है और इसे इस तरह से बनाया गया है कि हर साल रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें गर्भगृह में विराजमान श्रीराम की मूर्ति पर पड़ेंगी। मंदिर की परिक्रमा गोलाई में बनाई गई है।

इसके भूतल पर पांच मंडप बनाए गए हैं जिनमें गृह मंडप, कीर्तन मंडप, नृत्य मंडप, रंग मंडप और प्रार्थना मंडप शामिल हैं। प्राण प्रतिष्ठा का कार्य मुख्य यज्ञ मंडप में हुआ है। मंदिर के महासिंहद्वार से पूरब दिशा में यज्ञ मंडप बनाया गया है। यज्ञ मंडप में षोडश स्तंभों के अलावा चार द्वार हैं और ये चारों द्वारा चतुर्वेद के प्रतीक हैं-पूर्व द्वार ऋग्वेद का ,दक्षिण द्वार यजुर्वेद का, पश्चिम द्वार सामवेद का और उत्तर द्वारा अथर्ववेद का प्रतीक माना गया है।फिलहाल मंदिर की पहली मंजिल फर्श और प्रवेश द्वार पूरी तरह से तैयार है। जहां भगवान राम के बाल स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा होगी ,वह गर्भगृह भी तैयार हो चुका है। दूसरी और तीसरी मंजिल निर्माणाधीन है।सबसे ऊपर यानी दूसरे तल पर केवल विशेष अनुष्ठान आयोजित होंगे जो ट्रस्ट के अनुमति और स्पॉन्सरशिप में होगा। यहां सभी श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति नहीं होगी क्योंकि यह अनुष्ठान का केंद्र होगा।यह कल्पना की गई है कि राम मंदिर एक हजार वर्षों तक भक्ति के प्रमाण के रूप में खड़ा रहेगा।

निर्माण के दौरान मंदिर की सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया है जो बिना किसी नुकसान के 8 तीव्रता के भूकंप को झेलने में सक्षम है।इस भव्य मंदिर के निर्माण में अद्वितीय वास्तुशिल्प योजना शामिल है, मुख्य मंदिर की इमारत का राजस्थान के भरतपुर क्षेत्र से आए 600 हजार क्यूबिक फीट ,4.7 लाख घन फीट वजनी बलुआ पत्थरों से निर्माण कार्य पूरा किया जाएगा और पत्थरों की डिजाइन के बीच आने वाले गैप में चंडीगढ़ से वैज्ञानिक पद्धति से निर्मित ईंटों का प्रयोग किया जा रहा है । इन ईंटों को बनाने के लिए चंडीगढ़ की एक कंपनी को विशेष ऑर्डर दिया गया है ।सभी ईटों की क्वालिटी चेक कर के लगाया जा रहा है ।ईंटोंसे रैम्प बनाया जा रहा है और इसके अलावा ईंट का इस्तेमाल सीढ़ियों में भी किया जाएगा । राम नाम ईंट के अलावा 3 होल की ईंट भी लगाई जा रही हैं, जो पत्थरों को परस्पर जोड़ने के लिए सलाखों का काम करेंगी ,जिससे पत्थरों में सैकड़ों वर्ष तक मजबूती बनी रहेगी और वे भूकंप रोधी रहेंगे । जटिल बलुआ पत्थर की नक्काशी ओडिशा के कुशल मूर्तिकारों द्वारा भारत भर की विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके बनाई गई है।तख्त 17,000 ग्रेनाइट पत्थरों से बनाए गए हैं जबकि जड़ाई का काम रंगीन और सफेद संगमरमर से किया गया है।इमारत में इस्तेमाल किया गया ग्रेनाइट तेलंगाना और कर्नाटक से आया है, जबकि फर्श सामग्री मध्य प्रदेश से ली गई है।

रामलला का सिंहासन भी सोने का बनाया जाना है। यह काम भी 15 जनवरी तक पूरा कर लिया जाएगा। मंदिर का शिखर भी सोने का होगा, लेकिन इस काम को बाद में किया जाएगा।
भगवान श्रीराम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनकी चरण पादुकाएं भी रखी जाएंगी। ये चरण पादुकाएं एक किलो सोने और सात किलो चांदी से बनाई गई हैं। इन्हें हैदराबाद के श्रीचल्ला श्रीनिवास शास्त्री ने बनाया है।

लकड़ी का काम तमिलनाडु के श्रमिकों के साथ आंध्र प्रदेश स्थित एक कंपनी को सौंपा गया था। पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से और सोने का काम महाराष्ट्र से मंगाया गया है।

मंदिर के काम में एलएंडटी ने लगभग 4,000 श्रमिकों को लगाया, जिसमें राजस्थान और मैसूर के कारीगर और पत्थरों को तराशने के लिए स्थानीय पत्थर तराशने वाले भी शामिल हैं।

अयोध्या में बन रहा तीन मंजिला राम मंदिर पारंपरिक नागर शैली में बनाया गया है। मुख्य गर्भगृह में श्रीराम के बालस्वरूप की मूर्ति है और पहली मंजिल पर श्री राम दरबार होगा । रामलला के विग्रह के लिए मकराना मार्बल से बने तीन फीट ऊंचे और 8 फीट चौड़े सिंहासन पर सोने के पतल चढ़ाने का काम भी शुरू हो गया है ।संगमरमर पर परत चढ़ाने के लिए विशेष तकनीक से तांबे का मूल ढांचा बनाकर उसे पर सोने के पटल को चढ़ाया जाना है।

एटा जिले से रामलला के दरबार में अष्टधातु का 2400 किलो का घंटा भेजा जा रहा है जो 6 फुट ऊंचा और 5 फुट चौड़ा है।ऐसा दावा किया जा रहा है कि मंदिरों में लगे घंटे में यह देश का सबसे बड़ा घंटा होगा , जिसके निर्माण में लागत 25 लाख रुपए आई है और 400 कर्मचारी इस घंटे को बनाने में लगे हैं। इसके अलावा मंदिर में विभिन्न आकार के 10 छोटे घंटे भी लगाए जाएंगे ,जिनका वजन 500, 250, 100 किलो होगा। घंटों का निर्माण पीतल के साथ अन्य धातुओं को मिलाकर किया जाएगा। इन घंटों का निर्माण जलेसर, एटा की फर्म सावित्री ट्रेडर्स कर रही है। एटा का जलेसर पूरी दुनिया मे घुंघरू और घंटी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहां के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इन चीजों का निर्माण कर रहे हैं। देश के कई मंदिरों में जलेसर के बने हुए घंटे लगे हैं।

प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान हेतु108 फुट लंबी धूप बत्ती का निर्माण भी उल्लेखनीय है जो पूरे डेढ़ माह तक श्री राम मंदिर को महकायेगी । इसे गुजरात के बड़ोदरा निवासी गोपालक विंहाभाई बड़वाड़ ने बनाया है । इसे बनाने में 374 किलो गुग्गुल, 374 किलो गोला, 280 किलो जौ, 191 किलो गाय घी, 108 किलो परफ्यूम, 475 किलो हवन सामग्री ,572 किलो गुलाब फूल ,1475 किलो गाय गोबर लगा है। इसका वजन 3657 किलोग्राम है। लंबाई 108 फीट चौड़ाई 3.5 फुट है। इसे तैयार करने में छः माह लगे और लागत 5.25 लाख आई है।

मंदिर का निर्माण पूरी तरह से भारत की पारंपरिक और स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके किया जा रहा है। इसका निर्माण पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष जोर देते हुए किया जा रहा है और 70 एकड़ क्षेत्र के 70% हिस्से को हरा-भरा रखा गया है।

राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही उत्तम स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और शत्रु विजय समेत पूरे विश्व के कल्याण तथा शांति के लिए विशेष रूप से तैयार जिन नौ हवन कुंडों में आहुतियां डाली गयी, उनमें प्रत्येक कुंड, उसके आकार और हवन का उद्देश्य भी अलग-अलग है ।मंदिर के सामने की भूमि पर बने मंडप में अलग-अलग आकार के हवन कुंडों में पूर्व दिशा में सर्व सिद्धि दायक चौकोर कुंड,आग्नेय दिशा में पुत्र प्राप्ति और कल्याण के लिए योनि कुंड, दक्षिण दिशा में कल्याणकारी अर्धचंद्राकार कुंड, नैऋत्य दिशा में शत्रु नाश के लिए त्रिकोण कुंड, पश्चिम दिशा में सुख-शांति के वृत्ताकार कुंड, मारण और उच्छेद के लिए वायव्य दिशा में षडस्त्र कुंड, वर्षा के लिए उत्तर दिशा में पद्म कुंड, आयोग्य के लिए ईशान में अष्टासत्र कुंड और ईशान और पूर्व के मध्य समस्त सुखों की प्राप्ति के लिए आचार्य कुंड का निर्माण हुआ है।कुंड का आकार भले ही अलग-अलग होगा, लेकिन उनका क्षेत्रफल एक जैसा ही रहेगा। निर्माण सामग्री में ईंट, बालू, मिट्टी, गोबर, पंचगव्य और सीमेंट का उपयोग किया जा रहा है।

राम मंदिर को इस तरह से डिजाइन किया जा रहा है कि जो भी श्रद्धालु आएं, वो कम से कम 1 घंटे तक परिसर में रुकें। मंदिर में भगवान राम के अलावा माता सीता, लक्ष्मण जी और हनुमान जी की सोने की मूर्तियां लगाई जाएगी।

गर्भगृह में स्थापना हेतु रामलला के मूर्ति चुनाव के सम्बन्ध में 29 दिसंबर, 2023 को हुई बैठक में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सभी सदस्यों ने अपना मत लिखित रूप से चंपत राय को दे दिया था।योगीराज की बनाई मूर्ति पर सभी की सहमति बन गई है। गर्भगृह में रामलला की 51 इंच लंबी प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसमें रामलला 5 साल के बाल स्वरूप में हैं। लगभग डेढ़ टन की इस प्रतिमा में रामलला को खड़े हुए दिखाया गया है। प्रतिमा ऐसी है जो राजा का पुत्र और विष्णु का अवतार लगे। गर्भगृह में रामलला सहस्त्रदल कमल के फूल पर विराजमान हैं। कमल के फूल के साथ उनकी लंबाई करीब 8 फुट है और चौड़ाई 3फीट है। मूर्ति का कुल भार लगभग 200 किलो है। मूर्ति के बाहरी वलय में भगवान विष्णु के दस अवतारों के चित्र उकेरे गए हैं। साथ ही , वीर हनुमान , गणेश जी , सूर्यदेव, पक्षीराज गरुड़ के अतिरिक्त अनेक मांगलिक चिन्हों — यथा , स्वास्तिक , चक्र , ॐ , शंख , गदा को भी अंकित किया गया है। रामलला के ललाट पर बना तिलक भी हीरे – रत्नों से बना हुआ है।वर्षों की प्रार्थना के मंगलमयी प्रतिबिम्ब रामलीला के सिर पर सोने का मुकुट है।


रामलला के दाहिने हाथ में स्वर्ण धनुष और बायें में कंचन तीर सुशोभित है , जिसे पटना महावीर मंदिर द्वारा समर्पित किया गया है।श्री राम जन्मभूमि में रामलला के दो नवीन विग्रहों की एक साथ प्राण प्रतिष्ठा की गई है – एक विग्रह तो पाषाण खंड से बना है और दूसरा रजत का विग्रह है, जो नगरपरिभ्रमण के बाद यज्ञशाला में ले जाकर प्रतिष्ठित हुआ।

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल का कहना है कि बन रही तीनों ही मूर्तियों को राम लला के दरबार में लगाया जाएगा -दो मूर्तियां काले पत्थर की, एक संगमरमर की ।तीनों ही मूर्तिकारों में दो दक्षिण ( डां गणेश भट्ट, अरुण योगीराज) से हैं और एक मूर्तिकार सत्य नारायण पाण्डेय राजस्थान के हैं। दक्षिण की मूर्तियां काले पत्थर की हैं। वहीं राजस्थान के मूर्तिकार द्वारा बनाई जा रही प्रतिमा संगमरमर की है।

कर्नाटक के मूर्तिकार गणेश भट्‌ट 1000 से ज्यादा मूर्तियां गढ़ चुके हैं। विदेशों में भी उनकी मूर्तियां पसंद की गई है । इन्हें कर्नाटक स्टेट में कई अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। गणेश भट्ट ने अब तक 1000 से ज्यादा मूर्तियों को गढ़ा है, जो न सिर्फ भारत में बल्कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका और इटली में भी लगाई गई हैं।दूसरे मूर्तिकार सत्यनारायण पांडे जयपुर के प्रसिद्ध मूर्तिकार रामेश्वर लाल पांडे के बेटे हैं। पिछले 7 दशकों से इनका परिवार संगमरमर की मूर्तियां बनाने का काम कर रहा है। उन्होंने राजस्थान के मकराना के सफेद संगमरमर से रामलला की मूर्ति तैयार की है।

तीसरे मूर्तिकार 37 वर्षीय अरुण योगीराज मैसूर महल के कलाकारों के परिवार से आते हैं, जिन्होंने जगद्गुरु शंकराचार्य की भव्य प्रतिमा का निर्माण किया था ,जिसे केदारनाथ में स्थापित किया गया है।

भगवान श्रीराम की एक 823 फीट ऊंची मूर्ति भी तैयार हो रही है, जो दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति होगी ।इस मूर्ति को बना रहे हैं गुरुग्राम के मूर्तिकार नरेश कुमावत, बताया जा रहा है कि इस मूर्ति को बनाने में करीब 2 से 3 साल का वक्त लगेगा।बताया जा रहा है कि यह मूर्ति 823 फीट ऊंची होगी ।वहीं इसके बजट की बात की जाए तो इसे बनाने में करीब 3 हजार करोड़ रुपये तक खर्च हो सकते हैं ।इस मूर्ति को बनाने में कई हजार टन धातु का इस्तेमाल किया जाएगा । श्रीराम की मूर्ति को बनाने से पहले भी नरेश कई मूर्तियां तैयार कर चुके हैं , जो देश में नहीं विदेशों में भी स्थापित है ।823 फीट ऊंची श्रीराम की मूर्ति को सरयू नदी के तट पर स्थापित किया जाएगा ।

मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में होगा। मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने की सीढ़ियों पर गज और सिंह की स्थापना की गई है। ये सीढ़ियों के दोनों बाजू में स्थापित हैं। पिंक सेंडस्टोन से निर्मित इन मूर्तियों की लंबाई चौड़ाई खासी है और ये बहुत आकर्षक दिखाई दे रहे हैं । राम मंदिर के अपर प्लिंथ पर दक्षिण तरफ गरुड़ देव और उत्तर तरफ हनुमान जी की बड़ी मूर्तियां लगाई गई हैं। इनको लगाने का अभिप्राय यह है कि गरुड़ देव और हनुमान जी भगवान राम के पार्षद माने गए हैं। यह दोनों ही राम कथा के अप्रतिम श्रोता भी हैं ।काक भुसुंडी जी से राम कथा सुनने के लिए गरुड़ देव ही सबसे पहले पहुंचे थे।

उत्तर दिशा में निकास द्वार है। 70 एकड़ के 30% भाग पर मंदिर का निर्माण हो रहा है। बाकी जमीन पर ग्रीनरी यानी पौधे लगाए जाएंगे। यहां पहले से मौजूद 600 से अधिक पेड़ों को भी कटने से बचाया गया है। सीता कूप के पास परकोटे में आने वाले वटवृक्ष को दूसरी जगह पर शिफ्ट कर दिया गया है।ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया, “मंदिर परिसर में पब्लिक फैसिलिटी सेंटर का निर्माण कराया जा रहा है। यह अंतिम दौर में है। यहां दर्शनार्थियों के सामान की जांच के साथ उसे रखने का प्रबंध किया गया है। यहां जूते-चप्पल रखने के भी इंतजाम हैं। इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को प्रभार सौंपा जाएगा ।नए मंदिर में राम लला के दर्शन और फिर वापसी की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। भक्त नंगे पैर महा सिंहद्वार के बाद सीढ़ियों से चढ़कर सीधे सिंह द्वार तक पहुंच जाएंगे। इसके बाद उन्हें मंदिर में प्रवेश मिलेगा। भक्त दर्शन के बाद दक्षिणी द्वार से बाहर निकलकर परकोटे की परिधि में आ जाएंगे।

ईस्टर्न गेट प्लाजा में आकर करीब 800 मीटर के परकोटे के परिक्रमा पथ का चक्कर लगाते हुए फिर टनल में उतरकर निकास द्वार पर आगे बढ़ सकेंगे। इस परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को परकोटे में निर्माणाधीन 6 मंदिरों क्रमश: भगवान सूर्य, हनुमान जी, भगवान शिव, माता दुर्गा, माता अन्नपूर्णा और विघ्नहर्ता गणपति के दर्शन करने को मिलेंगे।

श्री राम मंदिर के खंभों व दीवारों में देवी-देवताओं तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं । एक- एक स्तंभ पर 12 मूर्तियां बनाई जा रही हैं ।मंदिर की दीवारों पर भगवान राम के जीवन को दर्शाने वाली कलाकृतियां प्रदर्शित होंगी। राम मंदिर में रामायण प्रसंग पर 164 मूर्तियां लगाई जानी हैं। इनमें पुत्र प्राप्ति के लिए दशरथ के यज्ञ, राम राज्याभिषेक से लेकर माता सीता के धरती में समाहित होने और राम की जल समाधि तक का प्रसंग है। हर प्रसंग में औसतन छह से आठ मूर्तियां शामिल होंगी। अब तक पुत्रेष्टि यज्ञ, राम जन्म, बाल लीला, वशिष्ठ के आश्रम में विद्या अध्ययन, ताड़का, सुबाहु वध , सीता जन्म से लेकर सीता हरण तक के 54 प्रसंगों को आकार दिया जा चुका है । मुख्य शिल्पकार रंजीत मंडल तैयार 2013 से पिता नारायण मंडल के साथ मिलकर सीमेंट सरिया कंक्रीट से इन मूर्तियों को बना रहे हैं।

रामलला के मंदिर में बंसी पहाड़पुर के पत्थरों का इस्तेमाल किया जा रहा है और पत्थरों की डिजाइन के बीच आने वाले गैप में चंडीगढ़ से वैज्ञानिक पद्धति से निर्मित ईंटों का प्रयोग किया जा रहा है । इन ईंटों को बनाने के लिए चंडीगढ़ की एककंपनी को विशेष ऑर्डर दिया गया है ।सभी ईटों की क्वालिटी चेक कर के लगाया जा रहा है ।ईंटों से रैम्प बनाया जा रहा है और इसके अलावा ईंट का इस्तेमाल सीढ़ियों में भी किया जाएगा । राम नाम ईंट के अलावा 3 होल की ईंट भी लगाई जा रही हैं, जो पत्थरों को परस्पर जोड़ने के लिए सलाखों का काम करेंगी ,जिससे पत्थरों में सैकड़ों वर्ष तक मजबूती बनी रहेगी और वे भूकंप रोधी रहेंगे ।

अयोध्या राम मंदिर में विकलांगों और वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प और लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी. इसके अलावा मंदिर में 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी। मंदिर परिसर में स्नानघर, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी होगी। परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पावर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।

कहा जा रहा है कि जब यह मंदिर पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा तो यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होगा।अयोध्या में भगवान राम का मंदिर 2.7 एकड़ भूमि में बन रहा है। जिसमें 54,700 वर्गफुट भूमि शामिल है। राम का मंदिर का पूरा परिसर लगभग 70 एकड़ भूमि में तैयार हो रहा है। इस परिसर में इतनी जगह होगी कि लाखों भक्त एकसाथ मंदिर में भगवान राम के दर्शन कर सकेंगे।

प्रभु श्रीराम के आँगन में सोना – चांदी जड़ा 500 kg का विशाल नगाड़ा गूंजेंगा। इसकी आवाज 1 किमी तक गूंजेंगी। गुजरात विश्व हिंदू परिषद द्वारा समर्पित यह नगाड़ा विशेष रथ से यहाँ लाया गया, जिसके ढाँचे में लोहे और ताँबे की प्लेट का इस्तेमाल किया गया है, जिसपर सोने और चाँदी की परत चढ़ाई गई है। नगाड़ा इतना बडा है कि इसकी बाहर रखने की जरूरत पड़ेगी। तीन महीने की अवधि में तैयार यह नगाड़ा ऐसा तैयार किया गया है कि बाहर घूप बारिश में भी ये खराब न हो ।

रोचक यह भी कि अलीगढ़ के ताला कारीगर सत्यप्रकाश शर्मा एवं उनकी पत्नी रुकमणी शर्मा ने 400 किलोग्राम के ताले को तैयार कर राममंदिर को समर्पित किया है। छह फीट दो इंच लंबे और दो फीट साढ़े नौ इंच चौड़े ताले को बनाने में 65 किलोग्राम पीतल लगा है । तीन फीट चार इंच लंबी इसकी चाबी तीस किलोग्राम की है। इसको बनाने में उन्हें छह महीने लगे।

एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि फरवरी ,2023 में नेपाल के कालीगंडकी तट से दो शिलाएं अयोध्या लाई गईं थीं।इन दो शिलाओं का वजन 14 और 27 टन था।शुरुआत में इन शिलाओं से राम मूर्ति बनाए जाने की बात सामने आई। लेकिन बाद में पता चला कि ख़बरों के मुताबिक़, कुछ संतों का मानना था कि इन पत्थरों को मूर्ति निर्माण में इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि कालीनदी की चट्टानों को तोड़ा नहीं जाना चाहिए । वे शालिग्राम के बराबर हैं। जब इन शिलाओं को अयोध्या भेजा गया था तो उनके साथ एक ताम्रपत्र भी भेजा गया था ।इन शिलाओं को भेजने की प्रक्रिया से जुड़े रहे कुलराज चालीसे ने बताया है कि उन्हें पता चला है कि इन शिलाओं को मंदिर परिसर में ही रखा जाएगा ,छोटी शिला को शालिग्राम और बड़ी शिला को उसके आधार के रूप में स्थापित किया जाएगा ।हालाँकि चालीसे का कहना है कि यदि मूर्ति बनाई जाती तो ये केवल मूर्ति बनकर रहने से चट्टान की पहचान मिट जाती, लेकिन इसे चट्टान के रूप में रखने से इसका महत्व बढ़ जाता है।

अयोध्या की राम मंदिर में श्रद्धालु भगवान राम के दर्शन करने के साथ ही एक घड़ी में 9 देश का समय भी देख सकेंगे-भारत के अलावा रूस, दुबई, जापान, सिंगापुर ,चीन ,मैक्सिको , अमेरिका और कनाडा का समय इस घड़ी में दिखेगा जिसे फतेहपुर निवासी अनिल साहू ने डिजाइन किया है।

अयोध्या का भव्य राम मंदिर शहर अयोध्या के लिए नया अध्याय लिख रहा है और इसलिए स्मार्ट सिटी से सोलर सिटी तक – आठ अनूठी संकल्पनाओं के साथ नई अयोध्या का निर्माण कर सम्पूर्ण अयोध्या को ही नया स्वरूप दिया जा रहा है।अयोध्या को विश्व स्तरीय शहर बनाने के लिए लगभग 30,500 करोड़ रुपये की लगभग 178 परियोजनाएं शुरू की गई हैं।

अवधपुरी को सांस्कृतिक राजधानी में बदलना है । पहले पहल शानदार मठों, मंदिरों और आश्रमों की स्थापना, भव्य शहर द्वारों का निर्माण और मंदिर संग्रहालय जैसी परियोजनाओं का कार्यान्वयन शामिल है – ये सभी इस रणनीतिक योजना के अनुरूप हैं।प्रधानमंत्री ने अयोध्या के नए एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया है । साफ सुथरी और चौड़ी सड़कें, सड़क पर चमचमाते सूर्य स्तंभ , म्यूरल पेंटिंग , निर्मल सरयू , साफ- सुथरे आकर्षक तट, राम की पैड़ी का सुंदरीकरण और एक ही पैटर्न पर बनाई गई दुकानें- नई अयोध्या का दर्शन कराएंगी। आवास विकास परिषद अयोध्या में 1800 एकड़ में नई विश्व स्तरीय टाउनशिप विकसित कर रहा है जो पूरे देश में अपनी तरह की पहली टाउनशिप होगी, जिसमें सात विश्व स्तरीय होटल और तेरह आधुनिक मठ आश्रम बनेंगे।

अयोध्या के हर पहलू को श्रीराम से जुड़े होने की भावना से ओत-प्रोत किया जा रहा है। इस उद्देश्य से शहर की दीवारों, सड़कों के किनारे और चौराहों पर सांस्कृतिक संवर्द्धन को शामिल किया जा रहा है। लता या वीणा चौक इस दिशा में श्लाघनीय प्रयास है।सरयू घाट से राम मंदिर जाने वाले चौराहे पर बड़ी सी वीणा लगी हुई है जो आजकल आकर्षण का महत्वपूर्ण केंद्र बनी हुई है।

रीता रानी
जमशेदपुर, भारत

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Santina Erdman
1 month ago

You’ve given me a lot to think about, thanks for such a stimulating article.

Kevin Durgan
2 months ago

Your blog always provides great insights.

Ravi Shankar Pandey
Ravi Shankar Pandey
2 months ago

अत्यंत महत्वपूर्ण एवम सारगर्भित।।इस महत्वपूर्ण आलेख के आपको हार्दिक बधाई एवम साधुवाद