अरमान

अरमान

वो इंजीनियर थी, घर वालों ने कभी पढ़ने से मना नहीं किया। और वह मैट्रिक पास। वो अंग्रेजी बोल – पढ़ – लिख लेती थी और वह केवल टूटी-फूटी हिन्दी और तेलगू बोल लेता था। वो बिजनेस समझती थी, कहाँ क्या बोलना है, किससे क्‍या फायदा हो सकता है। वह सीधा था, सब पर विश्वास कर लेता था। घर में कपड़े की एक छोटी दुकान थी, अप्पा ने वहीं बैठाना शुरु किया, जब वह क्लास छोड़कर पतंग उड़ाने लगा। वो अप्पा की सब बात मानती थी। चार बहनें और एक भाई में सबसे छोटी थी। जब इंजीनियरिंग के स्टेट मेरिट लिस्ट में खूब ऊपर नाम आया था तो घर में घूम-घूम कर सबसे ज्यादा वह नाचा था। फिर वो चली गई पढ़ने बाहर। घर से बारह घंटे दूर। वो जानती थी कि यही उसकी कुंजी है जो किस्मत का ताला खोलेगी | वह जानता था कि उसकी किस्मत में शायद कपड़े की पुरानी दुकान लिखी है। उसके पैरों को जमीन पर ही होना है।

फिर वो चली गई सिंगापुर। नौकरी मिल गई थी, कैम्पस इंटरव्यू में। वह भी धीरे-धीरे हाथ-पांव मार रहा था कि समय के साथ आगे चले। किसी को नहीं बताए अपने अरमान। भला मैट्रिक पास की बुद्धि पर किसे विश्वास होगा? उसने एक छोटी लैब खोल ली। पानी की शुद्धता जांचने की। अब किस्मत देखो कि तभी एक सरकारी स्कीम आई, जिसमें गाँवों के हर कुएँ, तालाब, नलकूप के पानी की जाँच होनी थी। दो सौ किलोमीटर में केवल यही एक “शुद्धता केंद्र” था और उसकी गाड़ी चल पड़ी। उसकी इस बुद्धिमत्ता पर अप्पा फूले नहीं समाए। मेरा बेटा, मेरा बेटा कहते थकते नहीं थे। और गाड़ी ठीक चल रही थी। वो सिंगापुर में मस्त थी। वह एक बार मिलने भी गया था। दिल में अरमान उठा कि क्या कुछ ऐसा हो सकता है, जिससे वह अपने को ऐसे बना ले, जिससे वो उसे ‘अण्णा’ कहने में ना हिचकिचाए।


इस साल की शुरुआत कुछ अच्छी नहीं हुई | कोविड ने चारो तरफ धमाका मचादिया। उसकी कम्पनी ने “वर्क फ्रॉम होम” का फरमान दे दिया। घर से काम करें, कहीं कहीं निकलना भी मुश्किल हो गया। तीन बड़ी बहनों ने पहले ही शादी कर घर बसा लिया था। कुछ बड़े अरमान नहीं पाले उन्होंने। घर गृहस्थी में थी खुश। वो कुछ बनना चाहती थी, बाहर की दुनियां, बाहर के आसमान छूने के अरमान थे। बड़ी मुश्किल से वह उसको सिंगापुर से ला पाया। इसी ‘पानी की शुद्धता’ के चक्कर में उसकी पहचान लोकल एम एल ए से हुई थी। कड़ियाँ जोड़ते हुए वह आगे तक पहुंचा। पूरे तीन साल बाद वो घर आई थी। यहाँ वह हीरो बन चुका था। कोरोना के खतरों के बीच घर-घर जाकर खाना-पानी बांट रहा था। वो केवल अपनी लड़ाई लड़ रहीं थी। सिंगापुर से लौटते हुए खाली अरमानों का पिटारा उसे टीस रहा था। घर पर इस बीमारी से सुरक्षित रहेगी, यह सोचकर ही लौट आई थी।

वह कह रहा था कि वो अब सिंगापुर ना जाए। यहीं मिलकर काम करेंगे। गाँव और शहरों में राशन बांटने और कोविड टेस्ट कराने पर जोर था। लैब के टेस्ट रिपोर्ट को एस.एम.एस. के माध्यम से भेजने की उसने सलाह दी। यह एक अच्छा मोड़ था। वह अब काफी कांफिडेंट हो गया था। शायद जिंदगी के कांटों पर चलने के कारण उसके पैरों की रफ्फर तेज हो गई थी। वह अपने अरमानों का हिसाब नहीं रखता था। जिंदगी में आए अवसरों को बस पकड़ता रहा था। उसे शायद एक जीतने की जिद थी जो उसके अरमानों से भी आगे थी। इस सुबह वो एक निर्णय ले चुकी थी। अब यहीं रहेगी। उसके अरमानों को मुकाम मिल गया था।

डॉ. अमिता प्रसाद

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