नारी बिन संसार

नारी बिन संसार गर जग में नारी ना होती, चैन से सारी दुनिया सोती, ना बाजार, न दफ़्तर होते, लोग सिर्फ़ पेड़ों पर सोते, माल ना होटल कुछ न होते, घास-पूस के जंगल होते, ट्रेन न मोटर, बोट न रिक्शा, स्वयं लोग करते निज रक्षा, ना मकान, ना फ़्लैट न खोली, करवाचौथ, न ईद, न…

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मानवाधिकारों का संरक्षण – बड़ी चुनौती

मानवाधिकारों का संरक्षण – बड़ी चुनौती मानव, मानवता और मानव अधिकारों का संरक्षण आधुनिक समय में ऐसे विषय हैं ,जिन परबुद्धिजीवियों , विचारकों , समाज सेवियों का एक बड़ा समूह बड़े गर्व के भाव के साथ ही अपनी गहरी चिंता व्यक्त करता हुआ दिखाई देता है । विश्व में विभिन्न अवसरों पर होने वाले शिखर…

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पिता

पिता देखा है बचपन से कैसे अपनी हर ख्वाहिश को छिपा कर हम भाई बहन को दी हर सुख की छांव कभी न रुके न थके कभी न कहीं गए कभी न कोई छुट्टी बस काम और बस काम अच्छी से अच्छी शिक्षा खान पान ,पहनावा रखा हम भाई बहन का कर खुद के लिए…

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एक लड़की थी…

एक लड़की थी… शरारती किस्से वो फ़ोन पर सुनाया करती थी एक लड़की थी मुझे गोद में सुलाया करती थी बिन बाबा के कैसे बीती थीं उसकी माँ की रातें कुछ बेचैनियाँ थीं सिर्फ़ मुझे बताया करती थी डर मेरी उल्फ़त से था, कोई और पसंद था उसे इसी बात पर ज़्यादा खुद को रुलाया…

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नशा

नशा कथासम्राट् मुंशी प्रेमचंदको मेरा नमन । ३१जुलाई सन् १८८०में वाराणसी के लमही गॉंव में जन्मे धनपत राय का जीवन परिवार की ज़िम्मेदारी,विमाता के क्रोध और गरीबी में बीता ।उनके ही शब्दों में-“पॉंव में जूते नथे,देह पर साबुत कपड़े न थे,महँगाई अलग थी ।दस रुपये मासिक वेतन पर एक स्कूल में नौकरी की ।” एक…

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IN THE NAME OF SPARROW

IN THE NAME OF SPARROW Yes, they were integral part of domestic life in a family of Orientation ,ever since one gained consciousness. In the course of primary socialisation during the formative years,it was a common sight to see these cute,harmless,flying creatures,chirping, jumping and producing soothing sound in the courtyard. Of course,Crows too would come…

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सिमोन द बोउवार

  सिमोन द बोउवार 20वीं सदी की महान् दार्शनिकों में से एक, स्त्रीवादी विमर्शों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सिमोन द बोउवार । वैश्विक नारीवादी आंदोलन की एक महत्वपूर्ण किरदार हैं। सिमोन द बोउआर इनका जन्म जनवरी 1908 में एक अमीर घराने में,फ़्रांस के पेरिस में हुआ था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उनके घर…

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लॉकडाउन

लॉकडाउन ‘कैद में है बुलबुल सय्याद मुस्कुराय’ कोरोना जनित लॉकडाउन में कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा है।आज आवश्यक है कि कोरोना जनित लॉकडाउन पर विचार हो ।यह सामयिक है और हम उसमें से होकर गुजर भी रहे हैं।कोरोना के आतंक से भयभीत तो हैं ही बचाव के लिए कमर भी कसे हुए हैं। लॉकडाउन…

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तस्वीर भीड़तंत्र की

तस्वीर भीड़तंत्र की कुछ संसद में, कुछ सड़क पर चिल्ला रहे हैं छुप भीड़ में, हमें मारने की योजना बना रहे हैं ! चाल सियासी हो या फिर बात हो धार्मिक उन्माद की ताक पर रख मानवता, शिकार हमें बस बना रहे हैं ! योजना वद्ध तरीके से शिकार हमारे करते हैं कौन जिन्दा, कौन…

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मात देने को

मात देने को विश्व के सम्मुख बड़ी विपदा खड़ी है मात देने को मगर हिम्मत अड़ी है। खौफ से मासूमियत भी कैद घर में खेल का मैदान तकता रास्ता है ओढ़ चुप्पी कह रही सुनसान सड़कें भूल मत तेरा हमारा वास्ता है अब तरीके युद्ध लड़ने के अलग हैं ये लड़ाई बैठ कर घर मे…

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