बसंत लाया संदेशा प्रेम का

बसंत लाया संदेशा प्रेम का

ज्ञान कला की देवी है देती यही वरदान।
हुआ था अवतरण वीणावादिनी का
दिया ब्रह्मा, विष्णु ने मां सरस्वती को बागेश्वरी, भगवती, शारदा नाम ।

जब शबरी ने पांवड़े बिछाये किया रघु का इंतज़ार,
खाए जूठे बेर प्रभु ने
है वही पावन मास महान।

जिसमे मनाती है कुदरत भी अपने जोड़ों के साथ उल्हास
चहुं ओर करते कलरव पशु-पक्षी और लताएं इठलाती,
मानो कुदरत भी अपने यौवन का करे गुमान।
पीताम्बर हुई धरती सारी ,
पीला हुआ सारा खेत खलिहान।
ये वही पावन दिन है जब होलिका दहन के खातिर
लगते चौराहों पर सूखी लकड़ी के अंबार।
प्रति वर्ष यही आस लिए शायद
इस बार कम होगी तृष्णा और कुरीतियों का होगा नाश।
ये वही मास है जो लाता है रंगों का त्योहार।
माघ का महीना छटा बिखेरता आसमान।
हो प्रफुल्लित छेड़ो राग बसंत।


विनी भटनागर

दिल्ली

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