पंगा: जीवन का व्यर्थता बोध

पंगा: जीवन का व्यर्थता बोध ‘यह हीनता, अपर्याप्तता और असुरक्षा की भावनाएँ हैं जो व्यक्ति के अस्तित्व के लक्ष्य को निर्धारित करती हैं।’ – एल्फ़्रेड एडलर ‘नया ज्ञानोदय’ के जुलाई २००८ में प्रकाशित दिव्या माथुर की कहानी ‘पंगा’ पहले भी पढ़ी थी, अच्छी लगी थी। दोबारा पढ़ते हुए उसके कुछ अनछूए पहलुओं पर ध्यान गया।…

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दिव्या माथुर: मेमेन्तो मोरी

दिव्या माथुर: मेमेन्तो मोरी ब्रिटेन में रहने वाली प्रवासी भारतीय हिन्दी लेखक सुश्री दिव्या माथुर से हमारी पहली मुलाक़ात सितम्बर 1999 में हुई थी, जब मैं मास्को विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफ़ेसर बोरिस जाखारयिन के साथ छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन में भाग लेने के लिए लन्दन गई थी। दिव्या जी ने बड़ी हार्दिकता के साथ…

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घर से चलकर पूरी दुनिया तक की यात्रा हैं – दिव्या की कहानियाँ

घर से चलकर पूरी दुनिया तक की यात्रा हैं – दिव्या की कहानियाँ चुनिंदा कथाकार ऐसे होते हैं जो शून्य से शुरू तो होते हैं किन्तु वे किस हद तक चले जाएंगे, इस बारे में कयास लगा पाना बहुत मुश्किल होता है। हिंदी साहित्य की पहली और दूसरी पीढ़ियों के कथाकारों और यहाँ तक कि…

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दिव्या माथुर की कविताओं में मानवीय चेतना के संघर्षों की आँच

दिव्या माथुर की कविताओं में मानवीय चेतना के संघर्षों की आँच कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में एक स्थापित हस्ताक्षर दिव्या माथुर समकाल की चर्चित कवयित्री भी हैं। नई कविता की टकराहटें हों या छंदबद्ध गीतों की मधुर तानाकशी, छोटी बड़ी बहर की ग़ज़लें या नज़्में, उनके अपने मौलिक व भावनात्मक बिम्ब-प्रतीक पाठक-मन को सहजता…

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जब आप जंग पे निकली थीं, अस्पताल को

    जब आप जंग पे निकली थीं, अस्पताल को मेरे बाग़ में फलों से भरा एक दिव्य वृक्ष है, वृक्ष यह वृक्ष मेरे बाग़ की मुस्कुराहट है; मुस्कुराहट यह मुस्कुराहट जा रही है कल अवकाश पर! अवकाश उस अवकाश पर जहाँ सँवारा जाएगा मेरे पसंद की मुस्कुराहट की शाख़ को, शाख़ उस शाख़ को…

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दिव्या माथुर का ‘आक्रोश’

दिव्या माथुर का ‘आक्रोश’ नेहरु केन्द्र के एक दूसरे कार्यक्रम के दौरान दिव्या ने मुझसे पूछा कि तुम्हें मेरी किताब पढ़ने का मौक़ा अभी मिला है कि नहीं? अट्ठारहवीं शताब्दी के अंग्रेज़ लेखक रेवरेंड सिडनी स्मिथ के एक प्रसिद्ध कथन के अनुसार, किसी पुस्तक की समीक्षा बड़ा घातक हो सकता है। मेरे दिव्या के आक्रोश…

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दिव्या जी को जितना मैंने जाना

दिव्या जी को जितना मैंने जाना मिलना मिलाना कहते हैं ईश्वर के हाथों का खेल है और जीवन के किस मोड़ पर किसी ऐसी शख्सियत से भेंट करवा दें कि लगे जैसे आपको तो बहुत पहले से जानते हैं| प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन की प्रतिनिधि साहित्यकार जिनका रचना संसार बहुआयामी है, सुश्री दिव्या माथुर जी…

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पूर्व-पक्ष

पूर्व-पक्ष दिव्या माथुर से मेरा परिचय लगभग ढाई दशक पूर्व हुआ और इसका श्रेय डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी को है जो उस समय ब्रिटेन के भारतीय उच्चायुक्त थे और हिंदी के प्रचार-प्रसार में सक्रिय थे। दिव्या के दूसरे काव्य संकलन ‘ख़याल तेरा’ का आमुख उन्होंने ही लिखा था इसलिए वह उनकी काव्य प्रतिभा से परिचित थे।…

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वह ध्रुव है!

वह ध्रुव है! क्षितिज के छोर से एक तारा सरक कर आ छिपा धरती के आँचल में उसे ललचाया था शायद धरती की सोंधी सुगंध ने उसे उकसाया था कि वह अपनी नन्ही रौशनी से लोगों को दिशाभ्रम होने से बचाए वह रौशनी उसके साथ चलती रहे, चलती रहे बढ़ने की उमंग के साथ प्रेरणा…

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कर्मयोगिनी दिव्या माथुर

कर्मयोगिनी दिव्या माथुर कार्यक्रम का आयोजन हो या हिन्दी का प्रचार-प्रसार अथवा लेखन, दिव्या माथुर की सजग आँखों और कर्तव्यपरायण मन से कुछ नहीं छूटता। कई बार तो मुझे लगता है कि दिव्या जी के एक दिन में कई-कई दिन समाए रहते हैं अन्यथा कैसे वे नेहरू सेंटर के प्रति माह के दस-बारह कार्यक्रमों के…

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