कोरोना और सकारात्मकता

कोरोना और सकारात्मकता

जीवन है तो सुख-दुःख, आशा-निराशा, ऊँच-नीच, जय-पराजय भी है. सुख-दुःख के घर्षण से ही ज्योति उत्पन्न होती है. जीवन संघर्षों का पर्याय है. कभी महारोगों-महामारी का संघर्ष तो कभी विचारों का, कभी आर्थिक तो कभी पारिवारिक संघर्ष झेलने होते हैं .

प्रकृति का नियम है कि कोई भी स्थिति ज्यादा दिन नहीं टिकती अर्थात परिवर्तन शाश्वत सत्य है और जीने की इच्छा या जिजीविषा कमज़ोर को बलशाली, अपंग को सामर्थ्यवान और बुद्धिहीन को चाणक्य बना देती है . इतना सब जानते हुए भी विपरीत या विकट परिस्थितियों में लोग धैर्य खो बैठते हैं और निराशा के जाल में फंस कर नकारात्मकता जन्य अवसाद से घिर जाते हैं .

आज के माहौल में भी कुछ ऐसा हो रहा है.

इतिहास साक्षी है, महामारियां जब भी आईं हैं , उथल-पुथल हुआ है, परेशानियां, मुश्किलें बढ़ी हैं. जब भी महामारियां फैलती हैं जंग की स्थिति आ जाती है. तब हमारा अवलोकन शुरू होता है. कहाँ गलती हुई, क्यों यह स्थिति आई, और कैसे इस स्थिति से निपटा जाये.

हमारे प्रकृतिविदों का मानना है कि मनुष्य इतना स्वेच्छाचारी हो गया है कि जिस मूलभूत प्रकृति से उसका अस्तित्व है वह उसी के साथ खिलवाड़ करने लगा है. प्रकृति के साथ खिलवाड़,उसका दोहन और स्वयं को सर्वेसर्वा समझने की भूल से कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं.

प्रकृति के ऊपर आधिपत्य स्थापित करने का हमारा प्रयास आत्मघाती है. हम यह भूल गए कि हमारा अस्तित्व प्रकृति से है, प्रकृति का हमसे नहीं. वह चाहे तो सम्पूर्ण आर्थिक समृद्धि व विकास को एक झटके से सूक्ष्म जीवों द्वारा मिटा सकती है.

कितने आश्चर्य की बात है न.. कि हम जंग की बात कर रहे हैं और हथियार की चर्चा कहीं भी नहीं है… न बन्दूक, न बारूद , न तीर, न तलवार… हमारी जंग है एक विदेशी विषाणु से, जिसे कोरोना वायरस कहा जा रहा है, और जिसने ऊधम मचा रखा है. कोई एक राज्य या देश नहीं पूरा का पूरा विश्व जिसके आतंक के घेरे में है. यह विषाणु इतना ताकतवर है कि फ्रांस, इटली, अमरीका जैसे ताकतवर देश इसका मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं. इन देशों में हजारों-लाखों की संख्या में लोग इसकी चपेट में यदि आ जाते हैं तो उनका राम नाम सत्य हो जाता है. सारी व्यवस्था – आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक ठप्प हो कर रह गई है. पूरा विश्व इसकी चपेट में आ चुका है .. इस महामारी ने हमें सोचने पर विवश कर दिया है कि हम कहीं न कहीं गलत थे, गलत हैं….

कुछ लोगों का मानना है कि यह विषाणु ईश्वर प्रदत्त नहीं है. विदेश के किसी अनुसंधान-जनित प्रक्रिया का फल है. मनुष्य तरह-तरह के हथियार बनाकर, एक दूसरे का विनाश करके अपनी बहादुरी सिद्ध करता रहा है. इससे भी उसका मन नहीं भरा तो वह भगवान बन बैठा और एक ऐसा जीव बना डाला जो स्वयं उसकी जान का दुश्मन हो गया है. आज यह अदृश्य कोरोना विषाणु अट्टहास कर रहा है और विश्व इसके चंगुल से निकलने के लिए छटपटा रहा है ….

कोई भी जंग चाहे वह कतनी भी विनाशकारी हो, भयंकर हो, एक न एक दिन समाप्त हो ही जाती है. कोरोना जनित जंग भी समाप्त हो ही जायेगी, या फिर हमें उसका बुद्धिमानी से मुकाबला करना आ जाएगा. आज विश्व स्तर पर भारत की चर्चा हो रही है. भारत की नीतियों, विश्वास और कदमों का गुणगान हो रहा है.

इस परिस्थिति का सकारात्मक पहलू यह है कि कोरोना काल में एक बार फिर ध्रुव तारे समेत तमाम गृह-नक्षत्र आसानी से देखे जा रहे हैं. दशकों से नदियों को साफ़ करने की विफल मुहिम बिना किसी प्रयास के रंग लाती दिख रही है. सारी गतिविधियाँ ठप्प हैं तो प्रदूषण से राहत मिलती दिख रही है. ये हालात कोरोना से लड़ने के अनुकूल बन रहे हैं. प्रकृतिविदों का मानना है कि प्रकृति अपना ईलाज कर रही है. जब यह स्वयं को स्वस्थ कर लेगी तो इंसानों को भी स्वस्थ रखने में सक्षम होगी.

एक छोटी सी बच्ची ने अपनी स्कूल की कॉपी में एक चिट्ठी लिखी…..

मोदी जी मैं आठ साल की मुनिया हूँ. मुझे कोई कुछ नहीं बताता क्योंकि मैं बहुत छोटी हूँ और उनके विचार से मुझमें इतनी अक्ल नहीं है कि मैं इन लोगों की बातें समझ सकूं. शायद ये लोग ठीक कहते हैं.

आजकल सभी लोग लॉकडाउन लॉकडाउन की बातें करते हैं और घर में ही रहते हैं ..मुझे बहुत अच्छा लगता है… मम्मी मुझे अकेला छोड़कर ऑफिस नहीं जातीं. मेरा स्कूल भी बंद है..मैं भैया के साथ खूब खेलती हूँ.. सबसे अच्छी बात है कि पापा जो रोज़-रोज़ अपने दोस्तों को घर बुलाकर शराब पीते और मम्मी के साथ गाली-गलौज करते थे, वह भी बंद है.. मम्मी कामवाली बाइयों पर खूब गुस्सा करती थीं, अब वे लोग आती ही नहीं तो मम्मी बढ़िया-बढ़िया मेरी पसंद का खाना बनातीं हैं.. मेरे गुस्सैल पापा जब किचन में मम्मी की मदद करते हैं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. कल पापा मम्मी से कह रहे थे, अच्छा हुआ इस लॉकडाउन ने मेरी पीने की बुरी लत छुड़वा दी तो मम्मी ने हँस कर पापा को गले लगा लिया. मुझे मम्मी-पापा ऐसे ही चाहिये इसलिए मोदी जी मेरी आपसे प्रार्थना है कि इस लॉकडाउन को ढेर-ढेर सारे दिन चलने दीजिएगा. इसके बाद उस छोटी सी बच्ची ने अपना हंसता हुआ चेहरा बनाया था….।

जैसे अन्धकार के बाद उजाला, गर्मी के बाद सर्दी और तूफ़ान के बाद शांति प्राकृतिक सत्य है वैसे ही कोई भी प्रकोप दीर्घजीवी नहीं होता. वह आया है तो चला भी जाएगा. ईश्वर हमारा इम्तहान लेते हैं और उस इम्तहान में वे ही सफल होते हैं जिनकी सोच सकारात्मक होती है, क्योंकि वे ही ऊर्जा से भरे हुए परिस्थिति का मुकाबला कर पाते हैं.

हमारी विलासी जीवन शैली और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन ही कोरोना के साइड-इफेक्ट के रूप में दिख रहा है. हमने खाद्य-अखाद्य का फर्क मिटा दिया है, चमगादड़ और पेंगोलिन जैसे जीवों के भक्षण वाली तामसी प्रवृति ने कोरोना के रूप में पृथ्वी के साथ इंसानी सभ्यता का भी बेड़ा गर्क किया है. क्या पता हमें सबक सिखाने या हमें हमारी औकात दिखाने आया है यह कोरोना वायरस प्रकोप…

असंख्य चुनौतियों के साथ इस परिस्थिति ने इंसानी जीवन को व्यवस्थित करने का काम भी किया है. मनुष्य के कार्य-व्यवहार, आचार-विचार में अकल्पनीय एवं आद्योपांत परिवर्तन परिलक्षित हो रहा है.

शुद्ध-सात्विक घर का खाना हमारी प्राथमिकता हो गई है, कहीं बाहर से आकर हाथ-पैर साबुन से धोना, हाथ मिलाने या गले लगाने की जगह हाथ जोड़कर अभिवादन करना, योग-प्राणायाम आदि क्रियाओं द्वारा मन व् शरीर स्वस्थ रखने की ओर ध्यान जा रहा है. एक तरह से कहिये कि हम अपनी सभ्यता-संस्कृति से जुड़ रहे हैं.

किसी महामारी का चिकित्सीय पहलु यह भी होता है कि वह हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करती है. अर्थात कुछ समय बाद वायरस हमला करता है लेकिन मनुष्य पर उसका असर नहीं होता. जो आज महामारी है वह कल बीमारी हो जायेगी, वैक्सीन विकसित हो जायगी.

सकारात्मक सोच बड़ी से बड़ी मुश्किल से लड़ने की शक्ति देती है, सामर्थ्य देती है .. सकारात्मक सोच का अर्थ है आसानी से जीवन की चुनौतियों का सामना करना.

सकारात्मक सोच डर पर विजय पाने में सहायक होती है.

सकारात्मक सोच अमृत के समान होती है. बड़ी से बड़ी व् विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता होती है मनुष्य की सोच में.. गलत सोच का चश्मा जितनी जल्दी हो सके उतार देना चाहिए. बुरे विचार जितना दूसरों का नुकसान करते हैं उससे ज्यादा हमारा खुद का नुकसान होता है, क्योंकि अपनी सुरक्षा को लेकर डरा हुआ दिमाग गलत-सही का निर्णय नहीं ले पाता.

यह आत्मचिंतन का समय है. योग और प्राणायाम के जरिये हमें अपने आचार-विचार-व्यवहार में आद्योपांत परिवर्तन लाकर पवित्रता कायम करनी होगी. एक बार पुनः प्रकृति की ओर लौटना होगा. अहं और अहंकार को त्यागना होगा, प्रभु की सत्ता में अर्थात प्रकृति से प्रेम करना होगा, उसे बचाना होगा, उसमें लीन हो जाना होगा…..

महामारी से बचने के सारे प्रयास व् सावधानियां तो आपको बरतनी ही हैं उसके साथ

आइये कुछ तरीकों पर अमल करें सकारात्मक बने रहने के लिए….

१. रात-दिन महामारी से सम्बंधित जानकारी न लें… किसी एक चैनल या सोर्स से उतनी ही जानकारी लें जो जरूरी है. बाक़ी समय अपनी पसंद के कामों में लगाएं जो आपके चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं.

2. अतीत में इससे भी भयानक घटना से आप उबर कर वापस आए है और सामान्य जीवन जीने लगे हैं. यह सोच आपको कठिन परिस्थिति से शीघ्र बाहर ले आयेगी.

3. जो लोग आपसे बुरी स्थिति में हैं उनके विषय में सोचिये और उनकी मदद करने का संकल्प लीजिये. खुद को आप मज़बूत और स्वस्थ महसूस करेंगे.

4. जो काम आप पहले समय के अभाव के कारण नहीं कर पाते थे, अब करिए. परिवार के सदस्यों से बात करना, उन्हें ख़ास महसूस कराना, दुःख-दर्द बांटना.. जितना उन्हें अच्छा लगेगा उससे ज्यादा आपको मानसिक संतुष्टि और आनंद देगा.

5. हंसना …. जी हाँ हंसना अपने आप में एक दवा है. जो व्यक्ति खुश रहते हैं, हंसते हैं नकारात्मकता उनसे कोसों दूर होती है. वे हर बात में कोई न कोई अच्छाई ढूंढ कर हँस लेते हैं. हास्यास्पद वीडयो देखिये …खुलकर हंसिये … समस्याएं स्वयं आपसे दूर भागेंगी ….

सुधा गोयल ‘नवीन’
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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