हिंदी अतुल्य भाषा है

हिंदी अतुल्य भाषा है

यह तो हम सब जानते हैं कि प्रत्येक राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा से होती है क्योंकि जब तक दो व्यक्ति आपस में लिखित या मौखिक रूप से बात नहीं करेंगे, तब तक न तो वह व्यापार कर सकते हैं और न ही एक दूसरे को किसी प्रकार का अन्य सहयोग प्रदान कर सकते हैं। पूरे विश्व में अनेक भाषाएँ एवं बोलियाँ हैं। भारत की भाषा हिंदी है जो कि अत्यंत प्राचीन है। हिंदी भाषा केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य राष्ट्रों जैसे फिजी, मॉरिशस, नेपाल, सूरीनाम, गयाना में भी प्रमुखता से बोली जाती है। हिंदी भाषा बोलने वाले प्रत्येक क्षेत्र मैं अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। चूंकि उर्दू भाषा में कुछ खास ध्वनियाँ अरबी और फारसी की प्रयोग होती हैं तथा व्याकरण की दृष्टि से भी उर्दू हिंदी के बहुत समीप है, केवल लिपि का फर्क है, अत: उर्दू, अरबी और फारसी भाषा प्रधान देशों में भी हिंदी आसानी से बोली, लिखी और समझी जाती है। आज के आधुनिक युग में हिंदी भाषा एकमात्र एसी भाषा है जिसके लिए विश्व के बहुत से देशों में प्रशिक्षण केंद्र खुले हुए हैं और अनेक विकसित राष्ट्रों के विद्यार्थी भारत आकर हिंदी सीख रहे हैं।

हिंदी भाषा को संविधान के अंतर्गत 14 सितंबर 1949 को राजभाषा घोषित किया गया। हिंदी भाषा को राजभाषा घोषित कराने का श्रेय राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन को जाता है। पेशे से वकील होते हुए भी श्री टंडन हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक थे। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के लिए उन्होंने अपने स्तर पर बहुत प्रयास किए थे। वर्ष 1961 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
हिंदी को राजभाषा घोषित किए जाने के साथ ही इसके कार्यान्वयन के लिए देश को भाषाई दृष्टि से ‘क’, ‘ख’ और ‘ग’ तीन क्षेत्रों में बांटा गया। क्षेत्र ‘क’ से बिहार, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा संघशासित क्षेत्र दिल्ली अभिप्रेत हैं। क्षेत्र ‘ख’ में गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब राज्य तथा चंडीगढ़ संघ राज्य क्षेत्र आते हैं। ‘ग’ क्षेत्र से आशय उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से है जो ‘क’ और ‘ख’ क्षेत्र में शामिल नहीं हैं।
संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ हैं और यह प्रयास किया जाना चाहिए कि इन सभी भाषाओं से आवश्यकतानुसार शब्द ग्रहण कर हिंदी की शब्द संपदा में बढ़ोतरी की जाए, यहाँ तक कि अंग्रेजी शब्द भी। यह भी एक सत्य है कि हिंदी के शब्दों को भी अंतरराष्ट्रीय शब्दकोश में समय-समय पर शामिल किया जाता रहा है। संविधान में हिंदी को राजभाषा घोषित करने के बाद यह भी तय किया गया कि उन राज्यों में जहाँ उस क्षेत्र की भाषा प्रचलन में है, त्रिभाषी विधि अपनाई जाए। अत: महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब के साथ-साथ अनेक दक्षिण राज्यों में पहले वहाँ की क्षेत्रीय भाषा और उसके बाद हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता है।
हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा नहीं है लेकिन फिर भी हमारे देश में हिंदी भाषा ही सबसे अधिक प्रचलन में है। विभिन्न प्रकार के विश्लेषण यह बताते हैं कि विश्व में हिंदी प्रयोग करने वालों की संख्या चीन देश की मंदारिन भाषा को पीछे छोड़ चुकी है। दरअसल राष्ट्रभाषा और राजभाषा दोनों अलग-अलग हैं। इन दोनों में मूल अंतर यह है कि राष्ट्रभाषा का विकास आम जनता स्वेच्छा से करती है, उसके लिए कोई मार्गदर्शी सिद्धांत नहीं बनाए जा सकते। लेकिन राजभाषा का विकास सरकारी कर्मचारी प्रयासपूर्वक करते हैं और विशिष्ट कार्यों के लिए लेखन कार्य में करते हैं।


राजभाषा के प्रयोग के लिए संविधान सभा ने राजभाषा के लिए मार्गदर्शी सिद्धांत भी बनाए हैं। इसमें एक मुख्य सिद्धांत यह भी है कि किसी भी शब्द का सही स्थान पर प्रयोग करना अति महत्त्वपूर्ण है। यदि कहीं पर अंग्रेजी शब्द का प्रयोग करना ही हो तो उसे रोमनलिपि में लिखा जा सकता है या हिंदी शब्द के साथ कोष्ठक लगाकर अंग्रेजी शब्द भी लिखा जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में यह कहा गया है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी तथा संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने वाले अंकों का स्वरूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।
यदि वर्तमान समय की बात करें तो हम पाते हैं कि हिंदी भाषा समूचे विश्व में फैल गई है। एक और जहां भारत आर्थिक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर रहा है वहीं दूसरी ओर सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत की लोकप्रियतरा विश्व में सर्वोपरि आँकी जा रही है। वर्तमान में भारत विश्व के विकसित देशों के समकक्ष आ गया है और हाल ही में यह पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश घोषित हो गया है। अब प्रत्येक देश भारत के साथ राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाने की कोशिश करता दिखाई देने लगा है।
विश्व के मानचित्र पर अब हिंदी भाषा का नाम प्रमुखता से स्थापित हो गया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही हिंदी भाषा को विकसित करने के लिए समय-समय पर भाषाविद् और हिंदी साहित्यकार व्याकरण और वर्तनी के मानकीकरण के लिए लगातार सहयोग करते रहे हैं। देवनागरी लिपि के विकास के लिए भी कदम उठाए गए हैं। देवनागरी को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने की दृष्टि से यूनिकोड का विकास एक मील का पत्थर साबित हो रहा है।
कंप्यूटर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के अनेक प्रयासों में सारकारी विभागों और अनेक प्रकाशकों ने अपनी साइट निर्मित की है। यहाँ पर हिंदी की कालजयी पुस्तकों और कृतियों को प्रकाशित किया जा रहा है। महान लोगों के बारे में हिंदी में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। पश्चिम साहित्य को हिंदी में अनूदित किया जा रहा है और साथ ही अन्य भाषाओं के साहित्य का हिंदी अनुवाद भी बड़े स्तर पर हो रहा है। हिंदी को समर्पित बहुत से साहित्यकारों ने कंप्यूटर और मोबाइल पर नई तकनीक के साथ हिंदी में काम करना प्रारंभ कर दिया है। सोशल मीडिया फेसबुक, ट्विटर और ई-मेल पर हिंदी का प्रयोग दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। हमारे मीडिया में हिंदी का बोलबाला स्थापित हो गया है। कंप्यूटर और मोबाइल पर हिंदी में काम करना अब बेहद आसान हो गया है।
विदेशों में बसे भारतीय हिंदी साहित्य और हिंदी सिनेमा का प्रचार-प्रसार कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। अब केवल भारतीय ही नहीं, अन्य देशों के नागरिक भी हिंदी भाषा का महत्त्व समझने लगे हैं और विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम से उसे सीखने का प्रयास कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों से हिंदी भाषा लोगों के दिलों में घर करने लगी है और भारतीय होने का अर्थ हिंदी भाषा का जानकार माना जाने लगा है। सभी हिंदी प्रेमियों के लिए यह गर्व का विषय है कि हिंदी ने विश्व में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए गंभीर प्रयास करना प्रारंभ हो गया है और आज के समय में हिंदी भाषा को अतुल्य माना जाने लगा है।

मुकेश पोपली
बीकानेर,भारत

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