रोना मत 

रोना मत 

सुबह-सुबह जाड़े की सुनहरी गुनगुनी धूप में रंजन जी अपने सफेद मुलायम शाल ओढ़े आराम कुर्सी पर बैठ चाय के आने का इंतजार कर रहे थे। मौसमी फूलों से पूरा बगीचा खिल रहा था।

गमले करीने से सजे हुए थे। रंजन जी को बागवानी का बहुत शौक था, परन्तु नौकरी की वजह से कभी समय नहीं मिल पाया कि वह अपने इस शौक को पूरा कर पाते , अब रिटायरमेंट के बाद सारा समय अपने इस शौक को पूरा करने में बिताते।

चाय आने में देर हो रही थी, इतने देर में वे पानी का पाइप लेकर पूरे गमले में पानी डालने लगे। पेड़ पौधों में पानी देने के बाद भी चाय अभी तक नहीं पहुँची तो वहीं से अपनी पत्नी को आवाज लगाने लगे। अरे!रितु क्या हुआ?…. चाय लाने में इतनी देर क्यों लग रही है?

घर के अंदर से ही रितु आवाज लगाते हुए बोली -” आ रही हूँ बाबा,,थोड़ी देर में ही आप हल्ला मचाने लगते हैं, धैर्य तो रखिये… लेकर आ रही हूँ, अकेले करती रहती हूँ.. यह नहीं कि थोड़ा हाथ बँटा दें कामों में,,बोलती हुई रितु ट्रे में चाय,बिस्किट और पानी लेकर टेबल पर रख देती है।

क्या हुआ…. क्यों इतना शोर मचा रहें हैं ? देख रही हूँ आजकल।

आप पर बुढ़ापा पूरी तरह से हावी हो गया है, आपमें अब धैर्य बिल्कुल नहीं है- रितु खीजते हुए बोली।

मैडम!नौकरी से रिटायर हुए भी अब पाँच साल हो गए हैं,अब भी तुम यही उम्मीद करती हो कि मैं गबरु जवान बना रहूँ।

सिर्फ आप ही रिटायर नहीं हुए मुझे भी रिटायर हुए सात साल हो गये, तो मैं क्या अभी भी जवान ही हूँ… जो घर के इतने सारे काम निपटाने पड़ते है,इससे ज्यादा आराम तो नौकरी करते समय में था, दो,तीन नौकर चाकर थे, बच्चे भी संभल गये, अब आराम करने के समय घर के काम संभालने पड़ते है।

मैडम, देख लिया था न नौकरों की कारस्तानी,, चुटकी लेते हुए रंजन जी ने कहा।

दोनों पति-पत्नी नोक -झोंक करते हुए चाय की चुस्की ले रहे थे। रंजन जी इनकम टैक्स के उच्च अधिकारी पद से रिटायर हुए थे और रितु कॉलेज के प्रिंसिपल पद से। दोनों ही आजकल अस्वस्थ चल रहे थे।

रितु की पिछले ही साल हार्ट की सर्जरी हुई थी, रंजन जी मधुमेह तथा उच्च रक्तचाप से पीड़ित थे। दोनों एक दूसरे के संबल बने हुए बुढ़ापे में जीवन गुजार रहे थे।

चाय की चुस्की लेते हुए अचानक रंजन जी रितु से कहते है- ‘रितु मुझे कुछ हो जाएगा तो तुम रोना नहीं।’

‘क्या अनाप-शनाप बोलते रहतें हैं, जो मुँह में आता है बोल जाते हैं’ — रितु गुस्से से तमतमाते हुए बोली।

रितु मैं तुमसे मजाक नहीं कर रहा हूँ,सही बात कह रहा हूँ -रंजन जी ने थोड़ी गंभीरता के साथ कहा।

‘ मैं नहीं रोने वाली लेकिन हाँ…मुझे कुछ हो जाएगा तो आप दहाड़ मार -मार कर रोओगे यह मुझे पता है’- रितु चुटकी लेते हुए बोली।

रितु यह बात तो सही है कि मैं तुम्हारे बगैर एक मिनट भी नहीं रह सकता,,मैं अपने आप को नहीं संभाल सकता तुम्हारे बिना।

मैं इस मामले में बहुत कमजोर हूँ, लेकिन तुम बहुत मजबूत हो।
अच्छा! मैं अधिक मजबूत हूँ इसलिए आप मुझे पहले छोड़कर चले जायेंगे ,,रितु ने हँसते हुए कहा।

अरे!रितु तुम सब बात को मजाक में ले लेती हो,, कभी तो बात की गंभीरता को समझो।

अरे जनाब!आप गंभीर हैं तो गंभीर बने रहिये ,, मैं अपने जीवन में हल्की ही रहना चाहती हूँ,, -रितु थोड़ा चिढ़कर बोली।
रितु हमारे बच्चे तो अब हमारे पास नहीं आयेंगे।
अयान अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अमेरिका में बसा हुआ है। उसे यहाँ आये हुए दस साल हो गए। उसने कभी हमारी सुध नहीं ली।,, यहाँ तक कि अनन्या की शादी में भी अपनी मजबूरी बता आने से इंकार कर दिया। कुछ पैसे भेज कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली।

अनन्या भी विवाह के कुछ वर्ष पश्चात कनाडा में अपने पति और बच्चों के साथ बस गयी ।

पिछले ही वर्ष जब तुम्हारे हार्ट की सर्जरी होने वाली थी मैंने अयान और अनन्या दोनों को कितना समझाया कि दोनों भाई बहन में से कोई भी आ जाओ माँ के पास, मैं अकेले नहीं संभाल पाऊंगा,, लेकिन हमारे दोनों बच्चों ने अपनी अपनी व्यस्तता और मजबूरी बताकर नहीं आने की बात कह दी… तो ऐसे में क्या उम्मीद करूं कि यह दोनों हमारे मरने के बाद भी अपने अपने परिवार के साथ आएंगे। इसीलिए कह रहा हूँ,रितु..किसी भी परिस्थिति में तुम अपने हृदय को मजबूत करके रखना।थोड़ी गंभीरता के साथ रंजन जी ने कहा।

हमें मत समझाइए आप .. मैं दिल की बहुत मजबूत हूँ..कमजोर तो आप हैं – रितु ने कहा।
हमेशा से बच्चों का विदेश में जाकर नौकरी करने के खिलाफ थी। देश में भी तो अच्छी नौकरी मिल सकती थी, ऐशो -आराम मिल सकता था,लेकिन नहीं….. इन्हें तो पश्चिमी सभ्यता,संस्कृति ही ज्यादा आकर्षित करती थी। जब अयान इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में था मैं उसको पासपोर्ट नहीं बनाने दी, बन जाने पर कंपनी उसे बाहर भेज सकती थी,लेकिन तुम्हारे लाडले की तो हमेशा से इच्छा थी बाहर जाने की इसीलिए कंपनी ज्वाइन करने के साथ ही कंपनी के काम से अमेरिका चला गया, मैं इसका विरोध भी की, तुम उसका साथ देते रहे, मुझे ही समझाने लगे…. कंपनी बॉन्ड पर भेज रही है.. फिर वह भारत में आकर ही काम करेगा।

रितु आँखों में आँसू संभालती हुई फिर बोली – “जो एक बार अपना घर -द्वार, देश छोड़कर चला जाता है… जिसे विदेश की आबोहवा की आदत हो जाती है,, वह फिर कभी लौटकर नहीं आता है। इस बात को तुम्हें बहुत समझाने की कोशिश की परन्तु, आपको तो अपने रुतवे की पड़ी थी कि मेरा बेटा भी विदेश में रहता है।”

“रितु..मैं क्या करता? बच्चे की इच्छा का भी तो सम्मान करना चाहिए ,आज नहीं तो कल बच्चे अपने मन की ही करते …. तो क्यों ना हम माता-पिता अपनी सहमति देकर ही करने दे।”

मायूस होकर रितु बोली – “बेटी पर तो अपना कोई अधिकार नहीं था….बेटा पर तो था, उसे रोक सकते थे, परंतु तुम्हारी सहमति ने उसका मनोबल बढ़ा दिया।”

“रितु फिर वही घिसा पिटा राग अलाप रही हो,कितनी बार समझाया कि अपने स्वार्थ और अपनी खुशियों के कारण बच्चों को आगे बढ़ने से मत रोको।”

“बढ़ गये न आगे… इतने आगे निकल गये बच्चे कि पीछे माँ -बाप को मुड़कर देख भी नहीं पाते।झांकने तक नहीं आता है बेटा- बहू। आया था बेटा एक बार… अपनी शादी में, शादी करके पत्नी को लेकर जो गया,,अब तक वापस नहीं आया। बहू विदा होकर ससुराल आयी…. दो-चार दिन की ही संगत रही,फिर बेटे के साथ जो गयी उसके बाद वीडियो कॉल पर ही कभी-कभी दिखाई देती है।”

दोनों पति-पत्नी की सुबह की मीठी चाय कड़वाहट में बदल गई थी। दोनों की दिनचर्या ही यही थी,सुबह में दोनों साथ बैठकर चाय पीते और बातचीत कर अपने अपने काम में लग जाते लेकिन आज बातचीत में बच्चों को लेकर कुछ ज्यादा ही कड़वाहट हो गयी।

दोनों एक दूसरे को ताना मारते लेकिन फिर अपने अपने मन को समझा लेते आखिर बच्चे अपना भविष्य ही बनाने गए हैं,, कब तक माँ -बाप के पल्लू से बंधे रहेंगे, एक दिन तो बाहर जाना ही था चाहे वह देश के किसी शहर में है या विदेश में।रहना तो एक दिन पति -पत्नी को अकेले ही है… तो क्यों बच्चों के बारे में सोच- सोच कर अपने जीवन में कड़वाहट भरें ।

रंजन जी समझ गये कि आज दिन भर रितु इन सब बातों को लेकर परेशान रहेगी, इसलिए उसका मन हल्का करने के लिए किचन में नाश्ते की तैयारी कर रही रितु को बोलें – ‘रितु आज मैं नाश्ता बनाऊंगा, तुम रहने दो।’

‘क्या बात है? इतने सालों में तो कभी ध्यान नहीं आया आज बड़ा प्यार दिखा रहें हैं ‘- रितु बोली।

‘क्या करूं जवानी में फुर्सत नहीं मिली इसीलिए सोचा थोड़ा बुढ़ापे में ही प्यार जता लूँ ‘- रंजन ने ठहाके के साथ कहा।

“हँसिये नहीं, रहने दीजिये मैं कर लूंगी, अब तक करती आयी हूँ तो आगे भी कर लूंगी,, मुझे किसी की मदद नहीं चाहिए।”

रितु पुराने नौकर को याद करते हुए आवेश में बोली- “नासपीटे!दीपक अच्छा खासा घर का सारा काम निपटा रहा था,दस साल घर में काम किया,कभी नहीं लगा उसकी नीयत में खोट है,पता नहीं कौन उसे बहला-फुसला दिया कि उसका चाल ढाल ही बदल गया।हमें क्या पता कि वह हमारे सारे गहने लेकर भाग जाएगा। हम भी बेवकूफ उस पर आँख मूंदकर विश्वास करते थे। घर की पूरी चाबी देकर दो महीने बड़ी दीदी के पास हरिद्वार क्या गये, घर का मालिक ही बन बैठा। वह तो भला हो बगल में पांडे जी का…. उन्हें एक रात हमारे घर में दो चार लोगों के होने की आशंका हुई और उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया,, पुलिस आयी तब तक वह सभी फरार हो गए थे। बाद में पुलिस की छानबीन से पता चला कि चोरी के पीछे दीपक और उसके दोस्तों का हाथ था।”

रितु एक ठंडी आह भरती हुई बोली-” गहने तो वापस नहीं आये पर, जिसे बेटे की तरह प्यार दिया उसी ने धोखा दिया। अब वह जेल में है।”
इस घटना के बाद दोनों पति-पत्नी ने अब तक कोई नौकर नहीं रखा।
दोनों ही अस्वस्थ हो रहे हैं परंतु, किसी पर इतना विश्वास नहीं है कि किसी को अपनी देखभाल के लिए रख लें । आए दिन पेपर में बुजुर्ग दंपतियों के साथ हो रहे हादसे से और भी अधिक आशंकित और भयभीत रहते है।

अचानक रंजन जी ने रितु से कहा- ‘रितु क्यों न हम लोग कुछ दिन अपने बच्चों के पास ही चलते है,, तुम स्वस्थ भी हो जाओगी और कुछ दिन घूमना फिरना भी हो जाएगा।”

रितु भी सहमति देते हुए बोली,”पहले बच्चों से बात तो कर लीजिये कि वो लोग क्या कहते हैं, उसके बाद जाने की सोचेंगे ।”

चौंकते हुए रंजन ने कहा – “इसमें सोचने की क्या बात है? सिर्फ कह देंगे कि हम लोग आ रहे हैं।”

“नहीं नहीं, पहले पूछ लेते हैं उसके बाद ही कुछ सोचेंगे”- रितु ने कहा।

“कल मैं बात कर लूंगा” – कहकर रंजन जी ड्राइंग हॉल के सोफे पर बैठ गये ।

दूसरे दिन रंजन जी ने अयान को फोन लगाकर उसका हालचाल पूछा फिर उन्होंने अपनी बात बता दी.. “बेटा हम लोग कुछ दिनों के लिए तुम्हारे पास आना चाहते हैं।”

सुनते ही अयान चौंक गया, उसे समझ नहीं आ रहा था कि पापा को क्या जवाब दे,क्योंकि उसे दूसरे शहर मे शिफ्ट होना था।असमंजस में पड़ पापा से कहा-” पापा मैं किसी दूसरे शहर में शिफ्ट कर रहा हूँ, वहाँ व्यवस्थित होने में कुछ दिन लग जाएगा, ऐसे में आप दोनों को असुविधा होगी, इसीलिए अगले साल आप लोग यहाँ आने का प्लान बनाइए।”

“बेटा- मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, वहाँ कुछ दिन रहेगी तो उसका देखभाल भी अच्छे से हो जाएगी और आराम भी मिल जायेगी।”

“पापा मैं तो आपको अपनी परेशानी बता दिया हूँ और नये जगह पर मम्मी को एडजस्ट करने में भी दिक्कत हो जाएगी, इसीलिए प्लीज आप अनन्या के पास चले जाइए।”

“नहीं नहीं बेटा इतने दिनों के लिए बेटी के पास रहना ठीक नहीं है।यदि हम लोग नहीं आ सकते तो तुम शिफ्ट होकर कुछ दिनों के लिए आ जाओ हम लोगों के पास।”

“नहीं पापा अभी काम का दबाव बहुत अधिक है, इसीलिए अभी हम लोग नहीं आ सकते हैं,,,आप बोलिए तो मैं अनन्या से बात करता हूँ उनलोगों को कहीं कोई परेशानी नहीं है तो,वहीं कुछ दिनों के लिए चले जाइए आप लोग।”

“रहने दो अयान, मैं स्वयं बात कर लूँगा अनन्या से।”

“ठीक है पापा मैं फोन रखता हूँ”.. कहकर अयान ने फोन काट दिया।

अपने बेटे के इस व्यवहार से रंजन जी बहुत आहत हुए , परंतु उन्होंने रितु से अयान से हुई बातचीत के बारे में कुछ नहीं बताया। वह जानते थे कि रितु यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकेगी।

फिर उन्होंने अपनी बेटी अनन्या को फोन लगाया….

“हेलो!अनन्या बेटी कैसी हो?”

“मैं ठीक हूँ पापा”- आप कैसे है”?

“मैं तो स्वस्थ हूँ परंतु तुम्हारी माँ कुछ अस्वस्थ चल रही है, इसलिए मैं सोच रहा हूँ कुछ दिन तुम्हारे पास आकर हम दोनों रहें,, माँ के साथ तुम्हारी अच्छी बनती है, वहाँ रहेगी तो जल्दी ही ठीक हो जाएगी।”

“पापा मुझे बहुत खुशी होगी आप लोग यहाँ आयेंगे,,, लेकिन यहाँ मेरे साथ बहुत समस्या होगी,, कोई कामवाली नहीं मिलती है,, स्वयं ही घर के सारे काम निपटाती हूँ, फिर ऑफिस भागती हूँ, निशांत को भी ऑफिस के कामों से सांस लेने की फुर्सत नहीं है,, ऐसी परिस्थिति में हम लोग कैसे आपलोगों की देखभाल कर सकेंगे?…. अच्छा होगा कि आप अयान भैया से बात कर लें।”

“ठीक है”– कहकर रंजन जी ने फोन रख दिया… और चुपचाप सोफे पर बैठ गये । रंजन जी को अपनी बेटी से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी,उनके हृदय को बहुत चोट पहुँची।

उन्होंने रितु को बिना कुछ बताये कहा- “रितु तुम सही कह रही हो, हमलोग कहीं नहीं जायेगे,यहीं एक दूसरे की देखभाल कर लेंगे।बच्चों के पास समय का अभाव है। फिर, हम दोनों का अतिरिक्त देखभाल उन्हें परेशानी में डाल देगा।”

“मैं तो यही समझाने की कोशिश कर रही थी आपको।वहाँ बच्चे अपना जीवन अपने तरीके से चला रहे हैं. वहाँ हमलोग दोनों उनके लिए बोझ ही बन जाएंगे। देखती हूँ किसी ऐसे व्यक्ति को जो हम दोनों की देखभाल कर सकें।”रितु ने कहा और रंजन जी ने भी हामी भर दी।

आज बिस्तर पर रंजन जी को नींद नहीं आ रही थी,, बार-बार बाथरूम की तरफ जा रहे थे।

रितु ने टोका- “क्या हुआ? आज आपको नींद नहीं आ रही है।”

“नहीं.. थोड़ी सी बेचैनी महसूस हो रही है।”

रितु भाँप गई थी कि आज रंजन जी अपने बेटे -बेटी की बातों से आहत हुए है।

“आप बच्चों की बातों को इतने दिल से क्यों लगाते हैं?अभी हमें कहीं नहीं जाना है… जब हम बिस्तर पकड़ लेंगे तब सोचेंगे कि क्या करना है? अभी हम दोनों भले चंगे हैं,अपना देखभाल खुद कर सकते हैं,,, बच्चों का मुँह नहीं ताकना होगा उनपर निर्भर नहीं होंगे।

बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तब माता-पिता की अहमियत खत्म हो जाती है,स्वयं सक्षम होते हैं सब कुछ करने के लिए।”

रंजन जी ने सिर्फ हाँ में सिर हिलाया और सो गये ।

रितु रंजन जी को सोये देख निश्चिंत हो गई… वह समझ गई कि आज रंजन जी बहुत ज्यादा आहत हुए।तकलीफ तो उसे भी हो रही थी परंतु रंजन जी के सामने जाहिर नहीं होने दी।

सुबह होते ही रितु नित्य -क्रिया से निवृत्त हो थोड़ा व्यायाम कर चाय बनाने चली गई। किचन में जाने से पहले रंजन जी को आवाज दी… “क्या हुआ?रंजन साहब आज इतनी देर तक सो रहे है….. रात देर से नींद आई क्या? व्यायाम भी करना है उठिए जल्दी…. मैं चाय बनाने जा रही हूँ” – कहकर रितु किचन में चाय बनाने चली गयी,चाय बन कर तैयार हो गई,बगीचे में प्रत्येक दिन की तरह चाय लेकर रख भी दिया लेकिन रंजन जी नहीं उठे।

रितु को थोड़ा आश्चर्य भी लगा रंजन जी तो जल्दी उठ जाते हैं आज क्या हुआ अभी तक सो रहे हैं वह कमरे में जाकर थोड़ा तेज आवाज में बोली-” क्या हुआ? आज इतनी देर तक सो रहे हैं… उठिए। आज मुझको डॉक्टर के पास भी जाना है जल्दी उठिये”.. परंतु रंजन जी के तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

रितु ने रंजन जी को जोर से हिलाया। रंजन जी निस्तेज बिस्तर पर आंखें मूंदे पड़े थे। रितु बुरी तरह से घबरा गई, पसीने से लथपथ वह मोहल्ले के ही एक डॉक्टर को फोन लगाया। डॉ साहब फ़ौरन घर पहुंच गए। उन्होंने रंजन जी के नस टटोले, साँसे देखी और कहा- रंजन जी नहीं रहे। उनकी मृत्यु हृदय गति रुकने से हुई।इतना सुनते ही रितु जोर से चीखते हुए मूर्छा खाकर फर्श पर गिर पड़ी। डॉक्टर साहब ने तुरंत इलाज शुरू किया, जिससे रितु को होश आया।

रंजन को देखते ही फिर जोर से चीखते हुए रोने लगी। इतने में जैसे उसे रंजन जी की आवाज सुनाई पड़ी–”रितु रोना मत।मैंने कहा था ना कि मुझे कुछ हो जाएगा तब तुम हिम्मत रखना रोना नहीं”– यह शब्द कान में जाते ही रितु स्तब्ध हो पार्थिव रंजन को एक टक से देखने लगी। उसका रोना बंद हो गया।वह पत्थर बन रंजन जी के पास चुपचाप बैठी रही। पड़ोसी पांडे जी ने अयान और अनन्या को फोन लगाकर पूरी घटना की जानकारी दी। जब तक दोनों बच्चे आते तब तक पार्थिव शरीर को शीत गृह में रख दिया गया।

तीन दिनों तक रितु रंजन के बिस्तर पर बुत बनी निःशब्द बैठी रही, उसकी आँखों से एक बूंद भी पानी नहीं गिरा। जब अयान और अनन्या आये उसके बाद अंतिम विदाई की तैयारी शुरू हुई।

अयान जब सारे क्रिया- कर्म को निपटा रहा था, रितु चुपचाप एक टक से अयान को देख रही थी, लेकिन जब मुखाग्नि देने का समय आया रितु बदहवास दौड़कर अयान के हाथ से अग्नि को छीन लिया…. और जो चीखते हुए बोली, “अयान, तुम्हें कोई अधिकार नहीं है पिता को मुखाग्नि देने का। जब जीते जी उनसे आकर नहीं मिल सके तुम… अपने बेटे का कर्तव्य उस समय नहीं निभाया…. वह तुम दोनों भाई -बहन से मिलना चाहते थे, उस समय दोनों अपनी अपनी समस्यायें गिना रहे थे, अब क्यों अपना धर्म निभाने आये हो?आज से मैं तुम्हें बेटे के धर्म से मुक्त करती हूँ। अंतिम समय तक जब मैं ही सहारा थी तो अंतिम विदाई भी मैं ही दूँगी।”

बड़ी दृढ़ता के साथ पंडित जी को कहा- “पंडित जी, आप मंत्र उच्चारण कीजिए मैं मुखाग्नि दूँगी।आज वह हृदय पर पड़े भार से मुक्त हो गई थी। पति द्वारा दिए गए वचन का मान रखते हुए वह रोयी नहीं।

मीनाक्षी शरण
जमशेदपुर, भारत

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