करिश्माई आईना

करिश्माई आईना

राजा सिर्फ़ नाम का ही राजा था, वैसे अपने आपको रंक ही समझता था। ऐसा नहीं था कि वह एकदम मुफलिस खानदान में जन्मा था या मां बाप उसका खयाल नहीं रखते थे, पर उसका दुःख ये था कि हर मामले में वह बड़ा मामूली था – दिखने में, बोलने में, पढ़ने में, काम में – और इस वजह से उसका कोई सम्मान नहीं था। बड़ी मुश्किल से कोई नौकरी लग भी जाती, तो उसे ऊबकर कुछ ही दिनों में छोड़ देता। पिता जीवन भर क्लर्क का काम करके रिटायर होने जा रहे थे, ऊपर से सर पे दुनिया भर की ज़िम्मेदारियां। बूढ़ी मां का ख्याल रखना था, बेटी ब्याहनी थी, गरीब भाइयों की मदद करनी थी। पर बेटा ऐसा निकला, जिसे इन सबसे कोई सरोकार ही नहीं था। राजा मानता था कि दुनिया में जितने भी सफल इंसान हैं, वे या तो किस्मत से ऊपर उठे हैं, या भ्रष्टाचार या फ़िर भाई भतीजावाद से। मेहनत करके कोई बड़ा हो ही नहीं सकता। उसके अनुसार वह असफल सिर्फ़ इस कारण से था कि उसके सर पे किसी बड़े आदमी का हाथ नहीं है। इन्हीं निराशावादी विचारों के कारण वह एकांत और चिड़चिड़ा हो गया था। कोई भी लड़का उसका अच्छा दोस्त नहीं था, फिर कोई लड़की क्या उसकी प्रेमिका बनती???

एक दिन हमेशा की तरह वह सड़क पर फालतू घूम रहा था कि सामने बरसों पुराना दोस्त सूरज दिख गया। दोनों कई साल बाद मिले थे, चाय पर चर्चा करना बेहतर समझा गया। सूरज उसे एक बड़े होटल में ले गया। घंटों गुफ्तगू चलती रही। राजा तो अपना दुखड़ा ही सुनाता रहा, पर सूरज बड़ा चमक रहा था। उसने बताया कि उसकी ज़िंदगी मज़े से कट रही थी। राजा को रश्क हुआ – “ये तो मेरे जैसा ही था, अब कौन सा खज़ाना हाथ लग गया?” वह पूछ ही बैठा। सूरज ने बताया उसे कोई जादुई चीज़ मिल गई है, जिसने उसकी ज़िंदगी बदल दी। अब राजा ज़िद करने लगा – “मुझे भी दिखाओ वो चीज़।“ सूरज राज़ी हो गया और उसने उसे अगले दिन सुबह तैयार रहने को कहा।

रात भर राजा सो न सका – “आख़िर क्या होगी वो करिश्माई चीज़, जिसने मेरे ही जैसे एक नालायक को इतना काबिल बना दिया? फिर तो मेरे भी दिन बदलेंगे। बड़ी बड़ी कल्पनाएं करते हुए वह करवटें बदलता रहा। जब सवेरे नौ बजे नहा धोकर राजा निकलने को तैयार हो गया, तो घरवाले अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर सके। ऐसा नज़ारा बहुत दिनों से देखा नहीं था। सूरज वक्त पे आ गया और राजा बिना किसी से कुछ कहे निकल पड़ा।

काफ़ी दूर चलने के बाद एक हवेलीनुमा मकान दिखाई दिया, जिसमें सूरज उसे लेकर घुस गया। वह एक विशाल इमारत थी और अंदर कोई नहीं था। राजा डर के ठिठका – “कहीं ये कोई भुतहा हवेली तो नहीं?” सूरज ने ढांढस बंधाया – “डरो मत, ये एक बड़े रईस की कोठी है जो विदेश में रहता है। मैं यहां का रखवाला हूं।“ दोनों गलियारे को पार कर एक विशाल मेहमानखाने में पहुंचे। वहां जाकर सूरज ने अपनी हथेलियों से उसकी आंखें बंद कर दीं और उसे सामने की दीवार के पास ले गया। फिर रुककर धीरे धीरे उसने राजा की आंखों से हथेलियां हटाईं और सामने देखने को कहा। जब राजा ने आंखें खोलीं, तो सामने एक आदमकद शीशे से रूबरू हुआ। वह ज़रा उखड़ा – “तुम तो बोले थे कोई जादू है, अब इस आईने में मैं अपनी सड़ी-सी शकल देखूं?” सूरज हंसकर बोला – “करिश्मा तो होगा, ज़रा सब्र करो।“ कहकर वह चला गया।

और करिश्मा वाकई हुआ। राजा की आंखों के सामने अविश्वसनीय दृश्य दिखने लगे। उसने देखा कि वह एक हेलीकॉप्टर की सवारी कर एक शानदार क्रूज़ शिप में उतर रहा है। अनेकों सुंदर युवतियां उसकी ओर दौड़ी चली आ रही हैं। बहुत से नौकर चाकर टेबल पर महंगी शराब और तरह तरह के व्यंजन सजाकर उसकी राह देख रहे हैं। बेहतरीन कलाकार अपना हुनर दिखाकर उसका मनोरंजन कर रहे हैं। राजा सब कुछ भूलकर उस दर्पण से चिपक गया। न भूख, न प्यास, न थकान, न किसी की याद, बिना पलक झपकाए घंटों उन दृश्यों को देखता रहा। उसका सपना तो तब टूटा जब सूरज एक बार फिर आंखे ढंककर उसे बाहर ले गया। सालों बाद उसका मन खुशी से भर उठा था और उसने उस जादुई आईने की बड़ी तारीफ़ की। सूरज ने कहा, अगर उसके पास वक्त है तो वह अगले दिन भी आ सकता है। राजा बोल बैठा – “मेरे पास वक्त ही वक्त है।“ अगली सुबह फिर मिलना मुकर्रर हुआ।

रात का खाना जल्दी जल्दी खाकर राजा बिस्तर पर लेट गया। घरवाले हैरान थे कि ये हो क्या रहा है? पर खुश भी थोड़े हुए कि उसका बर्ताव ज़रा बेहतर था। राजा सो नहीं पा रहा था, बार बार उसकी आंखों के सामने वही सुखद दृश्य घूम रहे थे।अगर दिन भर का थका हुआ ना होता तो सारी रात जागता ही रहता।

अगले दिन फिर वह समय से तैयार हो गया और सूरज भी समय पर पहुंच गया। घरवाले प्रश्नसूचक दृष्टि से देख रहे थे पर उसने कुछ बताने की ज़रूरत नहीं समझी। आज भी वही हवेली दिखाई दी और सूरज उसकी आंखों को ढंककर उसे आईने के सामने ले गया। मगर आज वह हेलीकॉप्टर से क्रूज़ शिप की बजाय एक भव्य राजमहल में उतरा। नौकर चाकर, खाना पीना और मनोरंजन आज भी मौजूद थे, पर इस रोज़ एक और मज़ेदार बात थी। उन सुंदर युवतियों में से एक युवती उसकी ओर आकर्षित हो रही थी। थी तो सादगी से भरी, पर उस लड़की में एक अलग ही नज़ाकत और खूबसूरती थी। राजा को पता हुआ – उसका नाम ऋषिका था। खाना दोनों ने साथ खाया और निकल पड़े एक झील के किनारे सैर करने। दोनों ने एक दूसरे की पसंद-नापसंद, फ़िल्मों, गानों की खूब बातें कीं घंटों साथ बिताए। शाम होने पर एक बार फिर सूरज ने रंग में भंग डाला और राजा को घर ले चला।

आज की रात ऋषिका के नाम थी। राजा उसके साथ तरह तरह के सपने बुनने लगा। ऐसे में नींद कहां आती?

अगली सुबह फिर वही खूबसूरत नज़ारे। आज ऋषिका उसे पहाड़ की तराई पर ले गई और दोनों पर्वतारोहण करने लगे। कोई थकान ही नहीं थी। तरह तरह के पशु-पक्षी उनके चारों ओर विचर रहे थे।

चौथे दिन राजा ने देखा कि वह एक बहुत बड़ी कंपनी का मालिक बन गया है और बोर्ड मीटिंग में व्यस्त है। कोट-सूट पहने कई मातहत उससे निर्देश ले रहे हैं। ऋषिका पास वाली कुर्सी में बैठकर चेक लिख रही है।

ये सिलसिला चलता रहा। इन दिनों परिवार के लोगों ने महसूस किया कि कुछ अजीब तो हो रहा है, पर राजा के स्वभाव में एक अच्छा बदलाव आया है। न वह पहले की तरह चिड़चिड़ाता, न पिता से बहस करता, न बहन को डांटता। कभी कभी तो घर लौटने के बाद छोटे-मोटे काम भी कर देता था।

मगर कुछ ही दिनों में राजा का मन इन चमत्कारी दृश्यों में तर्क ढूंढने लगा। बिस्तर पे पड़े पड़े एक रात उसे लगा कि ये सब सरासर बेवकूफी है। कौन होगा जो इस तरह पूरा दिन एक जादुई शीशे के सामने खड़े खड़े गुज़ार देगा और उन दृश्यों को देखकर मुग्ध होता रहेगा, जो यथार्थ में कभी संभव ही नहीं हैं? असली जीवन में तो वह एक बेकार, बेज़ार और बेरोजगार आदमी है। शायद यही कारण है कि वह अपने अनुभव अपने परिवार तक को सुना नहीं पा रहा है। सुन कर सब खिल्ली उड़ाएंगे। उसे खुद पर शर्म आने लगी। डर लगने लगा कि उसके निठल्लेपन को तो ज़माना जानता है, अब बेवकूफी की भी चर्चा होगी।

अगले दिन कई विचित्र अनुभव हुए। आज दर्पण में उसने खुद को एक तपते रेगिस्तान में पाया। दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं देता। भूख-प्यास से बेहाल हो रहा था पर कोई उपाय नहीं। कुछ घुड़सवार दूर से दिखते भी तो आंखों से ओझल हो जाते। आज महल, मुलाजिम – सब गायब थे। ऋषिका की कोई खबर नहीं थी। बड़ी मुश्किल से उसने दिन गुज़ारा और शाम को जब सूरज ने आंखें खोलीं तो राहत की सांस ली। सारी कहानी जब सूरज को सुनाई, तो वह बोला सारे दिन एक से नहीं होते। संसार में ऊंच नीच तो होती है। नज़ारे फिर बदलेंगे, उसे आईना देखते रहना चाहिए।

अगला दिन पहले से भी बुरा गुज़रा। कल तो रेगिस्तान में ही भटकना पड़ा था, पर आज उसके सारे दुश्मन–रिश्तेदार,पड़ोस के लड़के, कॉलेज के अध्यापक, ऑफिस के बॉस–सारे उसके इर्द गिर्द खड़े होकर उसका मज़ाक उड़ा रहे थे,ताने दे रहे थे। पर अब बिस्तर पे लेटे लेटे राजा के मन में तर्क ने कल्पना को दबाना शुरू कर दिया था। उसे लगने लगा, ये जादुई आईना और कुछ नहीं, मेरी ही मनःस्थिति को दिखाता है।जब जब मैं ख्याली पुलाव पकाता हूं, यह मुझे सब्ज़बाग दिखाता है और जब भी मन नकारात्मक विचारों से भर जाता है, तो ये भी डरावने दृश्य सामने आने लगते है।

राजा को लगा, इस आईने ने उसे ज़िंदगी की सबसे बड़ी सीख दी है।आख़िर इतने बुरे तो कट नहीं रहे हैं मेरे दिन।परिवार है, रहने को घर है, दो वक्त की रोटी मिल जाती है।कितने लोग हैं दुनिया में, जिनके पास ये सब कुछ है? अनायास ही उसके मन में एक अभिमान का, एक उत्तरदायित्व का और एक दृढ़ निश्चय का आवेग उठा।

अगली सुबह सूरज फिर आया उसे लेने, पर राजा ने उसे कृतज्ञतापूर्वक गले लगाते हुए कहा–“करिश्मा तो हो चुका है सूरज, अब मुझे आईने की ज़रूरत नहीं है।“

विश्वनाथ अय्यर

दोहा,कतर

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