वसंत की नायिका

वसंत की नायिका

वह कहता है कि उसकी हसरतें अक्सर लज़्ज़ित हो जाती है जब ह्र्दयरूपी मंच में उसके प्रेम या इश्क़ को एक मर्यादित स्थान देने की बात करती हूँ।सिर्फ़ इतना कह की तुम्हारी सौम्यता कोई भी परिधि नही लाँघ सकती। उसकी पहले से ही सिकुड़ी आँखे थोड़ा और संकुचित हो जाती है मेरी साफ ब्यानगि से।फ़िर बातों ही बातों में मद्धम अट्टहास लेकर एक परिधि से हट एक गाली का प्रयोग करते हुए अपनी वेदना को छुपाने की भरसक कोशिश करता है।। “साले मिलोगे क्या?
औऱ मेरा बिंदास उत्तर”क्यों नहीं”
“जब तुम चाहो”
एक सौम्य मुस्कान उसके साधारण व्यक्तित्व को असाधारण बना देती है।
बातचीत में खुलता हुआ वह किरदार उम्र की इस दहलीज पर आकर ७० के इश्क़ के इंतज़ार मे…!!जहाँ मासूम सम्वेदनाएँ रह जाती है।स्पर्श हथेलियों की गर्माहट में आलिंगनबद्ध होकर एक दूजे में सुकूँ ढूँढता हैं।
जिस्म की गर्माहट कोई मायने नही रखती तब…!
सुनो तब तो तुम आओगी न मेरे समक्ष आँखो में सोलह साल सी नवयौवना की चमक लिए..!
मैं बेबाक़ हँसी सँग हो लेती हूँ उसकी बेलगाम हसरतों के सँग ताकि लज़्ज़ित न हो पाए वे मासूम हसरतें जो मुझ सँग हर किसी के दिल मे पनप आती है गाहे बगाहे..!!
ख्वाहिशों के शहर मे इनका आबाद होना लाजमी है।इन हसरतों को बस भटकन नही देनी।इन्हें मुक्त विचरण के लिए ह्रदय जंगल मे छोड़ देना बेहतर जहां यह स्वछंद औऱ स्वेच्छा से विचरण कर सके।मर्यादित अंधेरों के सँग खुलकर जी सके।
ख्वाहिशों के घोंसले में हसरतों की नन्ही चिड़ियों को हौसले के स्नेह औऱ अपनत्व के दानों से चुगते रहँगे तो यकीनन यह इश्क़ के परिंदे आसमाँ में श्वेत इश्क़ का पैग़ाम देंगे।औऱ हर मुँडेर पर एक पँख गिरेगा आबाद इश्क़ का यक़ीनन..!!
मन मुहल्ला हँसता रहे ..!!
अरे जवाब दो कहाँ खो गई तुम?
क्या मेरे सामने तुम आ पाओगी अब।यह जानते हुए की मेरी हसरतें बेक़ाबू होने की जिद्द करती है तुम सँग..!!
मै हँसकर कहती हूँ जरूर आऊँगी पता है क्यूँ?
हसरतों को बेक़ाबू की परिधि में रोक उसका सलीके से मंचन करने का हुनर बख़ूबी है मुझमें तुम आना ज़रूर आना।मेरी आँखों के दायरे से तुम आगे नही बढ़ पाओगे यह वादा है मेरा…!!

सुरेखा अग्रवाल
लखनऊ

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