महात्मा गाँधी और उनकी प्रासंगिकता

 

महात्मा गाँधी और उनकी प्रासंगिकता

 

 

परिचय..

मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को वर्तमान गुजरात राज्य के पोरबंदर जिले के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गाँधी एवं उनकी माता का नाम पुतलीबाई था। वे अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे।पिता ब्रिटिश राज में काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत के दीवान थे और माँ एक धार्मिक महिला। महात्मा गांधी का विवाह महज 13 साल की उम्र में कस्तूरबा गांधी के साथ हो गया था।गांधीजी के विचारों का मूल लक्ष्य सत्य एवं अहिंसा के माध्यम से विरोधियों का हृदय परिवर्तन करना है। अहिंसा का अर्थ ही होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी जी व्यक्तिगत जीवन से लेकर वैश्विक स्तर पर ‘मनसा वाचा कर्मणा’ अहिंसा के सिद्धांत का पालन करने पर बल देते थे।महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में बेहतर जाना जाता है क्योंकि उन्होंने ही हमें आजादी दिलाई थी।वे आधुनिक भारत के निर्माता थे।”महात्मा” की उपाधि उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर ने प्रदान की थी।”बापू” 6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस द्वारा महात्मा गांधी को दी गई उपाधि थी ।यह उपाधि गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी के निधन पर शोक के रूप में सिंगापुर रेडियो के माध्यम से उनके संबोधन पर दी गई थी।”बापू” शब्द “पिता” को संदर्भित करता है।

कार्य…

सबसे पहले गान्धी जी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना आरम्भ किया। 1915 में उनकी भारत वापसी हुई।उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, श्रमिकों और नगरीय श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में दरिद्रता से मुक्ति दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये लवण कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह किया और इसके बाद 1942 में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आन्दोलन से विशेष विख्याति प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें कारागृह में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन बिताया और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। 12 फरवरी वर्ष 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे |

चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा आंदोलन, रॉलेट ऐक्ट का विरोध, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, दलित आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में किए गए प्रमुख आंदोलन हैं और इन आंदोलन की मदद से देश को स्वतंत्रता हासिल हुई है। बापू न सिर्फ पिछड़ी पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अपनी विचारधारा की वजह से एक सच्ची प्रेरणा हैं। बापू ने यह सीख दी है कि अहिंसा, सत्य, और सहिष्णुता समाज कल्याण के सबसे बड़े हथियार हैं।

सिद्धांत..

इस स्वतंत्रता दिवस पर देश की आजादी को 75 साल पूरे रहे हैं। देश की आजादी में कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपना योगदान दिया है। तिलक से नेहरू तक, लक्ष्मी बाई से भगत सिंह तक, सभी ने आजादी के आंदोलन को आगे बढ़ाया। राष्ट्रपति महात्मा गांधी के आंदोलनों को कौन भूल सकता है।सत्य और अहिंसा के प्रति उनके अनूठे प्रयोग उन्हें दुनिया का सबसे अनूठा व्यक्ति साबित करते हैं।

असहयोग आंदोलन

अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला हत्याकांड के बाद देश में गुस्सा था। अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। अगस्त, 1920को महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन की घोषणा की गई। छात्रों ने स्कूल-कॉलेज जाना बंद कर दिया। मजदूर हड़ताल पर चले गए। अदालतों में वकील आना बंद हो गए। शहरों से लेकर गांव देहात में आंदोलन का असर दिखाई देने लगा।1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन के दौरान यह पहली बार हुआ जब अंग्रेजी राज की नींव हिल गई। पूरा आंदोलन अहिंसात्मक तौर पर चल रहा था। इसी बीच फरवरी 1922 में गोरखपुर के चौरी-चौरा में भीड़ ने एक पुलिस थाने पर हमला कर दिया। भीड़ ने थाने में आग लगा दी।इस कांड में कई पुलिसवाले मार गए।आंदोलन में हुई इस हिंसा से आहत गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की।

नमक सत्याग्रह 

असहयोग आंदोलन के करीब आठ साल बाद महात्मा गांधी ने एक और आंदोलन किया। इस आंदोलन से अंग्रेज सरकार हिल गई। महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 को अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिन का पैदल मार्च निकाला। इस मार्च को दांडी मार्च, नमक सत्याग्रह और दांडी सत्याग्रह के रूप में इतिहास में जगह मिली।1930 में अंग्रेजों ने नमक पर कर लगा दिया था। महात्मा गांधी ने इस कानून के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया।12 मार्च को शुरू हुआ ये ऐतिहासिक मार्च 6 अप्रैल 1930 को खत्म हुआ।एक साल चले आंदोलन के दौरान कई नेता गिरफ्तार हुए। अंग्रेज इस आंदोलन से घबरा गए। आखिरकार 1931 को गांधी-इरविन के बीच हुए समझौते के बाद आंदोलन वापस हुआ और अंग्रेजों की दमकारी नमक नीति वापस ली गई।

दलित आंदोलन 

महात्मा गांधी जी ने 8 मई 1933 से छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की थी। इस दौरान महात्मा गांधी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया। इस उपवास के साथ एक साल लंबे अभियान की शुरुआत हुई। उपवास के दौरान गांधी जी ने कहा था- ‘या तो छुआछूत को जड़ से समाप्त करो या मुझे अपने बीच से हटा दो।’ इससे पहले 1932 में गांधी जी ने अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग की स्थापना की थी। दलित समुदाय के लिए ‘हरिजन’ नाम भी महात्मा गांधी ने दिया था। गांधी जी ने ‘हरिजन’ नामक साप्ताहिक पत्र का भी प्रकाशन किया था।

 

भारत छोड़ो आंदोलन 

अगस्त 1942 में गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत की। मुंबई में हुई रैली में गांधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। आंदोलन शुरू होते ही अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों पर जमकर कहर ढाया। गांधी समेत कई बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। इस आंदोलन ने दूसरे विश्व युद्ध में उलझी ब्रिटिश सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी। अंग्रेजों को आंदोलन खत्म करने में एक साल से ज्यादा का समय लग गया। यह भारत की आजादी में सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन था।

चंपारण सत्याग्रह

चंपारण सत्याग्रह भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन था,जो बिहार के चंपारण जिले से महात्मा गांधी की अगुवाई में 1917 को शुरू हुआ था। इस आंदोलन के माध्यम से महात्मा गांधी ने लोगों में जन्मे विरोध को सत्याग्रह के माध्यम से लागू करने का पहला प्रयास किया,जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम जनता के अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित था।

प्रासंगिकता…

बापू सभी पीढ़ियों के लिए अपनी विचारधारा की वजह से एक सच्ची प्रेरणा हैं। बापू की सीख- अहिंसा, सत्य, और सहिष्णुता समाज कल्याण के सबसे बड़े हथियार हैं।गांधीजी के विचारों का मूल लक्ष्य सत्य एवं अहिंसा के माध्यम से विरोधियों का हृदय परिवर्तन करना है। अहिंसा का अर्थ ही होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा।

सहिष्णुता,समझौता और अहिंसा के उनके विचार दुनिया में नफरत, आतंकवाद और नस्लीय और धार्मिक संघर्षों के वर्तमान सामाजिक संकट के लिए एक शमन के रूप में काम कर सकते हैं। एक ऐसी दुनिया में जो हिंसा और आतंकवाद से पीड़ित युद्ध के चरणों से गुजर रही है,पिछले दिनों की तुलना में आज अहिंसा के गांधीवादी विचार की अत्यधिक आवश्यकता है।गांधीजी ने कहा था, “अहिंसा मानव जाति के विकास में सबसे बड़ी ताकत है। यह मनुष्यता के विनाश के सबसे शक्तिशाली हथियार से भी अधिक शक्तिशाली है”।यह सिद्ध है कि वैश्विक आशंका और इसके बारे में बहस के बावजूद, मानव जाति की आखिरी उम्मीद गांधीजी ही हैं।एक सामाजिक वैज्ञानिक की तरह गांधीजी अत्यधिक प्रयोग उन्मुख थे। उनका उद्देश्य सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक या अन्य हर समस्या को सामने लाना था।

एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, एक दार्शनिक के रूप में, एक नैतिकतावादी के रूप में, एक अध्यात्मवादी के रूप में और सबसे ऊपर सत्य के अभ्यासी के रूप में, महात्मा न केवल आज के लिए बल्कि कल के लिए भी प्रासंगिक हैं। वैश्विक स्तर पर,जब हिंसा की निंदा की जा रही है,धार्मिक कट्टरवाद की भर्त्सना की जा रही है, उच्च तकनीक अपनी उच्च प्रोफ़ाइल के साथ भी दुनिया के लाखों लोगों की भीड़ की समस्या को हल करने वाली नहीं है, गांधीवाद की मानवता ही सबके अस्तित्व की एकमात्र आशा है।उनका धर्म विभिन्न धर्मों के लोगों को एकजुट करता है और उन्हें वैज्ञानिक बनाता है। अगर हमें आज की दुनिया को तबाही से बचाना है, तो एक ही रास्ता है और वह सार्वभौमिक धर्म का अभ्यास करने का गांधीवादी तरीका,जो पृथ्वी पर शांति, और सद्भाव के युग की शुरुआत करेगा।अब पाश्चात्य चिंतक भी राजनीति में नैतिक मूल्यों की बात करने लगे हैं,जबकि गांधीजी की नीतियों में शुरू से ही नैतिकता का बोलबाला था और इसलिए उनका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सत्य और अहिंसा के दो शस्त्रों से लड़ा जाना था,जो अंततः एक आंदोलन बन गया और उन्होंने इसे सत्याग्रह कहा।

गांधीजी का ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी दृढ़ विश्वास था।इसलिए उन्होंने किसानों के लिए अपना प्रसिद्ध “रचनात्मक कार्यक्रम” तैयार किया। वे कुटीर उद्योगों के प्रखर भविष्यवक्ता थे।गांधीजी एक नए समाज का निर्माण करना चाहते थे,जिसका उद्देश्य मानव व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है।

निष्कर्ष..

ऐसे समय में जब दर्शन और सामाजिक क्षेत्र में विचारक पूर्वी विरासत और पश्चिमी विचारों का जायजा लेने की कोशिश कर रहे हैं, गांधीजी पूर्व और पश्चिम के संयोजन के प्रतीक के रूप में खड़े हैं।लगभग 60 साल की शहादत के बाद गांधी अब वैश्विक स्तर पर पहले से ज्यादा प्रासंगिक हैं। विशेष रूप से, 2001 के 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद, गांधी को अधिक श्रद्धा के साथ याद किया जाता है।समय की आवश्यकता है कि अपने कर्मों, कार्यों और विचारों में गाँधीजी के विचारों को अमल में लाया जाए।

अर्चना अनुप्रिया

दिल्ली,भारत

 

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