ममता जी को नमन 

 

ममता जी को नमन 

ममता कालिया जी की कहानियाँ पढ़कर हम सब आप बड़े हुए।ममता जी ने साहित्य की समझ विरासत में पाई। अपने अतंस की तिजोरी से बड़ी ही सजगता व सरलता से जीवन की रफ्तार से कुछ मखमली, और हकीकत से जुड़े लम्हें एक कहानी के कथानक में गढ़कर पेश करती है।कई बार जीवन के अनछुए पहलुओं को बखूबी दिल की गहराइयों तक छू जाती है।

ममता कालिया जी प्रसिद्ध भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी,नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति कुछ अलहदा पहचान रखती है। उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है।

ममता जी के भीतर समुन्दर सी गहराई है ज़िन्दगी को देखने का अलग नजरिया है।

जीवन के सारे रंग शब्दों से भरना भी खूब आता है। और शायद इसी विशेषता का परिणाम है कि स्त्री मन, उसकी व्यथा-कथा, परिवेश, उसके स्वप्न, उसकी दौड़, कल्पनाओं से पटा हुआ जगत तो उसकी सफलता, उसका प्रेम, उसकी प्रतीक्षा, उसके प्रश्न, उसकी उड़ान, उसकी यात्रा आदि सबकुछ है।

मैं समीक्षक तो नहीं हूँ फिर भी ममता जी की लेखनी की मुरीद हूँ। साहित्यिक रसिक की तरह उन्हें पढ़ना दिल को छू लेने वाला होता है।उनकी कहानियों के पात्रों के साथ एक आत्मीय गठबंधन हो जाता है। अलहदा आनन्द का अनुभव होता है। आपकी शब्द रचना और उसमें समाहित देश-समाज काल-परिस्थितिजन्य उठे भावों को , उनसे प्राप्त अनुभवों को अपने जीवन के इर्द-गिर्द पाठक महसूस करते हैं।

मेरे लिए पुस्तकें सदैव विशेष रही हैं। इत्मीनान से पढ़ने का रस पुस्तकों में ही प्राप्त होता हैं। आपकी कहानियों में स्त्री मन, उसकी व्यथा-कथा, परिवेश, उसके स्वप्न, उसकी दौड़, कल्पनाओं से पटा हुआ जगत तो उसकी सफलता, उसका प्रेम, उसकी प्रतीक्षा, उसके प्रश्न, उसकी उड़ान, उसकी यात्रा आदि सबकुछ होता है । ममता जी का लेखन निस्संदेह चाव से पढ़ना आंनद की अनुभूति देता है। पाठक उसमें डूब जाता है। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति कुछ अलहदा पहचान रखती है। अविरल, अनवरत अभी भी लेखन में बखूबी लगी हुई है। मेरी लेखनी है कि ममता जी के संग बहती ही जा रही है।सादर नमन आपको और आपकी लेखनी को।

शिखा पोरवाल

वैनकुंवर,कनाड़ा

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