गुजरात की नवरात्रि

गुजरात की नवरात्रि

गुजरात की नवरात्रि का सबसे प्रमुख आकर्षण होता है गरबा नृत्य या डाँडिया नृत्य। भारत के अधिकतर राज्यों में मूर्ति पूजा का चलन है लेकिन गुजरात में मूर्ति पूजा की जगह खुले आसमान के नीचे माँ की तस्वीर लगा कर उसकी चारों तरफ झूम कर गरबा नृत्य करके नवरात्रि मनाने की परंपरा है।गरबा दरअसल नृत्य का नाम नहीं है जैसा कि आमतौर पर लोग समझते हैं, बल्कि माँ दुर्गा की तस्वीर के आगे रखे उस छिद्रयुक्त घट को गरबा कहा जाता है,जिसमें दीपक जलता रहता है।उसी की चारों ओर घूम-घूमकर लोग नृत्य करते हैं।चूँकि यह पारंपरिक नृत्य हर खुशी और हर त्योहार पर करने का रिवाज है,इसीलिए कालांतर में इसे गरबा नृत्य कहा जाने लगा है। स्त्री, पुरुष, बच्चे,बुजुर्ग- सभी एक साथ मिलकर अपने नृत्य से माँ की आराधना करते हैं। रंग-बिरंगे परिधान और भाँति-भाँति के आभूषणों से सुसज्जित आकर्षक चनिया चोली में लड़कियाँ और महिलाएँ, पारंपरिक वेशभूषा में लड़के, मर्द और बच्चे सिर पर रंगीन पगड़ी बाँधे माँ की भक्ति में लीन होकर एक अनुशसित गोलाई में घूमकर गाने गाते हुए नृत्य करते हैं। उनके नृत्य करने का अंदाज बहुत ही सुखद और निराला होता है।मजे की बात यह है कि रात भर नृत्य करने के बाद भी सुबह सभी स्कूल, कॉलेज और ऑफिस का कार्य बखूबी करते हैं और पुनः अगली रात के नृत्य में झूमते हैं। मैं बिहार की रहने वाली हूँ, जहाँ मूर्ति पूजा और दुर्गा पाठ का ज्यादा प्रचलन है और इस व्रत पूजन के लिए स्कूलों और कॉलेजों में दशहरे की छुट्टियाँ भी होती हैं परन्तु, गुजरात में नवरात्रि के समय कभी स्कूल या कॉलेज बंद होते नहीं देखा….हाँ, विजयदशमी के दिन की छुट्टी अवश्य होती है।

नवरात्रि आरंभ होने के महीने भर पहले से ही बाजारों में नवरात्रि की तैयारियों की रौनक शुरू हो जाती है।हर दुकान के आगे,सड़कों के किनारे दोनों तरफ,और जगह जगह लगे सेल के टेन्टों में गुजराती पारंपरिक परिधान की खरीद-बिक्री होने लगती है,मिट्टी से बने कई छिद्रों वाले आकर्षक रंग बिरंगे घट अर्थात गरबा सड़कों के किनारों पर बेचते हुए देखे जा सकते हैं और बड़े-छोटे मैदान आकर्षक सजावट और रंग-बिरंगी लाईट्स से सजने लग जाते हैं।गुजरात के लोग स्वयं को व्रत के नियमों में बाँधकर भी तरह तरह के व्रतीय व्यंजनों से त्योहार का भरपूर आनंद उठाते हैं।वहाँ बाजारों में भी व्रत में खाये जाने वाले भजिए(पकौड़े),दोसा,कटलेट,सैंडविच, पोहा आदि मिलेंगे।अच्छी बात यह है कि आप बेफिक्र होकर बाहर भी खा-पी सकते हैं क्योंकि व्यंजनों में व्रत की पवित्रता का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है।

पहले दिन से ही खुले प्रांगण में जगह-जगह पर माँ की पूजा,आरती ओर गरबा के नृत्य आरंभ हो जाते हैं, जो देर रात तक चलते हैं।बड़ा अच्छा लगता है यह देखकर कि बच्चे, बुजुर्ग,स्त्री,पुरुष, हर तबके के, हर जाति के,हर धर्म के लोग सज-धज कर खुले प्रांगण में एक साथ माँ के समक्ष नृत्य करते हैं।ऐसे में वास्तविक गहनों से लदी अकेली लड़कियों को सुरक्षित आते-जाते देखकर सचमुच ह्रदय खिल उठता है।जहाँ स्त्रियों की सुरक्षा इतने प्रश्नों के घेरे में रहती है,वहीं गुजरात में लड़कियों को इस तरह सुरक्षित,प्रसन्न और स्वतंत्र देखकर दुर्गा माँ भी कितनी आनंदित होती होंगी न?


गुजरात में नवरात्र के दौरान पंडाल या मूर्ति स्थापना का रिवाज बिल्कुल नहीं है परन्तु हाल के दिनों में वहाँ बसे दूसरे प्रान्तों के लोग कुछ जगहों पर मूर्ति की स्थापना करने लगे हैं।यहाँ लोग खुले आसमान के नीचे गरबा खेलते हैं। इसलिए, सोसायटी या फिर गरबा खेले जाने वाली जगहों पर भी माँ की मूर्ति नहीं, बल्क‍ि तस्वीर ही रखी जाती है।आकर्षक ढ़ंग से सजे प्रांगण के बीचोंबीच माँ की बड़ी सी तस्वीर रखी जाती है,जिसके आगे दीपयुक्त गरबा रखा जाता है।नवरात्र के पहले दिन ही माँ अम्बा की आराधना के साथ-साथ मिट्टी की मटकी, जिस में छोटे-छोटे छेद होते हैं, उस में अखंड दीये के साथ माँ की स्थापना कर दी जाती है।यह छिद्र युक्त घट ब्रह्मांड का प्रतीक है जिसके अंदर माँ की ईश्वरीय ज्योति जलती रहती है।विभिन्न छिद्रों से निकलने वाला प्रकाश माँ के आशीर्वाद का स्वरूप माना जाता है, जो हर तरफ फैलकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है। नवरात्र के नौ दिनों के दौरान इसी गरबा की पूजा की जाती है,माँ के आशीर्वाद को ग्रहण किया जाता है और पारंपरिक नृत्य के जरिये माँ को प्रसन्न करने की चेष्टा की जाती है। हर दिन आरती की जाती है और दशहरे के दिन माँ की विदाई होती है।घरों के अंदर भी मिट्टी के गरबे के जरिये देवी की स्थापना होती है।वहीं मंदिरों में माँ के स्थापना के तौर पर बड़ी मिट्टी की मटकी रखी जाती है, जिसके नीचे गेहूँ, बाजरा और धान के दाने डाले जाते हैं।इन अनाजों में पानी दिया जाता है और फिर धीरे-धीरे इनमें से अंकुर निकलना शुरू हो जाता है। नवरात्र के नौ दिनों के दौरान ये सभी छोट-छोटे पौधों का रूप ले लेते हैं।गुजरात में लोग इन्हें अपनी अलमारियों में शगुन और माँ के आर्शीवाद के तौर पर रखते हैं।कई जगह लोग डाँडिया भी खेलते हैं।गरबा नृत्य और डाँडिया में मूल अंतर यह है कि डाँडिया में सबके हाथों में एक छोटी सी सजी सजायी बाँसुरी के आकार की डंडी होती है,जिसे लोग अपने आगे-पीछे या सामने वाले की डंडी से नृत्य करते हुए टकराते हैं और फिर अपनी जगह पर एक चक्कर घूमकर आगे बढ़ते हैं, जबकि गरबा नृत्य में हाथों में कुछ नहीं लिया जाता और हाथों से ताली देते हुए नृत्य किया जाता है।बड़े ही अनुशासन और ताल मेल के साथ मृदंग की थाप पर यह नृत्य चलता है,जो देखने में अत्यंत ही लुभावना लगता है।आजकल नयी धुनों पर तेजी के साथ डिस्को डाँडिया खेलने का रिवाज चल पड़ा है,जो पारंपरिक गरबे से काफी अलग होता है परन्तु,आजकल के बच्चों में यह बहुत लोकप्रिय हो गया है और देश के दूसरे प्रान्तों में भी किया जाने लगा है।

हर दिन डाँडिया शुरू करने से पहले सभी लोग माँ की आरती करते हैं और फिर गरबा या डाँडिया समाप्त होने पर भी दुबारा आरती होती है। यह आरती भी बहुत अद्भुत होती है।प्रांगण में चाहे कितने भी लोग हों, सभी को एक कटोरीनुमा आरती जलाकर दी जाती है और सभी एक साथ मृदंग के धुनों पर आरती करते हैं।सबकुछ इतने व्यवस्थित तरीके से होता है कि देखने में बहुत ही सुखद और सुन्दर लगता है।

गुजरात में आज भी ये परंपरा है कि यहाँ गाँवों में रात के वक्त महिलाएँ मिट्टी के गरबे, जो अपने घर में स्थापित करती हैं, उसे सिर पर लेकर गरबा के ताल पर झुमती हैं। माना जाता है कि जब सिर पर मिट्टी का गरबा होता है तो देवी माँ खुद आप के साथ झूमने आती हैं।

विजयदशमी के रोज सुबह में अस्त्रों-शस्त्रों की पूजा की जाती है और माँ दुर्गा से विजय का आशीर्वाद माँगा जाता है।संध्या के समय जगह-जगह रामलीला और रावण दहन का कार्यक्रम होता है।इस दिन खास गुजराती व्यंजन जलेबी और फाफड़ा खाने का रिवाज है।गुजरात में यह कहा जाता है कि फाफड़ा,जो बेसन से बना व्यंजन है,हनुमान जी को बहुत प्रिय है और जलेबी श्री रामचंद्र जी की पसंदीदा मिठाई है।इसीलिए, उन दोनों के विजय दिवस को याद करते हुए दशहरे के दिन जलेबी फाफड़ा जरूर खाना चाहिए।इससे श्री राम ओर हनुमान जी दोनों प्रसन्न होते हैं।

वक्त के साथ गरबा के तरीकों में भी बदलाव आ रहा है। आज के युवा परंपरा के साथ-साथ आधुनिकता का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। नवरात्रि की पारंपरिक डाँडिया को वेस्टर्न स्टाइल की डाँडिया के साथ मिक्स किया जा रहा है।कई बार मौज मस्ती के चक्कर में भक्ति भाव और पूजा-अराधना अच्छी तरह नहीं हो पाती।इस विषय में नयी पीढ़ी को सोचना चाहिए ताकि नृत्य गान के साथ माँ की अराधना की प्रधानता बनी रहे।अद्भुत गरबा के साथ रंग रंगीले गुजरात की अनोखी नवरात्रि सचमुच मन मोहने वाली है।

जय जय गरबी गुजरात..

अर्चना अनुप्रिया।

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