राजी

राजी “पानी! पानी!”अपने ही शब्द लौट कर उस तक पहुँच जाते हैं।तेज बुखार से देह तप रही है,गला सूख गया,आँखें जल रही हैं।सिर दर्द से फटा जा रहा है।अपने ही हाथ से सिर दबाकर कर कुछ आराम पाने की नाकाम कोशिश की। तीन दिनों से उसकी यही हालत है। डिस्पेंसरी भी तो नहीं जा सकती।…

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इसोफ़ेगस

इसोफ़ेगस   रात की पार्टी के बाद शिखा बेसुध पड़ी थी, बार्नेट अस्पताल के इमर्जेन्सी वार्ड की कुर्सी में। एक्यूट डीहाइड्रेशन। फिंचली मेमोरियल अस्पताल के वॉक-इन-सेंटर में नर्स ने शुरुआती जाँच-पड़ताल में ही अमित से कह दिया था, “शरीर पानी भी नहीं रोक पा रहा है, फ़्लूइड चढ़ाना होगा – बार्नेट के आपातकालीन वार्ड में…

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सोपान

सोपान  ऑफिस के एक बड़े से हॉल में गोविंद नारायण जी के सेवानिवृत्ति उपरांत विदाई समारोह का आयोजन किया गया था। वह आयुक्त के पद पर कार्यरत थे।साथ में उनकी धर्मपत्नी मालती जी भी आमंत्रित थी । गोविन्द जी अपने सेवाकाल में बेहद ईमानदार एवं कर्मठ ऑफिसर रहे थे । वे अपने से छोटे कर्मचारियों…

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तुम सक्षम हो माही!

तुम सक्षम हो माही!   दिन बीतते चले जाते हैं कई दफा यूँ ,जैसे सिर्फ घड़ी की सुईयां सरक रहीं हैं अपनी नियति के अनुसार .. पर वक़्त थम गया है कहीं पर और आपका मन मस्तिष्क भी, एक अजीब सी नीरवता चारों ओर संलिप्त है इसीलिए बहुत कुछ घटित होता रहता है आपके आसपास,…

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हिम्मत की ईंट

हिम्मत की ईंट इस वर्ष बारिश भी कितनी हो रही है । बूँदों के सारे खजाने लुटाने का इरादा लगता है मेघों का ,परन्तु बदले तेवर का क्या अर्थ। सौम्य के अलावा प्रचण्ड रूप का भी दिग्दर्शन हो रहा है -अविरल शक्तिप्रदर्शन , मानो जनजीवन के भयादोहन करने का विषम आनंद लूटना चाह रहे हों…

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बेबसी

बेबसी शहर से दूर केंद्रीय जेल के ठीक सामने एक बहुत बड़ा मैदान था। मैदान के चारों तरफ पेड़ होने के कारण सुबह और शाम टहलने वाले लोगों के झुंड से यह जगह गुलजार रहा करता था। आज चुनाव का रिजल्ट आने वाला था। जिसके कारण रिटायर लोगों की टहलने वाली मंडली में जोरदार चर्चा…

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उचित सहयोग

उचित सहयोग   जब से संदीप को पैरालिटिक अटैक आया था और उसका कामकाज बंद सा ही हो गया था, तब से परिवार की आर्थिक स्थिति डवाँडोल रहने लगी थी। वैसे तो उसकी पत्नी काजल बहुत ही समझदार और संतुलित महिला थी, हिसाब किताब से घर चलाना उसे आता था, किसी से सहयोग लेना भी…

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मनिहारिन 

मनिहारिन    रंग बिरंगी चूड़ियां किसे सम्मोहित नहीं करती । चाहे छोटी सी बच्ची हो,चाहे नवयौवना हो या फिर वो वैधव्य की अवस्था हो जिसमें समाज के द्वारा चूड़ियां पहनना निषिद्ध होता है, किन्तु चूड़ियों का आकर्षण कम नहीं होता। उनकी छनछन से तो बड़े बड़े विश्वामित्र सरीखे पुरुषों का ध्यान भी भंग हो जाता…

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