आया नया साल है/कैसे मैं कहूं आजाद वतन

 

 

 

 

आया नया साल है

आओ जरा झूमें गाएं आया नया साल है।

खो गया है नेह राग ये बड़ा सवाल है,

प्रीत जरा बांटिए जनता बेहाल है।

द्वेष जरा छांटिए समाज का ये काल है,

आओ जरा झुमें गाएं आया नया साल है।

 

कविता ही कामिनी को विषय बनाइए,

दामिनी को विषय बनाया तो बवाल है।

शुभ शुभ नया साल ऐसे ही मनाइए,

वैसे जो मनाए फिर आगे बुरा हाल है।

 

नित नित एकता का गीत जरा गाइए,

मियां रसखान या कबीर का सुनाइए।

फिर देखें देश ये निहाल ही निहाल है,

आओ जरा झूमें गाएं आया नया साल है।

 

कैसे मैं कहूं आजाद वतन

जहाँ हरण होती हरपल सीता,

जहाँ क्षरण होती पल-पल नैतिकता,

जहाँ मातृभूमि है कण-कण भीता,

जहाँ भयभीत है नीलाभ गगन,

कैसे मैं कहूँ आज़ाद वतन

 

जहाँ सृष्टा वस्तु भोग्य बनी,

जहाँ लज्जा कौतुक-योग्य बनी,

है नहीं, यहाँ वो चक्रधर

हर जगह बस्ते दुःशासन

करते हर पल चीर हरण,

कैसे मैं कहूँ आज़ाद वतन

 

जहाँ बिकती शिक्षा नोटों में,

जहाँ बिकती जनता वोटों में,

उस देश का भावी क्या होगा,

जहाँ करते हैं सब लोग गबन,

कैसे मैं कहूँ आज़ाद वतन

 

घर लूट फिरंगी लौट चले,

अपने अब घर को लूट चले,

और जनता का दम घोंट चले,

फिर कैसे हो खुशहाल चमन,

कैसे मैं कहूँ आज़ाद वतन

 

डॉ विनीता कुमारी

पटना,बिहार

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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