छठ पूजा विशेषांक

छठ पर्व : भावनाओं का ज्वार

पवित्र कार्तिक मास आते ही वातावरण ज्योतिर्मय होने लगता है… शक्तिदायिनी माँ दुर्गा के आगमन के बाद से ही मातृ शक्ति का एक प्रवाह मन की भावनाओ को झंकृत करने लगता है … बंगाल की कोजागरी लक्खी पूजा, काली पूजा, जगद्धात्री पूजा तो अन्य स्थानों पर धन की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाने की परम्परा है। इन्हीं सब पूजाओं के बीच बिहार की छठ पूजा आती है, जिसकी आस्था ने राज्य ही नहीं देश की सीमा भी पार कर ली है। चार दिनों तक चलने वाली इस पूजा में सम्पूर्ण विश्व को उर्जायमान रखने वाले सूर्य की पूजा दोनों रूपों में की जाती है… उदित होते सूर्य एवं अस्त होते सूर्य.. जीवन चक्र के दोनों पहलू पूजनीय हैं , चाहे वो उत्थान हो या पतन। दोनों ही एक दूसरे की महत्ता बढाते हैं और हमें याद दिलाते हैं कि रौशनी की ओर बढ़ना और रौशनी से दूर होना, दोनों ही हमारे जीवन का हिस्सा हैं।
छठ मईया, सन्तान के लिये उन्नतिकारिणी, जीवनदायिनी है, यह आस्था हर बिहारी के अंतर्मन मे बसी हुई है और यही कारण है कि इस पर्व के साथ लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं। शायद ही कोई ऐसा बिहारी होगा जिसे ठेकुआ प्रसाद से, छठ के गीतों से, सूप से, दौरा से गहरा अपनापन और भावनात्मक लगाव नहीं होगा।
इस पर्व की सरलता और प्रकृति से जुड़ा होना भी इसे जन जन से जोड़ता है। छठ पर्व में छोटे ग्रामीण फल , कन्द मूल सभी की महत्ता बढ़ जाती है, सभी सूर्य देव को अर्पित किये जाते हैं।बाँस के हाथों से बीने गए दउरा और सूप, मिट्टी के बने बर्तन, दीप, कोशी भरने को बने मिट्टी के हाथी और ढकनी छोटे छोटे कामगारों और कुम्हारों को इस पर्व से जोड़ कर उन्हें विशेष बना देते हैं।
इस पर्व में ना तो कोई पुरोहित होता है, न कोई विशेष ज्ञान और मन्त्र, होती है तो सिर्फ श्रद्धा और भक्ति। भक्त, भगवान और भावनाएं यही इस पर्व के मुख्य संचालक हैं।
छठ पर्व ऊँच नीच, ज्ञानी अज्ञानी, अमीर गरीब, स्त्री पुरुष, देश विदेश यहाँ तक कि कई बार धर्म की सीमाओं से भी परे है। सबके लिये समान नियम हैं । यदि पालन करना है तो सिर्फ़ स्वच्छता और पवित्रता । व्रत नहीं रखने वाले लोग भी पूरी निष्ठा के साथ इस पर्व से जुड़े होते हैं।
छठ पर्व के साथ तरंगित होती हैं परम्पराएँ, सामाजिक और पारिवारिक भावनाएँ, सन्तान के स्वास्थ्य और उन्नति की कामनाएं। इसीलिये छठ पर्व हृदय से जुड़ा है, जो पूरे वातावरण को तरंगित कर ऊर्जामय कर देता है। यह भावनाप्रधान त्योहार है जो रिश्तों को चेतना प्रदान करता है।

डॉ निधि श्रीवास्तव
मनोवैज्ञानिक.
प्रधानाध्यापिका,
विवेकानन्द इंटरनेशनल स्कूल
मानगो, जमशेदपुर

 

उग हे सुरुज देव!!!!

एहि सूर्यमृ सहस्राशो तेजो राशे जगत्पते:
अनुकम्प्य माम् भक्त्या ,गृहाण अर्ध्य् दिवाकर: ।

हे जगत पिता सूर्य,सहस्र तेजोमयी किरणों से अलंकृत,मुझ आकिंचन भक्त पर अपनी कृपा करिए, मेरे द्वारा श्रद्धापूर्वक दिए गए अर्ध्य को स्वीकार करें।

सूर्य जगत पिता हैं,तेज,ओज, और प्रकाश के स्वामी हैं,प्रकृति की महानतम शक्ति के रुप में उनकी पूजा की जाती है,, संपूर्ण विश्व की उर्ज्वसिता और गतिशीलता के परिचायक सूर्य की पूजा सदियों पुरानी है,,शायद तब से,जब मानव ने पहली बार निरभ्र आकाश में जगमगाते शक्ति और आलोक के विशाल पुंज को देखा होगा, पहले भय और फिर उत्सुकता ने जन्म लिया होगा,,उसी परंपरा में समय के अंतराल में सूर्य, शक्ति,ओज,साहस, आरोग्य,गति,मति, वृद्धि और आस्था के प्रतीक बन गये,,आस्था और विश्वास का यह विरल प्रवाह लोकरंजना और लोक कल्याण के पर्व छठ की अवधारणा के रुप में दिखाई देता है,,

यह महान पर्व षष्ठी तिथि को मनाया जाता है अतः इसे छठी, या स्त्रीलिग संबोधन में*छठी मैया*के रुप में जाना जाने लगा,,यह छठ पर्व ग्राम शहर महानगर की सीमाओं को लांघ कर अब तो विदेशों में भी भारतीयों के द्वारा पूजित है, प्रचलित है,, पुराणों में कथा है कि कृष्ण के पौत्र साम्ब को कुष्ठ हो जाने पर उसके शमन के लिए सूर्य पूजक मग ब्राह्मणों को बुलाया गया था, उन्होंने सूर्य पूजा और उसके विविध अनुष्ठानों से प्राप्त उर्जा से साम्ब को स्वस्थ कर दिया था,,ये मग ब्राह्मणों की आस्था भी थी जिसने भगवान सूर्य की शक्ति से विश्व को परिचित कराया,,तब से हर शोक ,रोग ,कष्ट, संतान और सुख की प्राप्ति के लिए छठ पूजा यानि सूर्य पूजा की परंपरा मूलतः बिहार एवं उत्तर प्रदेश से चल कर अब भारत के प्रत्येक क्षेत्र का अंग बन गई है,,

यह पर्व मुख्य रुप से चार दिनों का कठिन अनुष्ठान है जिसमें शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है, सबसे पहला दिन नहाय खाय का है जब व्रत करने वाली सौभाग्य वती स्त्री पवित्र स्नान करने के बाद शुद्ध और पवित्र भोजन ग्रहण करती हैं, दिन भर उपवास कर के शाम को केले के पत्ते पर छठी मैया को भोग अर्पण किया जाता है,खीर और रोटी इस दिन का मुख्य प्रसाद है,जिसे मिट्टी के बने चूल्हे पर गाय के दूध और गुड़ से व्रती स्वयम् बनाती है,, दूसरे दिन सूर्यास्त के सूर्य को अर्घ्य देने और नमन करने की परंपरा है,नदी के जल में खड़े होकर बास के बने हुए सूप में सभी उपलब्ध फलों, और गुड़ आटे और घी से बनी मिठाई जिसे लोक परंपरा में ठेकुआ कहते हैं, धूप दीप के साथ चढाया जाता है,,, और जल अथवा दूध से अर्ध्य देते हैं,, सुदूर स्थानों से चल कर महिलाएं बच्चे बूढ़े व्रती स्त्रिया सभी नदी तालाब की ओर प्रस्थान कर ते है,,आस्था और विश्वास का यह उमड़ता हुआ सैलाब,भक्ति के भाव सागर में डुबकियां लगा रहा होता है,, कहीं कोई थकान नहीं,,बस सबकी एक ही मंजिल,, छठी मैया को अरघ देना है, दर्शन करना है,, सिर पर डाला,को उठाए कतारबद्ध चलते हुए लोग **काचहि बास के बहगिया ,बहगी लचकत जाय,ई बहगी केकरा के जैहे,,ई सुरूज देव के जाए**गीत की स्वर लहरियां वातावरण में गूंजती है,विश्वास की जड़ें और गहरी होती जाती हैं,,, एक अपूर्व मेले जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है, जुड़े हुए हाथों और भींगे मन में बस एक ही प्रार्थना—

जागो आदित्यनाथ
जागो हे भुवन दीप
मन की आशाओं में ,
स्वर्ण किरन बन बरसों
धूमिल हों दुःख और निराशा के अंध तिमिर
अश्रु भरी आँखों में
दुखियारे आंगन में
सुख की दुनिया रच दो ,
जागो हे दीप्ति शिखर जागो हे किरण पुंज
बंझिन को पुत्र दो,
ममता का दान लिए,
फैले हैं आंचल के ओर छोर ,
भर दो झोली खाली
सबको वरदान मिले
जागो हे ज्योतिर्मय,
जागो अब दीनानाथ

छठ पर्व का दूसरा दिन -सृष्टि के साक्षात् देवता उदीयमान सूर्य को नमन करने के साथ ही लोक आस्था के महान उत्सव का समापन —”उगिह सुरुज देव -अरघ के बेर ‘गीत की मधुरता मन को छू जाती है, प्रकृति के शक्ति पुंज भगवान भास्कर की पूजा का पवित्र पर्व छठ -आस्था, विश्वास ,भाव भरी मान्यताओं का अनूठा सांस्कृतिक उत्सव ,,,,संवेदनाओं के सलिल प्रवाह में छलकते मन के आंसू और सूने घर आँगन में चहकते बचपन की कामनाएं हैं तो कहीं जीवन,तन ,मन,के अंधकार को दूर कर खुशियों के उजाले की चाह,,,,सबकी आशा पूर्ण करना प्रभु दीनानाथ,,, बरस रही हैं भावनाएं ,, संवरती कामनाएं ,,मन की थाह से ,अटल गहराइयों से कातर स्वरों की पुकार जरूर सुनना –हे छठि मैया !,,रस्ते पर,गलियों में,सड़कों पर गूंजते गीत और संग संग चलते कदमो की एक ही मंजिल -नदी के तट पर ही तो अर्ध्य देना है, चलो,कहीं देर न हो जाये ,,बच्चो,वृद्धों,महिलाओं एवं छठ व्रतियों के बीच अथाह उत्साह का माहौल ,,मन भर आता है -बार बार ,,कैसा मोह है जो बढ़ता ही जाता है,श्रद्धा का आवेग,पवित्रता का अहसास मन पर छाने लगता है,- कांचहिं बांस के बहंगिया -बहँगी लचकत जाय — स्वर की विह्वलता मार्मिकता की सृष्टि करती है,,,,यही एक विशेषता भरा संदेश भी समाज को मिलता है, जहाँ बेटी की कामना की जाती है,–रूङकी झुनकी बेटी मंगिले-पढ़ल पंडितवा दमाद छठी मैया -अरज सुनिल हमार ”,,सामाजिक समरसता और मंगल कामना का यह पुनीत पर्व सार्थक हो ,,,,सफल हो,,अनेक शुभ-कामनाएं !–

पद्मा मिश्रा

 

हे छठी मईया

हे छठी मईया तेरी
महिमा है अपार
तू ही तो सब कष्ट हरती
करती बेड़ा पार

बाँझन को पुत्र देती
भूखे को आहार
बड़ा ही पावन है यह
आस्था का त्योहार

लौकी चावल से होती है
इसके दिन की शुरूआत
अगले दिन होता खरना
खीर रोटी की रात

ठेकुआ, केला,नारियल से
दउरा करते तैयार
नदी लेकर जाते स्वामी
साथ सारा परिवार

पहला अर्ध्य अस्त सूर्य को देते
रहके निर्जल निराहार
उगते सूरज करते हैं
दूसरा अर्ध्य स्वीकार

हे छठी मईया तुझमें
शक्ति है अपार
सदा ही खुशहाल रखना
अपना यह संसार

सुस्मिता मिश्रा

 

छठ

बांस की टोकरी,
बांस का सूप,
माटी की दिया,
घी की बाती,
क्षितिज में डूबता सूरज,
पूरब से उगता सूरज,
ईंख की मिठास,
गाय का दूध,
पकवानों की सुगंध,
बच्चों की श्रद्धा,
बड़ों का आशीष,
पवित्र तन और पवित्र मन।
सब कुछ याद आ गया,
जब शरीर ने महसूस की,
हल्की सी सिहरन,
गुलाबी ठंढ़ की।
दीपावली और छठ की रौनकें,
गोबर लिपा आंगन,
सब कुछ छूट गया,
…. ….. बहुत पीछे,
जब से उस छोटे और पिछड़े,
गांव को छोड़कर,
इस आधुनिक महानगर में,
अपनी दुनिया बसाई है।

ऋचा वर्मा

 

छठ- गीत

मीत चलो!
एक गीत गाएँ,
सूर्य की शक्ति को
अर्घ्य हम दिखाएँ।

अजस्र किरण,शक्ति श्रोत
साधना से ओत-प्रोत
एक नीति-गीत गाएँ
सूर्य की शक्ति को
अर्घ्य हम दिखाएँ।

अस्तसूर्य स्फूर्तिदायक
उदित सूर्य ,सृष्टि नायक
आठ-याम निरत साध
उपासना आदित्य-नाम
एक नवल गीत गाएँ

सूर्य की शक्ति को
अर्घ्य हम दिखाएँ।

अरुण सज्जन

 

“लोकआस्था लोकगीतों में छठ पूजा “

लोकगीतों की अपनी ही एक परंपरा है और इन परंपराओं में निहित लोक संस्कार ,मान्यताएं और इष्ट को समर्पित भाव हमें सामाजिक सरोकारों से जोडते है । पहली बार व्रत करने वाली स्त्री अपने मायके से अपने भाई को संदेशा भेजती है-

“अबकी के छठ करब हम भैया
लेले अईहा भैया गेहूं के मोटरिया”….

मैथिली के परंपरागत गीतों में कौवा, काका, तोता, कोयल के माध्यम से संदेश दिया जाता है, जो कर्म की वंदना के साथ पारिवारिक पृष्ठभूमि को जोड़ता है ।
परिवार के सारे सदस्य मिलकर इस महा व्रत में अपना अमूल्य योगदान देते हैं ।गेहूं खरीद कर धोना सुखाना फिर उसे पिसवाना माटी का चूल्हा बनाना ,आम की लकड़ी पर नए अरवा चावल और नए गुड से खरना की तैयारी और उसके बाद मौसमी फल सब्जियों के साथ केले के घौद और गन्ने की खरीदारी होती है ।
घर की महिलाएं पांच से सात लोक गीत गाते हुए सारा काम करती नजर आती है ।

घर में कोई खुशखबरी हो या कोई मनोकामना पूरी हो तो कोसी भरा जाता है कोसी पूजते समय बड़े ही मोहक भाव से स्त्रियाँ गाती है-

“सांझ भईल सूरज रहब कहाँ” …

इस महापर्व में समाज की आपसी पारस्परिक निर्भरता का अटूट गठजोड़ भी दिखाई देता है । जहां माली से फूल, कुम्हार से घड़ा, डगरिन से कलसूप, दौरा इत्यादि हमारी सामाजिक ग्रामीण व्यवस्था का चित्रण भी करते हैं ।
मालिन से व्रती कहती है-

“छोटी मोटी मालिनी बिटिया के लामी लामी हो केस
फुलवा लईके अइली मलिनीया कि अरग के बेर ।

भोजपुरी और मैथिली के पारंपरिक गीतों में इसकी बहुत सुंदर झलक दिखाई देती है । व्रती स्त्रियां जब गीत करती हैं तो अपने मां बाबा के आंगन को याद करते हैं ।अपने ससुराल की संपन्नता की सौगंध लेती हैं। जेठ, देवर, ननद ,नंदोई के साथ जो मीठे संवाद करती हैं वह अपने में ही एक पारिवारिक सत्ता को मजबूती प्रदान करती हैं ।

“कांचे ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए “…

लोकगीतोंकी मिठास हमारी परंपरा को मजबूती प्रदान करती है और आने वाली पीढ़ी को यह संदेश देती है कि यह आस्था का पर्व है, विचारों का पर्व है ,ज्ञान का पर्व है ,सत्कार का पर्व है ,जुड़ने और जोड़ने का पर्व है। डूबते हुए सूर्य की उपासना और पुनः उगते हुए सूर्य की उपासना ब्रह्मांड में सूर्य की शक्ति को नमस्कार करता है।

” केलवा के पात पर उगेलन सुरुजमल झांके झुके”….

हमारे लोकगीतों में यह भी एक वैज्ञानिक सत्य दिखाई देता है ,जहां डूबता हुआ सूर्य हमारी बुजुर्ग युवा पीढ़ी का प्रतीक है, वही उगता हुआ सूर्य आगामी पीढ़ी का प्रतीक है ।इन दोनों के मध्य खड़ी मध्य पीढ़ी इन दोनों का सम्मान करती है। सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है ।यह स्वच्छता और सात्विकता का प्रतीक है । सूर्य को अर्घ के पीछे रंगों का विज्ञान है। व्रत धारी स्त्रियां अपने परिवार की कुशलता ,उनकी दीर्घायु आरोग्य और संपन्नता के लिए इस महाव्रत को पूरी निष्ठा के साथ अपने पारंपरिक लोक मान्यताओं के साथ गीतों के साथ पूर्ण करती हैं।

डॉ उमा सिंह किसलय

 

 

महापर्व छठ

कितनी विस्तृत हमारी संस्कृति
जब समझे होंगें जन आदित्य को
जाना होगा प्रकृति का उपहार
जग जीवन के लिए आता प्रकाश
कहते हैं द्रौपदी जब हुई हताश
महाभारत का भीषड़ विनाश
किया संकल्प पावन हृदय से
संतान रक्षा जय हेतु करूँ तप
किया महापर्व छठ पूजन
सुहासिनी ने मांगा वरदान
विनती करूँ हे आदित्यनाथ
है ये कठोर पर्व तप मनोहर
प्रसन्न आदित्य दिए आशीष
विधि में पवित्रता है अनिवार्य
निर्जल तन मन से होये मनुहार
छठी माता से अनुनय विनय
गाये गीत हे छठी मईया
अखंड राखिये मेरा अहिवात
परिवार रिश्ते सखियों के संग
पीली लाल हो साड़ी प्यारी
भरी माँग श्रृंगार सुकोमल नारी
पुरुष भी बढ़ करते व्रत अनोखा
दृढ़ संकल्प करजोड़े जल ठारी
सजा बाँस का डलिया सूप
रीतू फल ठेकुआ शुद्ध सजावट
कोसी भर दीप सुशोभित
स्वच्छता आवश्यक जल घाटों का
मेला नदी तट उत्सव सबका
अर्ध्य देते गौ दुग्ध या जल भर
अस्त हो रहे हो हे सुर्य देव
कल फिर जीवन में ज्योति लाना
ममता का दान आँचल भर जाना
दुख अशांति पीड़ा दूर भगाना
आशाओं के दीप जलाना
प्रात: अर्ध्य उगते आदित्य का
आभार प्रभु जी का हैं करते
जल वायु प्रकाश ज्योतिर्मय
प्राणी के हैं जीवन सुधा
सहयोग भरा है ये महापर्व
आवश्यकता इनकी है हर पल
ज्ञान यही पावन छठ पर्व देता
सत संयम त्याग तप स्नेह
तब चमकती है जीवन रेखा
माँगे हे सूर्यआदित्य हे छठ माते
सर्व जीवन में आशीष बरसाना
रक्षा करना सौभाग्य दमकाना
परिवार स्नेह सदा जोत जलाना
यही है धरोहर हर प्राणी का
तभी शोभित समाज है अनुपम।

डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया ‘

 

 

 

 

 

 

 

 

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