विद्या भंडारी की कविताएं

विद्या भंडारी की कविताएं

1.अनबोला

लड़की
जब तब्दील होती है स्त्री में
जाने कहाँ खो जाता है समय ।
निगल लिए जाते हैं
जुबान पर आए शब्द ।
गुम हो जाती हैं
परिंदो सी खिलती आवाजें ।।
उड़ते पंख बदल जाते है
फड़फड़ाते पंखों में ।

आंखो में अनचाहे ख्वाब
लगते है तैरने ।
ऐसे में खो जाती है वह
जैसे दूसरों की छाह में खङे हो
तो खो जाती है परछाई।

लड़की जब तब्दील होती है स्त्री में
बीते समय का बहुत कुछ
रह जाता है अनबोला।

2.दुख का वजन

नदी का शान्त स्वभाव
बहा ले जाता है चुपचाप
क्रोध,राग-द्वेष।
समुद्र की लहरें
समेट लेती है सारा संताप।
बारिश भर देती है मन में हरियाली ।
वन-वृक्ष भर देते है
सासो में प्राण वायु ।
आकाश , रोशन करता है
चाँद सितारो से
मन के अंधकार को ।
धरती ,खेत-खलिहान से
बना देती है जीवन को जीवंत।

सुनो!
सब कुछ तो सहज ही
बिन मांगे मिल रहा मुफ्त में
फिर क्यो बढा जा रहा है
हमारे दु:ख का वजन ।

प्रकृति के यौवन को समझने की
समझ कहाँ है हम में ।

विद्या भंडारी
कोलकाता, भारत

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