भारतीय नववर्ष की अनमोल वैज्ञानिकता

भारतीय नववर्ष की अनमोल वैज्ञानिकता

हमारा ” नव-वर्ष चैत्र मास, शुक्ल पक्ष प्रथमा से मनाया जाता है..” संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। भारतवर्ष में वसंत ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लास पूर्ण है क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव श्रृंगार किया जाता है। लोग नववर्ष का स्वागत करने के लिए अपने घर-द्वार सजाते हैं तथा नवीन वस्त्राभूषण धारण करके ज्योतिषाचार्य द्वारा नूतन वर्ष का संवत्सर फल सुनते हैं……यहाँ जलवायु भी पूर्ण रूप से हरित हो जाती है और बसंत ऋतु प्रवेश द्वार पर होती है इस कारण यहाँ इस दिन को नव-वर्ष के रूप में मनाया जाता है…क्या ऐसा कुछ अंतर हमलोगों को 31 दिसंबर और 1 जनवरी के मध्य देखने को मिला…??
हमारा अपना वैदिक कलेंडर सबसे उत्तम है जो ऋतुओं (मौसम) के अनुसार चलता है ।

हमारे वैदिक मासों के नाम निम्नलिखित हैं…
1. चैत्र,
2. वैशाख,
3. ज्येष्ठ,
4. आषाढ़,
5. श्रावण,
6. भाद्रपद,
7. अश्विन,
8. कार्तिक,
9. मार्गशीर्ष,
10. पौष,
11. माघ,
12. फाल्गुन

चैत्र मास या महीना ही हमारा प्रथम मास होता है, जिस दिन ये मास आरम्भ होता है, उसे ही वैदिक नव-वर्ष मानते हैं lचैत्र मास अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल में आता है, चैत्र के बाद वैशाख मास आता है जो अप्रैल-मई के मध्य में आता है, ऐसे ही बाकी महीने आते हैं lफाल्गुन मास हमारा अंतिम मास है जो फरवरी-मार्च में आता है, फाल्गुन की अंतिम तिथि से वर्ष की सम्पति हो जाती है, फिर अगला वर्ष चैत्र मास का पुन: तिथियों का आरम्भ होता है जिससे नव-वर्ष आरम्भ होता है lहमारे समस्त वैदिक मास (महीने) का नाम 28 में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं l

जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम हुआ l
1. चित्रा नक्षत्र से चैत्र मास,
2. विशाखा नक्षत्र से वैशाख मास,
3. ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ मास ,
4. पूर्वाषाढा या उत्तराषाढा से आषाढ़,
5. श्रावण नक्षत्र से श्रावण मास,
6. पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद से भाद्रपद,
7. अश्विनी नक्षत्र से अश्विन मास,
8. कृत्तिका नक्षत्र से कार्तिक मास,
9. मृगशिरा नक्षत्र से मार्गशीर्ष मास,
10. पुष्य नक्षत्र से पौष मास,
11. माघा मास से माघ मास,
12. पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी से फाल्गुन मास

नक्षत्र आकाश में तारों के समूह को कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा की आकृतियों से जुडे हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा समूह को नक्षत्र कहना उचित है।नक्षत्र अर्थात पृथ्वी से दिखाई देने वाले तारों के समूह को 28 भागों में विभाजित करना, आकाश के वे भाग या क्षेत्र जो चन्द्रमा पार करता है या पूर्ण करता है, पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए lरात्रि के समय आकाश में असंख्य तारे दिखाई देते हैं, चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा 27.3 दिन में पूरी करता है, इसलिए कभी किसी तारों के समूह के साथ दिखाई देता है, फिर अगली रात को किसी दूसरे तारों के समूह के साथ दिखाई देता है lविभिन्न तारों के समूहों को वेदों में 28 भागों में बांटा गया है, जिन्हें हम नक्षत्र कहते है l
अथर्ववेद में 28 नक्षत्रों का वर्णन है,जिनमे से 27 मुख्य नक्षत्र हैं और 28वां नक्षत्र कुछ ही समय के लिए रहता हैl
नक्षत्र सूची अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध के वेदाङ्ग ज्योतिष में मिलती है।

दो हजार वर्ष पहले शकों ने सौराष्ट्र और पंजाब को रौंदते हुए अवंती पर आक्रमण किया तथा विजय प्राप्त की। विक्रमादित्य ने राष्ट्रीय शक्तियों को एक सूत्र में पिरोया और शक्तिशाली मोर्चा खड़ा करके ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की। थोड़े समय में ही इन्होंने कोंकण, सौराष्ट्र, गुजरात और सिंध भाग के प्रदेशों को भी शकों से मुक्त करवा लिया। वीर विक्रमादित्य ने शकों को उनके गढ़ अरब में भी करारी मात दी। इसी सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर भारत में विक्रमी संवत प्रचलित हुआ।कोई भी सम्वत अपने नाम से तभी चला सकता है जब उसके देश की प्रजा ऋण मुक्त हो।सम्राट पृथ्वीराज के शासनकाल तक इसी संवत के अनुसार कार्य चला। इसके बाद भारत में मुगलों के शासनकाल के दौरान सरकारी क्षेत्र में हिजरी सन् चलता रहा।हमें गर्व है कि हम ईसाई कैलेंडर से 57 साल आगे हैं। ईसाई कैलेंडर जहाँ अभी वर्ष 2020 तक ही पहुँचा है, वहीं हमारा भारतीय कैलेंडर गुड़ी पढ़वा के दिन 2077 वे वर्ष में प्रवेश कर गया।

आज के दिन से चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे जिसका समापन रामनवमी पर होगा।चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के प्रात: सूर्योदय की प्रथम रश्मि के दर्शन के साथ नववर्ष का आरंभ होता है।इस प्रकार हम बिना पंचांग और केलेंडर के प्रकृति और आकाश को पढ़कर नवीन वर्ष को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा दिव्य नववर्ष दुर्लभ है।

डॉ नीरज कृष्ण
वरिष्ठ साहित्यकार
पटना, बिहार

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