रोज़ डे की परंपरा

रोज़ डे की परंपरा

कनाडा मे रहने वाली 12 वर्षीय मेलिंडा रोज की याद मे इसे मनाया जाता है, मेलिंडा रोज को सन् 1994 में जब वह 12 वर्ष की थी तब ब्लड कैंसर हो गया था, डॉक्टरों ने कहा मेलिंडा 2 सप्ताह से ज्यादा नहीं जी पायेगी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और डॉक्टरों को गलत साबित कर दिया, और अपनी ज़िंदगी जीने लगी। उन्होंने इस दुनियाँ को बहुत बुरी परिस्थित में भी हिम्मत बनाएँ रखने तथा सकारत्मक सोच बनाएँ की प्रेरणा दी इसलिए वर्ल्ड रोज डे मनाया जाता है।

बाद में लोंगो ने अपनी मति अनुसार इनका प्रारूप बदलकर एक प्रेम प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया।
अब प्रेमी जोड़े आपस में आदान प्रदान करने लगे इस दिन को उत्सव के रूप में मनाने लगे हैं।

गुलाब का फूल अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अच्छा माध्यम माना जाता है…गुलाब के विभिन्न रंगों के साथ अलग अलग भाव को जोड़कर देखा जाता है जैसे….. लाल गुलाब को प्रेम का प्रतीक माना गया है तो पीले रंग की गुलाब को मित्रता तथा सफ़ेद गुलाब को शांति का प्रतीक माना जाता है।

फूल बनकर मुस्कुराना जिंदगी
मुस्कुरा कर ग़म भुलाना जिंदगी।
जीत कर तो सब ख़ुश होते है
हार कर भी ख़ुश होना ही है जिंदगी ।।

अनिता वर्मा
भिलाई , छत्तीसगढ़

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