डॉ श्रीमती कमल वर्मा की कविताएं 

डॉ श्रीमती कमल वर्मा की कविताएं 

१.राष्ट्रीय चेतना और जागृति

 भारत मांँ पर जो कुर्बान,उनके जज्बों को प्रणाम,

भारत मांँ के वो सपूत,भारत मांँ की वो है शान|

भारत मांँ पर जो कुर्बान,उनके जज्बों को प्रणाम॥

कहाँ गये वो माँ के बेटे,माँ पर करते जां कुर्बान,

एक हाथ में गीता रहती, दुजे में पकडे कुरान।

धड़कते थे शोले दिल में,आंखों से बरसे अंगार,

इन सपूतों के जुबां पर,गूंजता था इंकलाब॥

भारत मांँ पर जो कुर्बान••॥1॥

आज फिर भारत भूमि पर,छाई है काली बदली,

सीमा पर और घर के अंदर मच रही है खलबली।

बच्चा बच्चा हिन्दुस्तान का,हो जाये अब सावधान,

अमृत कौर बने हर बेटी, अशफ़ाक़ुल्ला हर जवान॥

भारत मांँ पर जो कुर्बान••॥ 2॥

हर एक दिल में देशभक्ति की ज्योत ये जलती रहे,

मातृभूमि के काम आऊँ,आस यह पलती रहे।

पालक शिक्षक या हो रक्षक,सबका है बस एक ही काम,

भारत मांँ पर कुर्बान जाऊं,कहलाऊँ सच्ची संतान।

सारी दुनियाँ में हो ऊंँचा,भारत माता का ही नाम॥

भारत माँ पर जो कुर्बान••॥3॥

हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई,हम सब भारत माँ के लाल,

इस मिट्टी,पानी से पनपे,लहु का रंग एक है लाल,

फिर क्यों चिंतित है भारत माँ,दुख से बुरा हुआ है हाल॥

सब मिल कर हम साथ बढेगें,ऊँचा हो भारत का नाम।

भारत माँ पर जो कुर्बान, उनके जज्बों को प्रणाम॥4॥

सर्वधर्म समभाव में,क्या दिखता कोई अभाव,

आपस में क्यों लड़ रहे,पाले हुए द्वेष का भाव।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,सब भारत माँ की संतान ,

किसी धर्म में नहीं लिखा,पाप करो या अत्याचार॥5॥

भारत भूमि सिखलाती,आपस में बांटों बस प्यार,

छोटा बड़ा ऊंच-नीच की,मानव निर्मित है दीवार।

तोड़ बेडियाँ भेद की आओ,तब खुलते प्रभु के द्वार,

जला दीजिये दर्प की होली,बच जाये बस प्यार ही प्यार॥6॥

भारत माँ पर जो कुर्बान

उनके जज्बों को प्रणाम।

जयहिंद, वंदे मातरम्

2.प्रेम

प्रेम एक जज्बा है जिंदगी का,

शब्दों में बयान संभव नहीं।

आँखों की सत्य भाषा है,

कागज पर उतारना संभव नहीं॥

यह जीवन का संगीत है

जो क्षितिज पार,अंबर से आता है।

यह माँ का दूसरा नाम है,

जो हर दिल को धड़काता है॥

पेड़ पंछी पशु मानव सभी,

समझते हैं प्रेम को।

अपना हो जाता है अगर

तुम किसी को प्रेम दो॥

अजीब सा यह है नशा,

उतरे नहीं इसका सुरूर।

पकड़ न पाओ वह सुगंध है,

प्रेम की चाहत रहे जरूर।

प्यार पानी है जिसका,

हर कोई प्यासा है।

जिसके जीवन में प्यार नहीं,

रहता वह उदासा है॥

कौन समझा सके किसी को,

प्यार पाने की कोई राह नहीं।

यह तो देना ही देना है,

पाने की कोई चाह नहीं॥

अमर प्रेम कृष्ण राधा का,

जिसमें आनंद रचा बसा।

कोई स्वार्थ न बंधन है,

कई कसौटी पर कसा॥

नहीं कोई इसका पैमाना

बरजोरी मुमकिन न पाना ॥

ऐसा हो जाए दीवाना

फिर क्या जीना क्या मरना॥

हम जीते हैं इसलिए,

कि खुद को प्यार करते हैं।

भला कौन है जमाने में,

जो यह इजहार करते हैं॥

भगवान की न्यामत का समंदर,

जो होता है सब के पास,

दोनों हाथों से लुटाइये,

जीना आ जाता है रास॥

त्याग तपस्या, सेवा है

सच्चे मानव की पहचान,

आत्मा की मुक्ति हो जाती,

अमर हो जाता इन्सान॥

 

डॉ श्रीमती कमल वर्मा

रायपुर, भारत

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