नमक सत्याग्रह और गांधी जी

  
नमक सत्याग्रह और गांधी जी
 
अपने जीवन के शुरुआती कुछ साल पढ़ाई व् काम के सिलसिले में इंगलैंड व् दक्षिण अफ्रीका में बिताने के बाद जब १९१५ में गांधी जी भारत लौटे तो वे एक बदले हुए इंसान थे. वहां अंग्रेजों का दुर्व्यवहार झेलने के कारण उन्हें भारतवर्ष  की आजादी सर्वोपरि लगी. वे जन-सेवा का व्रत लेकर आये थे. गांधी जी के अद्भुत शस्त्र थे …. सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन और  सविनय अवज्ञा.  उनका पहला सत्याग्रह १९१७ में किसानों के हक़ के लिए चंपारण में हुआ था. अब तक वे पूरी तरह भारत की राजनीति में आ गए थे, और उनका उद्देश्य था भारत की पूर्ण स्वतंत्रता. इन आन्दोलनों की मौलिकता व् प्रभावकता के कारण जन- मानस इनसे पूरी तरह जुड़ गया और ये आन्दोलन महत रूप लेते चले गए. अंग्रेज सरकार ने उन्हें बंदी बनाकर जेल में डाल दिया  मगर वे गांधी जी एवं देशवासियों के उत्साह व् लगन को दबा न सके. 

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के नमक सत्याग्रह का विशेष स्थान है. यह आन्दोलन उनके अहिंसात्मक प्रतिरोध पर आधारित था. भारतीय कांग्रेस पार्टी ने इस सत्याग्रह को स्वतंत्रता संग्राम के लिए मुख्य हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का निर्णय लिया. ब्रिटिश राज के खिलाफ इस हथियार के प्रयोग की जिम्मेदारी गांधी जी को सौंपी गई थी. गांधी जी ने १८८२ के  ‘ब्रिटिश सौल्ट एक्ट’ को सत्याग्रह का पहला निशाना बनाया. १८८२ का सौल्ट एक्ट अंग्रेजी सरकार को नमक बनाने का व् बिक्री करने का पूर्ण अधिकार देता था तथा उन्हें सौल्ट टैक्स लगाने का भी अधिकार था. इस नियम का उलंघन करने पर कानूनन दंड की भी व्यवस्था थी. यद्यपि नमक समुद्र तट पर आसानी से उपलब्ध था, किन्तु भारतवासियों को नमक,  टैक्स देकर खरीदना पड़ता था.  गांधी जी ने इसके विरोध में ‘नमक सत्याग्रह’ करने की ठानी.

कांग्रेस ने २६ जनवरी १९३० को पूर्ण स्वराज की घोषणा कर दी. उसके तुरंत बाद १२ मार्च १९३० को ‘दांडी यात्रा’ की योजना बनाई, जिसे नमक सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है. 
इस यात्रा के लिए गांधी जी ने बहुत तैयारी की थी. सभी अखबारों में इसके बारे में खबरें छप रहीं थीं, कि गांधी जी सविनय अवज्ञा का प्रारम्भ नमक सत्याग्रह से करेंगे. नमक सत्याग्रह का विचार उनकी अपनी पार्टी के ही बड़े नेताओं जैसे पंडित मोतीलाल, जवाहर लाल  आदि को  उत्साहवर्धक न लगा. उनका विचार था कि यह सत्याग्रह ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बहुत प्रभावी नहीं होगा. ब्रिटिश सरकार भी नमक टैक्स के विरोध से खासी चिंतित न थी. गांधी जी का मानना था कि हवा व् पानी के बाद नमक सबसे महत्वपूर्ण है, और इसका आन्दोलन जन मानस को आंदोलित करेगा. वे इसे राजनीतिक अधिकार माँगने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण समझते थे. गांधी जी की सोच को उस समय के गवर्नर जनरल श्री राजगोपालाचारी ने समझा और सराहा।

अपने आन्दोलन के बारे में समय समय पर बयान देकर गांधी जी पूरे विश्व की प्रेस को अपने मकसद की जानकारी दे रहे थे. बहुत से समाचार पत्र और पत्रकार इस नए तरीके की लड़ाई की ओर आकर्षित हुए और उन्होंने अपने अखबारों में बढ़चढ़ कर लिखा…

गांधी जी नमक सत्याग्रह को पूरी तरह से अहिंसक और अनुशासित रखना चाहते थे. यात्रा के दौरान अंग्रेजों के विरोध के कारण सत्याग्रहियों से किसी प्रकार की प्रतिहिंसा ना हो जाए इस लिए उन्होंने सत्याग्रहियों का चुनाव बड़ी ही सावधानी पूर्वक किया था. मार्च शुरू होने से पहले उन्होंने वायसराय लॉर्ड इरविन को पत्र लिखा कि सौल्ट टैक्स समाप्ति की उनकी मांग मान ली जाती है तो वे सत्याग्रह आन्दोलन नहीं करेंगे. मगर ब्रिटिश सरकार ने इस मौके को गवां दिया…

१२ मार्च १९३० को गांधी जी और ७८ सत्याग्रही पैदल साबरमती आश्रम से दांडी तक ३९० कि.मी. लम्बी यात्रा पर निकल पड़े. २४ दिन की यह यात्रा दांडी गाँव के पास समुद्र तक गई. रास्ते में उन्हें जनता का अभूतपूर्व उत्साह और सहयोग मिला. दांडी पहुँचने के दूसरे दिन सुबह प्रार्थना के बाद नमक का एक बड़ा ढेला उठाकर घोषणा की कि वे ब्रिटिश नमक क़ानून तोड़ रहे हैं और अंग्रेज सरकार की नींव हिला रहे हैं. ये खबर संसार भर के समाचार पत्रों में छपी। गांधी जी व् उनके अनुयायियों द्वारा बिना टैक्स दिए नमक बनाने का काम शुरू करने व् लाखों लोगों के अप्रत्याशित रूप से जुड़ जाने के कारण ब्रिटिश सरकार विचलित हो गई और भारत की स्वतंत्रता के बारे में उनके नजरिये में बदलाव आया.

यह आन्दोलन इतना प्रभावी था कि करोड़ों भारतीय पहली बार स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ने लगे, फिर भी ब्रिटिश सरकार ने इसको कोई महत्त्व नहीं दिया और ना ही कोई रियायत दी …
दांडी में  नमक बनाने के बाद गांधी जी ने वहां से कुछ दूर धारासना में नमक सत्याग्रह का कार्यक्रम बनाया, परन्तु  अभियान  शुरू होने के पहले ही गांधी जी को  गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बावजूद धारासना का नमक सत्याग्रह कार्यक्रम के अनुसार चला. इसका नेतृत्व ७६ साल के सेवा निवृत्त जज अब्बास त्याब जी व् गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा ने किया. अंग्रेजी हुकूमत ने इन दोनों को धारासना पहुँचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया. इसके पश्चात सत्याग्रह की कमान सरोजिनी नायडू के हाथ आई. सरोजिनी नायडू ने सभी सत्याग्रहियों से कहा कि ब्रिटिश सरकार की हिंसात्मक कार्यवाही के विरुद्ध उन्हें किसी भी हालत में प्रतिरोध या हिंसा नहीं करना है. नमक-मार्च पूरी तरह अहिंसक होने पर भी अंग्रेज पुलिस ने सत्याग्रहियों पर बेरहमी से लाठी बरसाई. इस घोर अत्याचार को सत्याग्रहियों ने बड़ी बहादुरी से चुपचाप सहा. पुलिस के इस अमानवीय व्यवहार की पूरे विश्व के समाचार पत्रों में तीखी भर्त्सना हुई. इस प्रकार नमक सत्याग्रह ने समस्त विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. टाइम पत्रिका ने गांधी जी को १९३० का ‘मैन ऑफ़ डी इयर’ घोषित किया.
 नमक सत्याग्रह लगभग एक साल चला और आन्दोलन रोकने के लिए  मजबूर होकर अंग्रेजी हुकूमत को  गांधी जी की रिहाई करनी पड़ी. इसके बाद गांधी जी और ब्रिटिश सरकार के बीच बातचीत तो अवश्य हुई परन्तु कोई ख़ास नतीजा न निकला.  
नमक सत्याग्रह का असर तुरंत भले ही ना हुआ हो लेकिन भारतीय जन-मानस पर इसका असर अवश्यंभावी पड़ा और नमक सत्याग्रह स्वतंत्रता संग्राम की राह में एक मील का पत्थर बना….

सुधा गोयल ‘नवीन’
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

  

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