गुरुपूर्णिमा पर विशेष

गुरुपूर्णिमा पर विशेष

अपने राष्ट्र और सामाजिक जीवन में गुरुपूर्णिमा-आषाढ़ पूर्णिमा अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है। व्यास महर्षि आदिगुरु हैं। उन्होंने मानव जीवन को गुणों पर निर्धारित करते हुए उन महान आदर्शों को व्यवस्थित रूप में समाज के सामने रखा।
हनुमान चालीसा हम सब को कंठस्थ है, प्रथम दोहे में ही कहा गया है “श्री गुरुचरण सरोज रज “…मैं कोई 45 वर्ष पूर्व रामसुख दास जी का प्रवचन सुन रहा था, उन्होंने सिर्फ इस एक पंक्ति पर 5 दिन तक विवेचना की थी और गुरु के महत्व को बताया था, गुरु के चरण की रज ही हमे चारों प्रकार के फल देते हैं ।
हम जब मंत्रोचार करते हैं तो पढ़ते हैं “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मैय श्री गुरुवे नमः” यहाँ गुरु सृष्टि की रचना से विध्वंस तक सभी आयामों को मानते हैं पर ब्रह्म अनादी शक्ति को गुरु मानते हैं, गुरु रचियेता है, पालक है, संहारक है, अनादी है अनंत है, सृष्टि के हर अंग का तोशक है, वह व्यक्ति नहीं है वह बिम्ब है वह पोषक तत्व है |
गुरुस्त्रोत्र्म का पहला श्लोक “अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन् चराचरं, तत्पदं दर्शितं येनं तस्मै श्री गुरुवे नम:” है । यह सृष्टि अखंड है मंडलाकार है। बिन्दु से लेकर सारी सृष्टि को चलाने वाली अनंत शक्ति का, जो परमेश्वर तत्व है, वहां तक सहज सम्बंध है। यानी वह जो मनुष्य से लेकर समाज, प्रकृति और परमेश्वर शक्ति के बीच में जो सम्बंध है। इस सम्बंध को जिनके चरणों में बैठकर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास करते हैं, वही गुरु है। संपूर्ण सृष्टि चैतन्ययुक्त है। चर, अचर में एक ही ईश्वर तत्व है।वह ईश्वर तत्व व्यक्ति पूजक नहीं बल्कि समष्टि के पयजन का तत्व है।

श्री गुरु स्त्रोत्रम में एक और श्लोक है :

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ११॥

गुरु से अधिक कोई तत्व नहीं गुरु से अधिक कोई तप नहीं, तत्व ज्ञान से ऊपर कोई ज्ञान नहीं ऐसे ज्ञान देने वाले गुरु को नमन करता हूँ, अतः, हमारे ग्रन्थ कभी भी व्यक्ति पूजा की समवर्धना नहीं करते, वे तत्व को ही पूजित मानते हैं ।
अपने समाज में हजारों सालों से, व्यास भगवान से लेकर आज तक, श्रेष्ठ गुरु परम्परा चलती आयी है। व्यक्तिगत रीति से करोड़ों लोग अपने-अपने गुरु को चुनते हैं, श्रद्धा से, भक्ति से वंदना करते हैं, अनेक अच्छे संस्कारों को पाते हैं।
हमारा शास्त्र एवं हमारी संस्कृति तत्व पूजा सीखाती है, व्यक्ति पूजा नहीं। व्यक्ति शाश्वत नहीं, समाज शाश्वत है। अपने समाज में अनेक विभूतियां हुई हैं, आज भी अनेक विद्यमान हैं।
हमारे समाज की सांस्कृतिक जीवनधारा में ‘यज्ञ’ और तप का बड़ा महत्व रहा है। ‘यज्ञ’ शब्द के अनेक अर्थ है। व्यक्तिगत जीवन को समर्पित करते हुए समष्टि जीवन को परिपुष्ट करने के प्रयास को यज्ञ कहा गया है। यज्ञ ताप का द्योतक भगवा अग्नि की प्रतीक है |
हम श्रद्धा के उपासक हैं, अन्धविश्वास के नहीं। हम ज्ञान के उपासक हैं, अज्ञान के नहीं। जीवन के हर क्षेत्र में विशुद्ध रूप में ज्ञान की प्रतिष्ठापना करना ही हमारी संस्कृति की विशेषता रही है। अतः भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवाधारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह संत और ऋषि के गुणों को भी समाहित करता है।
गुरु का महत्व क्या होता है पता नहीं पर जीवन मे हम गुरु उसे मानते हैं जिनसे कुछ लेते हैं अच्छा गुरु अच्छी शिक्षा या सीख के अलावा जो देता है वह होता है मित्रभाव। जब आप किसी भी परेशानी में हों कोई उपाय न सूझता हो तो सबसे पहले जो नाम मस्तिष्क में आये वो गुरु ही असल गुरु होता है और वो न समस्या का समाधान देता है बल्कि एक अच्छे मित्र की तरह समस्या सुनता है और आपको ढांढस देता है। शिक्षा या ज्ञान तो आज कल के युग मे सबसे ज्यादा गूगल बाबा देते हैं, परंतु यह किताबी ज्ञान हमे शांति नहीं दे सकता। मन की संतुष्टि तब होती है जब सत चित्त आनंद देता गुरु विदीर्ण हॄदय को औसधि लेपित कर देता है।
भागवत के ग्यारवेहैं स्कंध में दत्तात्रय जी की कथा आती है जिसमे उन्होंने 24 गुरुओं की बात कही, वास्तव में हम सृष्टि में बसी हर वस्तु से ज्ञान ले सकते हैं आपके अंदर सीखने की इच्छा होनी चाहिए। अतः गुरु सर्वश्रेष्ठ हैं।
अंत मे स्वरचित एक गुरु वन्दना:

नीर निपातित हो रहे,..नील निलय मेरे नयन
नीरव, नि:स्पृह हैं ये… .निष्पादित होता नर्तन
निवेदन है नमन है और है…..निर्भय नवचेतन
निर्मल नीलमणि निराकार गुरुदेव तुझे नमन

श्रद्धा स्फुरित हो,.करती सौदामिनी सा स्पंदन
स्नेह समर्पित हो करे.समुचित संस्कार सर्जन
सुमधुर स्वभाव हो,,,,,सद्भावना का हो संवर्धन
स्वामी सानिध्य रहे……श्रेयस हो सम्पूर्ण सदन

आराध्य अभिसिंचित मन हो हो अंतस अनुपम
अनन्य अर्चन अधिष्ठित रहे आराधन अनुक्रम
अर्गलायें हृदय की उत्स्मयित हों,…आनंद श्रम
उदगार इंदु के अर्पित अनुराग के…….हे उदगम ||

सुरेश चौधरी ‘ इन्दु ‘
कोलकाता

0
0 0 votes
Article Rating
447 Comments
Inline Feedbacks
View all comments