हिन्दी और हम

हिन्दी और हम

हर देश की आबोहवा में रची होती है वहाँ की भाषा, ।साँस की तरह जिलाए रखती है, रीत, प्रीत, जन, मन, संस्कृति, संस्कारों को। अपनी माटी में जैसे पेड़ सिर उठाये खड़ा रहता है, बिल्कुल वैसा ही संबल मिलता है अपनी भाषा से….

क्या संसार में कहीं का एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बच्चों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो।

दुनिया की कई संस्कृतियों ने अंग्रेजी को नकारा हैं। हम हिंदुस्तानी ही है जो बड़े गर्व से कहते हैं कि हमे हिंदी नही आती और उन लोगों को भरपूर हीकारत से देखते हैं जिन्हे अंग्रेजी नहीं आती….हम चाहे जितनी भी बातें हिन्दी के पक्ष में करें अपने बच्चों को अँग्रेजी स्कूलों में ही पढ़ाते हैं, उनके अँग्रेजी बोलने पर गर्व की अनुभूति करते हैं। अँग्रेजी आख़िर उच्च शिक्षा की विद्वानों की भाषा जो है,….

ज़रा ध्यान तो दीजिए हिन्दी प्रेमी कितने लोग अपने बच्चों और उनके बच्चों को हिन्दी माध्यम मे पढ़ाना पसंद करते हैं….. कई सरकारी दफ़्तर में भी सामन्य जन हिन्दी में काम करवाने में काफी असुविधाजनक स्थिति से गुजरना पड़ता है, संसद में भी ज्यादतर लोग अंग्रेजी में ही अपनी बात रखते हैं,खुद को जनसेवक कहने वाले लोग भी हिन्दी को उतना मान नहीं देते, अपने ही घर में पराई सी हमारी हिन्दी, हिंदुस्तान में हिंदी महीना, सप्ताह या दिवस मनाना ही इसकी अस्तित्व बनाएँ रखने के लिए लड़खड़ाती सी नजर आती है ।

तो आइए इस हिंदी दिवस ये निश्चय करें कि हम अपनी हिन्दी को हर संभव समृद्ध करेंगे, अपने जबान में काम करेंगे, और हिंदी का परचम पूरे विश्व में लहाराएंगे….

अनिता वर्मा

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