परिणति

परिणति

 

अभी थोड़ी देर पहले जाकर घर का काम निपटा है। चलो अच्छा हुआ महरी भी आकर चली गई। चैन की सांस ली मैंने।अब दो घंटों की छुट्टी। रोहित चार बजे तक आएगा और उसके पापा आठ बजे तक।अपने कमरे में आकर मैंने एक पत्रिका उठाई और पेज पलटने लगी।तभी मोबाइल बज उठा।किसका हो सकता है यह? सोचते सोचते

मैंने मोबाइल उठा लिया।

‘अरे इन्दु, मैं हूँ पुष्पी तुम्हारे शहर में हूँ।राकेश को कंपनी का काम था उसी के साथ आई हूँ।कल चले जाना है।सोचा तुझे सरप्राइज दे दूँ।बस आ रही हूँ रास्ते में हूँ।…’

‘सरप्राइज तो मेरे पास भी है तेरे लिए’ कहते हुए मैंने अपना मोबाइल रख दिया और आतुरता के साथ पुष्पी की प्रतीक्षा करने लगी।पुष्पी मेरे बचपन की सहेली है।हम दोनों एक ही शहर में और एक ही मोहल्ले में रहती थीं।साथ साथ पढ़ाई भी की ।एक ही स्कूल में पढ़ते थे हम दोनों।साथ साथ स्कूल

आया जाया करते थे।कितने अच्छे दिन थे वो। स्कूल के दिन कितने आनंद दायक होते थे। मित्रों के साथ भरपूर मस्ती होती थी।एक दूसरे का छुट्टी के समय इंतजार करना और घर जाते समय मस्ती करते हुए घर जाना।सच कितने मस्ती भरे दिन थे वे।सच बहुत याद आती है उन दिनों की।याद करते हुए मेरे चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान आ गई।

पुष्पी मेरी पक्की सहेली थी हालांकि हमारे स्वभाव में बहुत अंतर था।पुष्पी यानी पुष्पलता एकदम बिंंदास,बेफिक्र लड़की

थी और मैं उतनी ही संकोची कम बोलने वाली लड़की थी।फिर भी हम दोनों में खूब पटती थी।अक्सर लोग हमारी दोस्ती का

उदाहरण देते थे। हम दोनों पढ़ाई में भी एक दूसरे की मदद खूब करती थीं।मेरे लिखे नोट्स अक्सर पुष्पी के काम आते थे।बहुत बुद्धिमान थी पुष्पी बस एकाग्रता की कमी थी।हमारे रिजल्ट में भी अधिक अंतर नहीं होता था।अब पुष्पी बस आती ही होगी…..कितने सालों के पश्चात मिलेंगे हम दोनों…सोचते सोचते मेरे होठोँ पर प्यारी

सी मुस्कान आ गई और मैं फिर अतीत के गलियारे में खो गई।

यह उन दिनों की बात है जब हम दोनों

9वीं कक्षा में आए ही थे। मार्निंग शिफ्ट से डे शिफ्ट में ।नया नया वातावरण था।अभी हम सबसे ठीक से परिचित भी नहीं थे।हम दोनों जहाँ भी जाते एक साथ रहते थे।स्कूल के हर कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी और उसने बहुत जल्दी अपना स्थान बना लिया था।जबकि मैं कुछ शांत व मितभाषी थी तथा अपने में ही मग्न रहने वाली थी।हमने देखा 11वीं कक्षा का एक लड़का नंद किशोर जिसको सब नंदु के नाम से जानते थे।पूरे स्कूल के विद्यार्थियों के बीच अपनी प्रतिभा, व्यवहार व भाषण शैली की वजह से छाया हुआ था।उसके गौरवर्णीय मुख पर

काले घुंघराले बाल बहुत फबते थे और सपनीली आँखें सबको अपनी तरफ आकर्षित करती थीं।सबसे अच्छी बात यह थी कि वह दिल से सबकी मदद करता था

एक दिन एक छोटा बच्चा गेम्स पीरियड में झूला झूलते समय गिर पड़ा और उसके सिर से खून निकलने लगा।नंदु ने खेल शिक्षक और कुछ साथियों के साथ मिलकर उसे तुरंत हाॅस्पिटल पहुँचाया और आवश्यक मदद की तथा उसके परिवार वालों को भी सूचना देकर बुलाया। पूरे स्कूल में उसके इस कार्य की भूरि भूरि प्रशंसा हुई।प्रिंसिपल मैडम ने भी एसेंबली में उसकी तारीफ की।

एक दिन की बात है वह स्कूल की लायब्रेरी में एक किताब लेने के लिए गई तो वह भी वहाँ किताब लेने आया हुआ था।पुष्पी हमेशा मेरे साथ रहती थी पर उस दिन वह नहीं आई थी।मैंने अपने लिए शरदचंद्र की ‘परिणीता’ पसंद की थी और उसने अंंग्रेजी की कोई किताब।जब मैं किताब लेकर निकल रही थी तो उसने पीछे से पुकारा-‘सुनिए लगता है गलती से हमारी किताब बदल गई है।आप अपनी किताब ले लीजिए लौटाने से पूर्व हम फिर बदल लेंगे।’

मैंने धीरे से धन्यवाद कहा और अपनी किताब रख ली और चुपचाप अपनी कक्षा की तरफ मुड़ गई।धीरे धीरे मुझे वह अच्छा लगने लगा था। रात दिन उसी के विषय में

विचार आते रहते।एक दिन बातों बातों मेंं मैंने उसका जिक्र पुष्पी से कर दिया।बस फिर क्या था पूष्पी को तो बस तो मसाला ही मिल गया।वह जब तब मुझे उसके नाम से छेड़ने लगी।पर मैंने इसे बहुत गंभीरता से

नहीं लिया था और किसी से इसकी चर्चा भी नहीं की थी।तभी एक घटना घट गई ।भावनाओं में बहकर मैंने यूहीं एक पत्र जिसमें फिल्मी गानों की चंद पंक्तियांँ भी थीं लिखकर अपनी किताब में रख दिया था जो असावधानी वश स्कूल के ग्राउण्ड में गिर गया और शरारती बच्चों के हाथ मेंं लग गया जिसे उन्होंने नोटिस बोर्ड पर लगा दिया।बिना किसी संबोधन व हस्ताक्षर के लिखा वह पत्र स्कूल में चर्चा का विषय बन गया।सबूत के अभाव में वह बच गई और किसी

ने उस पर शक नहीं किया।पुष्पी का अनुमान सही था कि वह पत्र मैंने ही लिखा है पर उसने मौन साधना उचित समझा क्योंकि वह मेरी पक्की सहेली जो थी।धीरे धीरे यह घटना पुरानी हो गई व सब लोग भूल गए। तभी गर्मी की छुट्टियांँ हो गई ।छुट्टियों के पश्चात जब स्कूल खुला तो सबसे पहले मेरी निगाहों ने उसे ही खोजा पर वह लड़का नंदु

कहीं नजर नहीं आया।शायद वह अपने पिताजी के ट्रांसफर हो जाने के कारण कहीं और चला गया था।मैं सबकुछ भूल कर अपनी पढ़ाई में लग गई।स्कूल की परीक्षा हम दोनों ने बहुत अच्छे नम्बरों से पास की।हमारे माता पिता बहुत प्रसन्न हुए उनको हम दोनों से बहुत आशाएँ थीं।हम दोनों भी स्कूल छोडने के पश्चात आगे की पढ़ाई में जुट गए और हमने अलग अलग कॉलेजों से बी.ए भी कर लिया।अब हमारा मिलना जुलना कुछ कम ही होता था।संयोगवश हम दोनों की शादी भी एक ही दिन हुई।इस कारण दोनों एक दूसरे के विवाह अटेंड नहीं कर पाईं इसका अफसोस अवश्य रहा।

 

नए जीवन में प्रवेश के साथ दोनों इतना अधिक व्यस्त हो गए कि मिलने का अवसर ही नहीं मिला।मैं तो अपनी घर गृहस्थी में व्यस्त हो गई पर पुष्पी ने आगे की पढ़ाई जारी रखी।आज अचानक पुष्पी के फोन ने सारी पुरानी यादें ताजी कर दीं ।मैं अत्यंत उत्सुकता व प्रसन्नता के साथ उसकी प्रतीक्षा करने लगी।तभी दरवाजे की घंटी बजी।मैंने तपाक से दरवाजा खोला। हम दोनों खुशी से एकदूसरे के गले लग गईं।सामने रखी तस्वीर को देख पुष्पी बोल पड़ी ‘अरे यह तो वही है न नंदु ..’

‘हाँ वही हैं नंदु उर्फ नंद किशोर,यही तो मेरा सरप्राइज है तेरे लिए..’

‘ पर यह सब हुआ कैसे?’-पुष्पी ने पूछा।

‘चल पहले आराम से बैठ फिर चाय पीते पीते बताती हूँ’ मैंने झटपट पुष्पी के पसंद की अदरक वाली चाय बनाई और बोली पहले इतमीनान से चाय पी पुष्पी।

चाय की चुस्की लेते हुए मैं ने बात शुरू की’बात उन दिनों की है जब हम बी .ए के रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रही थे और मेरे माता पिता इस चिंता में थे कि अच्छा घर परिवार मिल जाए तो लगे हाथ मेरा विवाह कर दें।तभी एक दिन मेरे पिता के एक अभिन्न मित्र अपनी पुत्री के विवाह का निमंत्रण पत्र देने आए व सपरिवार आने के लिए कहा।मैं जब अपने माता पिता के साथ वहाँ गई तो बहुत अच्छा लगा क्योंकि उनसे हमारे सम्बंध अत्यंत मधुर थे।मैंनें विवाह की सभी रस्मों का भरपूर आनंद लिया।अचानक मैंने महसूस किया कि दुल्हन की माँ की एक नजदीकी रिश्तेदार बहुत ध्यान पूर्वक मुझपर नजर रखे हुई थीं।पहले तो मैं कुछ सकपकाई लेकिन फिर सहज हो गई।कुछ दिन बीतते न बीतते मेरे माता पिता के पास यह प्रस्ताव आया कि वे अपने सुपुत्र का विवाह मुझसे करना चाहते हैं।जो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है।मेरे माता पिता की प्रसन्नता का तो कोई आर पार नहीं था। उन्होंने सुझाव दिया कि पहले एक बार सब आपस में मिल लें तो बहुत अच्छा रहेगा।उनके परिवार वालों ने भी अपनी सहमति दे दी।एक दिन दोनों परिवारों का मिलने मिलाने का कार्यक्रम बना।नंदकिशोर उर्फ नंदु उसे पहचान गया था।बातों बातों में इसका जिक्र भी हुआ।सब लोग यह जानकर खुश थे कि हम पहले से एकदूसरे को जानते हैं और फिर बस…नंदकिशोर उसकी आशाओं पर खरा उतरा और उनका जीवन बहुत आनंद व आराम से कटने लगा। दो वर्ष बाद बंटी के जन्म के साथ वह और भी व्यस्त हो गई कि समय का पता ही नहीं चला।सच तो यह है पुष्पी जब हम सच्चे दिल से किसी को पसंद करते हैं तो ईश्वर भी हमारी मदद करते हैं।अच्छा अब तू बता तू कैसी है?’

‘एक दम वैसे ही मस्त बेफिक्र बिंंदास कॉलेज मेंं लैक्चरार हो गई हूँ।विद्यार्थियों के साथ समय आराम के साथ कट जाता है।अभी हम दोनों ही हैं।नवीन भी बहुत उदार विचारों के हैं।अच्छी कट रही है।पर वाह!!ग्रेट।सच इंदु मैं बहुत खुश हूँ तेरे लिए।सच क्या लविंग स्टोरी है।’

कुछ लजाते हुए धीरे से सिर झुका कर मैं मुस्कुरा भर दी।

 

आनन्द बाला शर्मा

जमशेदपुर, भारत

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