इंसानियत 

इंसानियत 

घर में ख़ासी चहल – पहल थी।रवि ने आफिस से आते ही पूछा , माँ पैकिंग वग़ैरह सब हो गई क्या?सविता जी ख़ुशी से बोली, हाँ -हाँ ,बस रामू मिठाई और फल लाने गया है , आता ही होगा ।हमेशा बाबूजी यानी रमेश जी चुपचाप चश्मा पहन कर अख़बार हाथ में लिए पढ़ते रहते थे।आस पास क्या हो रहा उससे उन्हें कोई सरोकार नहीं रहता था।सविता जी कई बार झल्लाहट में बोल भी देती थी , आपको घर में क्या हो रहा बिल्कुल मतलब ही नहीं रहता है। अपनी सुविधा के लिए आप घरेलू काम से अनभिज्ञ रखते है। रवि बीच में बोल पड़ता, माँ रहने दो! बाबूजी ज़िंदगी भर हमलोगो के लिए काम करते रहे ,अब तो उन्हें अपनी इच्छा अनुसार रहने दें।सविता जी बेटे की बात सुनकर बड़बड़ाती अपने काम में मसरूफ हो जाती ।

रवि ने माँ से कहा, माँ, जरा सामान हिसाब से ही रखना, ओवरवेट होने पर बहुत पैसा लग जाता है।सविताजी बोली हाँ हाँ ,पर क्या करे शादी में शिरकत करने में सामान तो हो ही जाता है, तभी मैंने ट्रेन से जाने को कहा था।

घर की गहमागहमी से दूर कोने में रवि की पत्नी रानी उदास बैठी हसरत भरी नज़रों से तैयारियाँ देख रही थी। दरअसल जिसकी शादी में सब जा रहे थे वो उसकी सहेली शिखा थी। शिखा रवि के बुआ की लड़की है। रवि अपनी बुआ के घर आता जाता था, उसी दौरान रानी से मुलाक़ात हुई और दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। माता पिता की मर्ज़ी से दोनों की शादी दो साल पहले हुई थी। रानी इकलौती बहू थी।घर में बहुत प्यार और सम्मान था उसका।सब उसे उसके नाम रानी जैसा ही बहुरानी बना कर रखते थे। रानी भी कभी किसी को नाराज़गी का मौक़ा नहीं देती थी। रानी आठ महीने के गर्भावस्था में थी।इसलिए वो शादी में नहीं जा रही थी।

बाबूजी की नज़र उस पर पड़ी, उसे उदास देख वो बेचैन हो गए। उन्होंने बड़े लाड़ से पूछा , क्या हुआ मेरी बहुरानी आज उदास है? बाबूजी की बात सुनकर रानी की आँखें

नम हो गई।रानी बोली बाबूजी शिखा मेरी बहुत प्यारी सहेली है काश मैं भी शादी में शरीक हो पाती तो कितना अच्छा होता । और रानी के आँखों से आँसू छलक गए। बाबूजी भला अपनी बहूरानी के आँखों में आँसू बर्दाश्त कर सकते थे क्या? रवि को आवाज़ दिए और बोले बेटा बहुरानी भी चलेगी शादी में।रवि आश्चर्य से देखने लगा । वो बोला ,पर कैसे मुमकिन होगा रानी का जाना इस अवस्था में ? बाबूजी दृढ़ता से बोले, प्लेन का टिकट छोड़ो हम सब ट्रेन से चलते है। टिकट की व्यवस्था मैं करता हूँ । सविता जी सुन कर बोली ऐसे हालत में जाना उचित नहीं होगा पर बाबूजी नहीं माने। तर्क वितर्क के बाद सबकी सहमति से रानी का जाना तय हो गया।बाबूजी अपने कोन्टेक्ट से ए सी २ टियर में टिकट रिज़र्व करा दिए ।बाबूजी बोले कौन सा किसी गाँव में जा रहे। राँची में मेडिकल सुविधा तो बहुत अच्छी है , ईश्वर न करें पर फिर यदि कोई ज़रूरत आन पड़ी तो हम रानी को डाॅक्टर के पास ले जा सकते है।रानी ख़ुशी से झूम उठी और उत्साह से अपनी पैकिंग करने लगी। रवि भी बहुत खुश हो गया , रानी के साथ चलने से रवि की ख़ुशी दुगनी हो गई ।

सब सामान गाड़ी में रख दिया गया। रानी भी खुद को सँभालकर बैठ गई। स्टेशन आ गया और ट्रेन में सवार हो गए।थोड़ी देर गपशप के बाद सविता जी ने रानी को हिदायत दी कि तुम अब आराम से पैर फैलाकर कर सोने की कोशिश करो।सब अपनी अपनी बर्थ पर लेट गए।अभी ट्रेन मुश्किल से बीस किलोमीटर ही चली थी कि रानी ज़ोर से चीखी और पेट दर्द की शिकायत की।सविता जी के हाथ पैर फूलने लगे। उन्हें समझ आ गया कि जिससे वो रानी को साथ लाने में डर रही थी वहीं होने लगा है । रवि और बाबूजी भी उठ कर खड़े हो गए।सविता जी तो खूब घबड़ा गई। रवि सांत्वना देने लगा । उसने सोचा सुबह तो राँची पहुँच जाएँगे तो हाॅस्पिटल में एडमिट करा देंगे । सविता जी अपने अनुभव से समझ गई थी कि मामला गंभीर है।ट्रेन में अफ़रातफ़री मच गई । कई लोग अपनी सलाह देने लगे। बाबूजी खुद को दोष देने लगे।

साइड वाले बर्थ पर चुपचाप ज्योति सबकुछ देख रही थी।सबकी घबड़ाहट देख कर वो अपने को रोक नहीं पाई।उठकर वो सविता जी के पास गई और बोली क्या मैं आपकी बहू की जाँच कर सकती हूँ? मैं एक डाॅक्टर हूँ । ज्योति मुश्किल से २४- २५ साल की दिख रही थी। सविता जी को उसपर विश्वास नहीं हो पा रहा था । रानी दर्द से कराह रही थी। रवि और बाबूजी दोनों ने साथ साथ ज्योति से कहा , आप प्लीज़ इधर आएँ और हमारी मदद करें।

ज्योति रानी को देखते समझ गई कि अब तुरंत ही उसे बच्चे की डिलीवरी करानी होगी।सविता जी से ज्योति बोली आप मुझे दुपट्टा दे मैं पर्दा करूँगी। बाबूजी से उसने कहा कि आप अपनी शेविंग किट से मुझे बिल्कुल नई ब्लेड निकाल कर दें। ज्योति अपने बैग से सैवलोन और ग्लव्स निकाल ली । एक होनहार डाॅक्टर होने की वजह से विपरीत अवस्था में भी ज्योति ने रानी के बच्चे को सुरक्षित तरीक़े से इस दुनिया में ला दिया ।

सविता जी रवि और बाबूजी के आँखों से ख़ुशी के आंसू अविरल बहने लगे।सविताजी तो खुद को कोसने भी लगी कि उन्होंने छोटी उम्र देख कर शक किया था।जितने भी यात्री थे ख़ासकर महिलाएँ अपनी तरफ़ से मदद करने लगी।ईश्वर की कृपा से बहुत ही सहूलियत से ज़रूरत की सब चीज़ इकठ्ठा हो गई।

सविता जी जब थोड़ी सँभली ,ज्योति के गले लग रोने लगी और बोली, बेटी तुमने मुझे अपनी क़र्ज़दार बना दिया।मैं ज़िंदगी भर तुम्हारा एहसान मानूँगी ।इस उपकार को कभी नहीं भूलूँगी ।

सभी बहुत खुश हो गये और अभी भी इस दुनिया में इंसानियत है इस स्वीकार किया ।ज्योति हंसते हुए बोली यह तो मेरा फ़र्ज़ है। मैं राँची मेडिकल काॅलेज में गाइनॉकोलॉजी डिपार्टमेंट में ज्वाइन करने जा रही हूँ ।आप बिल्कुल भी बुरा न मनाए कोई भी आपकी जगह होता तो मेरी कम उम्र को देख दो बार सोचता । ज्योति की दरियादिली को देखकर सभी प्रशंसा करने लगे। सभी यात्री एक दूसरे से घुलमिल कर बातें करने लगे मानो सब एक ही परिवार से हो।सविता जी अपनी मिठाई की टोकरी खोल सबको ख़ुशी ख़ुशी बाँटने लगी। माहौल ख़ुशनुमा हो गया।

बातों बातों में राँची स्टेशन आ गया । सभी यात्री अपने समान ले कर उतरते हुए बच्चे को आशीर्वाद दे रहे थे।रानी और रवि कृतज्ञता भरी आँखों से डाॅक्टर ज्योति को धन्यवाद दे रहे थे। एक-दूसरे से फ़ोन नंबर ले कर फिर मिलने का वादा किया ।

शादी के घर में पहुँचने पर बाबूजी अपनी बहन से मिलने पर उत्साहित हो कर एलान किए कि मैं दादा बन गया हूँ। विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छे इंसान का साथ मिल जाने से कठिन घड़ी भी आसानी से पार हो गयी। रवि पिता बनने की ख़ुशी को जज़्ब नहीं कर पाया और हंसते हुए बोला अब माहौल में दुगना मज़ा आएगा शहनाई के साथ बच्चे की किलकारी भी सुनाई देगी।

अनिता सिन्हा

गुजरात, भारत

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