सन्नी का कोरोना

सन्नी का कोरोना

सन्नी कोने में और दुबककर, खिसककर बैठ गया था। चारों तरफ बीमार लोगों की चीख-पुकार और अस्पताल की गाड़ियां और भाग -दौड़ दिख रही थी। ये माहौल उसे और सहमा रहा था। सिर्फ दस साल का है वो। तीनों भाई-बहनों में सबसे छोटा।

बड़ी बहन रोशनी की शादी पिछले साल ही हुयी थी। वो सत्रह की हो गयी थी।बाबू मम्मी को बता रहा था कि उम्र में ज़रा बड़ा है ,लेकिन बड़ा मिस्त्री है,जीजा। कई काम हैं उसके हाथ में, शहर के नए इलाकों में। सिर्फ अस्सी हजार में शादी तय हो गयी थी। रोशनी आठंवी पास थी ना, इसलिए। बाबू ने बीस हजार श्याम चाचा से उधार भी लिए थे। माँ ने शादी में अपने गले का तीन पत्ती वाला मंगलसूत्र पालिश कराकर दे दिया था। पायल, बिछिया तो पप्पू मामा लाया था। जीजा बड़ा दिखता है, पर अच्छा है।

रोशनी नहीं आयी थी यहाँ मम्मी बाबू के अस्पताल जाने पर भी। बस और जीप नहीं चल रही हैं और कोरोना भी फैला है,इसलिए रोशनी नहीं आयी। वो रात को कोठरी में जाकर सो जाता है। फिर सुबह से यहीं आकर बैठ जाता है। घर में कोई भी जो नहीं है। मम्मी और बाबू को अस्पताल की गाड़ी यहां लायी थी,चार दिन पहले। ये कहकर कि,’ऐसे छुपते रहोगे तो मर जाओगे और आस-पास भी बीमारी फैलाओगे। कोरोना हुआ है इसीलिए सांस नहीं आ रही ठीक से’ I कैसे धक्के मार-मार कर दोनों को उस गाड़ी में चढ़ाया था। वो बहुत रोया था। तब से वो मम्मी-बाबू से मिलने के लिए यहां आकर बैठ जाता है। वैसे भी आस-पास की कोठरी वाले उसे न अपनी कोठरी में आने देते ,हैं ना ही अपने बच्चों को उससे बात करने देते हैं । यहां अस्पताल—-नहीं सरकारी दवाखाना — इसके सामने खाना बांटने वाले लोग आते हैं। कभी दिन-भर में एक बार,कभी दो-दो बार भी। अकेले मन नहीं लगता और डर भी लगता है और यहां खाने को भी मिलता है , सो वो यही पूरा दिन निकाल देता है।

दूसरे नंबर की बहन रश्मि सात महीने पहले पेट दर्द और उलटी-दस्त से मर गयी थी। उसके स्कूल के खाने में छिपकली निकली थी। वो तीन दिन तक रात दिन रोती रही।बड़ी मुश्किल से काम से छुट्टी लेकर बाबू उसे दवाखाने ले आया था। डॉक्टर ने पूरे तीन हजार रूपये मांगे थे। मम्मी अपनी मालकिनों से किसी तरह सोलह सौ रूपये ही उधार ला पायी थी। बाबू ने डॉक्टर से बहुत कहा था कि बाकी वो दो दिन में दे देगा Iलेकिन डॉक्टर नहीं माना और घर वापस आकर रात को रश्मि मर गयी थी। ये दवाखाना दो कमरों का है। बाहर के छोटे से कमरे में पर्ची कटती है। लेकिन इन दिनों तो डॉक्टर इसी बाहर के कमरे में पता नहीं क्या-क्या पहने बैठता है। सब उसे डॉक्टर कहते हैं, तो पता चलता है कि वो डॉक्टर हैI वरना तो समझ नहीं आता। अंदर के दो कमरों में सात मरीज भर्ती हैं। सबको कोरोना हुआ है।

अस्पताल की गाड़ी में बैठाने से पहले ही गाड़ी वाले ने बाबू से पूरे के पूरे बारह हजार फीस के नाम से ले लिए थे।मम्मी के पेट में पथरी हैI फिर भी वो उधार चुकाने के चक्कर में इलाज नहीं करवा रही थी। श्याम चाचा भी पैसो के लिए बाबू को टोक चुका था। मम्मी रश्मि की शादी के लिए भी कुछ जोड़ना चाहती थी। पर अब तो सारे पैसे ख़तम हो गए।

चार दिन से उसने मम्मी बाबू किसी को नहीं देखा। रोशनी नही आयी और पडोसी भी दुत्कारते हैं। सन्नी बहुत उदास और डरा हुआ है। लॉकडाउन है, तो कोई ज्यादा दिखता भी नहीं।

आज उसने जब दवाखाने के पास से, सब्जी वाले किशना को निकलते देखा तो दौड़कर उसके पास गया।

”किशना तू अंदर से आ रहा है ? तेरी दादी अब कैसी है ? मेरे मम्मी बाबू को देखा क्या ? वो ठीक हैं ? एक सांस में वो सब बोल गया।

”अबे ! सांस तो ले ले। अंदर कोई नहीं जा सकता। मेरी दादी तो परसों आयी थी और उसी रात मर गयी थी। आजकल तो बस मुंह दिखा देते हैं बुलाकर। अगर कोई रिश्तेदार आ जाता है तो ठीक, नहीं तो किरियाकरम(क्रियाकर्म) सब खुद ही करते हैं। मेरा बाबू आया था दादी को पहचानने । तेरे मम्मी बाबू की तो कोई खबर नहीं है मुझे। रुक मैं पता लगIता हूँ।”

” मुझे भी ले चल ना। ” सन्नी रिरियाया।

”अबे ! पागल है , अंदर तो मैं भी नहीं जाऊँगा। बस एक नर्स से दोस्ती है उससे पुछवाता हूँ।”

सन्नी को पक्का पता था कि किशना उसकी मदद जरूर करेगा। वो बड़ा जुगाड़ू है। सन्नी मन ही मन सोच रहा था कि जब बाबू बाहर आएगा तो उसे बताएगा कि कैसे वो रात को अकेला सोया। मम्मी के बिना वो रात को रोया भी नहीं। बाबू हमेशा कहता है,” सन्नी तू खूब बहादुर और बड़ा आदमी बनना। किसी माई के लाल से मत दबना। ये सब साले बड़े आदमी हमें इंसान नहीं समझते। तू पढ़-लिखकर बड़ा पैसेवाला साहब बनना। फिर मैं काम नहीं करूंगा’’I सन्नी चौथी में है पर पढ़ाई में अच्छा है।

आज पांचवा दिन है मम्मी बाबू को देखे हुए। अब किशना उसे उन दोनों से मिलवाने की जुगत निकाल ही लेगा।

”अबे सन्नी ! ओ सन्नी ! यहां आ। ” किशना ने जब जोर से आवाज़ लगाई तो सन्नी का ध्यान टूटा। वो दौड़कर दवाखाने के बाहर वाली कोठरी तक गया। वहां एक पूरे ढके हुए आदमी ने मास्क के अंदर से पूछा ,”तेरे पिताजी का क्या नाम है ?”

” रमाशंकर ”! सन्नी जल्दी से बोला।

”और माँ का नाम शांति कुमारी है क्या?” उस मास्क वाले ने फिर पूछा।

” हाँ ! क्या मैं उनसे मिल लूँ ? बस एक बार।‘’ ,सन्नी गिड़गिड़ाते हुए बोला।

” तू परसों कहा था,रात को आठ बजे ?” उस आदमी ने सन्नी की बात को अनसुना करते हुए पूछा।

” रात को यहां कोई नहीं रहता,तो कोठरी में चला जाता हूँ। अंकल जी एक बार मिलने दो ना। ”

”अरे भई ! अब किससे मिलेगा ? परसों रात तेरा बाबू और कल दोपहर तेरी माँ, दोनों तो स्वर्ग सिधार गए।”, उस आदमी ने बड़े ही आराम से कहा।

इतना सुनते ही सन्नी चीख मारकर जोर-जोर से बिलखने लगा। किशना ने उसे सम्भालने की कोशिश की, लेकिन वो काबू नहीं आ रहा था।

” इसके किसी घरवाले को बुला।यहां क्यों शोर करवा रहा है।ले जा इसको यहां से।‘’, वो आदमी किशना से बोला।

जब किशना ने सन्नी के बारे में सब बताया, तो वो आदमी एकदम से थोड़ा गंभीर हुआ। कुछ देर वो भी सन्नी को समझाता रहा। फिर सन्नी की हालत और हालात को समझते हुए, उसने किसी को फोन लगाया।

दो घंटे बीत चुके थेI सन्नी अभी भी सिसक रहा था। दवाखाने वाले आदमी ने उसे सामने के चबूतरे पर बैठने को कहा था। तभी एक वैन आकर रुकी। ड्राइवर ने दवाखाने वाले आदमी से बात की और सन्नी की तरफ बढ़ा।

उसने बड़े ही प्यार से पुचकारते हुए सन्नी से कहा,” मत रो ! चल अब उठ I तुझे,तेरे जैसे कई और बच्चों से मिलवाता हूँ। अबसे तू उन्हीं के साथ रहना ‘सर्वधर्म आश्रम’ में। वहां हम सब है, तुम अकेलों के साथ।‘’

उसके प्यार भरे स्पर्श में सन्नी को माँ की छुअन का अहसास हुआ। वैन में बैठकर सन्नी कई दिनों बाद गहरी नींद में सो गया।

रंजना बंसल
रीवा (म.प्र.)
शिक्षा – स्नातकोत्तर (अंग्रेजी और शिक्षाशास्त्र ) B.Ed
प्रकाशित पुस्तकें – 6 हिंदी कविता संग्रह (इश्क़ -ए – वतन ,आभासी दुनिया के अनोखे रिश्ते ,स्त्रोतम ,मीमांसा ,मानवत, खट्टी-मीठी बतियाँ )
दो अंग्रेजी कविता संग्रह (Psithurism , She Rose )
एक लघु कथा (आभासी VS तिलिस्म )
एक एकल e -book ( जज़्बातों की खुराफातें ,जज़्बातों की करामतें )
विधा-कविता , कहानी , लेख।

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