प्रतीक्षा

 

 

प्रतीक्षा

 

 

आभास पाकर धुंधली छवि का

आकार लेता प्रिय रूप तुम्हारा

द्वार की ओट से ताकती अपलक

हर पल रहता है इंतजार तुम्हारा।

 

क्यों झेलती मैं विरह की व्यथा?

जब बसे हो हृदय में कमल बन

रोक लेती मैं तुम्हें आवाज देकर

बस देख लेते गर तुम पलटकर।

 

प्राण मेरे! क्यों होते हैं सजल नयन?

जो तुम रुक जाते निमिष भर को

प्राण मेरे! क्यों ठिठकते हैं पाँव?

जो मिल जाती तुम्हारे स्नेह की छाँव।

 

आनन्द बाला शर्मा

जमशेदपुर,भारत

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